मंगलवार, 5 नवंबर 2019

भाषा प्रभावित करने वाली 'फारसी'

फारसी भाषा

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फ़ारसी ( / ( p ʒr ʒ , n , - - ʃn / ), जिसे इसके अंतिम नाम फारसी ( فارسی , फरसी ) से भी जाना जाता है, [f [siɒːɾˈ] ( इस ध्वनि के बारे में सुनो ) ), एक पश्चिमी ईरानी भाषा है जो भारत-ईरानी उप- भाषा की ईरानी शाखा के ईरानी शाखा से संबंधित है। यह मुख्य रूप से ईरान , अफगानिस्तान और ताजिकिस्तान के भीतर आधिकारिक तौर पर बोली जाने वाली और तीन परस्पर समझदार मानक किस्मों में इस्तेमाल की जाने वाली एक बहुल भाषा है , जिसका नाम ईरानी फ़ारसी , दारी फ़ारसी (आधिकारिक तौर पर 1958 से दारी नाम) और ताज़िकी फारसी (आधिकारिक तौर पर सोवियत काल से ताजिक नाम है। )। यह उज्बेकिस्तान के भीतर एक महत्वपूर्ण आबादी द्वारा ताजिक किस्म में भी बोली जाती है, साथ ही अन्य क्षेत्रों के भीतर ग्रेटर ईरान के सांस्कृतिक क्षेत्र में एक फ़ारसी इतिहास के साथ। यह आधिकारिक तौर पर ईरान और अफगानिस्तान के भीतर फारसी वर्णमाला , अरबी लिपि की व्युत्पत्ति और ताजिकिस्तान के भीतर साइरिलिक की व्युत्पत्ति ताजिकिस्तान के भीतर लिखा गया है।


फ़ारसी
फारसी बोलने वालों की महत्वपूर्ण संख्या वाले क्षेत्र (बोलियों सहित)
ईरान, अफगानिस्तान और ताजिकिस्तान। 
  जिन देशों में फारसी एक आधिकारिक भाषा है
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फ़ारसी भाषा मध्य फ़ारसी की एक निरंतरता है, जो सासैनियन साम्राज्य की आधिकारिक धार्मिक और साहित्यिक भाषा है (224–651 CE), जो कि पुराने फ़ारसी की एक निरंतरता है, जिसका उपयोग अचमेनिद साम्राज्य (550–330 ईसा पूर्व) में किया गया था। इसकी उत्पत्ति दक्षिण-पश्चिमी ईरान के फ़ार्स ( फारस ) क्षेत्र में हुई। इसका व्याकरण कई यूरोपीय भाषाओं के समान है।


पूरे इतिहास में, फारसी एक प्रतिष्ठित सांस्कृतिक भाषा रही है जिसका उपयोग पश्चिमी एशिया , मध्य एशिया और दक्षिण एशिया में विभिन्न साम्राज्यों द्वारा किया जाता है। पुरानी फ़ारसी लिखित रचनाएँ ६ वीं और ४ वीं शताब्दी ईसा पूर्व के बीच के कई शिलालेखों पर पुरानी फ़ारसी क्यूनिफ़ॉर्म में दर्ज हैं , और मध्य फ़ारसी साहित्य पार्थियन के समय से शिलालेखों में अरामाइक- लिपिड लिपियों ( पाहलवी और मनिचैयन ) में शिलालेखों में शामिल है । साम्राज्य और पुस्तकों में तीसरी से 10 वीं शताब्दी ईस्वी के बीच जोरोस्ट्रियन और मनिचैन शास्त्रों में केंद्रित है। 9 वीं शताब्दी के अपने शुरुआती अभिलेखों के साथ ईरान की अरब विजय के बाद से नए फ़ारसी साहित्य का विकास शुरू हुआ, तब से अरबी लिपि को अपनाया गया। फारसी कविता मुस्लिम भाषा में अरबी भाषा के एकाधिकार से टूटने वाली पहली भाषा थी, फारसी कविता के लेखन के साथ कई पूर्वी अदालतों में अदालती परंपरा के रूप में विकसित हुई। मध्ययुगीन फ़ारसी साहित्य की कुछ प्रसिद्ध रचनाएँ फ़िरदौसी का शाहनाम , रूमी का काम, उमर ख़य्याम की रुबाईत , निज़ामी गंजवी का पंज गंज , हाफ़िज़ का दीवान , निशापुर के अत्तार द्वारा पक्षियों का सम्मेलन। , और सादी शिराज़ी द्वारा गुलिस्तान और बुस्तान के मिसकैलानिया ।


