शुक्रवार, 18 अक्तूबर 2019

शुभ समाचार प्राप्त होंगे: कर्क

राशिफल


मेष-किसी आनंदोत्सव में भाग लेने का अवसर प्राप्त होगा। यात्रा मनोरंजक रहेगी। शिक्षा के क्षेत्र में सफलता प्राप्त होगी। व्यस्तता के चलते स्वास्थ्य को नजरअंदाज न करें। बेवजह विवाद हो सकता है। लाभ के अवसर हाथ आएंगे। उत्साह व प्रसन्नता से काम कर पाएंगे।


वृष-कामकाज में अधिक ध्यान देगा पड़ेगा। दूर से दु:खद समाचार मिल सकता है। भागदौड़ रहेगी। समय पर काम नहीं होने से तनाव रहेगा। गुस्से पर काबू रखें। व्यापार-व्यवसाय में उतार-चढ़ाव रहेगा। नौकरी में अधिकारी अधिक की अपेक्षा करेंगे। किसी व्यक्ति के उकसाने में न आएं।


मिथुन-पहले किए गए प्रयास का लाभ अब मिलेगा। समय पर कर्ज चुका पाएंगे। प्रतिस्पर्धियों पर विजय प्राप्त होगी। व्यापार-व्यवसाय मनोनुकूल लाभ देंगे। निवेश शुभ फल देगा। नौकरी में कार्य की प्रशंसा होगी। भाग्य का साथ मिलेगा। खोई हुई वस्तु मिल सकती है। प्रमाद न करें।


कर्क-आय में सुगमता रहेगी। घर में मेहमानों का आगमन होगा। व्यय होगा। दूर से शुभ समाचार प्राप्त होंगे। प्रसन्नता बढ़ेगी। जोखिम उठाने का साहस कर पाएंगे। आनंद और उल्लास के साथ जीवन व्यतीत होगा। पारिवारिक सहयोग प्राप्त होगा। चोट व रोग से हानि संभव है।


सिंह-जीवनसाथी के स्वास्थ्य संबंधी चिंता बनी रहेगी। रोजगार प्राप्ति के प्रयास सफल रहेंगे। किसी बड़ी समस्या से छुटकारा मिल सकता है। व्यावसायिक प्रवास हो सकता है। काम में अनुकूलता रहेगी। भेंट व उपहार की प्राप्ति हो सकती है। पार्टनरों से सहयोग मिलेगा। लाभ होगा।


कन्या-कोई बड़ा खर्च अचानक सामने आ सकता है। व्यवस्था में मुश्किल होगी। चिंता तथा तनाव रहेंगे। गुस्से पर काबू रखें। मित्रों का सहयोग प्राप्त होगा। कीमती वस्तुएं संभालकर रखें। धनहानि की आशंका बन सकती है। व्यापार ठीक चलेगा। आय बनी रहेगी।


तुला-पहले किसी व्यक्ति को दिए गए कर्ज की वसूली हो सकती है। व्यावसायिक प्रवास सफल रहेगा। धन प्राप्ति सु्गम होगी। घर-परिवार की चिंता बनी रहेगी। कोई नई समस्या आ सकती है। शारीरिक कष्ट भी आशंका है, लापरवाही न करें। नौकरी में चैन रहेगा। उच्चाधिकारी प्रसन्न रहेंगे।


वृश्चिक-आर्थिक वृद्धि के लिए नई योजना बनेगी। तत्काल लाभ नहीं होगा। किसी सामाजिक कार्यक्रम में भाग लेने का अवसर प्राप्त हो सकता है। मान-सम्मान मिलेगा। कार्यकारी नए अनुबंध हो सकते हैं। उत्साह व प्रसन्नता से कार्य कर पाएंगे। शारीरिक शिथिलता रहेगी।


