सोमवार, 21 अक्टूबर 2019

खजूर का गुण और उपयोग

हम भोजन में यूं तो कई पदार्थ खाते हैं, लेकिन कुछ पदार्थ ऐसे होते हैं, जिन्हें मौसम विशेष के अलावा वर्षभर प्रयोग किया जा सकता है। ऐसे ही पदार्थों की जानकारी इस कॉलम के माध्यम से हम देना चाहते हैं। इस बार खारक के संबंध में जानिए।


छुहारे को खारक भी कहते हैं। यह पिण्ड खजूर का सूखा हुआ रूप होता है, जैसे अंगूर का सूखा हुआ रूप किशमिश और मुनक्का होता है। छुहारे का प्रयोग मेवा के रूप में किया जाता है। इसके मुख्य भेद दो हैं- 1. खजूर और 2. पिण्ड खजूर।


गुण : यह शीतल, रस तथा पाक में मधुर, स्निग्ध, रुचिकारक, हृदय को प्रिय, भारी तृप्तिदायक, ग्राही, वीर्यवर्द्धक, बलदायक और क्षत, क्षय, रक्तपित्त, कोठे की वायु, उलटी, कफ, बुखार, अतिसार, भूख, प्यास, खांसी, श्वास, दम, मूर्च्छा, वात और पित्त और मद्य सेवन से हुए रोगों को नष्ट करने वाला होता है। यह शीतवीर्य होता है, पर सूखने के बाद छुहारा गर्म प्रकृति का हो जाता है।


परिचय : यह 30 से 50 फुट ऊंचे वृक्ष का फल होता है। खजूर, पिण्ड खजूर और गोस्तन खजूर (छुहारा) ये तीन भेद भाव प्रकाश में बताए गए हैं। खजूर के पेड़ भारत में सर्वत्र पाए जाते हैं। सिन्ध और पंजाब में इसकी खेती विशेष रूप से की जाती है। पिण्ड खजूर उत्तरी अफ्रीका, मिस्र, सीरिया और अरब देशों में पैदा होता है। इसके वृक्ष से रस निकालकर नीरा बनाई जाती है।


रासायनिक संघटन : इसके फल में प्रोटीन 1.2, वसा 0.4, कार्बोहाइड्रेट 33.8, सूत्र 3.7, खनिज द्रव्य 1.7, कैल्शियम 0.022 तथा फास्फोरस 0.38 प्रतिशत होता है। इस वृक्ष के रस से बनाई गई नीरा में विटामिन बी और सी पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। कुछ समय तक रखने पर नीरा मद्य में परिणत हो जाती है। पके पिण्ड खजूर में अपेक्षाकृत अधिक पोषक तत्व होते हैं और शर्करा 85 प्रतिशत तक पाई जाती है।


उपयोग : खजूर के पेड़ से रस निकालकर 'नीरा' बनाई जाती है, जो तुरन्त पी ली जाए तो बहुत पौष्टिक और बलवर्द्धक होती है और कुछ समय तक रखी जाए तो शराब बन जाती है। इसके रस से गुड़ भी बनाया जाता है। इसका उपयोग वात और पित्त का शमन करने के लिए किया जाता है।


