गुरुवार, 24 अक्तूबर 2019

अजनबी लोगों पर विश्वास न करें:मेष

राशिफल


मेष-राशि के लोगों का दिन सामान्य रहेगा। आज अजनबी लोगों पर विश्वास न करें। संतान संबंधित समाचार मिल सकता है। पुराने दोस्तों के साथ मुलाकात हो सकती है। नए दोस्त भी बन सकते हैं। कारोबारिक और आर्थिक रूप से लाभ मिलेगा।


वृषभ-राशि के लोगों का दिन शुभ रहेगा। आज दिन लाभदायक साबित होगा। कारोबार में इनकम बढ़ेगी। धन लाभ की पूरी संभावनाएं हैं। दोस्तों के साथ मेलजोल बढ़ेगा।


मिथुन-राशि के लोगों के साथ तालमेल बैठेगा। उच्च अधिकारियों के साथ वाणी और व्यवहार में संभलकर चलें। कारोबरा में कोई बाधा आ सकती है। आर्थिक नजर से लाभ मिलेगा।


कर्क-राशि के लोगों का दिन शुभ रहेगा. अनजाने में कोई बड़ी गलती हो सकती है। क्रोध और वाणी पर संयम रखें। सेहत भी संभालकर रखें। परिजनों के साथ कलह हो सकती है।


सिंह-राशि के लोगों का दिन शुभ रहेगा। आज आप समय से पहले अपने काम पूरे करेंगे। भागीदारों के साथ संबंध अच्छे होंगे! सेहत खराब हो सकती है। अचानक खर्चा हो सकता हैं ।


कन्या-राशि के लोगों का दिन सामान्य रहेगा। संतों के दर्शन से लाभ मिलेगा। पारिवारिक जीवन में सुख-शांति आएगी। स्वभाव में उग्रता रहेगी, बेहतर होगा वाणी पर संयम बरतें।


तुला-राशि के लोगों का दिन शुभ रहेगा। घर के बड़े-बुजुर्गों का आशिर्वाद जरूर लें। परिवार में कुछ अनबन हो सकती है। दफ्तर में नई जिम्मेदारियां आपको मिल सकती हैं।


वृश्चिक-राशि के लोगों का दिन शुभ रहेगा। आर्थिक हालत में सुधार होगा। नए अवसरों को जल्द भुनाने की कोशिश करें।ऑफिस में महिलाओं का विशेष सम्मान होगा।


धनु-राशि के लोगों का दिन सामान्य रहेगा। सेहत थोड़ी नरम रह सकती है. विदेश जाने का योग बनेगा। विचार और कार्य में स्थिर करने का प्रयास करें। किसी बीमारी की चपेट में आ सकते हैं थोड़ा ध्यान रखें।


मकर-राशि के लोगों का दिन शुभ रहेगा। बने बनाए काम बिगड़ सकते हैं। गुस्से और वाणी पर काबू रखें। नकारात्मक विचार मन में आ सकते हैं। खान-पान में संयम बरते।


कुंभ-राशि के लोगों का दिन सामान्य रहेगा. आज आप दूसरों के प्रति आकर्षित होंगे। नए कार्यों की शुरुआत के लिए समय अच्छा है। परिजनों के साथ समय अच्छा बीतेगा।


मीन-राशि के लोगों का दिन शुभ रहेगा! आज मेहनत का फल मिलेगा। अधिक लाभ के चक्कर में कहीं फंस न जाएं। कोर्ट-कचहरी से दूर ही रहे बेहतर।


खरहा-खरगोश की असमानताए

खरहा, लेपस वंश और शशक प्रजाति के स्तनधारी जीव हैं। खरहों की चार विशेष प्रजातियों को लेपस वंश से बाहर वर्गीकृत किया जाता है। खरहे बहुत तेज दौड़ाक होते हैं, यूरोपीय भूरा खरहा तो 72 किमी/घंटा की रफ्तार से दौड़ सकता है। ये आम तौर पर एकाकी जीव होते हैं या फिर जोड़ों में रहते हैं, पर कुछ प्रजातियाँ झुंडों में भी रहती हैं। बहुत तेज भागते समय या फिर परभक्षियों को चकमा देते समय उत्पन्न होने वाले गुरुत्व बल को इनका शरीर अवशोषित करने में सक्षम होता है।आमतौर पर खरहा एक शर्मीला जीव है पर समागम के मौसम में इनका व्यवहार बदल जाता है और यह एक दूसरे के पीछे भागते देखे जा सकते हैं। यह एक दूसरे को ऐसे मारते हैं जैसे मुक्केबाज़ी का अभ्यास कर रहें हों। कुछ समय पहले तक तो यह माना जाता था कि प्रतिद्वंदी नर एक दूसरे को मारते हैं पर अब यह स्पष्ट हो गया है कि संभोग के लिए अनिच्छुक मादा, नर को मारती है।


