सोमवार, 30 दिसंबर 2019

पत्रकारों का शोषण नहीं होगा बर्दाश्त

 अजय मिश्रा


प्रयागराज ,कोरांव। तहसील कोरांव अन्तर्गत क्षेत्र के लेड़ियारी बाजार में स्थित शिवजियावन इंटर कॉलेज के प्रांगण में शनिवार को ग्रामीण पत्रकार एसोसिएशन की बैठक एसोसिएशन के जिला महामंत्री दिगंबर त्रिपाठी की अध्यक्षता में आहूत की गई । उक्त बैठक में बतौर मुख्य अतिथि ग्रापए एसोसिएशन के जिला अध्यक्ष अयोध्या प्रसाद केसरवानी ने हिस्सा लिया । इस दौरान उन्होने कहा कि पत्रकारों का उत्पीड़न बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। पत्रकारों की हर समस्या की लड़ाई जिले से लेकर प्रदेश स्तर तक लड़ी जाएगी । इस दौरान जिलाध्यक्ष ने वार्षिक प्रगति रिपोर्ट की जानकारी मौजूदा तहसील अध्यक्ष ईश्वर चंद्र मिश्र से ली। एसोसिएशन के महामंत्री दिगंबर त्रिपाठी ने एसोसिएशन के नियम कायदे एवं संगठनात्मक ढांचे को विस्तार से सभी पदाधिकारियों को बताया और वार्षिक सदस्यता शुल्क प्रांतीय सम्मेलन के साथ कई बिंदुओं पर अहम चर्चा की। उक्त बैठक में तहसील अध्यक्ष कोरांव का मनोनयन किया जाना था किंतु संगठन के अगुवाकारों के द्वारा यह निर्णय लिया गया कि 5 तारीख की जिले की बैठक में कोरांव तहसील के अध्यक्ष के नाम की घोषणा की जाएगी। उक्त बैठक में प्रमुख रूप से वरिष्ठ पत्रकार सुखलाल विश्वकर्मा, कृष्ण शंकर पांडे, लक्ष्मण प्रसाद द्विवेदी ,केके मिश्रा, श्री कृष्ण केसरी, अजय मिश्रा, राजेश सिंह, मनीष वर्मा, जनेश्वर तिवारी, सरस्वती प्रसाद मिश्र, सोमधर शुक्ला ,साहब लाल कुशवाहा, सचिन केसरी ,अनुज कुशवाहा, जयशंकर भास्कर, खेमराज सिंह, अरविंद कुमार सिंह, मुकेश द्विवेदी, मनोकामना पांडेय सहित भारी संख्या में पत्रकार मौजूद रहे।


भाजपा के 300 विधायक योगी के खिलाफ

भाजपा के 300 विधायक मुख्यमंत्री योगी के खिलाफ, अखिलेश यादव ने किया दावा                           


लखनऊ। युवाओं को संबोधित करते अखिलेश यादव सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपनी कुर्सी बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। भाजपा के 200 से ज्यादा विधायक अपनी ही सरकार के खिलाफ धरने पर बैठ गए थे। हालत ये है कि भाजपा के करीब 300 विधायक सरकार के खिलाफ हैं इसलिए जानबूझकर प्रदेश में बवाल के बहाने मुद्दों से जनता का ध्यान हटाने की कोशिश की जा रही है।


अखिलेश यादव रविवार को लखनऊ में सपा मुख्यालय पर पार्टी नेताओं को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि हमारा लक्ष्य है भाजपा को हटाना है। भाजपा के लोग समाज में भेदभाव बढ़ाकर उसका लाभ लेने की कोशिश करते हैं। हम संविधान का सम्मान करते हैं और वो संविधान को नहीं मानते। आज जब देश की अर्थव्यवस्था आईसीयू में पहुंच गई है और इनके पास देश को दिखाने के लिए कुछ नहीं है तो समाज में एक दूसरे को लड़वाना चाहते हैं।


अखिलेश ने कहा कि समाजवादी लोग अन्याय के खिलाफ हैं। हम उनसे संघर्ष करेंगे। भाजपा सरकार को बताना चाहिए कि प्रदेश के अलग-अलग जिलों में हुई हिंसा में कितने लोगों के खिलाफ कार्रवाई हुई? आज सभी फोटो और वीडियो मौजूद हैं उन पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए जो जनता को धमकी दे रहे हैं लेकिन ये मुख्यमंत्री ऐसे हैं जिन्होंने खुद पर ही चल रहे मुकदमों को हटवा दिया और अब कुर्सी बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं


