शुक्रवार, 12 जून 2020
छूट से देश में विकट हालात पैदा हुए
सरकार को मजदूरी भुगतान का आदेश
नई दिल्ली। निजी नियोक्ताओं, कारखानों, उद्योगों के खिलाफ सरकार कोई कठोर कदम नहीं उठाएगी, जो लॉकडाउन के दौरान श्रमिकों को मजदूरी देने में विफल रहे। ये व्यवस्था देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार के श्रम विभाग वेतन भुगतान के संबंध में कर्मचारियों और नियोक्ताओं के बीच बातचीत करवाएं। मजदूरों को 54 दिन के लॉकडाउन की मजदूरी के भुगतान के लिए बातचीत करनी होगी। उद्योग और मज़दूर संगठन समाधान की कोशिश करें। इसके साथ ही कोर्ट ने केंद्र सरकार को 29 मार्च के अपने आदेश की वैधानिकता पर जवाब दाखिल करने के लिए 4 और सप्ताह दिए, जिसमें सरकार ने मजदूरी के अनिवार्य भुगतान का आदेश दिया गया था। अगली सुनवाई जुलाई के अंतिम सप्ताह में होगी।लॉकडाउन के दौरान निजी कंपनियों व फ़ैक्टरियों आदि के कर्मचारियों को पूरा वेतन देने के सरकारी आदेश पर पिछली में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का आदेश आने तक कर्मचारियों को पूरा वेतन देने में असमर्थ रहे कंपनी मालिकों के खिलाफ कोई कार्रवाई न की जाए। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने कहा कि जब लॉकडाउन शुरू हुआ था तो कर्मचारियों को काम वाली जगह को छोड़कर अपने गृहराज्यों की ओर पलायन करने से रोकने के मंशा के तहत तब अधिसूचना जारी की थी। लेकिन अंततः ये मामला कर्मचारियों और कंपनी के बीच का है और सरकार इसमें दखल नहीं देगी।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी जो अपने स्टाफ़ को वेतन देने में असमर्थता जता रहे कुछ उद्योगों ने दायर की थी। सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि लॉकडाउन से जुड़े सरकार के नए नोटिफिकेशन में लॉकडाउन के दौरान कर्मचारियों को पूरा वेतन देने की शर्त को हटा दिया गया है। सरकार ने कहा कि निजी कंपनियां लॉकडाउन के दौरान अपने श्रमिकों की वेतन कटौती के लिए स्वतंत्र हैं। उद्योगों के वकीलों ने सरकार के इस कदम को नाकाफी कहा। कुछ याचिकाकर्ताओं ने पूरा वेतन न देने के आदेश का विरोध किया। याचिकाकर्ता का कहना था कि लॉकडाउन में कामकाज बिलकुल ठप पड़ा है, कोई कमाई नहीं है, जेबें ख़ालीपड़ी हैं, कारोबार चला पाना संभव नहीं है, ऐसे में स्टाफ़ की सेलरी कहांं से दें।
इसके अलावा अन्य याचिका कई उद्योगों की तरफ से दाखिल गई है, जिसमें कहा गया था कि आवश्यक सेवा से जुड़े उद्योगों को लॉकडाउन में काम करने की इजाजत दी गई, लेकिन सभी कर्मचारियों को पूरा वेतन देने के केंद्र सरकार के आदेश का फायदा उठाकर ज़्यादातर कर्मचारी काम पर नहीं आ रहे हैं। ऐसे में कोरोना के दौरान पहले से संकट का सामना कर रहे उद्योगों को उन्हें पूरा वेतन देने के लिए बाध्य नहीं किया जाना चाहिए।“
