रविवार, 27 अक्टूबर 2019

उड़द बीज की दो प्रजातियां

उरद या उड़द एक दलहन होता है। उरद को संस्कृत में 'माष' या 'बलाढ्य'; बँगला' में माष या कलाई; गुजराती में अड़द; मराठी में उड़ीद; पंजाबी में माँह, अंग्रेज़ी, स्पेनिश और इटालियन में विगना मुंगों; जर्मन में उर्डबोहने; फ्रेंच में हरीकोट उर्ड; पोलिश में फासोला मुंगों; पुर्तगाली में फेजों-द-इण्डिया तथा लैटिन में 'फ़ेसिओलस रेडिएटस', कहते हैं।


उड़दइसका द्विदल पौधा लगभग एक हाथ ऊँचा है और भारतवर्ष में सर्वत्र ज्वार, बाजरा और रुई के खेतों में तथा अकेला भी बोया जाता है। इससे मिलनेवाली दाल भोजन और औषधि, दोनों रूपों में उपयोगी है। बीज की दो जातियाँ होती हैं :


(1) काली और बड़ी, जो वर्षा के आरंभ में बोई जाती है और


(2) हरी और छोटी, जिसकी बोआई दो महीने पश्चात्‌ होती है।


इसकी हरी फलियों की भाजी तथा बीजों से दाल, पापड़ा, बड़े इत्यादि भोज्य पदार्थ बनाए जाते हैं। आयुर्वेद के मतानुसार इसकी दाल स्निग्ध, पौष्टिक, बलकारक, शुक्र, दुग्ध, मांस और मेदवर्धक; वात, श्वास और बवासीर के रोगों में हितकर तथा शौच को साफ करनेवाली है।


रासायनिक विश्लेषणों से इसमें स्टार्च 56 प्रतिशत, अल्बुमिनाएड्स 23 प्रतिशत, तेल सवा दो प्रतिशत और फास्फोरस ऐसिड सहित राख साढ़े चार प्रतिशत पाई गई है।


इसकी तासीर ठंडी होती है, अतः इसका सेवन करते समय शुद्ध घी में हींग का बघार लगा लेना चाहिए। इसमें भी कार्बोहाइड्रेट, विटामिन्स, केल्शियम व प्रोटीन पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं। बवासीर, गठिया, दमा एवं लकवा के रोगियों को इसका सेवन कम करना चाहिए।


गोवर्धन पूजा, अन्नकूट

दीपावली की अगले दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। लोग इसे अन्नकूट के नाम से भी जानते हैं। इस त्यौहार का भारतीय लोकजीवन में काफी महत्व है। इस पर्व में प्रकृति के साथ मानव का सीधा सम्बन्ध दिखाई देता है। इस पर्व की अपनी मान्यता और लोककथा है। गोवर्धन पूजा में गोधन यानी गायों की पूजा की जाती है। शास्त्रों में बताया गया है कि गाय उसी प्रकार पवित्र होती है जैसे नदियों में गंगा। गाय को देवी लक्ष्मी का स्वरूप भी कहा गया है। देवी लक्ष्मी जिस प्रकार सुख समृद्धि प्रदान करती हैं उसी प्रकार गौ माता भी अपने दूध से स्वास्थ्य रूपी धन प्रदान करती हैं। इनका बछड़ा खेतों में अनाज उगाता है। इस तरह गौ सम्पूर्ण मानव जाति के लिए पूजनीय और आदरणीय है। गौ के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए ही कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन गोर्वधन की पूजा की जाती है और इसके प्रतीक के रूप में गाय की।


जब कृष्ण ने ब्रजवासियों को मूसलधार वर्षा से बचने के लिए सात दिन तक गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी उँगली (कनिष्ठा) पर उठाकर रखा और गोप-गोपिकाएँ उसकी छाया में सुखपूर्वक रहे। सातवें दिन भगवान ने गोवर्धन को नीचे रखा और हर वर्ष गोवर्धन पूजा करके अन्नकूट उत्सव मनाने की आज्ञा दी। तभी से यह उत्सव अन्नकूट के नाम से मनाया जाने लगा।


