बुधवार, 26 फ़रवरी 2020

कांग्रेसः गृहमंत्री-सीएम पर दागे सवाल

नई दिल्ली। दिल्ली हिंसा को लेकर कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक आज हुई। बैठक में कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी, महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह मौजूद रहे। बैठक में हिंसा के दौरान मरने वाले लोगों को श्रद्धांजलि दी गई।


बैठक के बाद मीडिया से बात करते हुए सोनिया गांधी ने कहा कि दिल्ली की मौजूदा हालात चिंताजनक है। एक साजिश के तहत हालात बिगड़े। बीजेपी नेताओं ने भड़काऊ भाषण दिए. चुनाव के दौरान नफरत फैलाया। दिल्ली की स्थिति के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह जिम्मेदार हैं। गृह मंत्री को इस्तीफा देना चाहिए।


सोनिया गांधी ने पूछा कि रविवार को गृह मंत्री कहां थे और क्या कर रहे थे? हिंसा वाली जगहों पर कितनी पुलिस फोर्स लगी? बिगड़ते हालात के बाद भी सेना की तैनाती क्यों नहीं की गई? दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल क्या कर रहे थे?


आजम, पत्नी और बेटा जाएंगे जेल

रामपुर। समाजवादी पार्टी (सपा) सांसद आजम खान, उनकी पत्नी तंजीन फातिम और बेटे अब्दुल्लाह आजम खान को 2 मार्च तक के लिए जेल भेज दिया गया है। रामपुर के एडीजी 6 अदालत में आज आजम खान अपने परिवार के साथ पेश होने पहुंचे थे। पिछले काफी समय से कोर्ट के बुलाने पर भी आजम खान हाजिर नहीं हो रहे थे। गैर हाजिरी के चलते कई बार कोर्ट ने आजम खान, बेटे अब्दुल्लाह आजम और पत्नी तंजीम फातमा के खिलाफ जमानती और गैर जमानती वारंट जारी किया। अब तक सपा सांसद आजम खान पर 88 मुकदमे भी दर्ज है।


8 दिन बंद रहेंगे बैंक, निपटा ले काम

नई दिल्ली। आठ से 15 मार्च तक बैंक लगातार आठ दिन बंद रहेंगे। इसमें पांच सरकारी छुट्टी और तीन दिन की हड़ताल शामिल है। पांच सरकारी छुट्टियों वाले दिन ऑनलाइन बैंकिंग का सहारा भी नहीं रहेगा। यानी कि वित्तीय वर्ष के आखिरी महीने में बैंकों ने आम लोगों से लेकर कारोबारियों तक को परेशानी देेने की तैयारी कर ली है।


दरअसल, हड़ताल के दिनों में बैंक अपना सर्वर भी ठप कर देते हैं। इसलिए ऑनलाइन बैंकिंग का विकल्प भी खत्म हो जाता है। बैंक अफसर बताते हैं कि शहर में औसत 300 करोड़ रुपये के चेक, ड्राफ्ट और ऑनलाइन ट्रांजेक्शन की प्रति दिन क्लीयरिंग होती है। बैंक बंद रहने से ये लेनदेन आगे नहीं बढ़ सकेंगे।
आठ दिन बैंकिंग न होने से करीब 2500 करोड़ रुपये का लेनदेन प्रभावित होगा। इसमें से करीब 2000 करोड़ की रकम कारोबारी लेनदेन की होगी। तीन दिन हड़ताल में यदि बैंकों ने सर्वर ठप नहीं किया तभी रिजर्व बैंक से ऑनलाइन लेनदेन को क्लीयरिंग हो सकेगी। हालांकि खाते के हिसाब से लेनदेन की सीमा निर्धारित रहेगी।


पीएनबी ऑफिसर्स एसोसिएशन के महासचिव अनिल कुमार मिश्रा का कहना है कि  हड़ताल को लेकर बैंक संगठनों का रुख स्पष्ट है। हालांकि यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियंस की जायज मांगों को देखते हुए वित्त मंत्रालय के वित्तीय सेवा विभाग ने 29 फरवरी को भारतीय बैंक संघ के साथ वार्ता तय की है।
इसके बाद पांच मार्च को मुख्य श्रमायुक्त (केंद्रीय) ने भी मीटिंग बुलाई है। उम्मीद है कि इन दोनों बैठकों में कुछ सकारात्मक नतीजे आएंगे।  


