रविवार, 27 अक्टूबर 2019

सुंदर और आकर्षक तितली

तितली कीट वर्ग का सामान्य रूप से हर जगह पाया जानेवाला प्राणी है। यह बहुत सुन्दर तथा आकर्षक होती है। दिन के समय जब यह एक फूल से दूसरे फूल पर उड़ती है और मधुपान करती है तब इसके रंग-बिरंगे पंख बाहर दिखाई पड़ते हैं। इसके शरीर के मुख्य तीन भाग हैं सिर, वक्ष तथा उदर। इनके दो जोड़ी पंख तथा तीन जोड़ी सन्धियुक्त पैर होते हैं अतः यह एक कीट है। इसके सिर पर एक जोड़ी संयुक्त आँख होती हैं तथा मुँह में घड़ी के स्प्रिंग की तरह प्रोवोसिस नामक खोखली लम्बी सूँड़नुमा जीभ होती है जिससे यह फूलों का रस (नेक्टर) चूसती है। ये एन्टिना की मदद से किसी वस्तु एवं उसकी गंध का पता लगाती है।तितली एकलिंगी प्राणी है अर्थात नर तथा मादा अलग-अलग होते हैं। मादा तितली अपने अण्डे पत्ती की निचली सतह पर देती है। अण्डे से कुछ दिनों बाद एक छोटा-सा कीट निकलता है जिसे कैटरपिलर लार्वा कहा जाता है। यह पौधे की पत्तियों को खाकर बड़ा होता है और फिर इसके चारों ओर कड़ा खोल बन जाता है। अब इसे प्यूपा कहा जाता है। कुछ समय बाद प्यूपा को तोड़कर उसमें से एक सुन्दर छोटी-सी तितली बाहर निकलती है। तितली का दिमाग़ बहुत तेज़ होता है। देखने, सूंघने, स्वाद चखने व उड़ने के अलावा जगह को पहचानने की इनमें अद्भुत क्षमता होती है। वयस्क होने पर आमतौर पर ये उस पौधे या पेड़ के तने पर वापस आती हैं, जहाँ इन्होंने अपना प्रारंभिक समय बिताया होता है।


तितली का जीवनकाल बहुत छोटा होता है। ये ठोस भोजन नहीं खातीं, हालाँकि कुछ तितलियाँ फूलों का रस पीती हैं। दुनिया की सबसे तेज़ उड़ने वाली तितली मोनार्च है। यह एक घंटे में १७ मील की दूरी तय कर लेती है। कोस्टा रीका में तितलियों की १३०० से ज्यादा प्रजातियां पाई जाती हैं। दुनिया की सबसे बड़ी तितली जायंट बर्डविंग है, जो सोलमन आईलैंड्स पर पाई जाती है। इस मादा तितली के पंखों का फैलाव १२ इंच से ज्यादा होता है।


घुड़खर के लुप्त होने का खतरा

घुड़खर (Indian wild ass ; वैज्ञानिक नाम : Equus hemionus khur) एक वन्य पशु है जो दक्षिण एशिया का देशज है। घुड़खर यानी घोड़ा और गधा (खर)। इसे 'गुजरात का जंगली गधा' या 'बलूची जंगली गदहा' भी कहते हैं। वर्ष २०१६ के आंकड़ों के अनुसार इस गधे के लुप्त होने का खतरा कुछ सीमा तक है।


भारतीय घुड़खरगुजरात में कच्छ के रण में पाया जाने वाला एक अनोखा प्राणी, जो न गधा है, न घोड़ा है, न दोनों के मेल से बनने वाला खच्चर है। घुड़खर अभयारण्य, गुजरात के लघु कच्छ रण में स्थित है। यह ४९५४ वर्ग किमी क्षेत्र में फैला हुआ है और भारत का सबसे बड़ा अभयारण्य है। यह अभयारण्य 'खर', 'गधेरा' या 'घुड़खर' (जंगली गधा) के लिये प्रसिद्ध है। इसकी देहदशा मज़बूत होती है; वज़न लगभग ढाई सौ किग्रा, अधिकतम रफ़्तार लगभग 70-80 किमी तक। यह प्राणी उन प्राणियों की सूची में है, जो लुप्तप्राय हैं। यही कारण है कि घुड़खर को वन्य पशु सुरक्षा अधिनियम 1972 के अंतर्गत पहली सूची में रखा गया है। अमिताभ बच्चन ने इसी घुड़खर का कैंपेन विज्ञापन किया था, ताकि लोगों की नज़र में घुड़खर आये और उसकी सुरक्षा की गंभीरता को स्वीकार किया जाये, उसपर विचार किया जाये। इसी गंभीरता और संवेदनशीलता को देखते हुए भारत सरकार ने 2013 में इस घुड़खर पर डाक टिकट भी जारी किया गया था।