खरगोश और खरहे में अंतर:- आकार में खरगोश से बड़ा होता है। कान भी खरगोश की तुलना में बड़े होते हैं। आकार में खरहे से छोटा होता है। कान भी खरहे की तुलना में छोटे होते हैं।
आवास जमीन के उपर उथले गड्ढों में घास और तिनकों का घोंसला बना कर रहते है। जमीन के नीचे बिलों में रहते हैं।
शिशु जन्म के समय शिशुयों के शरीर रोएंदार होते हैं, आँखें भी खुली होती है। जरूरत पड़ने पर भागने में भी सक्षम होते हैं। जन्म के समय शिशुयों की आँखे बंद होती हैं और शरीर पर रोयों का आभाव होता है। पूरी तरह से माता/पिता पर आश्रित होते हैं।
गति खरगोश की तुलना में अधिक तेज दौड़ते हैं। खरहे की अपेक्षा धीमे दौड़ते हैं।
पालतू खरहे जंगली जीव है और इन्हें आज तक पालतू नहीं बनाया गया है। खरगोशों को दुनिया के विभिन्न देशों में पालतू जीवों की तरह पाला जाता है।


वायुमंडल का उष्मा संतुलन

वायुमंडल का उष्मासंतुलन 
भूतल तथा वायुमंडल को गरमी लगभग पूर्णतया सूर्यविकिरण से ही मिलती है। अन्य आकाशीय पिंडों से गरमी बहुत ही कम मात्रा में मिलती है। सौर ऊर्जा की मापें स्मिथसोनियन संस्था की तारा-भौतिकी-वेधशाला में तथा अन्य कई पर्वतशिखरों पर स्थित वेधशालाओं में नियमित रूप से की जाती है और इन मापों की यथार्थता एक प्रतिशत से उत्कृष्ट होती है। पृथ्वी और सूर्य की मध्यमानसौर दूरी पर यह सौर आतपन ऊर्जा वायुमंडल में प्रविष्ट होकर अंशत: अवशेषित होने के पहले लगभग 1.94 ग्राम कलरी प्रति मिनट वर्ग सेंटीमीटर होती है; यहाँ प्रतिबंध यह है कि सूर्य की किरणें उस वर्ग सेंटीमीटर पर अभिलंबत: पड़ें। इस मात्रा को सौर नियतांक (सोलर कॉन्स्टैंट) कहते हैं। सौर नियतांक के मान में पाई गई अनियमित घट बढ़ एक प्रतिशत से भी कम रहती हैं; ये प्रेक्षणत्रुटियों के कारण हो सकती हैं। इन अनियमित उच्चावचनों के अतिरिक्त एक वास्तविक और बड़ा उच्चावचन भी पाया गया है जो ग्यारह वर्षीय सूर्य-कलंक-चक्र में लगभग प्रतिशत तक का दीर्घकालिक उच्चावचन और भी हो सकता है। परंतु ये सब उच्चावचन इतने लघु हैं कि वायुमंडलीय उष्म संतुलन के संबंध में यह मान लिया जा सकता है कि पृथ्वी पर सौर ऊर्जा 1.94 ग्राम कलरी प्रति वर्ग सेंटीमीटर प्रति मिनट पड़ती है। अनुमान किया गया है कि सौर ऊर्जा का 43 प्रतिशत भाग परावर्तित तथा प्रकीर्णित तथा प्रकीर्णन करने की सम्मिलित शक्ति को ऐलबेडो कहते हैं। यह 43 प्रतिशत है। शेष 57 प्रतिशत ऊर्जा, जो प्रभावकारी आतपन है, भूतल तथा वायुमंडल को औसतन 57 उष्मा इकाइयाँ प्रदान करता है। इन 57 उष्मा इकाइयों में से केवल एक लघु भाग का (अधिक से अधिक 14 इकाइयों का) वायुमंडल, मुख्यत: निचले स्तरों में जलवाष्प द्वारा और कुछ कम परिमाण में ऊपरी समताप मंडल (स्ट्रैटोस्फ़ियर) में ओज़ोन द्वारा, अवशोषण कर लेता है।