'एनआरसी व एनपीआर हर गरीब के खिलाफ हर मुसलमान के खिलाफ'
अखिलेश यादव ने कहा कि हम सरकार को कोई दस्तावेज नहीं दिखाएंगे। हम इसी देश के नागरिक हैं। भाजपा के लोग बेरोजगारी और अर्थव्यवस्था से लोगों का ध्यान हटाने के लिए ये सब कर रहे हैं। गांवों में लोगों के पास दस्तावेज नहीं हैं वो कैसे प्रमाणित करेंगे कि वो इसी देश के रहने वाले हैं। मैं अपना कोई भी दस्तावेज नहीं दिखाऊंगा।


अखिलेश ने कहा कि राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर देश के गरीब, मुसलमान और माइनॉरिटी के खिलाफ है।


दूसरों की चिंता छोड़ मंथन करे कांग्रेस

बहिन मायावती जी का प्रियंका वाड्रा  को जबाव कहा-दूसरों की चिंता करने के बजाए आत्म-चिंतन करे कांग्रेस


लखनऊ। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा की तीखी टिप्पणी पर बसपा सुप्रीमो बहिन मायावती जी ने ट्वीट कर जवाब दिया है :- कांग्रेस के 135वें स्थापना दिवस समारोह में शनिवार को राजधानी लखनऊ पहुंची प्रियंका ने समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी पर हमला बोला था उन्होंने कहा था कि दोनों पार्टियां सरकार से डर रही हैं, वह कुछ नहीं कर रही हैं लेकिन कांग्रेस को संघर्ष की चुनौती स्वीकार है कार्यकर्ताओं के दिल में भय और हिंसा नहीं इस पर बहिन मायावती जी ने ट्वीट कर कहा :- कांग्रेस को दूसरों की चिंता के बजाए आत्म-चिंतन करने की सलाह दी है।


बहिन मायावती जी  ने ट्वीट किया है :- कांग्रेस आज अपनी पार्टी के स्थापना दिवस को 'भारत बचाओ, संविधान बचाओ' के रूप में मना रही है इस मौके पर दूसरों पर चिन्ता व्यक्त करने के बजाए कांग्रेस स्वयं अपनी स्थिति पर आत्म-चिन्तन करती है, तो यह बेहतर हो


नहीं भरेंगे एनपीआर, क्या करेंगे आप

लखनऊ। समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने रविवार को साफ-साफ शब्दों में कहा है कि वह नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर (एनपीआर) नहीं भरेंगे। समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक लखनऊ में पूर्व सीएम अखिलेश यादव का कहना है कि यदि जरूरत पड़ी तो मैं पहला ऐसा व्यक्ति बनूंगा, जो किसी भी फॉर्म को नहीं भरेगा। लेकिन सवाल यह है कि आप समर्थन करेंगे या नहीं। यादव ने आगे कहा कि हम नहीं भरते एनपीआर, क्या करेंगे आप?


नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी को लेकर उत्तर प्रदेश समेत देश के कई राज्यों में भड़की हिंसा के बीच अब एनपीआर को लेकर सभी विपक्षी दलों ने मोदी सरकार को घेरने की तैयारी कर ली है। एक तरफ कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा सीएए के खिलाफ हुई हिंसा के आरोपियों के समर्थन में सड़कों पर हैं। पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने एनपीआर के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। अखिलेश यादव का कहना है कि वह खुद और न ही समाजवादी पार्टी का कोई कार्यकर्ता इस एनपीआर को भरेगा। उन्होंने कहा कि आज के युवाओं को रोजगार चाहिए ना कि एनपीआर। एनपीआर और एनआरसी हर गरीब और अल्पसंख्यकों के खिलाफ है। हमें पहले कांग्रेस ने नहीं गिना, अब भारतीय जनता पार्टी भी नहीं गिन रही है। अखिलेश यादव ये बातें समाजवादी छात्रसभा की बैठक के बाद प्रेस कांफ्रेंस के दौरान कही है।


