रांची। झारखण्ड में राज्यसभा की दो सीटों के लिए 26 मार्च को चुनाव होगा। परिमल नाथवानी और प्रेम चंद गुप्ता के कार्यकाल पूरा होने से 2 सीट खाली होने वाली है। इन दो सीटों को लेकर अब आंकड़ों का खेल भी शुरू हो गया है। कांग्रेस ने दावा किया है कि आंकड़े गठबंधन के पक्ष में है और दोनों सीट पर जीत तय है।
झारखण्ड की दो सीटों समेत राज्यसभा की 55 सीटों पर 26 मार्च को चुनाव होना है। इसके लिए चुनाव आयोग ने अधिसूचना जारी कर दी है। अधिसूचना के जारी होते ही राजनीतिक दल भी जरूरी आंकड़ों का समीकरण बनाने में जुट गए हैं। सब कुछ ठीक ठाक रहा तो एक सीट पक्ष और एक सीट विपक्ष के खाते में जा सकती है, लेकिन सूबे में राज्यसभा चुनाव का इतिहास भी रोचक रहा है और कई बार इस चुनाव ने राज्य की किरकिरी भी करवायी है। इस बीच कांग्रेस ने दावा किया है कि आंकड़ों के खेल में जीत गठबंधन की ही होगी।
बात अगर आंकड़ों की करें तो जेएमएम के पास 29 विधायक, बन्धु तिर्की, प्रदीप यादव को मिला कांग्रेस के पास 18 और राजद के एक विधायक है। अभी के हालात में एक सीट जीतने के लिए 27 विधायकों के वोट की जरूरत है. जिसके बाद गठबन्धन के पास अपने 21 विधायक बचते हैं। इसको देखते हुए दूसरे सीट पर भी गठबन्धन का उम्मीदवार उतरना तय है। इसलिए कांग्रेस का उम्मीदवार दूसरी सीट पर होना भी तय है। कांग्रेस कह रही है कि आसानी से दूसरी सीट भी जीत जाएंगे।
बीते कई राज्यसभा चुनाव का परिणाम बता रहा है कि जो आंकड़ें दिखते हैं परिणाम उनके अनुरूप नहीं आते। यही सबसे बड़ी वजह है कि हर चुनाव का परिणाम चौकाने वाला होता है। ये भी कारण है कि कांग्रेस ये दावा करते नहीं थक रही कि दोनों सीट पर जीत तय है।
बुधवार, 26 फ़रवरी 2020
झारखंडः 2 सीटों पर मार्च में चुनाव
भ्रष्टाचार में दोषी पाये गये थे सीएम त्रिवेंद्र
सीएम त्रिवेन्द्र को त्रिपाठी जाँच आयोग ने पाया था भ्रष्टाचार का दोषी
मुख्यमन्त्री बनते ही त्रिवेन्द्र ने पलट दिया था एक्शन टेकन रिपोर्ट को अपने पक्ष में
पंकज कपूर
देहरादून। प्रदेश के मुख्यमन्त्री त्रिवेन्द्र रावत ने वर्ष 2010 में कृषि मन्त्री रहते हुए ढैंचा बीज घोटाले को अन्जाम दिया गया था। ढैंचा बीज घोटाले की एसएलपी सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की। मोर्चा रिव्यू दाखिल करेगा। मा उच्च न्यायालय ने भी राजनैतिक पृष्ठ भूमि के आधार पर खारिज की थी पूर्व में मोर्चा की पीआईएल। जिसको लेकर मा उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की गयी थी, जिसे मा उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया था। उक्त फैसले के खिलाफ मोर्चा द्वारा मा सर्वोच्च न्यायालय में एसएलपी योजित की गयी थी। जिसको मा सर्वोच्च न्यायालय ने यह कहकर खारिज कर दिया कि, मामले में अत्याधिक विलम्ब किया गया है व पूर्व में पारित मा उच्च न्यायालय के आदेश में हस्तक्षेप का कोई आधार नहीं है।