लेखन में अक्सर गलती होती है

कोई उद्धरण देने के अतिरिक्त कहीं भी आत्मकथात्मक शैली में न लिखें। हमेशा प्रथम पुरुष (third person) शैली में ही लिखा जाना चाहिये।


लेखन में अशुद्धियाँ टालने का प्रयत्न करें। हिन्दी में वर्तनी की विविधता, गलत वर्तनियों का प्रिण्ट मीडिया में पाया जाना तथा टाइपिंग टूल के कारण होने वाली गलतियाँ (टाइपो) अक्सर देखी जाती हैं। कुछ सर्वाधिक प्रचलित गलतियों के बारे में जानने हेतु यह लेख देखें - विकिपीडिया:हिन्दी में सामान्य गलतियाँ।
सामान्य हिन्दी - शुद्ध हिन्दी: हिन्दी विकिपीडिया पर लेख रोजमर्रा की सामान्य हिन्दी अर्थात खड़ीबोली (हिन्दुस्तानी अथवा हिन्दी-उर्दू) में लिखे जाने चाहिये। हालाँकि तकनीकी तथा विशेष शब्दावली हेतु शुद्ध संस्कृतिनष्ठ हिन्दी के ही प्रयोग की संस्तुति की जाती है। हालाँकि बहुत जटिल उर्दू-फारसी शब्दों से परहेज किया जाना चाहिये जैसे Upper House of Parliament को संसद का उच्च सदन लिखा जाय न कि उर्दू का मिजिलस का ऐवान-ए-बाला, Foreign Minister को विदेशमन्त्री न कि उर्दू वज़ीर-ए-ख़ारिजा; knowledge/science को ज्ञान/विज्ञान, न कि इल्म। नामों के पश्चात आदरसूचक जी न लगायें यह अविश्वकोषिक है अर्थात कृष्ण/श्री कृष्ण परन्तु कृष्ण जी नहीं। आदरणीय व्यक्तियों के बारे में लिखते समय आप तथा इसके समकक्ष प्रथम पुरुष शब्द-संयोजन का प्रयोग करें जैसे श्री वाजपेयी मध्य प्रदेश में जन्मे थे न कि वाजपेयी मध्य प्रदेश में जन्मा था परन्तु "आप" सर्वनाम का प्रयोग आत्मकथा के अंशों में न करें।
अंग्रेजी का उपयोग आवश्यक होने पर ही करना चाहिये यदि उसके समकक्ष शुद्ध हिन्दी शब्द उपलब्ध न हो अथवा बहुत कठिन एवं सामान्यतया प्रयोग में न आने वाला हो या अंग्रेजी शब्द किसी अभारतीय व्यक्ति/स्थान/शब्दावली/शीर्षक का समुचित नाम हो या यदि प्रयोक्ता को समुचित अनुवाद बारे उच्च आशंका हो। लिप्यन्तरण हेतु ब्रिटिश अंग्रेजी तथा इसके मूल उच्चारण का उपयोग करें। आप लेख लिखने के दौरान अंग्रेजी से हिन्दी अनुवाद हेतु शब्दकोश.कॉम, गूगल शब्दकोश एवं गूगल अनुवाद की सहायता ले सकते हैं। हर अंग्रेजी शब्द हेतु उस विकल्प का प्रयोग करें जो कि रोजमर्रा की बोलचाल वाली में प्रयुक्त होता हो तथा प्रसंग के अनुसार हो। नये पाला पड़े शब्दों के लिये बुद्धिमतापूर्ण अनुमानित शब्दों का प्रयोग भी किया जा सकता है जैसे कि हिन्दी में डब की गयी टीवी डॉक्यूमेण्ट्रीज, हॉलीवुड फिल्मों आदि के अनुवाद में देखा जाता है। जैसे en:Dementor (डब की गयी हैरी पॉटर फिल्मों में प्रयुक्त) के लिये दमपिशाच आदि।


पन्ना या हरा कबूतर

पन्ना कबूतर या कॉमन एमरल्ड् डव् उष्ण तथा उपोष्ण कटिबन्धीय भारतीय उपमहाद्वीप, म्याँमार, थाइलैंड, मलेशिया, इंडोनेशिया तथा उत्तरी व पूर्वी ऑस्ट्रेलिया में पाया जाने वाला एक कबूतर का प्रकार है। इसे हरा कबूतर या हरित-पक्ष-कबूतर के नाम से भी जाना जाता है। यह भारत के तमिलनाडु राज्य का राज्यपक्षी है।