राजनीतिः रद्द किए कोल ब्लॉक आवंटन

अब्दुल सलाम कादरी 


रांची। केंद्र सरकार ने चार राज्यों के छह कोल ब्लॉक आवंटन को रद्द कर दिया है। शुक्रवार को कोयला मंत्रालय की ओर राज्य की बिजली उत्पादन कंपनियों के साथ छह ब्लॉकों के आवंटन को रद्द कर दिया। इनमें झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र के कोल ब्लॉक शामिल है।चार बिलियन टन कोयले के स्टॉक वाले इन खदानों को 2007-10 के बीच आवंटित किया गया है। बताया जा रहा है कि इस कोल ब्लॉक्स का आवंटन भविष्य की बिजली उत्पादन प्रोजेक्ट के लिए किया गया था। लेकिन इस दिशा में काम आगे नहीं बढ़ने के बाद मोदी सरकार ने इनका आवंटन रद्द कर दिया।


झारखंड के दो कोल ब्लॉक का आवंटन रद्द
केंद्र सरकार ने कुल 4 बिलिटन टन उत्पादन क्षमता वाले छह कोल ब्लॉक्स का आवंटन रद्द किया है। इसमें झारखंड के दो कोल ब्लॉक है। पहला मोरनी (225.4 मीट्रिक टन कोयला) दूसरा केरंदारी जिसमें 916.5 मीट्रिक टन कोयले का भंडारण है। इसके अलावे महाराष्ट्र का भिखुन माइंस (100 मीट्रिक टन), छत्तीसगढ़ का पिंडराखी (421.5 मीट्रिक टन) और पुता पारोगिया (629.2 मीट्रिक टन) और ओडिशा की बनखुई (800 मीट्रिक टन) माइंस शामिल है।


राजस्व पर पड़ेगा असर
झारखंड में फिलहाल सरकारी खजाने की हालत खस्ता है। कर्ज के बोझ तले दबे झारखंड के पास वेतन-भत्ता देने के लिए भी राशि कम पड़ रही है। ऐसे में कोल ब्लॉक का आवंटन रद्द होने से राज्य को राजस्व का और नुकसान उठाना पड़ेगा। सरकार का ये फैसला ऐसे समय में आया है जब मौजूदा वित्त वर्ष में कैप्टिव कोयला उत्पादन 25.1 मीट्रिक टन है, जो 2015 में संचालित 42 ब्लॉक्स में हुए 43.2 मीट्रिक टन से बहुत कम है।


हालांकि, रद्द किये गये 6 कोल ब्लॉक की नीलामी कब की जायेगी, इस बारे में मंत्रालय की ओर से कोई जानकारी नहीं दी गयी है। गौरतलब है कि झारखंड में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी की करारी हार हुई है। और सत्ताधारी भाजपा 25 सीटों पर सिमट गयी, जबकि जेएमएम-कांग्रेस के गठबंधन ने 45 सीटों पर कब्जा जमाते हुए अप्रत्याशित जीत दर्ज की है।अब झारखंड में बीजेपी सत्ता से बाहर है, वहीं केंद्र की मोदी सरकार ने झारखंड के दो कोल ब्लॉक समेत कुछ ब्लॉक का आवंटन रद्द कर दिया, जिससे राज्यों को राजस्व की हानि उठानी पड़ेगी।


प्रेमी युगल ने फांसी लगाकर की आत्महत्या

जांजगीर-चाम्पा। डभरा थानांतर्गत छुहीपाली में पिछले एक महीने से किराए के घर में रह रहे प्रेमी जोड़े ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। घटना की सुचना मिलते ही डभरा पुलिस मौके पर पहुंची और शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज कर मामले की जांच में जुट गई है। फिलहाल आत्महत्या के कारण का पता नहीं चल पाया है। बता दें कि मृतक युवक डभरा तहसील में कंप्यूटर ऑपरेटर के पद पर पदस्थ था।