बताते चलें कि, उक्त घोटाले की जाँच को लेकर पूर्ववर्ती सरकार ने वर्ष 2013 में एकल सदस्यीय एससी त्रिपाठी जाँच आयोग का गठन किया था। आयोग द्वारा उक्त मामले में त्रिवेन्द्र रावत को तीन बिन्दुओं पर दोषी पाया गया। जिसमें कृषि अधिकारियों का निलम्बन और फिर इस आदेश को पलटना, सचिव, कृषि द्वारा मामले की जांच विजीलेंस से कराये जाने के प्रस्ताव पर अस्वीकृति दर्शाना तथा बीज डिमांड प्रक्रिया सुनिश्चित किये बिना अनुमोदन करना। इस प्रकार आयोग ने इस मामले में उप्र कार्य नियमावली 1975 का उल्लंघन पाया तथा सीएम रावत के खिलाफ सिफारिश की है कि, रावत प्रीवेंसन आॅफ करप्शन एक्ट 1988 की धारा 13(1) (डी) के अन्तर्गत आते हैं तथा सरकार उक्त तथ्यों का परीक्षण कर कार्यवाही करे।
आयोग की उक्त रिपोर्ट/सिफारिश को सदन के पटल पर रखा गया, जिसमें सदन ने एक्शन टेकर रिपोर्ट प्रस्तुत करने के आदेश दिये। इस मामले में कोई कार्यवाही होती, इसी दौरान वर्ष 2017 में मुख्यमन्त्री बनते ही त्रिवेन्द्र ने अधिकारियों पर दबाव डालकर स्वयं को क्लीन चिट दिलवा दी। मोर्चा द्वारा वर्ष 2018 में उक्त मामले को लेकर मा उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की गयी थी, जिस पर मा उच्च न्यायालय ने दिनांक- 18/09/2018 को यह कहकर याचिका खारिज कर दी कि, याची राजनैतिक व्यक्ति है, तथा पूर्व में गढ़वाल मण्डल विकास निगम का उपाध्यक्ष रहा है। सीएम त्रिवेन्द्र के भ्रष्टाचार के खिलाफ मोर्चा शीघ्र ही मा सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ रिव्यू (समीक्षा याचिका) दाखिल करेगा तथा फिर से मा उच्च न्यायालय में एक अलग याचिका मोर्चा द्वारा दाखिल कर त्रिवेन्द्र के घोटाले को आमजन तक पहुंचाएगा।
आज देहरादून के एक स्थानीय होटल में पत्रकार वार्ता का आयोजन किया गया जहां पत्रकारों से वार्ता करते हुए जन संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष रघुनाथ सिंह नेगी ने पूरा प्रकरण पत्रकारों के साथ साझा किया। उक्त वार्ता में मोर्चा अध्यक्ष रघुनाथ सिंह नेगी संग विजयराम शर्मा, दिलबाग सिंह, अनिल कुकरेती, भीम सिंह बिष्ट आदि मुख्य रूप से उपस्थित रहे।
एलआईसी को बेचना चाहती है सरकार
अजेय कुमार
केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने दूसरे बजट भाषण में घोषणा की है कि सरकार एलआईसी को स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध करेगी और इनीशियल पब्लिक ऑफर (आईपीओ) के जरिए इसमें अपने स्टेक का एक हिस्सा बेचेगी। इस प्रस्ताव को सही ठहराने के लिए उन्होंने तर्क दिया है कि ‘किसी कंपनी को स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध करने से उसमें अनुशासन आता है। इससे वित्तीय बाजार को कंपनी में दखल देने का अवसर मिलता है और इसका मूल्य उन्मुक्त होता है। इस क्रम में खुदरा निवेशक भी कंपनी में भागीदारी कर सकते हैं।’
इस घोषणा से भेड़चाल भारतीय मीडिया में एलआईसी को लेकर एक बहस छिड़ गई है। कुछ तथाकथित वित्तीय विश्लेषक यह दावा कर रहे हैं कि “सिक्योरिटीज ऐंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (सेबी) में सूचीबद्ध होने से पॉलिसीधारकों को बड़ा फायदा होगा। इससे लोग एलआईसी की कार्यप्रणाली पर नजर रख पाएंगे और उसकी कॉरपोरेट गवर्नेंस सुदृढ़ होगी।”