विश्व का दूसरा बड़ा महासागर

अन्ध महासागर या अटलांटिक महासागर उस विशाल जलराशि का नाम है जो यूरोप तथा अफ्रीका महाद्वीपों को नई दुनिया के महाद्वीपों से पृथक करती है। क्षेत्रफल और विस्तार में दुनिया का दूसरे नंबर का महासागर है जिसने पृथ्वी का १/५ क्षेत्र घेर रखा है। इस महासागर का नाम ग्रीक संस्कृति से लिया गया है जिसमें इसे नक्शे का समुद्र भी बोला जाता है। इस महासागर का आकार लगभग अंग्रेजी अक्षर 8 के समान है। लंबाई की अपेक्षा इसकी चौड़ाई बहुत कम है। आर्कटिक सागर, जो बेरिंग जलडमरूमध्य से उत्तरी ध्रुव होता हुआ स्पिट्सबर्जेन और ग्रीनलैंड तक फैला है, मुख्यतः अंधमहासागर का ही अंग है। इस प्रकार उत्तर में बेरिंग जल-डमरूमध्य से लेकर दक्षिण में कोट्सलैंड तक इसकी लंबाई १२,८१० मील है। इसी प्रकार दक्षिण में दक्षिणी जार्जिया के दक्षिण स्थित वैडल सागर भी इसी महासागर का अंग है। इसका क्षेत्रफल इसके अंतर्गत समुद्रों सहित ४,१०,८१,०४० वर्ग मील है। अंतर्गत समुद्रों को छोड़कर इसका क्षेत्रफल ३,१८,१४,६४० वर्ग मील है। विशालतम महासागर न होते हुए भी इसके अधीन विश्व का सबसे बड़ा जलप्रवाह क्षेत्र है। उत्तरी अंधमहासागर के पृष्ठतल की लवणता अन्य समुद्रों की तुलना में पर्याप्त अधिक है। इसकी अधिकतम मात्रा ३.७ प्रतिशत है जो २०°- ३०° उत्तर अक्षांशों के बीच विद्यमान है। अन्य भागों में लवणता अपेक्षाकृत कम है।


अंध महासागर की पृष्ठधाराएँ नियतवाही पवनों के अनुरूप बहती हैं। परंतु स्थल खंड की आकृति के प्रभाव से धाराओं के इस क्रम में कुछ अंतर अवश्य आ जाता है। उत्तरी अन्ध महासागर की धाराओं में उत्तरी विषुवतीय धारा, गल्फ स्ट्रीम, उत्तरी अन्ध प्रवाह, कैनेरी धारा और लैब्रोडोर धाराएँ मुख्य हैं। दक्षिणी अन्ध महासागर की धाराओं में दक्षिणी विषुवतीय धारा, ब्राजील धारा, फाकलैंड धारा, पछवाँ प्रवाह और बैंगुला धाराएँ मुख्य हैं।


व्यापार का आधार 'स्वेज नहर'

स्वेज नहर (Suez canal) लाल सागर और भूमध्य सागर को संबंद्ध करने वाली एक नहर है। सन् 1859 में एक फ्रांसीसी इंजीनियर फर्डीनेण्ड की देखरेख में स्वेज नहर का निर्माण शुरु हुआ था। यह नहर आज 162 किमी लंबी, 60 मी चौड़ी और औसत गहरी 16.5 मी है। दस वर्षों में बनकर यह तैयार हो गई थी। सन् 1869 में यह नहर यातायात के लिए खुल गई थी। पहले केवल दिन में ही जहाज नहर को पार करते थे पर 1887 ई. से रात में भी पार होने लगे। 1866 ई. में इस नहर के पार होने में 36 घंटे लगते थे पर आज 18 घंटे से कम समय ही लगता है। यह वर्तमान में मिस्र देश के नियंत्रण में है। इस नहर का चुंगी कर बहुत अधिक है। इस नहर की लंबाई पनामा नहर की लंबाई से दुगुनी होने के बाद भी इसमें पनामा नहर के खर्च का 1/3 धन ही लगा है।