राजस्थान में जिंक खनन से जुड़े निर्माण कार्य करने वाली कंपनी ने कहा है जो मजदूर ड्यूटी कर रहे हैं और जो मज़दूर काम पर नहीं आ रहे हैं, उन्हें एक बराबर दर्जा कैसे दिया जा सकता है? ऐसा करना काम करने वाले मजदूरों के साथ भेदभाव होगा।“कंपनी की तरफ से यह दलील रखी गई कि उद्योग काम बंद हो जाने के चलते पहले ही संकट का सामना कर रहे हैं। ऐसे में जिन उद्योगों ने विशेष अनुमति के बाद काम करना शुरू कर दिया है। उन्हें सभी कर्मचारियों का वेतन देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। काम पर न आने वालों के वेतन में कटौती का आदेश बांबे हाई कोर्ट ने दिया है। उसे पूरे देश में लागू करना चाहिए। कंपनी ने दलील दी कि जो कर्मचारी काम कर रहे हैं, वह पूरे वेतन के हकदार हैं। लेकिन जो काम नहीं कर रहे, कंपनी को उनको 30 फ़ीसदी वेतन देने को ही कहा जाना चाहिए। अगर सरकार चाहे तो बाकी 70 फीसदी कर्मचारी बीमा निगम या पीएम केयर्स फंड के पैसों से दे।“ ऐसे ही याचिका कुछ और उद्योगों की तरफ से भी दाखिल की गई थी ।
तीन राज्यों में वायरस ने कहर बरपाया
नई दिल्ली। कोरोना वायरस (कोविड-19) ने देश में सबसे ज्यादा कहर महाराष्ट्र, गुजरात और दिल्ली में बरपाया है तथा इन तीनों राज्यों में इस महामारी से अब तक 6060 लोगों की मौत हो चुकी है, जो देश में इस संक्रमण से हुई कुल मौतों का 71.31 प्रतिशत है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से शुक्रवार को जारी आंकड़ों के अनुसार देश में पिछले 24 घंटे में कोरोना वायरस के 10956 नये मामले सामने आये हैं, जिसके बाद कुल संक्रमितों की संख्या 2,97,535 पर पहुंच गई है। देश में इस महामारी से कुल 8498 लोगों की मौत हुई है तथा 147194 लोग स्वस्थ हुए हैं। देश में इस समय कोरोना के 141842 सक्रिय मामले हैं।
जन मानसिकता बदली, डर का माहौल
नई दिल्ली। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने मोदी सरकार पर एकतरफा फैसले लेने का आरोप लगाते हुए कहा है कि लॉकडाउन भी इसी तरह का कठोर निर्णय था जिसने लोगों की मानसिकता बदली और डर का माहौल पैदा हुआ।श्री गांधी ने अमेरिकी राजनयिक एवं हावर्ड विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय मामलों के प्रोफेसर निकाेलस बर्न्स से शुक्रवार को बातचीत में कहा कि मोदी सरकार ने जिस तरह से लॉकडाउन किया, उसके कारण लोगों की मानसिकता बदली है और काफी डर का माहौल पैदा हुआ है। यह वायरस बहुत घातक है और वायरस के साथ ही इस डर को भी धीरे-धीरे दूर किया जाना चाहिए।
काेरोना से बचाव के लिए सावधानी को लेकर कांग्रेस नेता ने कहा “मैं किसी से हाथ तो नहीं मिला रहा लेकिन मास्क और सुरक्षा के साथ लोगों से मिलता हूं क्योंकि सार्वजनिक सभाएं संभव नहीं हैं और भारत में जन सभाएं राजनीति के लिए संजीवनी है। सोशल मीडिया और ज़ूम के जरिए काफी बातचीत हो रही है। इसके कारण राजनैतिक क्षेत्र में कुछ आदतें निश्चित ही बदलने जा रही है।”श्री गांधी ने कहा कि उन्हें लगता है कि कोरोना के कारण लोगों में एकजुटता का भाव बढ़ रहा है और यूरोप में भी ऐसा ही है। जर्मनी, इटली, ब्रिटेन के बीच वही हो रहा है जो बाकी विश्व में है। दुनिया में कुछ ऐसा हो रहा है, जहां लोग अपने आप में एक होते जा रहे हैं, समझदारी बनती जा रही है और मुझे लगता है कि कोविड संकट के कारण इस भाव में तेजी आयी है।