फ़ारसी ने अपनी पड़ोसी भाषाओं पर काफी प्रभाव छोड़ा है, जिसमें अन्य ईरानी भाषाएं, तुर्क भाषाएं , अर्मेनियाई , जॉर्जियाई और इंडो-आर्यन भाषाएँ (विशेष रूप से उर्दू ) शामिल हैं। इसने मध्ययुगीन अरब शासन के तहत कुछ शब्दावली उधार लेते हुए अरबी, विशेष रूप से बहरानी अरबी , पर कुछ प्रभाव डाला।


दुनिया भर में लगभग 110 मिलियन फारसी बोलने वाले लोग हैं, जिनमें फारसियन , ताजिक , हज़ारस , कोकेशियान टाट्स और एइमक्स शामिल हैं । फारसोफोन शब्द का उपयोग फ़ारसी के एक वक्ता को संदर्भित करने के लिए भी किया जा सकता है।


कम वर्षा अथवा खाध अभाव

अकाल भोजन का एक व्यापक अभाव है जो किसी भी पशुवर्गीय प्रजाति पर लागू हो सकता है। इस घटना के साथ या इसके बाद आम तौर पर क्षेत्रीय कुपोषण, भुखमरी, महामारी और मृत्यु दर में वृद्धि हो जाती है। जब किसी क्षेत्र में लम्बे समय तक (कई महीने या कई वर्ष तक) वर्षा कम होती है या नहीं होती है तो इसे सूखा या अकाल कहा जाता है। सूखे के कारण प्रभावित क्षेत्र की कृषि एवं वहाँ के पर्यावरण पर अत्यन्त प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इससे स्थानीय अर्थव्यवस्था डगमगा जाती है। इतिहास में कुछ अकाल बहुत ही कुख्यात रहे हैं जिसमें करोंड़ों लोगों की जाने गयीं हैं।


अकाल राहत के आपातकालीन उपायों में मुख्य रूप से क्षतिपूरक सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे कि विटामिन और खनिज पदार्थ देना शामिल है जिन्हें फोर्टीफाइड शैसे पाउडरों के माध्यम से या सीधे तौर पर पूरकों के जरिये दिया जाता है।सहायता समूहों ने दाता देशों से खाद्य पदार्थ खरीदने की बजाय स्थानीय किसानों को भुगतान के लिए नगद राशि देना या भूखों को नगद वाउचर देने पर आधारित अकाल राहत मॉडल का प्रयोग करना शुरू कर दिया है क्योंकि दाता देश स्थानीय खाद्य पदार्थ बाजारों को नुकसान पहुंचाते हैं।


लंबी अवधि के उपायों में शामिल हैं आधुनिक कृषि तकनीकों जैसे कि उर्वरक और सिंचाई में निवेश, जिसने विकसित दुनिया में भुखमरी को काफी हद तक मिटा दिया है।[4] विश्व बैंक की बाध्यताएं किसानों के लिए सरकारी अनुदानों को सीमित करते हैं और उर्वरकों के अधिक से अधिक उपयोग के अनापेक्षित परिणामों: जल आपूर्तियों और आवास पर प्रतिकूल प्रभावों के कारण कुछ पर्यावरण समूहों द्वारा इसका विरोध किया जाता है।


सभ्यता-संस्कृति का आधार 'संगीत'

भारतीय संगीत
भारतीय संगीत का जन्म वेद के उच्चारण में देखा जा सकता है। संगीत का सबसे प्राचीनतम ग्रन्थ भरत मुनि का नाट्‍यशास्त्र है। अन्य ग्रन्थ हैं : बृहद्‌देशी, दत्तिलम्‌, संगीतरत्नाकर।


संगीत एवं आध्यात्म भारतीय संस्कृति का सुदृढ़ आधार है। भारतीय संस्कृति आध्यात्म प्रधान मानी जाती रही है। संगीत से आध्यात्म तथा मोक्ष की प्रप्ति के साथ भारतीय संगीत के प्राण भूत तत्व रागों के द्वारा मनः शांति, योग ध्यान, मानसिक रोगों की चिकित्सा आदि विशेष लाभ प्राप्त होते है। प्राचीन समय से मानव संगीत की आध्यात्मिक एवं मोहक शक्ति से प्रभावित होता आया है। प्राचीन मनीषियों ने सृष्टि की उत्पत्ति नाद से मानी है। ब्रह्माण्ड के सम्पूर्ण जड़-चेतन में नाद व्याप्त है, इसी कारण इसे "नाद-ब्रह्म” भी कहते हैं।