प्रबंधन में आगे: आइए देखें कि एलआईसी की वर्तमान आर्थिक स्थिति क्या है और कॉरपोरेट मीडिया उसे बदनाम करके किन स्वार्थी तत्वों का हित साध रहा है? जवाहरलाल नेहरू के कार्यकाल में 1956 में एलआईसी ने मात्र 5 करोड़ रुपये की धनराशि से अपना कारोबार शुरू किया था। आज एलआईसी की विराट परिसंपत्ति का मूल्य 31 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा है। पिछले दो दशकों से कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने जीवन बीमा के क्षेत्र में प्रवेश किया और एलआईसी को टक्कर देने की कोशिश की।
इस जर्बदस्त प्रतियोगिता के बाद भी भारतीय बाजार में एलआईसी का हिस्सा 73 प्रतिशत से अधिक है। यही कारण है कि 2018-19 के लिए भारत सरकार को उसकी मात्र 100 करोड़ की हिस्सा-पूंजी के बदले एलआईसी ने 2611 करोड़ रुपये का लाभांश दिया है। अगर स्थापना वर्ष से गिना जाए तो एलआईसी ने अब तक कुल 26,005 करोड़ रुपये का बड़ा लाभांश अदा किया है।
एलआईसी भारतीय बाजार में बहुत बड़ा निवेश करती है। कई अवसरों पर सरकार के निर्देश पर उसे स्टॉक मार्केट को गिरने से बचाने के लिए और जब-तब किसी सरकारी कंपनी, जैसे भारतीय रेलवे में निवेश करना पड़ता है। डूबते हुए बैंक आईडीबीआई को बचाने के लिए जुलाई 2018 में एलआईसी को उसके 51 प्रतिशत शेयर खरीदने के लिए कहा गया। यह 13,000 करोड़ रुपये का निवेश वैसे तो एलआईसी जैसी कंपनी के लिए कोई बड़ी बात नहीं थी, लेकिन यह फैसला एलआईसी के प्रबंधन या पॉलिसी धारकों का न होकर केवल सरकार में बैठे मंत्रियों का था।
आईडीबीआई के खराब प्रदर्शन के चलते एलआईसी को कई वर्षों तक अपने इस निवेश से कुछ हासिल नहीं होने वाला है। इसी तरह के निवेश एलआईसी ने 29 सार्वजनिक और निजी बैंकों में कर रखे हैं। तात्पर्य यह कि अगर सरकार दखलंदाजी न करे तो एलआईसी की परफॉरमेंस कहीं बेहतर होगी।
फाइनेंस के वैश्वीकरण के युग में भी एलआईसी जैसा कॉरपोरेशन पूरी दुनिया में नहीं है। इसके कुल लाभ का मात्र 5 प्रतिशत सरकार को मिलता है, जबकि 95 प्रतिशत पॉलिसीधारकों को जाता है। इसीलिए एलआईसी को प्राय: म्युचुअल बेनेफिट लाइफ इंश्योरेंस कंपनी भी कहा जाता है। चालू वित्तीय वर्ष (अप्रैल 2019 से जनवरी 2020) में एलआईसी के प्रथम वर्षीय प्रीमियम में 43 प्रतिशत वृद्धि हुई जबकि निजी इंश्योरेंस कंपनियों में यह मात्र 20 प्रतिशत रही।
मजेदार बात यह कि इन्हीं पॉलिसीधारकों की दुहाई देकर एलआईसी के निजीकरण की तैयारी की जा रही है। एक ऐसी संस्था जो न केवल अपने पॉलिसीधारकों, बल्कि देश के विकास के लिए संसाधन जुटाने में सबसे आगे है, उसमें सरकारी इक्विटी का हिस्सा बेचने का अर्थ होगा सोने के अंडे देने वाली मुर्गी को हलाल करना।
एलआईसी की मुख्य शक्ति उसका डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क है। आज इसके पास 12 लाख एजेंट और 5000 डिवेलपमेंट अफसर हैं, जो मार्केटिंग के बेहतर तौर-तरीके अपनाते हैं। उनकी कोशिशों से एलआईसी के पास आज 42 करोड़ पॉलिसी धारक हैं, जिनमें से 30 करोड़ ने व्यक्तिगत पॉलिसियां ले रखी हैं और बाकी ने ग्रुप इंश्योरेंस ली है। ऐसे में इन पॉलिसी धारकों के मन में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या सरकार पॉलिसी अवधि के बीच में कॉन्ट्रैक्ट की शर्तें बदल सकती है!