इस तरह से बंद रहेंगे बैंक 


8 मार्च-  रविवार का अवकाश 
9 मार्च-  होली का अवकाश
10 मार्च- होली का अवकाश
11 मार्च- हड़ताल
12 मार्च- हड़ताल
13 मार्च- हड़ताल
14 मार्च- दूसरे शनिवार का अवकाश  
15 मार्च- रविवार का अवकाश


बूंदीः बारातियों से भरी बस, नदी में गिरी

बूंदी। राजस्थान के बूंदी जिसे से बड़ी खबर आ रही है। यहां बारातियों से भरी एक बस बुधवार की सुबह मेज नहीं में गिर गई। इस हादसे में अभी तक 18 लोगों की मौत की खबर सामने आ रही है। हालांकि अधिकारी रूप से अभी मौतों की पुष्टि नहीं हो सकी है। वहीं, हादसे की सूचना पर पुलिस व प्रशासनिक अधिकारी मौके पर पहुंचे गए और बचाव कार्य में जुट गए। बता दें कि यह दर्दनाक हादसा बूंदी के लाखेरी थाना क्षेत्र में हुआ है। जानकारी के मुताबिक, बारातियों से भरी बस लाखेरी से कोटा की तरफ जा रही थी। तभी बस अनियंत्रित हो गई और मेज नदी में जा गिरी। इससे वहां हाहाकार मच गया। चीख-पुकार सुनकर वहां बड़ी संख्या में ग्रामीण एकत्र हो गए। हाथ-पैर मार रहे बारातियों को बचाने के लिए कुछ ग्रामीण नदी में कूद गए। वहीं, हादसे की सूचना पर बड़ी संख्या में पुलिस व प्रशासन के लोग मौके पर पहुंच गए तथा राहत व बचाव कार्य शुरू कर दिया।


राष्ट्रहित के लिए जनगणना जरूरी

राजा कुमार की रिपोर्ट


मोतिहारी। शहर के राधाकृष्णन भवन में गुरुवार को जनगणना का शुभारंभ जिलाधिकारी शीर्षत कपिल अशोक ने दीप प्रज्वलित कर किया । जिसमे जिला के वरीय पदाधिकारियों को जनगणना का ट्रेनिंग दिया गया। डीएम ने इस मौके पर अधिकारियों को संबोधित करते हुए कहा कि यह जनगणना स्वतंत्रता के बाद का आठवां जनगणना है 10 साल पर पूरे राष्ट्र में जनगणना किया जाता है यह राष्ट्र के विकास के लिए जनगणना बहुत जरूरी माना जाता है।पूर्वी चंपारण जिला बहुत बड़ा क्षेत्रफल है. इसलिए दो फेज में जनगणना कराया जाएगा पहला फेज 26 फरवरी 2020 से तीन अनुमंडलों ढाका , पकड़ीदयाल,और रक्सौल में शुरू किया जाएगा वही अन्य अनुमंडलों की जनगणना पहले फेज के बाद शुरू किया जाएगा ।15 मई से पूरे जिले में मकानों की सूचीकरण और मकानों की गणना किया जाएगा। जनगणना के कार्य को सुचारू रूप से चलाने के लिए जिला स्तरीय पदाधिकारी एडीएम शशि चौधरी को नियुक्त किया गया। प्रशिक्षण में जिलाधिकारी सहित जिले के अन्य पदाधिकारीगण मौजूद रहे।


जातिगत गणना पर सदन में हंगामा

आत्माराम त्रिपाठी की रिपोर्ट


लखनऊ। यूपी विधानसभा में समाजवादी पार्टी ने एक बार फिर जातिवार जनगणना कराने की मांग की जिसको लेकर सदन में जमकर हंगामा हुआ। पक्ष और विपक्ष के बीच हो रहे हंगामे को देखते हुए सदन की कार्यवाही 35 मिनट के लिए स्थगित कर दी गई। फर्जी मुठभेड़ों का आरोप लगाकर सपा सदस्यों ने किया बहिर्गमन।
इससे पहले समाजवादी पार्टी ने राज्य पुलिस पर फर्जी मुठभेड़ की घटनाएं अंजाम देने का आरोप लगाते हुए मंगलवार को सदन से बहिर्गमन किया। बसपा सदस्य श्याम सुंदर शर्मा ने प्रश्नकाल के दौरान यह मुद्दा उठाते हुए सरकार से जानने की कोशिश की कि प्रदेश में एक जुलाई 2017 से 30 सितम्बर 2018 के बीच फर्जी मुठभेड़ और पुलिस द्वारा हत्या के कितने मामले दर्ज हुए।