इसकी अनेक उपप्रजातियाँ हैं, जिनमें तीन ऑस्ट्रेलिया में पायी जाती हैं।


यह वर्षा वनों आर्द्र घने वनों, कृषिक्षेत्रों, उद्योनों, ज्वारीयवनों तथा तटीय दलदल में पाये जाने वाली आम प्रजाति है। यह डंडियों से पेड़ों पर अनगढ़ सा घोंसला बनाता है और दो मलाई-रंग के अंडे देते हैं। ये तेजी से और तुरन्त उड़ान भरते हैं, जिसमें परों की नियमित ताल तथा तीखे झटके भी होते हैं, जो कबूतरों की सामान्य विशेषता है। ये प्रायः घने वनों के खंडों में नीचे-नीचे उड़ते हैं, लेकिन कभी कभी छेड़े जाने पर उड़ने के बजाय दौड़कर भी दूर हो जाते हैं।


इनका स्वर धीमी कोमल दुखभरी सी कूक जैसा होता है, जिसमें ये शांत से शुरू करके उठाते हुए छः से सात बार कूकते हैं। ये अनुनासिक "हु-हू-हूँ" की आवाज भी करते हैं।


साग, सब्जी और चारा भी

शलजम (अंग्रेज़ी: Turnip, वानस्पतिक नाम:Brassica rapa) क्रुसीफ़ेरी कुल का पौधा है। इसकी जड़ गांठनुमा होती है जिसकी सब्ज़ी बनती है। कोई इसे रूस का और कोई इसे उतरी यूरोप का देशज मानते हैं। आज यह पृथ्वी के प्राय: समस्त भागों में उगाया जाता है।इसकी जड़ मोटी होती है, जिसको पकाकर खाते हैं और पत्तियाँ भी शाग के रूप में खाई जाती हैं। पशुओें के लिए यह एक बहुमूल्य चारा है। कुछ स्थानों में मनुष्यों के खाने के लिए, कुछ पशुओें को खिलाने के लिए और कुछ स्थानों में इन दोनों कामों के लिए यह उगाया जाता है। इसमें ठोस पदार्थ ९ से १२ प्रतिशत और कुछ विटामिन, विशेषत: "बी' और "सी' रहते हैं।


विशेषताये:-यह शीतकालीन पौधा है। अधिक गरमी यह सहन नहीं कर सकता। पौधे लगभग १८ इंच ऊँचे और फलियाँ एक से डेढ़ इंच लंबी होती हैं। इसके फूल पीले, या पांडु, या हलके नारंगी रंग के होते हैं। शलजम का वर्गीकरण इसकी जड़ के आकार पर, अथवा जड़ के ऊपरी भाग के रंग पर, किया गया है। कुछ जड़ें लंबी, कुछ गोलाकार, कुछ चिपटी और कुछ प्याले के आकार की होती हैं। कुछ किस्म के शलजम के गुद्दे सफेद और कुछ के पीले होते हैं। भारत में उपर्युक्त सब ही प्रकार के शलजम उगाए जाते हैं।


कृषि:-शलजम बोने के लिए खेतों की जुताई गहरी और अच्छी होनी चाहिए। अच्छी सड़ी गोबर की खाद प्रति एकड़ १०-१५ टन और नाइट्रोजन, फ़ॉस्फ़ोरस और पोटैश वाला उर्वरक ८६० पाउंड डालने से पैदावार अच्छी होती है। इसका बीज छिटकावा, या ड्रिल द्वारा, कतार में बोया जाता है। ए एकड़ के लिए छह से आठ पाउंड तक बीज की आवश्यकता पड़ती है। आधे इंच की गहराई पर बीज बोया जाता है। यदि मिट्टी कड़ी या मटियार हो, तो मेंड़ों पर भी बीज बोया जा सकता है। बीज शीघ्र ही जम जाता है। जम जाने पर पौधों को विरलित करने की आवश्यकता पड़ती है, ताकि वे चार से छह इंच की दूरी पर ही रहें। पौधे शीघ्र ही बढ़ते हैं। लंबे समय तक अच्छी नरम जड़ की प्राप्ति के लिए, एक साथ समस्त खेत को न बोकर १०-१५ दिन के अंतर पर बोना अच्छा होता है। आषाढ़ सावन में बीज बोया जाता है।


