नई दिल्ली। नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ प्रदर्शन के चलते देश के कई हिस्सों में इंटरनेट अस्थाई रूप से बंद कर दिया गया है। इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनैशनल इकनॉमिक रिलेशन्स समेत दो थिंक टैंक संस्थाओं की रिसर्च के मुताबिक, इंटरनेट बैन करने के मामले में भारत दुनिया भर में सबसे आगे है। मगर क्या आपको पता है कि सरकार इंटरनेट पर बैन लगाने का फैसला कैसे लेती है। इंटरनेट सस्पेंड करने की एक पूरी प्रकिया है, जिसे फॉलो करते हुए इस पर बैन लगाया जाता है। यहां हम आपको बता रहे हैं कि भारत में इंटरनेट कैसे बंद किया जाता है।
देश में इंटरनेट पर कैसे लगता है बैन?
केंद्र या राज्य के गृह सचिव इंटरनेट बैन करने का ऑर्डर देते हैं।
यह ऑर्डर एसपी या उससे ऊपर के रैंक के अधिकारी के माध्यम से भेजा जाता है। उक्त अधिकारी सर्विस प्रोवाइडर्स को इंटरनेट सर्विस ब्लॉक करने के लिए कहता है।
ऑर्डर को अगले कामकाजी दिन (वर्किंग डे) के भीतर केंद्र या राज्य सरकार के रिव्यू पैनल के पास भेजना होता है। इस रिव्यू पैनल को 5 वर्किंग डेज में इसकी समीक्षा करनी होती है। केंद्र सरकार के रिव्यू पैनल में कैबिन सेक्रेटरी, लॉ सेक्रेटरी और टेलिकम्युनिकेशन्स सेक्रेटरी होते हैं। वहीं, राज्य सरकार से दिए गए आदेश के रिव्यू पैनल में चीफ सेक्रेटरी, लॉ सेक्रेटरी और एक कोई अन्य सेक्रेटरी शामिल रहता है।
इमर्जेंसी में क्या होता है?
इमरर्जेंसी की स्थिति में केंद्र या राज्य के गृह सचिव द्वारा अधिकृत किए गए जॉइंट सेक्रेटरी इंटरनेट बैन करने के लिए आदेश दे सकते हैं। हालांकि, इसके लिए उन्हें 24 घंटे के भीतर केंद्र या राज्य के गृह सचिव से इसकी मंजूरी लेनी पड़ेगी।
2017 से पहले अलग नियमःसाल 2017 से पहले जिले के डीएम इंटरनेट बंद करने का आदेश देते थे। 2017 में सरकार ने इंडियन टेलिग्राफ ऐक्ट 1885 के तहत टेम्प्ररी सस्पेंशन ऑफ टेलिकॉम सर्विसेज (पब्लिक इमरजेंसी या पब्लिक सेफ्टी) रूल्स तैयार किए। इसके बाद अब सिर्फ केंद्र या राज्य के गृह सचिव या उनके द्वारा अधिकृत अथॉरिटी इंटरनेट बंद करने का आदेश दे सकते हैं।