इतिहास:-इस नहर का प्रबंध पहले "स्वेज कैनाल कंपनी" करती थी जिसके आधे शेयर फ्रांस के थे और आधे शेयर तुर्की, मिस्र और अन्य अरब देशों के थे। बाद में मिस्र और तुर्की के शेयरों को अंग्रेजों ने खरीद लिया। 1888 ई. में एक अंतरराष्ट्रीय उपसंधि के अनुसार यह नहर युद्ध और शांति दोनों कालों में सब राष्ट्रों के जहाजों के लिए बिना रोकटोक समान रूप से आने-जाने के लिए खुली थी। ऐसा समझौता था कि इस नहर पर किसी एक राष्ट्र की सेना नहीं रहेगी। किन्तु अंग्रेजों ने 1904 ई. में इसे तोड़ दिया और नहर पर अपनी सेनाएँ बैठा दीं और उन्हीं राष्ट्रों के जहाजों के आने-जाने की अनुमति दी जाने लगी जो युद्धरत नहीं थे। 1947 ई. में स्वेज कैनाल कंपनी और मिस्र सरकार के बीच यह निश्चय हुआ कि कंपनी के साथ 99 वर्ष का पट्टा रद्द हो जाने पर इसका स्वामित्व मिस्र सरकार के हाथ आ जाएगा। 1951 ई. में मिस्र में ग्रेट ब्रिटेन के विरुद्ध आंदोलन छिड़ा और अंत में 1954 ई. में एक करार हुआ जिसके अनुसार ब्रिटेन की सरकार कुछ शर्तों के साथ नहर से अपनी सेना हटा लेने पर राजी हो गई। पीछे मिस्र ने इस नहर का 1956 में राष्ट्रीयकरण कर इसे अपने पूरे अधिकार में कर लिया।


उपयोगिता:-इस नहर के कारण यूरोप से एशिया और पूर्वी अफ्रीका का सरल और सीधा मार्ग खुल गया और इससे लगभग 6,000 मील की दूरी की बचत हो गई। इससे अनेक देशों, पूर्वी अफ्रीका, ईरान, अरब, भारत, पाकिस्तान, सुदूर पूर्व एशिया के देशों, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड आदि देशों के साथ व्यापार में बड़ी सुविधा हो गई है और व्यापार बहुत बढ़ गया है।


भगवान राम का उपदेश

भगवान राम का उपदेश 
जीते रहो! आज हम तुम्हारे समक्ष पूर्व की भांति कुछ मनोहर वेद मंत्रों का गुणगान गाते चले जा रहे थे! यह भी तुम्हें प्रतीत हो गया होगा, आज हमने पूर्व से जिन वेद मंत्रों का पठन-पाठन किया हमारे यहां परंपरागतो से ही उस मनोहर वेद वाणी का प्रसार होता रहता है! जिस पवित्र वेद वाणी में उस मेरे देव परमपिता परमात्मा की महती का वर्णन किया जाता है! क्योंकि वह परमपिता परमात्मा वर्णनीय माने गए हैं और जो भी मानव उसको अपना वर्णन बना लेता है! वह प्राय: उसी को प्राप्त हो जाता है! इसलिए हमारा वेद मंत्र यह कहता है! हे मानव, तू प्रभु को अपना वर्णनीय बना, क्योंकि उसका वर्णन और अपना ना बहुत अनिवार्य है! उसको अपनाने वाला प्राणी संसार में महान और पवित्र बन जाता है! आने वाले काल में बेटा उसकी बहुत प्रशंसा होती है! वह वर्तमान में भी प्रंस्सनीय हो जाता है और आने वाला जो जगत है उसमें उसकी महान कृतियों का प्रदर्शन होता रहता है! तो इसलिए हमारा वेद मंत्र कहता है! हे मानव, तू परमपिता परमात्मा को अपना वर्णन बना,क्योंकि उसको वरण करने वाला यज्ञपुरुष कहलाता है! उसको अपनाने वाला बेटा अध्यात्मिक विज्ञानवेता कहलाता है! अध्यात्मिकता में मानव की प्रतिष्ठा नहीं रहती है! तो आओ मेरे प्यारे हम परमपिता परमात्मा को अपना वर्णनीय स्वीकार करें! उसको अपने में धारण करते हुए महान और पवित्रता की उस पगडंडी को ग्रहण करने वाले बने! उस पगडंडी को ग्रहण करने वाले नाना ॠषिवर अपने प्रभु के आंगन में उसकी ज्ञानमयी धारा में रत हो गए हैं! आज का हमारा वेद मंत्र हमें यह उच्चारण कर रहा है कि हम उस देव की महिमा का गुणगान गाने वाले बने! हम उस महान जगत को जो आंतरिक और ब्रह् जगत में दोनों में अपनी प्रतिष्ठा में निहित रहता है! हम उस अपने प्रभु का गुणगान गाते हुए इस सागर से पार होना चाहते हैं! जो नाना प्रकार का यह संसार सागर के रूप में हमें दृष्टिपात आता रहता है! इसमें नाना प्रकार के उद्घोष होते रहते हैं और वह उद्घोष बड़े उच्च विचित्र आभा में, आंगन में प्रवेश करते रहते हैं! आज का हमारा वेद मंत्र क्या कह रहा है? आज का हमारा वेद मंत्र यज्ञ के संबंध में और प्राण के संबंध में बड़ी ऊंची वार्ता कह रहा है! क्योंकि वायुमंडल को पवित्र बनाते हुए हम आध्यात्मिक विज्ञानवेता बने और विज्ञान में हम परिणत हो जाए! जिस विज्ञान के लिए मानव परंपरागतो से ललायित हो रहा है और जिस विज्ञान के लिए मानव ऊंची-ऊंची उड़ान उड़ रहा है! हम उसी ज्ञान, हम उस विज्ञानवेता के स्वाध्याय में अपने को ले जाते चले जाएं! जिससे मानव समाज का वास्तव में कल्याण हो जाए! वेद का वाक्य कहता है! मानव को प्रणायाम करना चाहिए, प्राण की प्रतिष्ठा में व्रत रहना चाहिए! जैसे प्राण अपने में गतिशील है, गति देने वाला है तो मानव उस प्रभु को अपना गतिशील स्वीकार करते हुए, अपने मनोनीत हृदय को ऊंचा बनाना चाहते हुए इस संसार को प्रतिभा में हम इसमें प्रतिनिधित्व करने वाले बने! जिससे हमारे जीवन की धारा एक महानता में परिणत हो जाए! मैं आज तुम्हें उस क्षेत्र में ले जा रहा हूं! जिस क्षेत्र की चर्चा बेटा में पुन:-पुन: प्रकट करता रहता हूं!