उन्होंने कहा “मैं अपने देश के डीएनए को समझता हूं। मैं जानता हूं कि हजारों वर्षों से मेरे देश का डीएनए एक प्रकार का है और इसे बदला नहीं जा सकता। हां, हम एक खराब दौर से गुजर रहे हैं। कोविड एक भयानक समय है, लेकिन मैं कोविड के बाद नए विचारों और नए तरीकों को उभरते हुए देख रहा हूं।मैं लोगों को पहले की तुलना में एक-दूसरे का बहुत अधिक सहयोग करते हुए देख सकता हूं। अब उन्हें एहसास हुआ कि वास्तव में संगठित होने के फायदे हैं। एक-दूसरे की मदद करने के फायदे हैं इसलिए वे ऐसा कर रहे हैं।”
नेपाल पुलिस की अंधाधुन फायरिंग, मौत
गोली लगने से घायल होने वाले में से दो की हालत फिलहाल नाजुक बताई जा रही है, जिन्हें इलाज के लिए निजी अस्पतालों में भर्ती कराया गया है। घटना सीतामढ़ी के सोनबरसा बॉर्डर इलाके के जानकीनगर गांव की है। जानकारी के मुताबिक भारत-नेपाल सीमा पर विवाद हुआ था, जिसके बाद नेपाल पुलिस की ओर से अंधाधुंध फायरिंग की गई। फायरिंग की इस घटना के बाद से सीमा पर तनाव की स्थिति बनी हुई है। मौके पर जिला प्रशासन के कई वरीय अधिकारी रवाना हो चुके हैं। इस मामले में विस्तृत जानकारी की प्रतीक्षा की जा रही है।
75 वर्ष बाद संयुक्त राष्ट्र महासभा यात्रा ?
न्यूयॉर्क। संयुक्त राष्ट्र के 75 वर्ष के इतिहास में पहली बार विश्व के नेता इस वर्ष सितंबर में होने वाले महासभा के वार्षिक अधिवेशन में शामिल होने के लिए न्यूयॉर्क की यात्रा नहीं करेंगे। संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष तिजानी मोहम्मद बंदे ने कल संवाददाता सम्मेलन में बताया कि कोविड-19 महामारी की वजह से ऐसा करना पड़ रहा है।
संयुक्त राष्ट्र महासभा का ऐतिहासिक 75वां अधिवेशन 15 सितंबर और इसमें होने वाली उच्चस्तरीय बहस 22 सितंबर से शुरू होने की संभावना है। दुनिया भर में कोविड-19 के प्रकोप को देखते हुए आने वाले महीनों में विश्व के नेताओं के संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय पहुंचने में परेशानियां आ सकती हैं। हालांकि, संयुक्त राष्ट्र ने अधिवेशन और इसमें होने वाली बहस के कार्यक्रम में कोई बदलाव नहीं किया है। ऐसे में अधिवेशन के ऑनलाइन होने की संभावना है।पिछले महीने संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतरेश ने सुझाव दिया था कि बहस में विश्व के नेताओं के पहले से रिकॉर्ड किए गए संदेशों को सुनाया जाना चाहिए।
संयुक्त राष्ट्र महासभा की आम बैठक का इस वर्ष विशेष महत्व है, क्योंकि इस विश्व संगठन के गठन को 75 साल हो गए हैं। अगर कोरोना महामारी का प्रकोप नहीं होता, तो इस अवसर पर संयुक्त राष्ट्र के एक सौ 93 सदस्य देशों के ज्यादतर नेताओं के शामिल होने की संभावना थी।
71 दिनः कृष्ण जन्म स्थान के द्वार खुले