अनादिनिधनं ब्रह्म शब्दतवायदक्षरम् ।
विवर्तते अर्थभावेन प्रक्रिया जगतोयतः॥
अर्थात् शब्द रूपी ब्रह्म अनादि, विनाश रहित और अक्षर है तथा उसकी विवर्त प्रक्रिया से ही यह जगत भासित होता है। इस प्रकार सम्पूर्ण संसार अप्रत्यक्ष रूप से संगीतमय हैं। संगीत एक ईश्वरीय वाणी है। अतः यह ब्रह्म रूप ही हैं । संगीत आनन्द का अविर्भाव है तथा आनन्द ईश्वर का स्वरूप है। संगीत के माध्यम से ही ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है। योग व ज्ञान के सर्वश्रेष्ठ आचार्य श्री याज्ञवल्क्य जी कहते हैं -


वीणावादनतत्वज्ञः श्रुतिजातिविशारदः।
तालश्रह्नाप्रयासेन मोक्षमार्ग च गच्छति।
संगीत एक प्रकार का योग है। इसकी विशेषता है कि इसमें साध्य और साधन दोनों ही सुखरूप हैं। अतः संगीत एक उपासना है, इस कला के माध्यम से मोक्ष प्राप्ति होती है। यही कारण है कि भारतीय संगीत के सुर और लय की सहायता से मीरा, तुलसी, सूर और कबीर जैसे कवियों ने भक्त शिरोमणि की उपाधि प्राप्त की और अन्त में ब्रह्म के आनन्द में लीन हो गए। इसीलिए संगीत को ईश्वर प्राप्ति का सुगम मार्ग बताया गया है। संगीत में मन को एकाग्र करने की एक अत्यन्त प्रभावशाली शक्ति है तभी से ऋषि मुनि इस कला का प्रयोग परमेश्वर का आराधना के लिए करने लगे।


समग्र स्वास्थ्य के लिए व्यायाम

व्यायाम वह गतिविधि है जो शरीर को स्वस्थ रखने के साथ व्यक्ति के समग्र स्वास्थ्य को भी बढाती है। यह कई अलग अलग कारणों के लिए किया जाता है, जिनमे शामिल हैं: मांसपेशियों को मजबूत बनाना, हृदय प्रणाली को सुदृढ़ बनाना, एथलेटिक कौशल बढाना, वजन घटाना या फिर सिर्फ आनंद के लिए। लगातार और नियमित शारीरिक व्यायाम, प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ा देता है और यह हमारी नींद कम करता है इससे हमें सुबह उठने पर तकलीफ नहीं होतीहृदय रोग, रक्तवाहिका रोग, टाइप 2 मधुमेह और मोटापा जैसे समृद्धि के रोगों को रोकने में मदद करता है। यह मानसिक स्वास्थ्य को सुधारता है और तनाव को रोकने में मदद करता है। बचपन का मोटापा एक बढ़ती हुई वैश्विक चिंता का विषय है और शारीरिक व्यायाम से बचपन के मोटापे के प्रभाव को कम करने में मदद मिल सकती है।


व्यायाम के लाभ:-व्यायाम मानव देह को स्वस्थ रखने का एक अत्यन्त आवश्यक उपाय है। दौड़, दंड-बैठक, सैर, कुश्ती, जिम्नैस्टिक, हॉकी, क्रिकेट, टेनिस आदि खेल व्यायाम के ही कई रूप हैं। व्यायाम ऐसी क्रिया का नाम है जिससे देह में हरकत हो, देह की हर एक नस-नाड़ी, एक-एक सैल क्रिया में आ जाये। जिस समय हम व्यायाम करते हैं उस समय हमारी देह के अंग ऐसी चेष्टा करते हैं, जिसमें हमें आनन्द भी मिलता है और श्रम भी होता है। इससे हमारे शरीर का हर अंग स्वस्थ रहता है। जब हम व्यायाम करते हैं, तो हम अंगों को हिलाते-डुलाते हैं, उससे हमारे हृदय और फेफड़ों को अधिक काम करना पड़ता जिसके फलस्वरूप हमारी एक-एक सांस शुद्ध हो जाती है, हमारे रक्त की एक-एक बूँद स्वच्छ हो जाती है।यह हमारे शरीर को लचिला बनाता है।


मस्तिष्क का काम करने वाले मानवों को व्यायाम अवश्य ही करना चाहिये, क्योंकि देह से श्रम करके रोटी कमाने वालों के अंगों को तो हरकत करने का अवसर फिर भी मिल जाता है किन्तु अध्यापक, डाक्टर, वकील, कम्पयूटर-ओपरेटर आदि लोगों के लिये व्यायाम अत्यन्त आवश्यक है। व्यायाम से देह सुन्दर हो जाती है और उसकी रोगों से लड़ने की शक्ति बढ़ जाती है। हाँ बहुत अधिक व्यायाम से हानि भी हो सकती है। आप जब थक जायें तब आपको व्यायाम करना बन्द कर देना चाहिये।