विचारधारा-नेतृत्व के दोराहे पर खडी कांग्रेस

पूजा सिंह 


नई दिल्ली। कांग्रेस अपना 135 वां स्थापना दिवस एक ऐसे समय पर मना रही है जब वह विचारधारा और नेतृत्व, दोनों मामलों में दोराहे पर खड़ी है। विचारधारा का मामला तो महाराष्ट्र में शिवसेना से गठबंधन कर सरकार बनाने के बाद से थोड़ा नरम पड़ गया है, किंतु नेतृत्व का मामला अभी भी उलझा हुआ दिख रहा है। एक तरफ जहां अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी अपने पुत्र राहुल गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष बनाने के लिए उत्सुक नजर आती हैैं, वहीं आम कांग्रेसी नेताओं में एक ऐसी सोच है कि अभी सोनिया गांधी ही कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व संभाले रहें। कांग्रेसी नेताओं का यह भी मानना है कि दिल्ली में विधानसभा के चुनाव के बाद ही कांग्रेस के नेतृत्व के मुद्दे को देखने और समझने की कोशिश की जानी चाहिए। दिल्ली में अगले महीने ही विधानसभा हो सकते हैैं।
कांग्रेसी नेता राहुल को दोबारा अध्यक्ष के लिए तो तैयार हैं, लेकिन काम के तरीके में चाहते हैं बदलाव…
आज कांग्रेस के अंदर जो हलचल मची है उसका एक दिलचस्प पहलू यह भी है कि महत्वपूर्ण पदों पर बैठे हुए कांग्रेसी नेता इस बात के लिए तो बिल्कुल तैयार नजर आ रहे हैैं कि वह राहुल गांधी को ही दोबारा अपना अध्यक्ष चुन लें, लेकिन इसके साथ ही वे राहुल गांधी के कामकाज करने के तौर-तरीके में थोड़ा बदलाव भी देखना चाहते हैं। उनकी एक-एक उम्मीद यह भी है कि सोनिया गांधी और राहुल गांधी, दोनों जल्द ही कांग्रेस कार्य समिति का निष्पक्ष चुनाव कराएंगे। देखना है कि ऐसा हो पाता है या नहीं?
दरअसल कांग्रेस में कार्य समिति के चुनाव हमेशा एक बहुत बड़ी चुनौती रहे हैं। वर्ष 1991 में जब पीवी नरसिंह राव कांग्रेस अध्यक्ष बने थे तो उन्होंने तिरुपति में अप्रैल 1992 में चुनाव कराए थे। इसके अलावा दूसरी बार सीताराम केसरी ने कोलकाता में अगस्त 1997 में कांग्रेस कार्य समिति के चुनाव कराए थे। कांग्रेस जन यह चाहते हैं कि कार्य समिति के चुनाव के जरिये कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं की भूमिका तय हो जानी चाहिए। खासतौर से उन नेताओं के लिए जो नेहरू-गांधी परिवार के सदस्य नहीं हैैं।
सोनिया गांधी के तकरीबन 20 वर्ष के लंबे अध्यक्षीय कार्यकाल में कांग्रेस में महत्वपूर्ण पद पर ऐसे लोग मौजूद रहे हैैं जो उनके पसंदीदा थे। हालांकि राहुल गांधी ने भी उसी विधि को अपनाते हुए महत्वपूर्ण पदों पर अपने लोगों को बिठाने की कोशिश की, लेकिन उसमें वह पूरी तरह से कामयाब नहीं हुए थे। अब कांग्रेस के जो वरिष्ठ नेता हैं उन्हें डर है कि राहुल गांधी जब कभी वापस आएंगे तो कहीं वह पार्टी में बड़े पदों पर जैसे कार्य समिति के सदस्य, पार्टी के महासचिव या प्रदेश अध्यक्षों को अपनी पसंद से मनोनीत करना न शुरू कर दें।
जाहिर है कि यदि कार्य समिति का चुनाव होगा तो उसमें वरिष्ठता का एक तरीके से क्रम तय हो जाएगा। कांग्रेस कार्य समिति चुनने का अधिकार ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के 1500 सदस्यों को है जो पूरे देश के विभिन्न राज्यों से आते हैं। कांग्रेस के संविधान के अनुसार कांग्रेस कार्य समिति 24 सदस्य की होनी चाहिए। जिसमें 12 सदस्यों का चुनाव होना चाहिए और 12 सदस्यों को कांग्रेस अध्यक्ष मनोनीत कर सकता है। इन 12 सदस्यों में अल्पसंख्यक, महिलाएं और कमजोर तबके के लोग होते हैं।