मथुरा। करोना संकटकाल काल में लॉक डाउन होने से 71 दिनों के बाद भगवान श्री कृष्ण ने अपने जन्म स्थान के द्वारा भक्तों के लिए खोले। लंबे समय से अपने आराध्य को आतुर भक्तजन दर्शन लिए आतुर दिखे। मंदिर के द्वार से लेकर भगवान के गर्भगृह तक कोरोना सुरक्षा के तय मानकों का पूरी तरह पालन किया गया।
लॉक डाउन में 2 माह से भी ज्यादा समय तक बृज के मंदिरों के दर्शन बंद रहे हैं। इस दौरान बार-बार मंदिरों को खोलने की मांग उठती रही और भक्तों में अपने आराध्य के दर्शनों की लालसा दिन प्रतिदिन प्रबल होती गई।
केंद्र सरकार द्वारा 8 जून को आम श्रद्धालुओं के लिए दर्शन की पाबंदी हटाने के बाद बृजभूमि में आज सबसे पहले मथुरा के श्री कृष्ण जन्मस्थान ने आम लोगों के लिए दर्शनों को खोला। जिसके बाद धीरे-धीरे स्थानीय श्रद्धालुओं का आने का क्रम शुरु हुआ।
भक्तजन प्रभु दर्शन की लालसा लिए मंदिर के बाहर दर्शनों के लिए सुबह 7:00 बजे से कतारबद्ध हो गए। इस दौरान सोशल डिस्टेंसिंग के मानकों का पूरी तरह पालन किया गया और सभी लोग मास्क पहने हुए थे। श्रद्धालुओं की थर्मल स्क्रीनिंग करने के साथ ही सेनेटाइज भी किया जा रहा है। वहीं मंदिर के मुख्य गेट संख्या 01 पर पुलिसकर्मी पीपीई किट पहनकर तैनात दिखे। श्रद्धालुओं ने सिर्फ अपने आराध्य के दर्शन किए। किसी तरह का चढावा फूल, प्रसाद मंदिर में नहीं चढाया गया।
मंदिर के गेट पर तैनात सिपाही की तबीयत बिगड़ी
8 जून की सुबह श्री कृष्ण जन्मस्थान के मुख्य द्वार पर तैनात सिपाही सुशील कुमार की अचानक तबीयत बिगड़ गई। उसे चक्कर आ गए और वह गिर गया। तभी आसपास खड़े अन्य कर्मियों और सुरक्षाकर्मियों ने उसे संभाला और श्रीकृष्ण जन्मस्थान की एम्बूलेंस से उसे उपचार क लिए भेजा। इस घटना से मंदिर के मुख्य द्वारा पर कुछ समय के लिए हलचल मच गई। बताया जा रहा है कि सिपाही ने पीपीई किट पहन रखी थी, उसमें उसे घुटन सी महसूस हो रही थी।
जन्मस्थान मंदिर में सबसे पहले इन्होंने किए दर्शन
कृष्ण जन्म स्थान मंदिर खुलते ही सबसे पहले श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान के सचिव कपिल शर्मा, प्रबंध समिति सदस्य को गोपेश्वरनाथ चतुर्वेदी, लीगल एडवाइजर मुकेश खण्डेलवाल तथा संस्थान की सुरक्षा में मौजूद पुलिस अधिकारियों ने ठाकुर जी के दर्शन किए तथा समस्त मानवता को कोरोनावायरस के प्रकोप से बचाने के लिए प्रार्थना की।
खुला बाजार, दुकानदारों के चेहरों पर आई रौनक
कोरोना संक्रमण काल में जहां देश-दुनिया में लोग बीमारी का डर और परेशानी से भरी खबरें आ रही है। वहीं मथुरा ने जिंगदी को फिर से पटरी पर लाने और कोरोना से जंग जीतने का संकेत दिया है। कृष्ण जन्म स्थान मंदिर खुलन के पहले दिन ही क्षेत्र का बाजार भी 71 दिनों के बाद खुला है। हालांकि बाजार पूरी तरह से नही खुला है। लेकिन अधिकांश खिलौने और पूजा, श्रृंगार के सामान की दुकानें खुली। दुकानदारों के चेहरे पर खुशी देखी गई।
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