वित्त मंत्रालय के अधिकारियों ने फिलहाल यह कहकर इसका जवाब टाल दिया है कि आईपीओ अगले वित्त वर्ष के उत्तरार्ध में ही लाया जाएगा। वैसे यह एक अनैतिक कदम होगा कि मात्र 5 प्रतिशत कानूनी हिस्सेदारी से सरकार अपने एक कमाऊ कॉरपोरेशन को बेच डाले।
यह कॉरपोरेशन प्रति माह अपनी गतिविधियों की रिपोर्ट अपने रेगुलेटर इंश्योरेंस रेगुलेटरी एंड डेवलपमेंट अथारिटी (आईआरडीए) को देता है, जो बाद में संसद में पेश की जाती है।
जहां तक सामाजिक तथा बुनियादी ढ़ांचे के विकास के लिए फंड उपलब्ध कराने की बात है, तो यह पूछा जाना चाहिए कि कौन सी निजी कंपनी 3.5 लाख करोड़ से लेकर 4.5 लाख करोड़ रुपया प्रतिवर्ष सरप्लस पैदा करेगी, जितना एलआईसी करती है। बिना सुदृढ़ प्रबंधन के यह संभव नहीं।
गवर्नेंस के मामले में भी एलआईसी बेहतर ढंग से संचालित है। इसके ऑपरेटिंग खर्चों की तुलना अगर निजी बीमा कंपनियों से की जाए, तो पता चलता है कि एलआईसी की गवर्नेंस कहीं बेहतर है।
भविष्य के लिए: फिर क्या कारण है कि सुचालित, सुप्रबंधित और जन-जन में लोकप्रिय एलआईसी को निकट भविष्य में बेचने की तैयारी की जा रही है? दरअसल जीएसटी के कठिन क्रियान्वयन के चलते अप्रत्यक्ष कर की मात्रा में भारी कमी देखी जा रही है। सरकार का मानना है कि एलआईसी के आंशिक विनिवेश से उसे 70,000 करोड़ रुपये मिल जाएंगे। सार्वजनिक क्षेत्र के अन्य उपक्रमों के विनिवेश से भी 2.10 लाख करोड़ रुपये उगाहने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य केंद्रीय बजट में रखा गया है।
अपनी रिपोर्ट लिखाने थाने पहुंचा चीकु
रायपुर। अक्सर आपने कुत्तों की वफादारी के किस्से तो सुने ही होंगे, लेकिन आज हम आपको एक ऐसे कुत्ते के बारे में बताने जा रहे है जो वफादार होने के साथ ही समझदार भी है। दरअसल अमेरिका के टेक्सास में चीकु नाम का जर्मन शेफर्ड थाने पहुंच गया और खुद की गुमशुदगी की रिपोर्ट भी लिखवाई। एक पालतू जर्मन शेफर्ड मिक्स चीकु अपना घर नहीं ढूंढ पा रहा था। ऐसे में परेशान कुत्ता सीधे पुलिस थाने जा पहुंचा। जहां उसे देखकर पुलिसकर्मी भी हैरत में पड़ गए. पुलिस वालों ने कुत्ते की तस्वीर भी खींची और फेसबुक में अपलोड भी किया। जिससे वह अपने मालिक तक आसानी से पहुंच सके। तस्वीर में भी आप देख सकते हैं कि कुत्ता थाने में डेस्क पर अपने दोनों पैर आगे रखा हुआ है।
वहीं पुलिस ने उसके मालिक की तलाश भी शुरू कर दी और पुलिस ने एनिमल कंट्रोल वालों को इस बात की खबर की। एनिमल कंट्रोल वालों की जांच में ये पता लगा कि किसी व्यक्ति ने कुत्ते की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखवाई थी। एक दिन के बाद कुत्ता अपने मालिक से मिला खुशी से ही उनकी तरफ दौड़ गया। इस तरह कुत्ता अपने मालिक के पास घर तक पहुंच गया।
कोरोना की चपेट में आए उप-स्वास्थ्य मंत्री
सुप्रिया पांडे
रायपुर। कोरोना वायरस का प्रकोप लगातार बढ़ता ही जा रहा है। वायरस की चपेट में आने बड़ी संख्या में लोगों की मौत हो चुकी है। ईरान में अब तक 15 लोगों की मौते हो चुकी है, तो वही उप स्वास्थ्य मंत्री भी इसकी चपेट में आ गए है। जहां संक्रमित लोगों की संख्या 95 के पार हो चुकी है, तो वही उप स्वास्थ्य मंत्री इराज हरीची की कोरोना वायरस जांच पॉजिटिव पाई गई। ट्वीटर में कई लोग इराज हरीची के कोरोना वायरस को लेकर पुष्टी करते हुए भी नजर आ रहे है।