राम का राष्ट्रवाद उपदेश

गतांक से...
विचार यह चल रहा था कि हम अपने प्रभु का गुणगान गाने वाले बने! अपने प्रभु की निहारिका माने, उसके विज्ञान में रत रहना चाहिए! कितनी विशाल ज्ञान-विज्ञान की धाराएं हैं! जिन्हें मानव अपने में धारण करके अंतर्मुखी बन जाता है! तो राम ने कहा कि राजा वह होता है जो अपने विचारों को गोपनीय बना लेता है और गोपनीय जो विषय होते हैं, वही मानव के जीवन का उद्धार करते हैं! इसलिए हम परमपिता परमात्मा की आराधना करते हुए राष्ट्र का पालन करते चले जाएं! राष्ट्र दूसरे के वैभव को संग्रह करने के लिए नहीं है! राष्ट्र को इसलिए निर्धारित किया जाता है कि उसकी प्रतिभा बनी रहे! उसका मानवतम उसका रितु तो बना रहे! तो देखो जब यह वाक्य राजाओं ने श्रवण कर लिया कि बुद्धिमान, बुद्धिजीवी प्राणियों की रक्षा होनी चाहिए! तो बेटा देखो उनके जीवन की बहुत सी घटनाएं इस प्रकार की आती रही है! बेटा मुझे जब स्मरण आती है तो हृदय गदगद हो जाता है! वेद ध्वनि हो रही है! उस ध्वनि को श्रवण करने के लिए हिंसक प्राणी भी आता है अपनी हिंसा को त्याग रहा है! अहिंसा में परिणत हो रहा है अपने अपने कर्तव्य में निहित करके मानव अपने जीवन को ऊंचा बनाता है! समय-समय पर चर्चाएं होती रहती है! एक समय कहीं से भ्रमण का करते हुए महाराजा अश्वपति राम के समक्ष आ पहूचें,वे नाना प्रकार के नियमों में परिणत रहते थे! उन्होंने राम के समीप पहुंचकर कहा भगवान खुश हो, उन्होंने कुशलता का उत्तर दिया, दोनों ने परस्पर अपनी अपनी चर्चा प्रारंभ की, राम ने कहा कहो महाराज मेरे विचार के समीप तुम्हारा आगमन कैसे हुआ? यह मुझे नहीं पता तुम्हारा आगमन क्यों हुआ? महाराजा अश्वपति ने कहा प्रभु मैं अपने आसन पर विद्यमान था! यह प्रेरणा हुई कि चलो राम से अपना मिलन करेंगे! वह वन में कहीं प्राप्त हो जाएंगे, तो हम भगवान आपके समीप आ गए हैं! उन्होंने कहा तो तुम क्या चाहते हो? उन्होंने कहा प्रभु मैं कुछ नहीं चाहता! मैं इधरन्नम: हूं! मेरा जो जीवन है वह आपकी भांति ही रहता है! मेरी कोई इच्छा नहीं है! परंतु मैं कुछ वार्ता प्रकट करने के लिए आया हूं! उन्होंने कहा बोलो क्या वार्ता चाहते हो! उन्होंने कहा मुझे अपने राष्ट्र में ऐसा प्रतीत होता है कि मेरे राष्ट्र में कुछ क्रांति के अवशेषों का जन्म होने जा रहा है! अब मैं उसमें क्या करूं ?भगवान राम ने कहा कि उसमें प्रीति की प्रतिभा को लाने का प्रयास करो! क्योंकि जिस राजा के राष्ट्र में, प्रजा में क्रांति आ जाती है तो वह राजा का ही दोषारोपण होता है! वह राजा दोषी होता है! तो तुम देखो अपने में दूषित हो! तुमने कहा मैं तो प्रातकाल कृषि उद्गम करके अपना अन्न ग्रहण करता हूं और विज्ञान वेताओं के मध्य में विद्यमान होकर वैज्ञानिक यंत्रों का निर्माण भी होता रहता है! यज्ञशाला में प्रात कालीन यज्ञ करता हूं और यज्ञ में भी मेरी निष्ठा रहती है! परंतु और भी नाना प्रकार के क्रियाकलाप मेरे समीप होते रहते हैं! परंतु मैं आपसे यह जानना चाहता हूं भगवान यह मेरे साथ क्या खिलवाड़ होने जा रहा है? तो उस समय उन्होंने कहा नहीं, कोई बात नहीं! उन प्रजाओ को शिक्षा दो! उन प्रजाओ को महान उपदेश दो और यह कहो प्रजाजनों मैं तुम्हारा स्वामी हूं, मानो स्वामी की सेवा करना तुम्हारा कर्तव्य है और सेवा का अभिप्राय यह है कि राष्ट्र की जो क्रियाकलाप है, नियमावली है! उसके आधार पर क्रियाकलाप करते रहना है तो राष्ट्र में एक महानता की ज्योति अपने आप में प्राप्त हो जाती है! भगवान राम ने जब यह कहा तुम अपनी मानवम ब्रह: वाचो:, उन्होंने कहा यह तो मैंने तुम्हारा वाक्य स्वीकार कर लिया है! परंतु तुम उनको ब्रह्मज्ञान कितना देते हो, अश्वपति ने कहा प्रभु में ब्रह्म ज्ञान तो नहीं दे पाता हूं! उन्होंने कहा नैतिक वाक्य कितने उच्चारण करते हो? कोई नहीं करता हूं! राम ने कहा कि जाओ तुम प्रजा को नैतिकता की शिक्षा दो! तुम दर्शनों की आभा में रत कराओ और उसके पश्चात मन निस्वार्थ हो जाओ!  अश्वपति ने भगवान राम के इन वाक्यों को पान कर लिया! परंतु उनके विचार में यह आया कि यदि यह मेरे विचार को स्वीकार न करें, तो मैं उस समय क्या कर सकता हूं? भगवान राम ने अश्वपति से कहा है कि जिस समय तुम्हारे पुत्र तुम्हारी अवेलना करें, क्योंकि आवेलना की कोई सीमा नहीं होती है! जब सीमा से पार हो जाए तो तुम त्यागने का प्रयास करो! अपने राष्ट्र को त्याग करके और ब्रह्मावेता बनकर के अग्नि के समान तुम भयंकर वन में तपस्या करने चले जाओ!


