रिपोर्ट- हिमांशु शुक्ला
रायबरेली। पद, प्रतिष्ठा प्राप्त कर सत्ता की मलाई खाने को लालायित भाजपाईयो में जिलाध्यक्ष पद प्राप्त करने की होड़ चरम पर आ गयी है। भाजपा की चुनावी नियमावली के अंतर्गत उसके निर्वाचक मंडल में कुल 44 सदस्य है, एक प्रस्तावक, एक समर्थक के साथ कुल 22 वैध दावेदार हो सकते है। पूर्व कैबिनेट मंत्री व भाजपा संगठन के जनपदीय चुनाव अधिकारी बालचंद्र मिश्र के समक्ष 57 दावेदारों ने जिलाध्यक्ष पद पर दावा ठोककर प्रमाणित कर दिया कि अलग चाल, चरित्र व चेहरे की बात करने वाली भारतीय जनता पार्टी में सत्ता की मलाई खाने का भीषण रोग लग चुका है, भाजपा संगठन स्वरूप के अनुसार निर्वाचित 22 मंडल अध्यक्ष व 22 जिला प्रतिनिधि ही अध्यक्ष पद के दावेदारों के प्रस्तावक समर्थक के रूप में दावेदारों के नाम प्रस्तावित कर सकते है, संगठन स्वरूप के अनुसार 22 दावेदारों के बजाय 57 लोगो ने जिलाध्यक्ष पद पर दावेदार बनकर प्रमाणित कर दिया कि अनेक मंडल अध्यक्ष व जिला प्रतिनिधियो ने एक से अधिक दावेदारों के नाम का प्रस्ताव व समर्थन किया है। इतने दावेदार होने के फलस्वरूप यह निश्चित है भाजपा में गुटबाजी और आपसी रार चुनाव को प्रभावित करेगी। जिससे उपजी परिस्थितियों में राज्य नेतृत्व हस्तक्षेप कर अपने किसी पसंदीदा नेता के पक्ष में अन्य दावेदारों से नामांकन वापस लेकर निर्विरोध निर्वाचन सम्पन्न कराने का प्रयास करेगा । जिसके बाद गुटबाजी के तीव्र होने की संभावना से इनकार नही किया जा सकता। पिछले संगठनात्मक चुनाव के बाद तत्कालीन जिलाध्यक्ष दिलीप यादव के विरुद्ध लामबंद सभी गुटों ने मिलकर उन्हें कार्यकाल के मध्य पदमुक्त कराकर रामदेव पाल को जिलाध्यक्ष नामित करा लिया था। केंद्र व प्रदेश की सत्ता में काबिज भाजपाईयो के दिल मे जिलाध्यक्ष बनकर सत्ता की मलाई खाने के कसक हिलोरे मारती रही चुनाव के अवसर पर दावेदारों की बड़ी सूची इस बात को प्रमाणित कर रही है, कि दावेदारों में नामी चेहरों के साथ गुमनामी की शाल ओढ़ने वालो सहित सत्ता बदलते दल बदलने का खेल खेलने वाले भी सम्मलित है ऐसे में अध्यक्ष कोई बने यह निश्चित हो चुका है आपसी रार तकरार में संगठन प्रभावित होगा और कांग्रेस सुप्रीमो व नेहरू खानदान के अंतिम अजेय किले को ध्वस्त करने की भाजपाई योजना कहा तक सफल हो पाएगी यह वर्तमान परिदृश्य से स्पष्ट होने लगा है।