मंत्री को हमेशा से खांसी रहती थी और संवाददाता सम्मेलन के दौरान उन्हें पसीना आता हुआ भी दिखाई दिया। वे सोमवार को सरकारी प्रवक्ता अली रबी के साथ सम्मेलन में शामिल हुए थे। ईरान में मेडिकल सुविधाओं की कमी है वहां अच्छे अस्पताल और डॉक्टरों की कमी होने के साथ ही मास्क उपलब्ध नहीं है। जिसकी वजह से अस्पताल की नर्स भी कोरोना वायरस की वजह से संक्रमित पाई जा रही है। सुरक्षा के अभाव में मरीजों की पर्याप्त देखभाल भी नहीं हो पा रही है।
पंजाब में आ सकती है तूफानी बारिश
लुधियाना। लुधियाना समेत पंजाब भर में मौसम एक बार फिर से करवट ले सकता है। अगले 72 घंटों तक मौसम का मिजाज खुश्क बना रहने की संभावना है। मौसम विशेषज्ञों ने 28 और 29 फरवरी को 30 से 40 किलोमीटर की गति से धूल भरी आंधी व राज्य के अलग-अलग हिस्सों में हल्की से मध्यम बारिश और कहीं पर ओलावृष्टि होने की चेतावनी दी है। वहीं अधिकतम तापमान 23 से 26 डिग्री सैल्सियस के बीच रहेगा, जबकि न्यूनतम पारा 10 से 16 डिग्री सैल्सियस के बीच रह सकता है। सुबह के समय हवा में नमी की मात्रा 75 से 94 फीसदी व शाम को 47 से 65 फीसदी रहने का अनुमान है। वहीं मंगलवार को स्थानीय नगर में अधिकतम तापमान 25.6 डिग्री सैल्सियस व न्यूनतम 12 डिग्री सैल्सियस रिकार्ड हुआ। सुबह के समय हवा में नमी की मात्रा 97 फीसदी व शाम को 50 फीसदी रही। पिछले दिनों के मुकाबले आज मौसम का मिजाज गर्म रहा। मौसम विशेषज्ञ ने आने वाले दिनों में मौसम के बदलते मिजाज को ध्यान में रखते हुए किसानों को यह सलाह दी है कि वह फसलों को जरूरत के मुताबिक ही पानी लगाएं। किसी जानकारी के बिना फसलों पर कीटनाशक दवाओं का स्प्रे न करे।
आधी रात में लगी अदालत, दिए आदेश
नई दिल्ली। नागरिकता संशोधन कानून को लेकर देश की राजधानी के कई इलाकों में हुई हिंसा पर सरकारी और निजी अस्पतालों के डॉक्टरों की एक संस्था ने पुलिस सुरक्षा के लिए देर रात को दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court)का दरवाजा खटखटाया। संस्था ने हिंसाग्रस्त उत्तर-पूर्वी दिल्ली के मुस्तफाबाद क्षेत्र में हिंसा में घायल लोगों को चिकित्सा सुविधा मांगीं थी।
न्यायाधीश के आवास पर मध्यरात्रि को अदालत लगी और मामले की सुनवाई की गई। न्यायमूर्ति एस मुरलीधर और न्यायमूर्ति एजे भंभानी ने मुस्तफाबाद में अल हिंद अस्पताल से घायलों को तत्काल बाहर निकालने का आदेश दिया। यहां कथित रूप से बंदूक की गोली से घायल हुए लोग मेडिकल मदद की प्रतीक्षा कर रहे हैं। पीठ ने यह भी कहा कि घायलों को जीटीबी या अन्य नजदीकी अस्पतालों में ले जाया जाए, जिसमें उनके समुचित इलाज की सुविधा हो. दिल्ली सरकार के वकील संजय घोष और दिल्ली पुलिस के अधिकारी ने अदालत को आश्वासन दिया कि घायलों को बेहतर चिकित्सा प्रदान करने का हर संभव प्रयास किया जाएगा। दिल्ली में हो रही हिंसा के बीच एक दुकान से करीब 80 लाख रुपये की बीयर और वाइन लूट ली गई। चांद बाग की एक शराब दुकान के मैनेजर राज कुमार ने कहा है कि उन्होंने पुलिस कंट्रोल रूम को दो बार कॉल किया था। लेकिन पुलिस नहीं पहुंच सकी। उधर पूर्वी दिल्ली के डीसीपी राजेश देव ने बताया कि पुलिस घायलों के हिंसा ग्रस्त इलाकों से निकाल कर असप्ताल पहुंचा रही है। आद दोपहर हाईकोर्ट तय करेगा कि क्या मामले में किसी और निर्देश की जरूरत है।
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