मधुकर कहिन
आगामी अप्रैल माह से पहले राजस्थान में भी मध्य प्रदेश की तर्ज पर सत्ता परिवर्तन
दोनों प्रदेशों के सत्ता परिवर्तन का असली राज़
नरेश राघानी
ग्वालियर राजपरिवार के दिवंगत महाराजा माधवराव सिंधिया के सुपुत्र ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होने के बाद अटकलों का बाजार गर्म है।
राजस्थान का राज़
आगामी अप्रैल माह की 9 तारीख को राजस्थान राज्य के तीन राज्यसभा सांसदों का कार्यकाल पूरा हो रहा है । यह तीनों राज्य सभा सांसद भाजपा से है। जिसमें रामनारायण डूडी विजय गोयल और नारायण लाल पंचारिया अपना कार्यकाल अप्रैल 2020 में समाप्त कर रहे हैं । इन तीनों को सन 2014 अप्रैल में राज्यसभा चुनाव प्रक्रिया के दौरान चुना गया था। यह तब हुआ जब भाजपा की 163 सीटें राजस्थान विधानसभा में थी।
इसके बाद 2019 में भी एक राज्यसभा सांसद की सीट खाली हुई थी । जिस पर पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह को चुनाव लड़ा कर राज्यसभा में लिया गया। शायद अशोक गहलोत को जब मुख्यमंत्री पद के लिए हरी झंडी दी गई थी, तब संभव है कि प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट से यह वादा किया गया हो कि आने वाले राज्यसभा चुनाव में उन्हें राज्यसभा से सांसद बना कर भेजा जाएगा। परंतु विडंबना यह है कि जब केंद्र में अब कांग्रेस की सरकार ही नहीं है। तो सचिन पायलट राज्यसभा से आकर करे भी क्या ?? क्योंकि आगे केंद्र में मंत्री तो बन नहीं सकते थे ।
तो प्रबल बहुत संभावना है कि सचिन पायलट 9 अप्रैल 2020 के बाद भाजपा में शामिल हो जाएं , और इन तीन खाली होने वाली राज्यसभा सीटों में से किसी एक पर आसीन होकर केंद्र में चल रही भाजपा सरकार में मंत्री बन जाएं ।
क्योंकि सन 2024 तक केंद्र में भाजपा की सरकार है जहां वे आराम से केंद्र मंत्री का दर्जा प्राप्त कर सकते हैं।
अब सूत्रों के अनुसार राजस्थान की मौजूदा कांग्रेस सरकार के लगभग 20 से 24 विधायक , जिनमें सचिन पायलट द्वारा टिकट दिए गए और कुछ अन्य को मिलाकर सभी ,भाजपा के संपर्क में है। और कोई बड़ी बात नहीं कि आने वाले अप्रैल माह के करीब इस तरह का माहौल राजस्थान में भी दिखाई दे। यह बात मैं नहीं कह रहा हूं, यह बात वह लोग बोलो रहे हैं , जो लगातार भाजपा मुख्यालय और सचिन पायलट के बेहद करीबी है।
हालांकि फिलहाल देखने पर ऐसा नहीं लगता है कि सचिन पायलट कोई ऐसा कदम उठाएंगे। परंतु सूत्रों की मानें तो लगभग 20 दिन पहले पायलट और सिंधिया के बीच इस मुद्दे को लेकर खूब चर्चा हुई है । और इस चर्चा के चलते सिंधिया का इस तरह से पार्टी छोड़ कर उस तरफ जाना इस योजना का पहला कदम मात्र है।
मध्य प्रदेश का राज़
बात यदि मध्य प्रदेश की करें तो ज्योतिरादित्य सिंधिया के पार्टी छोड़ने के पीछे मूल कारण पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह है। जिनका राज्यसभा का कार्यकाल 10 अप्रैल 2014 को शुरू हुआ था और 9 अप्रैल 2020 को समाप्त हो रहा है। ऐसी सूरत में यह सीट खाली होने पर कांग्रेस अगर चाहती तो आराम से सिंधिया को यहां पर समायोजित कर सकती थी।
परंतु फिर वही !!! कमलनाथ को जब मुख्यमंत्री बनाया गया तब दिग्विजय सिंह से पार्टी आलाकमान ने यह वादा किया था कि आप को राज्यसभा में भेजा जाएगा । तभी जाकर कमलनाथ की सरकार बन पाई। और शायद यही वादा सिंधिया से भी किया गया होगा। सो कांग्रेस ने दिग्विजय सिंह को चुना।
अब ऐसे में यदि दिग्विजय सिंह को दरकिनार कर सिंधिया को भेजा भी जाता तो *सिंधिया के लिए घाटे का सौदा होता। क्योंकि केंद्र में कांग्रेस की सरकार नहीं है। सो सिंधिया न भाजपा का दामन थामने की सोची। जिसके पीछे मुख्य कारण यह था कि मध्य प्रदेश में अन्य दो जगह भाजपा समर्थित राज्यसभा सीटें भी अप्रैल 2020 में खाली हो रही है। जिन पर सत्यनारायण जटिया और प्रभात झा 2014 से राज्यसभा सांसद है। उन्ही पर से किसी एक पर सिंधिया अब नामांकन भर के राज्य सभा जाने वाले हैं।
सो अब मध्य प्रदेश से ज्योतिरादित्य सिंधिया राज्यसभा से नामांकन दाखिल करेंगे , और बतौर राज्यसभा सदस्य चुनकर केंद्र में मंत्री बनाए जाएंगे। उसके पश्चात भाजपा मध्य प्रदेश की सरकार पर बहुमत का दावा ठोकेगी। जिसके चलते जरूरी नहीं शिवराज सिंह चौहान को ही मुख्यमंत्री बनाया जाए। कोई और नया चेहरा भी भाजपा ला सकती है। सरकार बनवाने में मदद करने की एवज में सिंधिया के साथ आए विधायकों में से एक को उपमुख्यमंत्री का पद दिया जा सकता है। अब जल्द ही भाजपा प्रदेश कार्यालय पर सिंधिया का स्वागत होना बाकी है ।जिसमें समस्त मध्य प्रदेश भाजपा के पदाधिकारी शामिल होंगे।
यह है असली किस्सा बाकी सब मोह माया