प्राधिकृत प्रकाशन विवरण

यूनिवर्सल एक्सप्रेस


हिंदी दैनिक


प्राधिकृत प्रकाशन विवरण


October 22, 2019 RNI.No.UPHIN/2014/57254


1. अंक-79 (साल-01)
2. मंगलवार ,22 अक्टूबर 2019
3. शक-1941,अश्‍विन,कृष्णपक्ष, तिथि- नवमी, संवत 2076


4. सूर्योदय प्रातः 06:20,सूर्यास्त 05:55
5. न्‍यूनतम तापमान -20 डी.सै.,अधिकतम-30+ डी.सै., हवा की गति धीमी रहेगी।
6. समाचार-पत्र में प्रकाशित समाचारों से संपादक का सहमत होना आवश्यक नहीं है। सभी विवादों का न्‍याय क्षेत्र, गाजियाबाद न्यायालय होगा।
7. स्वामी, प्रकाशक, मुद्रक, संपादक राधेश्याम के द्वारा (डिजीटल सस्‍ंकरण) प्रकाशित।


8.संपादकीय कार्यालय- 263 सरस्वती विहार, लोनी, गाजियाबाद उ.प्र.-201102


9.संपर्क एवं व्यावसायिक कार्यालय-डी-60,100 फुटा रोड बलराम नगर, लोनी,गाजियाबाद उ.प्र.,201102


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रविवार, 20 अक्टूबर 2019

पुत्रवती महिलाओं का अहोई अष्टमी व्रत

होई के चित्रांकन में ज्यादातर आठ कोष्ठक की एक पुतली बनाई जाती है। उसी के पास साही तथा उसके बच्चों की आकृतियां बना दी जाती हैं। करवा चौथ के ठीक चार दिन बाद अष्टमी तिथि को देवी अहोई माता का व्रत किया जाता है। यह व्रत पुत्र की लम्बी आयु और सुखमय जीवन की कामना से पुत्रवती महिलाएं करती हैं। कृर्तिक मास की अष्टमी तिथि को कृष्ण पक्ष में यह व्रत रखा जाता है इसलिए इसे अहोई अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है।