चमेली की मोहक सुगंध

चमेली, जैस्मिनम (Jasminum) प्रजाति के ओलिएसिई (Oleaceae) कुल का फूल है। भारत से यह पौधा अरब के मूल लोगों द्वारा उत्तर अफ्रीका, स्पेन और फ्रांस पहुँचा। इस प्रजाति की लगभग 40 जातियाँ और 100 किस्में भारत में अपने नैसर्गिक रूप में उपलब्ध हैं। यह भारत में प्रमुख रूप से पाया जाता है। जिनमें से निम्नलिखित प्रमुख और आर्थिक महत्व की हैं:


1. जैस्मिनम ऑफिसनेल लिन्न., उपभेद ग्रैंडिफ्लोरम (लिन्न.) कोबस्की जै. ग्रैंडिफ्लारम लिन्न. (J. officinale Linn. forma grandiflorum (Linn.) अर्थात् चमेली।


2. जै. औरिकुलेटम वाहल (J. auriculatum Vahl) अर्थात् जूही।


3. जै. संबक (लिन्न.) ऐट. (J. sambac (Linn.) ॠत्द्य.) अर्थात् मोगरा, वनमल्लिका।


4. जै. अरबोरेसेंस रोक्स ब.उ जै. रॉक्सबर्घियानम वाल्ल. (J. Arborescens Roxb. syn. J. roxburghianum Wall.) अर्थात् बेला।


हिमालय का दक्षिणावर्ती प्रदेश चमेली का मूल स्थान है। इस पौधे के लिये गरम तथा समशीतोष्ण दोनों प्रकार की जलवायु उपयुक्त है। सूखे स्थानों पर भी ये पौधे जीवित रह सकते हैं। भारत में इसकी खेती तीन हजार मीटर की ऊँचाई तक ही होती है। यूरोप के शीतल देशों में भी यह उगाई जा सकती है। इसके लिये भुरभुरी दुमट मिट्टी सर्वोत्तम है, किंतु इसे काली चिकनी मिटृटी में भी लगा सकते हैं। इसे लिए गोबर पत्ती की कंपोस्ट खाद सर्वोत्तम पाई गई है। पौधों को क्यारियों में 1.25 मीटर से 2.5 मीटर के अंतर पर लगाना चाहिए। पुरानी जड़ों की रोपाई के बाद से एक महीने तक पौधों की देखभाल करते रहना चाहिए। सिंचाई के समय मरे पौधों के स्थान पर नए पौधों को लगा देना चाहिए। समय-समय पर पौधों की छँटाई लाभकर सिद्ध हुई है। पौधे रोपने के दूसरे वर्ष से फूल लगन लगते हैं। इस पौधे की बीमारियों में फफूँदी सबसे अधिक हानिकारक है।


आजकल चमेली के फूलों से सौगंधिक सार तत्व निकालकर बेचे जाते हैं। आर्थिक दृष्टि से इसका व्यवसाय विकसित किया जा सकता है। चमेली एक सुगंधित फूल है, जिसके महक मात्र से लोग मोहित हो जाते है! इस फूल से बहुत सारी दवाइयां बनायी जाती हैं, जो सिर दर्द, चक्कर, जुकाम आदि में काम आता है़!


असुविधा में यज्ञ कैसे करें?