प्राधिकृत प्रकाशन विवरण

यूनिवर्सल एक्सप्रेस    (हिंदी-दैनिक)


October 28, 2019 RNI.No.UPHIN/2014/57254


1. अंक-85 (साल-01)
2. सोमवार ,28 अक्टूबर 2019
3. शक-1941, कार्तिक-शुक्ल पक्ष, तिथि- प्रतिपदा (गोवर्धन पूजा) संवत 2076


4. सूर्योदय प्रातः 06:23,सूर्यास्त 05:53
5. न्‍यूनतम तापमान -20 डी.सै.,अधिकतम-29+ डी.सै., हवा की गति धीमी रहेगी।
6. समाचार-पत्र में प्रकाशित समाचारों से संपादक का सहमत होना आवश्यक नहीं है। सभी विवादों का न्‍याय क्षेत्र, गाजियाबाद न्यायालय होगा।
7. स्वामी, प्रकाशक, मुद्रक, संपादक राधेश्याम के द्वारा (डिजीटल सस्‍ंकरण) प्रकाशित।


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शनिवार, 26 अक्टूबर 2019

प्रकाश का प्रतीक 'दीपक'

दीप, दीपक, दीवा या दीया वह पात्र है जिसमें सूत की बाती और तेल या घी रख कर ज्योति प्रज्वलित की जाती है। पारंपरिक दीया मिट्टी का होता है लेकिन धातु के दीये भी प्रचलन में हैं। प्राचीनकाल में इसका प्रयोग प्रकाश के लिए किया जाता था पर बिजली के आविष्कार के बाद अब यह सजावट की वस्तु के रूप में अधिक प्रयोग होता है। धार्मिक व सामाजिक अनुष्ठानों में इसका महत्व अभी भी बना हुआ है। यह पंचतत्वों में से एक, अग्नि का प्रतीक माना जाता है। दीपक जलाने का एक मंत्र भी है जिसका उच्चारण सभी शुभ अवसरों पर किया जाता है। इसमें कहा गया है कि सुन्दर और कल्याणकारी, आरोग्य और संपदा को देने वाले हे दीप, शत्रु की बुद्धि के विनाश के लिए हम तुम्हें नमस्कार करते हैं। विशिष्ट अवसरों पर जब दीपों को पंक्ति में रख कर जलाया जाता है तब इसे दीपमाला कहते हैं। ऐसा विशेष रूप से दीपावली के दिन किया जाता हैं। अन्य खुशी के अवसरों जैसे विवाह आदि पर भी दीपमाला की जाती है।