बुद्धि के लिए गुणकारी बादाम

बादाम (अंग्रेज़ी:ऑल्मंड, वैज्ञानिक नाम: प्रूनुस डल्शिस, प्रूनुस अमाइग्डैलस) मध्य पूर्व का एक पेड़ होता है। यही नाम इस पेड़ के बीज या उसकी गिरि को भी दिया गया है। इसकी बड़े तौर पर खेती होती है। बादाम एक तरह का मेवा होता है। संस्कृत भाषा में इसे वाताद, वातवैरी आदि, हिन्दी, मराठी, गुजराती व बांग्ला में बादाम, फारसी में बदाम शोरी, बदाम तल्ख, अंग्रेजी में आलमंड और लैटिन में एमिग्ड्रेलस कम्युनीज कहते हैं। आयुर्वेद में इसको बुद्धि और नसों के लिये गुणकारी बताया गया है। भारत में यह कश्मीर का राज्य पेड़ माना जाता है। एक आउंस (२८ ग्राम) बादाम में १६० कैलोरी होती हैं, इसीलिये यह शरीर को उर्जा प्रदान करता है। लेकिन बहुत अधिक खाने पर मोटापा भी दे सकता है। इसमें निहित कुल कैलोरी का ¾ भाग वसा से मिलता है, शेष कार्बोहाईड्रेट और प्रोटीन से मिलता है। इसका ग्लाईसेमिक लोड शून्य होता है। इसमें कार्बोहाईड्रेट बहुत कम होता है। इस कारण से बादाम से बना केक या बिस्कुट, आदि मधुमेह के रोगी भी ले सकते हैं। बादाम में वसा तीन प्रकार की होती है: एकल असंतृप्त वसीय अम्ल और बहु असंतृप्त वसीय अम्ल। यह लाभदायक वसा होती है, जो शरीर में कोलेस्टेरोल को कम करता है और हृदय रोगों की आशंका भी कम करता है। इसके अलावा दूसरा प्रकार है ओमेगा –३ वसीय अम्ल। ये भी स्वास्थवर्धक होता है। इसमें संतृप्त वसीय अम्ल बहुत कम और कोलेस्टेरोल नहीं होता है। फाईबर या आहारीय रेशा, यह पाचन में सहायक होता है और हृदय रोगों से बचने में भी सहायक रहता है, तथा पेट को अधिक देर तक भर कर रखता है। इस कारण कब्ज के रोगियों के लिये लाभदायक रहता है। बादाम में सोडियम नहीं होने से उच्च रक्तचाप रोगियों के लिये भी लाभदायक रहता है। इनके अलावा पोटैशियम, विटामिन ई, लौह, मैग्नीशियम, कैल्शियम, फास्फोरस भी होते हैं।


उड़द बीज की दो प्रजातियां

उरद या उड़द एक दलहन होता है। उरद को संस्कृत में 'माष' या 'बलाढ्य'; बँगला' में माष या कलाई; गुजराती में अड़द; मराठी में उड़ीद; पंजाबी में माँह, अंग्रेज़ी, स्पेनिश और इटालियन में विगना मुंगों; जर्मन में उर्डबोहने; फ्रेंच में हरीकोट उर्ड; पोलिश में फासोला मुंगों; पुर्तगाली में फेजों-द-इण्डिया तथा लैटिन में 'फ़ेसिओलस रेडिएटस', कहते हैं।


उड़दइसका द्विदल पौधा लगभग एक हाथ ऊँचा है और भारतवर्ष में सर्वत्र ज्वार, बाजरा और रुई के खेतों में तथा अकेला भी बोया जाता है। इससे मिलनेवाली दाल भोजन और औषधि, दोनों रूपों में उपयोगी है। बीज की दो जातियाँ होती हैं :


(1) काली और बड़ी, जो वर्षा के आरंभ में बोई जाती है और


(2) हरी और छोटी, जिसकी बोआई दो महीने पश्चात्‌ होती है।


इसकी हरी फलियों की भाजी तथा बीजों से दाल, पापड़ा, बड़े इत्यादि भोज्य पदार्थ बनाए जाते हैं। आयुर्वेद के मतानुसार इसकी दाल स्निग्ध, पौष्टिक, बलकारक, शुक्र, दुग्ध, मांस और मेदवर्धक; वात, श्वास और बवासीर के रोगों में हितकर तथा शौच को साफ करनेवाली है।


रासायनिक विश्लेषणों से इसमें स्टार्च 56 प्रतिशत, अल्बुमिनाएड्स 23 प्रतिशत, तेल सवा दो प्रतिशत और फास्फोरस ऐसिड सहित राख साढ़े चार प्रतिशत पाई गई है।