संसदीय कार्य मंत्री सुरेश कुमार खन्ना ने इसके जवाब में कहा कि इस दौरान लखनऊ में केवल एक मामला दर्ज हुआ जिसमें सम्बन्धित पुलिसकर्मी को न सिर्फ गिरफ्तार किया गया बल्कि उसे बर्खास्त भी किया गया। शर्मा ने जब जवाब को गलत बताया तो खन्ना ने कहा कि उनसे फर्जी मुठभेड़ के बारे में पूछा गया था, उन्होंने उसी का जवाब दिया है। उन्होंने कहा च्च्हम किसी भी मुठभेड़ को फर्जी मानते ही नहीं है। प्रदेश में एक भी फर्जी मुठभेड़ नहीं हुई है।


सदन में सपा और विपक्ष के नेता राम गोविंद चौधरी ने आरोप लगाया कि प्रदेश में पुलिस द्वारा अत्याचार और फर्जी मुठभेड़ की वारदात में बढ़ोत्तरी हुई है। उन्होंने ऐसी घटनाओं में मारे गये लोगों के परिजन को मुआवजा देने की मांग भी की। उसके बाद चौधरी तथा अन्य सपा सदस्य सदन से बाहर चले गये।


नीति का दमन, नियति का दिखावा

अनिल अनूप


दिल्ली के शाहीन बाग इलाके में बीते दो माह से दिया जा रहा जो धरना लाखों लोगों की नाक में दम किए हुए है, उसके यदि खत्म होने के आसार नहीं दिख रहे हैं तो इसकी एक वजह न्यायपालिका का अति उदार रवैया भी है। यह घोर निराशाजनक है कि पहले दिल्ली उच्च न्यायालय ने धरना दे रहे लोगों को सड़क खाली करने के स्पष्ट निर्देश देने से इनकार किया, फिर मामला जब उच्चतम न्यायालय गया तो उसने धरना दे रहे लोगों को समझाने-बुझाने के लिए वार्ताकार नियुक्त कर दिए। ऐसा करके सड़क पर काबिज होकर की जा रही अराजकता को एक तरह से प्रोत्साहित ही किया गया।


क्या अब जहां भी लोग अपनी मांगों को लेकर सड़क या फिर रेल मार्ग पर कब्जा करके बैठ जाएंगे, वहां सुप्रीम कोर्ट अपने वार्ताकार भेजेगा? यदि नहीं तो फिर शाहीन बाग के मामले में नई नजीर क्यों? समझना कठिन है कि जब उच्चतम न्यायालय ने यह माना भी और कहा भी कि इस तरह रास्ता रोककर धरना देना अनुचित है, तब फिर उसने शाहीन बाग इलाके की नोएडा से दिल्ली को जोड़ने वाली उस सड़क को खाली कराने के आदेश देने की जरूरत क्यों नहीं महसूस की, जिसका इस्तेमाल प्रतिदिन लाखों लोग करते हैं?


जो लोग अनुच्छेद 370 को हटाए जाने और नागरिकता कानून में संशोधन के फैसलों का विरोध करने में लगे हुए हैं, वे यह समझें तो बेहतर कि कोई भी सरकार अपने निर्णय से इस तरह पीछे नहीं हटती. नागरिकता संशोधन कानून को लेकर जो लोग भी यह समझ रहे हैं कि धरना-प्रदर्शन, आंदोलन आदि से सरकार किसी भी तरह के दबाव में आ जाएगी, वे भूल ही कर रहे हैं. इसका प्रमाण यह है कि प्रधानमंत्री मोदी ने और अधिक अडिग इरादों का प्रदर्शन किया है. अनुच्छेद 370 हटाना भले ही एक मुश्किल कार्य रहा हो, लेकिन यह इसलिए आवश्यक हो गया था, क्योंकि एक तो यह अलगाव को जन्म दे रहा था और दूसरे कश्मीर के लोगों में भेदभाव कर रहा था. चूंकि अनुच्छेद 370 हटाने और नागरिकता कानून में संशोधन करने के फैसलों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है और शीर्ष अदालत ने संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई शुरू भी कर दी है, इसलिए बेहतर यही होगा कि उसके फैसले का इंतजार किया जाए. यह आश्चर्यजनक है कि जो लोग खुद को संविधान और लोकतंत्र का हितैषी बता रहे हैं, वे इन दोनों मसलों पर संविधानसम्मत आचरण करने से भी इनकार कर रहे हैं. यह किसी भी सरकार के लिए संभव नहीं है कि वह संसद द्वारा पारित और अधिसूचित कानून को वापस ले ले.