दीपक का इतिहास:-ज्योति अग्नि और उजाले का प्रतीक दीपक कितना पुरातन है इसके विषय में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता। गुफाओं में भी यह मनुष्य के साथ था। कुछ बड़ी अंधेरी गुफाओं में इतनी सुन्दर चित्रकारी मिलती है जिसे बिना दीपक के बनाना सम्भव नहीं था। भारत में दिये का इतिहास प्रामाणिक रूप से 5000 वर्षों से भी ज्यादा पुराना हैं जब इसे मुअन-जो-दडो में ईंटों के घरों में जलाया जाता था। खुदाइयों में वहाँ मिट्टी के पके दीपक मिले है। कमरों में दियों के लिये आले या ताक़ बनाए गए हैं, लटकाए जाने वाले दीप मिले हैं और आवागमन की सुविधा के लिए सड़क के दोनों ओर के घरों तथा भवनों के बड़े द्वार पर दीप योजना भी मिली है। इन द्वारों में दीपों को रखने के लिए कमानदार नक्काशीवाले आलों का निर्माण किया गया था।


दीपक भारतीय संस्कृति और जीवन में इस प्रकार मिला जुला है कि इसके नाम पर भारतीय शास्त्रीय संगीत में एक राग का नाम दीपक राग - रखा गया है। कहते हैं इसके गाने से दीपक अपने आप जलने लगते हैं।


शिवसेना और भाजपा में तकरार बढ़ी

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद भाजपा और शिवसेना की तकरार बढ़ गई है। भले ही दोनों दलों ने गठबंधन में चुनाव लड़ा था लेकिन सीएम पद को लेकर दोनों अपने-अपने दावे ठोक रहे हैं।


मुंबई ! मातोश्री में शिवसेना के चुने हुए विधायकों की बैठक हुई। इस बैठक के बाद जो बातें निकल कर आई, वह भाजपा को हैरान करने वाली है। शिवसेना ने साफ कहा है कि 50-50 फार्मूले के तहत ही सरकार का गठन होना चाहिए। शिवसेना ने ढाई साल के लिए सीएम का पद मांग लिया है। पार्टी ने यह कहा कि पहला जो ढाई साल होगा वह हमारी पार्टी का होगा। शिवसेना ने कहा कि अगर अमित शाह और देवेंद्र फडणवीस से लिखित आश्वासन मिला तभी जाकर हम भाजपा के साथ सरकार का गठन करेंगे।
शिवसेना की इस बैठक के बाद भाजपा और शिवसेना के बीच तकरार और बढ़ जाने की आशंकाए नजर आ रही है। हालांकि सरकार गठन के लिए अभी भी 9 नवंबर तक का वक्त है। अभी दोनों दलों के बीच सरकार गठन को लेकर औपचारिक बैठक भी नहीं शुरू कर पाई है। ऐसे में महाराष्ट्र में क्या होता है इसके लिए थोड़ा सा इंतजार करना पड़ेगा।


कमलेश की पत्नी संभालेगी पार्टी की कमान

स्व. कमलेश तिवारी की पत्नी ने कहा… न मैं किसी डरूँगी, न झुकुंगी और न ही समझौता करूंगी…


लखनऊ ! उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में बीते दिनों जिस तरह से कमलेश तिवारी हत्याकांड हुआ उससे उत्तर प्रदेश के साथ ही पूरे देश मे सनसनी और दहशत फैल गई थी, लोग डरने लगे थे कि कहीं ये हत्याकांड कोई साम्प्रदायिक झगड़े का विकराल रूप न लेले और देश मे अशांति फैल जाए। मगर ईश्वर की कृपा से ऐसा नहीं हुआ और कमलेश तिवारी हत्याकांड में शामिल मुख्य अभियुक्तों को जल्द ही गिरफ्तार भी कर लिया गया, जिन पर वैधानिक कार्यवाही की जा रही है। वहीं इस हत्याकांड के बाद कमलेश तिवारी के पूरे परिवार और हिन्दू समाज पार्टी के लोगों में दुःख, मातम एवं शोक छा गया था। मगर इस सनसनीखेज घटना ने कई बार नाटकीय मोड़ लिए और परिवार वालों ने प्रदेश की वर्तमान सरकार के मुखिया पर भी इस हत्या में शामिल होने के संगीन आरोप भी लगाए, मगर अभियुक्तों की गिरफ्तारी के बाद से इस मामले से पर्दा भी उठ गया।


 