सोनिया गांधी और राहुल गांधी को पार्टी के अंदर से उठती आवाजों का संज्ञान लेना चाहिए…
एक तथ्य यह भी है कि कांग्रेस कार्य समिति के चुनाव बहुत बार इस बिना पर नहीं किए जाते हैं कि उससे पार्टी में बिखराव हो सकता है और आपसी झगड़े बढ़ सकते हैं। फलस्वरूप कार्य समिति ही कांग्रेस अध्यक्ष को अधिकृत कर देती है कि वह समस्त 24 सदस्यों को मनोनीत कर दें, लेकिन आज पार्टी के अंदर से कुछ आवाजें उठ रही हैं। सोनिया गांधी और राहुल गांधी को पार्टी के अंदर से उठती इन आवाजों का संज्ञान लेना चाहिए।
झारखंड विधानसभा के चुनाव परिणाम आने के बाद कांग्रेस में आशा की एक नई किरण आई है। यहां झारखंड मुक्ति मोर्चा और राष्ट्रीय जनता दल के साथ मिलकर चुनाव लड़ी कांग्रेस को 16 सीटें मिली हैैं। झारखंड चुनाव नतीजों के बाद कांग्रेसी नेताओं को लगता है कि यदि केंद्रीय नेतृत्व पार्टी में सबको साथ लेकर चले तो राज्यों में नतीजे बेहतर हो सकते हैं।
हरियाणा और महाराष्ट्र की तरह झारखंड में भी गांधी परिवार की बहुत सक्रिय भूमिका नहीं थी। राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा, दोनों ने प्रचार में हिस्सा तो लिया था, लेकिन गठबंधन के अधिकतर काम हेमंत सोरेन के जिम्मे ही थे। कांग्रेस पार्टी की जिम्मेदारियों के निर्वाह का जिम्मा वहां मौजूद कांग्रेस के नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री आरपीएन सिंह और दूसरे जमीनी नेताओं पर था। कामकाज की इस परिपाटी में कांग्रेस को उम्मीद से ज्यादा कामयाबी मिली है। उम्मीद है कि यह मॉडल आने वाले समय में रहेगा और चलेगा।
कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व का काम यह है कि वह सबको साथ लेकर चले और जो राष्ट्रीय मुद्दे हैं उस पर एक स्पष्ट नीति तय करे। कार्य समिति के चुनाव होने से उसके जो सदस्य होंगे उनसे भी ऐसी आशा की जाती है कि वे संवेदनशील मुद्दों पर अपनी बात रख रखेंगे। कांग्रेस के अंदर फैसला लेने का अभी जो अधिकार है वह सोनिया गांधी के पास है। उनके सलाहकारों का पार्टी के अंदर या बाहर लोकप्रियता या जनाधार जानने का कोई पैमाना नहीं है।
प्रश्न यह उठता है कि क्या सोनिया गांधी और राहुल गांधी कांग्रेस कार्य समिति का चुनाव करने के लिए तैयार हैं? क्या कांग्रेस दिल्ली में भी एक ऐसी रणनीति अपनाएगी जहां वह पार्टी हित को सब कुछ न मानकर भाजपा के खिलाफ एक गठबंधन तैयार करेगी या फिर उसकी कोई और रणनीति होगी? यह समय ही बताएगा, लेकिन यह समझना आवश्यक है कि कांग्रेस जन और नेहरू-गांधी परिवार का रिश्ता बहुत दिलचस्प ।
एक आम कांग्रेसी सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को अपनी तमाम शक्ति देने को तैयार है। वह उनकी बातों को मानने को भी तैयार रहता है और उनके निर्देश पर अपना सब कुछ गंवाने को तैयार रहता है। वह कुछ पाने की भी इच्छा रखता है, लेकिन उसकी सिर्फ एक ही चाह है कि कांग्रेस सत्ता से दूर न रहे। यह मंत्र सोनिया गांधी बखूबी समझती हैैं। क्या राहुल गांधी यह कर पाएंगे? कांग्रेस का अध्यक्ष बनना तो आसान है, लेकिन उसके साथ इंसाफ कर पाना एक बहुत बड़ी चुनौती है, जो राहुल गांधी को पूरा करना है। क्या वह इसके लिए तैयार हैैं? यह वह सवाल है जिसका जवाब आने वाले दिनों में ही सामने आएगा।


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