इसकी तासीर ठंडी होती है, अतः इसका सेवन करते समय शुद्ध घी में हींग का बघार लगा लेना चाहिए। इसमें भी कार्बोहाइड्रेट, विटामिन्स, केल्शियम व प्रोटीन पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं। बवासीर, गठिया, दमा एवं लकवा के रोगियों को इसका सेवन कम करना चाहिए।


गोवर्धन पूजा, अन्नकूट

दीपावली की अगले दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। लोग इसे अन्नकूट के नाम से भी जानते हैं। इस त्यौहार का भारतीय लोकजीवन में काफी महत्व है। इस पर्व में प्रकृति के साथ मानव का सीधा सम्बन्ध दिखाई देता है। इस पर्व की अपनी मान्यता और लोककथा है। गोवर्धन पूजा में गोधन यानी गायों की पूजा की जाती है। शास्त्रों में बताया गया है कि गाय उसी प्रकार पवित्र होती है जैसे नदियों में गंगा। गाय को देवी लक्ष्मी का स्वरूप भी कहा गया है। देवी लक्ष्मी जिस प्रकार सुख समृद्धि प्रदान करती हैं उसी प्रकार गौ माता भी अपने दूध से स्वास्थ्य रूपी धन प्रदान करती हैं। इनका बछड़ा खेतों में अनाज उगाता है। इस तरह गौ सम्पूर्ण मानव जाति के लिए पूजनीय और आदरणीय है। गौ के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए ही कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन गोर्वधन की पूजा की जाती है और इसके प्रतीक के रूप में गाय की।


जब कृष्ण ने ब्रजवासियों को मूसलधार वर्षा से बचने के लिए सात दिन तक गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी उँगली (कनिष्ठा) पर उठाकर रखा और गोप-गोपिकाएँ उसकी छाया में सुखपूर्वक रहे। सातवें दिन भगवान ने गोवर्धन को नीचे रखा और हर वर्ष गोवर्धन पूजा करके अन्नकूट उत्सव मनाने की आज्ञा दी। तभी से यह उत्सव अन्नकूट के नाम से मनाया जाने लगा।


