औद्योगिक इमारतों के निर्माण के लिए उपयुक्त स्थान का चुनाव करते समय निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना आवश्यक हैं : विद्युत्शक्ति और जल सस्ता और पर्याप्त मात्रा में मिल सके। आवश्यक मात्रा और संतोषजनक रूप में श्रम सुलभ हो। कच्चे माल और आवश्यक उपकरण को उचित व्यय और सुविधाजनक रीति से प्राप्त करने तथा प्रस्तुत माल को बाहर भेजने के लिए समुद्र या नौसंवहन योग्य नदी, रेल लाइन और पक्की सड़क हो। व्यवसायजन्य रद्दी सामानों के उचित विक्रय की सुविधा हो। भूमि भवननिर्माण योग्य हो और पड़ोस ऐसा हो जिससे भविष्य में उद्योग का कम खर्च से सुविधाजनक एवं संतोषजनक रूप से विस्तार संभव हो सके। युद्धकालीन बमबारी जैसे जोखिमों से बचने के लिए यथासंभव जनाकीर्ण एंव सामरिक महत्व के क्षेत्रों को नहीं चुनना चाहिए।
स्थान की आवश्यकता पर सावधानी से विचार करना चाहिए। विभिन्न एककों की रचना बड़ी सतर्कता से करनी चाहिए जिससे दैनिक कार्यसंचालन में शक्ति का अपव्यय न हो और न स्थान, सामग्री, श्रम या धन की बरबादी हो। आयोजन सरल होना चाहिए जिससे कम से कम खर्च में प्रतिष्ठान में कार्य करनेवालों की कार्यक्षमता अधिक से अधिक बढ़ाई जा सके और उन्हें अधिकतम सुख सुविधा प्राप्त हो सके। जलवायु की स्थिति, वायुप्रवाह की दिशा, वर्षा की मात्रा आदि पर भी उचित ध्यान देना आवश्यक है। इमारतें एकमंजिली हों या कई मंजिलों की, यह उद्योगविशेष की अपनी आवश्यकताओं, भूमि के आपेक्षिक मूल्य, भूमि की स्थिति तथा क्षेत्रफल आदि पर निर्भर है। कई मंजिलोंवाली इमारतों में अग्नि के नियंत्रण के लिए स्वचालित व्यवस्था होनी चाहिए जिससे बीमे का खर्च कम हो। अग्निकांड और संकट के समय निकल भागने का भी उचित प्रबंध आवश्यक है। लिफ़्ट और स्वचालित सोपानों की व्यवस्था भी हो सके तो अच्छा है।
यह ध्यान रखना आवश्यक है कि प्रत्येक विभाग का विस्तार समय आने पर उचित रीति और कम व्यय से किया जा सके और इससे उत्पादन में कोई ह्रास न हो। प्रतिष्ठान के विस्तार के अनुरूप जलपान एवं भोजनगृह, विश्रामकक्ष, शौचालय, बहुमूल्य वस्तुओं को रखने के लिए सुरक्षित स्थान, चिकित्सालय एवं क्रीड़ांगण आदि कल्याणकारी सुविधाएँ भी नितांत अपेक्षित हैं। वास्तु को प्रभावशाली बनाने के लिए भवन के आकार प्रकार, बनावट, सौष्ठव और सम्यक् अनुपात का ध्यान रखना चाहिए। कर्मचारियों की मनोदशा और मानसिक वृत्तियों पर रंगों के आयोजन का बड़ा प्रभाव पड़ता है, जिससे अंतत: उत्पादन के परिमाण और अच्छाई दोनों प्रभावित होते हैं। प्रतिष्ठान की भीतरी दीवालों की रँगाई हल्के रंगों से या सफेद होनी चाहिए। इमारतों में रोशनी की पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए जिससे निरंतर एकरूप प्रकाश मिल सके, किंतु चकाचौंध न उत्पन्न हो। प्राकृतिक प्रकाश का अधिकतम लाभ उठाना चाहिए। रात के समय कृत्रिम प्रकाश के रूप में बिखरकर आया बिजली का श्वेत प्रकाश अपेक्षित होता है। प्राय: विद्युन्नलिकाएँ (फ़्लुओरेसेंट ट्यूब लाइट) सर्वाधिक सुविधाजनक होती हैं। इसके लिए प्राकृतिक और कृत्रिम दोनों प्रकार की व्यवस्थाएँ की जा सकती हैं। तंबाकू, औषध और वस्त्रोद्योग जैसे प्रतिष्ठानों में, जहाँ ताप एवं आर्द्रता का नियंत्रण और धूलिकणों का दूर रखना बहुत आवश्यक होता है, वायु अनुकूलन की भी व्यवस्था करनी पड़ती है। औद्योगिक इमारतों का निर्माण अग्निसह होना चाहिए।
कुछ देशों में कारखानों की वृद्धि इतनी अधिक हुई है कि शहरों में उनका बनाना असंभव हो गया है। इसलिए बड़े कारखाने शहर से दूर बनाए जाते हैं और पास में ही कार्यकर्ताओं के लिए गृह, पाठशाला, उद्यान, अस्पताल, बाजार, सिनेमा आदि सभी विशेष रूप से बनाए जाते हैं। इस प्रकार प्रत्येक कारखाना एक छोटा सा नगर ही हो जाता है!