विधि:-उत्तर भारत के विभिन्न अंचलों में अहोईमाता का स्वरूप वहां की स्थानीय परंपरा के अनुसार बनता है। सम्पन्न घर की महिलाएं चांदी की होई बनवाती हैं। जमीन पर गोबर से लीपकर कलश की स्थापना होती है। अहोईमाता की पूजा करके उन्हें दूध-चावल का भोग लगाया जाता है। तत्पश्चात एक पाटे पर जल से भरा लोटा रखकर कथा सुनी जाती है। अहोईअष्टमी की दो लोक कथाएं प्रचलित हैं।


पहली कथा:-प्राचीन काल में एक साहुकार था, जिसके सात बेटे और सात बहुएं थी। इस साहुकार की एक बेटी भी थी जो दीपावली में ससुराल से मायके आई थी। दीपावली पर घर को लीपने के लिए सातों बहुएं मिट्टी लाने जंगल में गई तो ननद भी उनके साथ हो ली। साहुकार की बेटी जहां मिट्टी काट रही थी उस स्थान पर स्याहु (साही) अपने साथ बेटों से साथ रहती थी। मिट्टी काटते हुए ग़लती से साहूकार की बेटी की खुरपी के चोट से स्याहू का एक बच्चा मर गया। स्याहू इस पर क्रोधित होकर बोली मैं तुम्हारी कोख बांधूंगी।


स्याहू के वचन सुनकर साहूकार की बेटी अपनी सातों भाभीयों से एक एक कर विनती करती हैं कि वह उसके बदले अपनी कोख बंधवा लें। सबसे छोटी भाभी ननद के बदले अपनी कोख बंधवाने के लिए तैयार हो जाती है। इसके बाद छोटी भाभी के जो भी बच्चे होते हैं वे सात दिन बाद मर जाते हैं। सात पुत्रों की इस प्रकार मृत्यु होने के बाद उसने पंडित को बुलवाकर इसका कारण पूछा। पंडित ने सुरही गाय की सेवा करने की सलाह दी।


सुरही सेवा से प्रसन्न होती है और उसे स्याहु के पास ले जाती है। रास्ते थक जाने पर दोनों आराम करने लगते हैं अचानक साहुकार की छोटी बहू की नज़र एक ओर जाती हैं, वह देखती है कि एक सांप गरूड़ पंखनी के बच्चे को डंसने जा रहा है और वह सांप को मार देती है। इतने में गरूड़ पंखनी वहां आ जाती है और खून बिखरा हुआ देखकर उसे लगता है कि छोटी बहु ने उसके बच्चे के मार दिया है इस पर वह छोटी बहू को चोंच मारना शुरू कर देती है। छोटी बहू इस पर कहती है कि उसने तो उसके बच्चे की जान बचाई है। गरूड़ पंखनी इस पर खुश होती है और सुरही सहित उन्हें स्याहु के पास पहुंचा देती है।


वहां स्याहु छोटी बहू की सेवा से प्रसन्न होकर उसे सात पुत्र और सात बहु होने का अशीर्वाद देती है। स्याहु के आशीर्वाद से छोटी बहु का घर पुत्र और पुत्र वधुओं से हरा भरा हो जाता है। अहोई का अर्थ एक प्रकार से यह भी होता है "अनहोनी को होनी बनाना" जैसे साहुकार की छोटी बहू ने कर दिखाया था। अहोई व्रत का महात्मय जान लेने के बाद आइये अब जानें कि यह व्रत किस प्रकार किया जाता है।


दूसरी कथा:-उसमें से एक कथा में साहूकार की पुत्री के द्वारा घर को लीपने के लिए मिट्टी लाते समय मिट्टी खोदने हेतु खुरपा (कुदाल) चलाने से साही के बच्चों के मरने से संबंधित है। इस कथा से यह शिक्षा मिलती है कि हमें कोई भी काम अत्यंत सावधानी से करना चाहिए अन्यथा हमारी जरा सी गलती से किसी का ऐसा बड़ा नुकसान हो सकता है, जिसकी हम भरपाई न कर सकें और तब हमें उसका कठोर प्रायश्चित करना पडेगा। इस कथा से अहिंसा की प्रेरणा भी मिलती है। अहोईअष्टमी की दूसरी कथा मथुरा जिले में स्थित राधाकुण्डमें स्नान करने से संतान-सुख की प्राप्ति के संदर्भ में है। अहोईअष्टमी के दिन पेठे का दान करें।