राम का राष्ट्रवाद उपदेश

गतांक से...
विचार यह चल रहा था कि हम अपने प्रभु का गुणगान गाने वाले बने! अपने प्रभु की निहारिका माने, उसके विज्ञान में रत रहना चाहिए! कितनी विशाल ज्ञान-विज्ञान की धाराएं हैं! जिन्हें मानव अपने में धारण करके अंतर्मुखी बन जाता है! तो राम ने कहा कि राजा वह होता है जो अपने विचारों को गोपनीय बना लेता है और गोपनीय जो विषय होते हैं, वही मानव के जीवन का उद्धार करते हैं! इसलिए हम परमपिता परमात्मा की आराधना करते हुए राष्ट्र का पालन करते चले जाएं! राष्ट्र दूसरे के वैभव को संग्रह करने के लिए नहीं है! राष्ट्र को इसलिए निर्धारित किया जाता है कि उसकी प्रतिभा बनी रहे! उसका मानवतम उसका रितु तो बना रहे! तो देखो जब यह वाक्य राजाओं ने श्रवण कर लिया कि बुद्धिमान, बुद्धिजीवी प्राणियों की रक्षा होनी चाहिए! तो बेटा देखो उनके जीवन की बहुत सी घटनाएं इस प्रकार की आती रही है! बेटा मुझे जब स्मरण आती है तो हृदय गदगद हो जाता है! वेद ध्वनि हो रही है! उस ध्वनि को श्रवण करने के लिए हिंसक प्राणी भी आता है अपनी हिंसा को त्याग रहा है! अहिंसा में परिणत हो रहा है अपने अपने कर्तव्य में निहित करके मानव अपने जीवन को ऊंचा बनाता है! समय-समय पर चर्चाएं होती रहती है! एक समय कहीं से भ्रमण का करते हुए महाराजा अश्वपति राम के समक्ष आ पहूचें,वे नाना प्रकार के नियमों में परिणत रहते थे! उन्होंने राम के समीप पहुंचकर कहा भगवान खुश हो, उन्होंने कुशलता का उत्तर दिया, दोनों ने परस्पर अपनी अपनी चर्चा प्रारंभ की, राम ने कहा कहो महाराज मेरे विचार के समीप तुम्हारा आगमन कैसे हुआ? यह मुझे नहीं पता तुम्हारा आगमन क्यों हुआ? महाराजा अश्वपति ने कहा प्रभु मैं अपने आसन पर विद्यमान था! यह प्रेरणा हुई कि चलो राम से अपना मिलन करेंगे! वह वन में कहीं प्राप्त हो जाएंगे, तो हम भगवान आपके समीप आ गए हैं! उन्होंने कहा तो तुम क्या चाहते हो? उन्होंने कहा प्रभु मैं कुछ नहीं चाहता! मैं इधरन्नम: हूं! मेरा जो जीवन है वह आपकी भांति ही रहता है! मेरी कोई इच्छा नहीं है! परंतु मैं कुछ वार्ता प्रकट करने के लिए आया हूं! उन्होंने कहा बोलो क्या वार्ता चाहते हो! उन्होंने कहा मुझे अपने राष्ट्र में ऐसा प्रतीत होता है कि मेरे राष्ट्र में कुछ क्रांति के अवशेषों का जन्म होने जा रहा है! अब मैं उसमें क्या करूं ?भगवान राम ने कहा कि उसमें प्रीति की प्रतिभा को लाने का प्रयास करो! क्योंकि जिस राजा के राष्ट्र में, प्रजा में क्रांति आ जाती है तो वह राजा का ही दोषारोपण होता है! वह राजा दोषी होता है! तो तुम देखो अपने में दूषित हो! तुमने कहा मैं तो प्रातकाल कृषि उद्गम करके अपना अन्न ग्रहण करता हूं और विज्ञान वेताओं के मध्य में विद्यमान होकर वैज्ञानिक यंत्रों का निर्माण भी होता रहता है! यज्ञशाला में प्रात कालीन यज्ञ करता हूं और यज्ञ में भी मेरी निष्ठा रहती है! परंतु और भी नाना प्रकार के क्रियाकलाप मेरे समीप होते रहते हैं! परंतु मैं आपसे यह जानना चाहता हूं भगवान यह मेरे साथ क्या खिलवाड़ होने जा रहा है? तो उस समय उन्होंने कहा नहीं, कोई बात नहीं! उन प्रजाओ को शिक्षा दो! उन प्रजाओ को महान उपदेश दो और यह कहो प्रजाजनों मैं तुम्हारा स्वामी हूं, मानो स्वामी की सेवा करना तुम्हारा कर्तव्य है और सेवा का अभिप्राय यह है कि राष्ट्र की जो क्रियाकलाप है, नियमावली है! उसके आधार पर क्रियाकलाप करते रहना है तो राष्ट्र में एक महानता की ज्योति अपने आप में प्राप्त हो जाती है! भगवान राम ने जब यह कहा तुम अपनी मानवम ब्रह: वाचो:, उन्होंने कहा यह तो मैंने तुम्हारा वाक्य स्वीकार कर लिया है! परंतु तुम उनको ब्रह्मज्ञान कितना देते हो, अश्वपति ने कहा प्रभु में ब्रह्म ज्ञान तो नहीं दे पाता हूं! उन्होंने कहा नैतिक वाक्य कितने उच्चारण करते हो? कोई नहीं करता हूं! राम ने कहा कि जाओ तुम प्रजा को नैतिकता की शिक्षा दो! तुम दर्शनों की आभा में रत कराओ और उसके पश्चात मन निस्वार्थ हो जाओ!  अश्वपति ने भगवान राम के इन वाक्यों को पान कर लिया! परंतु उनके विचार में यह आया कि यदि यह मेरे विचार को स्वीकार न करें, तो मैं उस समय क्या कर सकता हूं? भगवान राम ने अश्वपति से कहा है कि जिस समय तुम्हारे पुत्र तुम्हारी अवेलना करें, क्योंकि आवेलना की कोई सीमा नहीं होती है! जब सीमा से पार हो जाए तो तुम त्यागने का प्रयास करो! अपने राष्ट्र को त्याग करके और ब्रह्मावेता बनकर के अग्नि के समान तुम भयंकर वन में तपस्या करने चले जाओ!


प्राधिकृत प्रकाशन विवरण

यूनिवर्सल एक्सप्रेस    (हिंदी-दैनिक)


October 28, 2019 RNI.No.UPHIN/2014/57254


1. अंक-85 (साल-01)
2. सोमवार ,28 अक्टूबर 2019
3. शक-1941, कार्तिक-शुक्ल पक्ष, तिथि- प्रतिपदा (गोवर्धन पूजा) संवत 2076


4. सूर्योदय प्रातः 06:23,सूर्यास्त 05:53
5. न्‍यूनतम तापमान -20 डी.सै.,अधिकतम-29+ डी.सै., हवा की गति धीमी रहेगी।
6. समाचार-पत्र में प्रकाशित समाचारों से संपादक का सहमत होना आवश्यक नहीं है। सभी विवादों का न्‍याय क्षेत्र, गाजियाबाद न्यायालय होगा।
7. स्वामी, प्रकाशक, मुद्रक, संपादक राधेश्याम के द्वारा (डिजीटल सस्‍ंकरण) प्रकाशित।


8.संपादकीय कार्यालय- 263 सरस्वती विहार, लोनी, गाजियाबाद उ.प्र.-201102


9.संपर्क एवं व्यावसायिक कार्यालय-डी-60,100 फुटा रोड बलराम नगर, लोनी,गाजियाबाद उ.प्र.,201102


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