हिन्दू समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर मनोनीत हुई किरण कमलेश तिवारी…


आपको बताते चलें कि हिन्दू समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष कमलेश तिवारी की हत्या के बाद उनकी पत्नी एवं हिन्दू समाज पार्टी की नवनियुक्त राष्ट्रीय अध्यक्ष किरण कमलेश तिवारी ने आज लखनऊ में हजरतगंज स्थित यूपी प्रेस क्लब में एक प्रेसवार्ता का आयोजन कर पत्रकारों से कई मुद्दों पर बात करी। उन्होंने कहा कि मेरे पति एवं हिन्दू समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष कमलेश तिवारी की हत्या की साज़िश हुई उसके बाद जैसे सनातनियों और हिन्दू समाज पार्टी के सभी छोटे बड़े पदाधिकारियों एवं सदस्यों ने साथ दिया है मैं उनका धन्यवाद करती हूं क्योंकि इन सभी का सहयोग और सांत्वना मिली है जिसकी मैं दिल से आभारी हूँ। मगर मेरे पति कमलेश तिवारी की हत्या के बाद शासन प्रशासन ने सिर्फ 15, लाख रुपया देकर अपना पल्ला झाड़ लिया है वो निंदनीय है, उन्होंने कहा कि जिस दिन ऐसी कोई घटना भाजपा के किसी नेता के साथ हो गई तो मैं ये 15 लाख और अपनी तरफ से 10 लाख और मिलाकर उस नेता के परिवार वालों को 25 लाख रुपया दूंगी। उन्होंने ये भी कहा कि मैं हिन्दू समाज पार्टी के राष्ट्रीय पद पर रहकर पार्टी के सभी पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं को विश्वास दिलाती हूँ कि मैं अपने स्व. पति कमलेश तिवारी के सपनो को पूरा करूंगी और साथ ही मैं न किसी से डरूँगी, न झुकूंगी और न ही समझौता करूंगी।


 


भाजपा और उसके नेता नही चाहते हैं कि जिस हिन्दू नेता से पार्टी को खतरा है वो ज़िन्दा रहे:- राजेश मणि त्रिपाठी…


हिन्दू समाज पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव राजेशमणि त्रिपाठी ने संगीन आरोप लगते हुए कहा कि सरकार एनआईए की जांच कराने से क्यों कतरा रही है, इस बात से ये साफ जाहिर है कि कमलेश तिवारी की हत्या शासन प्रशासन की बड़ी चूक है। उन्होंने कहा कि इस जांच के बाद कई अधिकारी और नेता भी बेनकाब हो सकते हैं इसलिए जांच नहीं कराई जा रही है। उन्होंने कहा कि जैसे योगी अपनी सुरक्षा को लेकर संसद में रोये थे, क्या वो भूल गए हैं। राजेश मणि त्रिपाठी ने कहा कि योगी जी आपका जीवन तो जीवन है और दूसरे को जीवन जीने का कोई अधिकार नही है। उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि कमलेश तिवारी की हत्या में परोक्ष या अपरोक्ष रूप से शासन प्रशासन दोनो ही जिम्मेदार हैं, क्योंकि जैसे कमलेश तिवारी की सुरक्षा को हटाया गया और तमाम विजलेंस की रिपोर्टों को अनदेखा किया गया है वो साफ जाहिर करता है कि भाजपा नहीं चाहती थी कि हिन्दू समाज पार्टी के पूर्व अध्यक्ष कमलेश तिवारी ज़िन्दा रहें। आगे कहा कि अभी अभी यतीन्द्र नरसिंहानंद की सुरक्षा भी हटा ली गई है जबकि उन्हें पता है कि यतीन्द्र नरसिंहानंद भी जिहादियों की हिट लिस्ट में सबसे ऊपर हैं। उन्होंने कहा कि इससे साफ जाहिर है कि भाजपा और उसके नेता नही चाहते कि जिस हिन्दू नेता से भाजपा को खतरा है वो ज़िन्दा रहे, मगर हम ऐसा नहीं होने देंगे और अपनी पार्टी को और मजबूत करेंगे।


'समाधान दिवस' में फरियादियों की समस्याएं सुनीं

'समाधान दिवस' में फरियादियों की समस्याएं सुनीं  भानु प्रताप उपाध्याय  मुजफ्फरनगर। उत्तर प्रदेश शासन के निर्देश पर थाना खालापार पर आय...