दूसरी बार फरवरी से जून के आरंभ तक बोया जाता है। बरसात में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती, पर अन्य मौसम में प्रत्येक ८.१० दिनों में सिंचाई आवश्यक होती है। ठंढे देशों में गरमी में भी इसकी बोआई होती है। भारत में पैदावार प्रति एकड़ सामान्यत: २०० मन होती है, पर पूरी खाद और उर्वरकों की सहायता से सरलता से, ड्योढी और दुगुनी की जा सकती है। पौधों में कुछ कवक (तना गलना आदि) और कुछ कीड़े (घुन, पिस्सू, गुबरेले, सूँडी आदि) भी लगते है, जिनसे बचाव का उपाय करना आवश्यक होता है।


राम का राष्ट्रवाद उपदेश

गतांक से...
 भगवान राम बेटा प्रातः कालीन अपने आसन से निवृत्त होकर के प्राणायाम करते थे! वह प्राण के संबंध में अच्छी प्रकार जानते थे कि जो प्रकृतिवाद को जानने लगता है! वह नाना प्रकार के और भी रूपों में रत हो जाता है! मैं विशेष विवेचना देने नहीं आया हूं! भगवान राम प्रातः कालीन पंचवटी पर यज्ञ करते थे! नाना प्रकार का साकल्य एकत्रित करना, उस साकल्य में रत रहना ,उस साकल्य को अपने में, अनुकृतियों में रत करके उस आभा में निहित रहना जानते थे! विचार केवल यह है कि प्राण-अपान दोनों का मेल मिलाना है! दोनों का संगतिकरण करना है! दोनों को एक दूसरे में पिरोने की चर्चाएं आती रहती है! परंतु जब मैं यह विचारता रहता हूं कि हे प्रभु तू कितना महान और पवित्र कहलाता है! तू कितना ओजस्वी और आभा में नियुक्त होने वाला है! परमात्मा तू महान  सखा है! भगवान राम प्रातः कालीन यह प्रार्थना करते रहते थे! निस्वार्थ होकर के विचरण करते थे! मेरे प्यारे देखो, प्रत्येक मानव के हृदय में, प्रत्येक प्राणी के हृदय में एक महानता की अनुपम ज्योति जागरूक हो जाती है! अंत में यह ज्योति मानव के जीवन का मूल बनकर के इस सागर से पार करा देती है! भगवान राम का जीवन मैं प्रारंभ कर रहा था! भगवान राम की प्रतिभा में रत रहने के लिए नाना राजा उनके समीप आते! उनके राष्ट्र के संविधान की चर्चाएं भी की है! उन्होंने कहा है कि राष्ट्र अपने में जब महान बन करके रहता है यदि प्राणी मात्र के हृदय में एक हृदयग्रह मैं एक महानता की अपनी अनुपम ज्योति जागरूक हो जाती है! और अंत में वह ज्योति मानव के जीवन का मूल बनकर के इस सागर से पार करा देती है! तो देखो आभा ब्रहे वाचनम् ब्रह्म राजब्रहे:, राजा को प्रणायाम करना चाहिए! क्योंकि प्राण एक शाखा है! प्राण को ऋषि लोमस मुनि जानते थे! प्राण का कितना महत्व है बाल काल में विद्यालय में भगवान राम जब अध्ययन करते थे! तो बेटा विद्यालय में प्राण की पवित्र विद्या उनके समीप आती रहती है और उसमें अपने को प्राप्त करते रहते हैं! प्राण देखो ऐसी विचित्र आभा में नियुक्त रहने वाला एक अनुपम सखा हैं! जिसको जानकर मानव अमरावती को प्राप्त हो जाता है! आज मैं क्या उच्चारण करने चला हूं कि राजा कौन है? बेटा राजा के राष्ट्र में विज्ञान होना चाहिए! विज्ञान को नाना प्रकार की तरंगे होनी चाहिए! जिस विज्ञान का आयु प्रबल होता है वही सार्थक होता है! अधिक विवेचना न देते हुए आज मैं तुम्हें उस क्षेत्र में ले जा रहा हूं! जिस क्षेत्र में हमें राष्ट्रीयता और मानवता का दर्शन होता रहा है! भगवान राम अपने में विचारते रहते थे कि हिंसा नहीं होनी चाहिए, मैं अहिंसा की चर्चा उनके जीवन काल की चर्चाएं प्रकट कर रहा था! परंतु पुन:- पुन: वह वाक्य मुझे स्मरण आते रहते हैं! हम विचारते रहते हैं, अपने में अन्वेषण करते रहते हैं कि भगवान राम का जीवन सदैव आज्ञाकारी रहा है! उनके जीवन में एक महानता की ज्योति अपने में प्रतिष्ठित होकर के आत्मतत्व कि आभा में निहित रही हैं!


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