लोगों को यह समझना चाहिए कि हर अधिकार की अपनी सीमाएं होती हैं. कोई अधिकार असीमित नहीं हो सकता.  विरोध, हड़ताल अथवा आंदोलन के अधिकार के नाम पर लोग सड़क अथवा रेल मार्ग बाधित नहीं कर सकते, लेकिन दुर्भाग्य से अपने देश में ऐसा ही अधिक होता है.  यह और कुछ नहीं, आम लोगों को बंधक बनाने वाला कृत्य है. कई बार तो ऐसे कृत्यों के कारण लाखों लोगों की दिनचर्या प्रभावित होती है. शाहीन बाग धरना भी यही कर रहा है. इससे खराब बात और कोई नहीं कि सड़क पर कब्जा करके दिए जा रहे जिस धरने के कारण बीते दो महीने से दिल्ली-एनसीआर के लाखों लोगों को परेशानी उठानी पड़ रही है, वह अभी भी समाप्त होता नहीं दिखता. सुप्रीम कोर्ट ने शाहीन बाग धरने को लेकर अपनी चिंता अवश्य जताई, लेकिन यह कोई नहीं जानता कि उसने उसे समाप्त करने की जरूरत क्यों नहीं महसूस की?


इससे दुखद-दयनीय और कुछ नहीं कि मुट्ठी भर लोग सड़क पर कब्जा करके लाखों नागरिकों के धैर्य की परीक्षा ले रहे हैं और फिर भी सुप्रीम कोर्ट तत्काल किसी फैसले पर पहुंचने के बजाय तारीख पर तारीख देना पंसद कर रहा है.


नि:संदेह ऐसा नहीं हो सकता कि सुप्रीम कोर्ट इस तथ्य से परिचित न हो कि शाहीन बाग की सड़क बंद होने से हर दिन लाखों लोगों को परेशानी उठानी पड़ रही है. क्या आधे-पौने की घंटे की दूरी तीन-चार घंटे में तय करने को मजबूर लाखों लोगों के समय और श्रम का कोई मूल्य नहीं? क्या ये लाखों लोग कमतर श्रेणी के नागरिक हैं, जो उनकी सुध लेने से इनकार किया जा रहा है और वह भी दो माह से अधिक समय से? आखिर जब सुप्रीम कोर्ट अनुचित तरीके से धरना-प्रदर्शन कर रहे लोगों के पास अपने वार्ताकार नहीं भेजता, तब फिर उसने शाहीन बाग में लाखों लोगों को तंग कर रहे प्रदर्शनकारियों के पास अपने वार्ताकार क्यों भेजे?


विरोध के नाम पर मनमानी का प्रदर्शन करने वाले धरने के प्रति नरमी दिखाना कानून के शासन के साथ-साथ शांतिप्रिय लोगों के अधिकारों की अनदेखी ही है. यह ठीक नहीं कि विरोध अथवा असहमति जताने के नाम पर मनमानी बढ़ती ही जा रही है. अब तो विरोध प्रदर्शनों के दौरान आगजनी, पत्थरबाजी और तोड़फोड़ आम है. नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ देश के विभिन्न् हिस्सों में जिस तरह बड़े पैमाने पर आगजनी और तोड़फोड़ हुई, उसकी मिसाल मिलना मुश्किल है.


इस तरह की हरकतों से सख्ती से निपटा जाना चाहिए, लेकिन यह देखने में आ रहा है कि इस तरह के मामलों में कई बार अदालतें भी नरम रवैया अपना लेती हैं.  इससे कुल मिलाकर विरोध के बहाने अराजकता फैलाने वालों को ही बल मिलता है. इसमें संदेह है कि शाहीन बाग में धरने पर बैठे लोग अपना अड़ियल रवैया आसानी से छोड़ेंगे. पहले वे नागरिकता संशोधन कानून वापस लेने पर अड़े थे, फिर यह मांग करने लगे कि सरकार को उनसे बात करने धरना स्थल आना चाहिए. इसके बाद उन्होंने हजारों की संख्या में एकत्रित होकर गृहमंत्री से कथित तौर पर वार्ता करने की ठानी. आखिर यह कब समझा जाएगा कि यह धरना आम जनता के सब्र का इम्तिहान ले रहा है?


हैरत नहीं कि ये वार्ताकार नाकाम हैं. इस नाकामी की वजह यही है कि धरने पर बैठे लोग एक तो काल्पनिक भय से ग्रस्त हैं और दूसरे, वे तुक एवं तर्क की बात सुनने को तैयार नहीं. इतना ही नहीं, उन्होंने यह जिद भी पकड़ी है कि पहले उनकी मांग मानी जाए और नागरिकता संशोधन कानून रद्द किया जाए. क्या यह घोर अराजक व्यवहार नहीं?


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