जन स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ तो नहीं

जनता के स्वास्थ्य से खिलवाड़ तो नहीं
अविनाश श्रीवास्तव 
गाजियाबाद,लोनी। क्षेत्र की जनता प्रदूषण की मार झेल रही है। वायु गुणवत्ता सूचाकं चिंताजनक स्थिति में बना हुआ है। वर्तमान में एक्यूआई 235 से ऊपर चल रहा है। निकट भविष्य में इसके कम होने के आसार नजर नहीं आ रहे हैं। प्रदूषण को बढ़ाने वाले व्यवसाय और संसाधनों के विरुद्ध आवश्यक कार्यवाही का अभाव प्रतीत किया जा रहा है। जल-प्रदूषण की स्थिति इतनी भयावह बनती जा रही है कि कहीं-कहीं पर पानी का टीडीएस 1700 पार जा चुका है। आकलन कर स्थिति के विरुद्ध उपजिला-अधिकारी प्रशांत तिवारी के निर्देशन में लगभग 40 से अधिक अनाधिकृत औद्योगिक इकाइयों के विरुद्ध विधिक कार्रवाई करते हुए सीज कर दिया गया है। लगभग एक माह तक चले इस अभियान में रूपनगर औद्योगिक क्षेत्र, आर्यनगर औद्योगिक क्षेत्र, कृष्णा नगर कॉलोनी आदि क्षेत्रों में संचालित औद्योगिक इकाइयों को सीज कर दिया गया है। लेकिन इसके पीछे एक नई कहानी बहुत तेजी से क्षेत्र में फैलती जा रही है। सूत्र बताते हैं कि प्रदूषण फैलाने वाली औद्योगिक इकाइयों को जल्द ही राहत मिलने वाली है। सीज की गई औद्योगिक इकाइयों के संचालन के लिए अवैध उगाही की गहमा-गहमी तेज हो गई है। सूत्रों पर विश्वास किया जाए तो यह अवैध उगाही करोड़ों रुपए में हो सकती है। यह योजनाबद्ध ढंग से होने वाली अवैध उगाही की ओर संकेत करती है। हालांकि अभी तक ऐसा कोई मामला प्रकाश में नहीं आया है। उपजिला-अधिकारी की कर्तव्यनिष्ठा पर अभी तक कोई सवाल खड़ा नही किया जा सकता है। हो सकता है यह विषय राजनीति से प्रेरित हो,परंतु जनता के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए किसी नेता अथवा जनप्रतिनिधि को जनता के स्वास्थ्य से खेलने का कोई अधिकार नहीं है! घटिया राजनीति के चलते इस प्रकार के प्रकरण पहले भी संज्ञान में आते रहे हैं! क्षेत्र की जनता के स्वास्थ्य से जुड़ा मामला है। वायु और जल प्रदूषण से फेफड़े, हृदय और हड्डियों के जोड़ों से संबंधित रोग अधिक तेजी से विकसित होते हैं। ऐसी अवस्था में जनता के स्वास्थ्य को प्राथमिकता में रखना उपजिला-अधिकारी का नैतिक-कर्तव्य बन जाता है। प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए प्रत्येक नागरिक को हर संभव प्रयास करना चाहिए। भविष्य में प्रदूषण का नागरिकों के जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव का ठीक-ठीक अनुमान नहीं लगाया जा सकता है।


'बीएसए' द्वारा विद्यालय का निरीक्षण किया गया

'बीएसए' द्वारा विद्यालय का निरीक्षण किया गया  भानु प्रताप उपाध्याय  मुजफ्फरनगर। जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी संदीप कुमार द्वारा कस्तूरब...