गतांक से...
 (महानंद जी) ओम देवा भद्राम् भव्यम् ब्राह्मणा रुद्राहा: हम द्रव्हो गायंत्वाहा! मेरे पूज्यपाद गुरुदेव अथवा मेरे भद्र ऋषि मंडल अभी-अभी मेरे पूज्य पाद गुरुदेव नाना यज्ञो के संबंध में अपने विचार दे रहे थे! क्योंकि यज्ञ में परंपरागतो से ही मानव निहित रहा है और मेरे पूज्य पाद गुरुदेव ने भी अभी-अभी यह प्रकट करया कि यज्ञ अपने में बड़ा विचित्र है! जहां हमारी यह आकाशवाणी जा रही है, वहां एक यज्ञ का आयोजन हुआ और मैं यह जानता हूं कि यज्ञ अपने में बड़ा विचित्र उधरवा में कर्म है! मैं अपने यजमान को कहता हूं! हे यजमान, क्योंकि मेरा अंतरात्मा यजमान के साथ रहता है और मैं यह कहता रहता हूं कि हे यजमान तुम्हारे जीवन का सौभाग्य अखंड बना रहे! यह जो काल चल रहा है इस काल को मैं वाम मार्ग काल कहता रहता हूं! वाममार्ग उसे कहते हैं जो उल्टे मार्ग पर का गमन करता है! यज्ञ इत्यादि का खंडन करता है और उसे खंडन करने के पश्चात उसकी कीर्ति में नहीं रहना चाहता! विचार आता रहता है! पूज्यपाद गुरुदेव ने मुझे कई कालों में प्रकट करते हुए कहा, आज भी मुझे स्मरण है कि यज्ञ अपने में बड़ा अनूठा क्रियाकलाप है! बड़ी अनोखी एक विचित्र धारा है! परंतु देखो वह अपने में ही अपनी आभा कृतियों में रत होने वाला है! विचार आता रहता है गुरुदेव यह जो वर्तमान का काल चल रहा है! वह वाम मार्ग काल है, वह मार्ग उसे कहते हैं जो उल्टे मार्ग पर गमन करता है! मुझे आश्चर्य होता है कि कैसे ऐसे में मानव की आभा कैसे विकृत हो जाती है? और विकृत होकर के अपनेपन और तन को वह शांत कर देता है? हे मानव, तू अपनी मानवता के ऊपर विचार-विनिमय कर और यज्ञ जैसे क्रियाकलापों को अपने से दूर ना होने दें! हे यजमान तेरे जीवन का सौभाग्य और प्रतिभा  बनी रहे! मैं उच्चारण कर रहा था कि मेरे पूज्य पाद गुरुदेव कहीं राष्ट्रवाद की चर्चा करते हैं तो कहीं राम की तपस्या की चर्चा करते हैं! पूज्यपाद गुरुदेव बड़े-बड़े अति उत्थानो की विवेचना अपने मन में ही करते रहते हैं! मेरे प्यारे उन्होंने कहा संभवत कृताहा: कि हम उसी आभा मे रत रहना चाहते हैं! जहां मार्ग में एक महानता की उपलब्धि हो जाती है! मेरे पूज्य पाद गुरुदेव कई समय से वर्णन करा रहे हैं! कहीं राम की तपस्या का वर्णन करते रहते हैं कि राम इतने विशाल तपस्वी थे और कहीं विश्वभान चर्चाएं होती रहती है! परंतु वेद के माध्यम से विचार आता रहता है कि यजमान अपने में महान बने, परंतु मैं आज इन वाक्यों का गीत गाने नहीं आया हूं! मैं राष्ट्रवाद के ऊपर अपनी विचारधारा व्यक्त करना चाहता हूं! कि राष्ट्रवाद कितना अनूठा है और कितना विचित्र माना गया है! पूज्यपाद गुरुदेव ने कई काल में प्रकट करते हुए कहा है कि उस काल की वार्ताएं स्मरण आती है तो हृदय मे गदगदता जाती है! हृदय में अग्रता का उत्पादन होने लगता है! देखो ऋषि अपनी वार्ता प्रकट करता है, कहता है 'संभवे संभवा कृतम देवा:, यजमान तेरे जीवन की आभा सदैव बनी रहे तेरे जीवन का सौभाग्य अखंड बना रहे!


प्राधिकृत प्रकाशन विवरण

यूनिवर्सल एक्सप्रेस    (हिंदी-दैनिक)


नवंबर 06, 2019 RNI.No.UPHIN/2014/57254


1. अंक-92 (साल-01)
2. बुधवार, नवंबर 06, 2019
3. शक-1941, कार्तिक-शुक्ल पक्ष, तिथि- दसंमी, संवत 2076


4. सूर्योदय प्रातः 06:28,सूर्यास्त 05:41
5. न्‍यूनतम तापमान -16 डी.सै.,अधिकतम-23+ डी.सै., हवा की गति बढ़नेे की संभावना रहेगी।
6. समाचार-पत्र में प्रकाशित समाचारों से संपादक का सहमत होना आवश्यक नहीं है। सभी विवादों का न्‍याय क्षेत्र, गाजियाबाद न्यायालय होगा।
7. स्वामी, प्रकाशक, मुद्रक, संपादक राधेश्याम के द्वारा (डिजीटल सस्‍ंकरण) प्रकाशित।


8.संपादकीय कार्यालय- 263 सरस्वती विहार, लोनी, गाजियाबाद उ.प्र.-201102


9.संपर्क एवं व्यावसायिक कार्यालय-डी-60,100 फुटा रोड बलराम नगर, लोनी,गाजियाबाद उ.प्र.,201102


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cont.935030275
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