धनु-गृहस्थ जीवन में आनंद का वातावरण रहेगा। जीवनसाथी को भेंट व उपहार देना पड़ सकता है। किसी अनहोनी की आशंका रह सकती है। स्वास्थ्य का ध्यान रखें। लापरवाही न करें। कोर्ट व कचहरी तथा सरकारी कामों में अनुकूलता रहेगी। लाभ के अवसर हाथ आएंगे। प्रमाद न करें।


मकर-कोई पुराना रोग परेशानी का कारण बन सकता है। वाहन व मशीनरी के प्रयोग में लापरवाही न करें। शारीरिक हानि की आशंका बनती है। किसी व्यक्ति के व्यवहार से दिल को ठेस पहुंच सकती है। क्रोध व उत्तेजना पर नियंत्रण रखें। आय में निश्चितता रहेगी, धैर्य रखें।


कुंभ-किसी लंबे मनोरंजक प्रवास का कार्यक्रम बन सकता है। आंखों का विशेष ध्यान रखें। चोट व रोग से बचें। सुख के साधन जुटेंगे। दांपत्य जीवन सुखद रहेगा। सरकारी कामकाज में अनुकूलता रहेगी। स्थिति नियंत्रण में रहेगी। लाभ के अवसर हाथ आएंगे। जोखिम न उठाएं।


मीन-कुबुद्धि हावी रह सकती है इसलिए कोई भी निर्णय सोम-समझकर करें। रोजगार प्राप्ति के प्रयास सफल रहेंगे। कार्य के प्रति उत्साह रहेगा। जल्दबाजी न करें। भूमि व भवन इत्यादि की खरीद-फरोख्त की योजना सफल रहेगी। बड़ा लाभ हो सकता है। प्रमाद न करें।


बंगाली रसगुल्ला

रसगुल्ला बनाने के लिये मुख्य सामग्री छैना है, जिसे हम ताजी छैना कह कर डेयरी से ला सकते हैं या दूध से हम इसे घर पर बना सकते हैं। यदि हमको छैना घर पर बनाना हैं तो सबसे पहले हम रसगुल्ले बनाने के लिये छैना बनायेगे।


छैना बनाने के लिये दूध को किसी भारी तले वाले बर्तन में निकाल कर गरम कीजिये। दूध में उबाल आने के बाद नीबू का रस डालते हुये चमचे से चलाइये। दूध जब पूरा फट जाय, दूध में छैना और पानी अलग दिखाई देने लगे तो तुरन्त आग बन्द कर दीजिये। छैना को कपड़े में छानिये और ऊपर से ठंडा पानी डाल दीजिये ताकि नीबू का स्वाद छैना में न रहे। कपड़े को हाथ से दबा कर अतिरिक्त पानी निकाल दीजिये। रसगुल्ला बनाने के लिये छैना तैयार है।


छैना को बड़ी थाली में निकाल लीजिये, एरोरूट मिला कर छैना को अच्छी तरह मथिये। छैना को इतना मथिये कि वह चिकना गुथे हुये आटे की तरह दिखाई देने लगे। रसगुल्ला बनाने के लिये छैना तैयार है। इस छैने से थोड़ा थोड़ा छैना निकाल कर। पौन इंच से लेकर एक इंच व्यास के छोटे छोटे गोले बना कर प्लेट में रख लीजिये। सारे रसगुल्ले के लिये गोले इसी तरह बना लीजिये और इन्हें आधे घंटे के लिये किसी गीले कपड़े से ढक कर रख दीजिये।


300 ग्राम चीनी और 1 लीटर पानी किसी बर्तन में डाल कर गरम कीजिये। जब पानी खौलने लगे तो छैने से बने गोले पानी में डाल दीजिये। बर्तन को ढक दीजिये, इन छैना के गोलों को, 20 मिनिट तक मीडियम आग पर उबलने दीजिये। रसगुल्ले पक कर फूल जायेंगे, गैस बन्द कर दीजिये। रसगुल्ले सीरप में ही ठंडे होने दीजिये।


लीजिये छैना के रसगुल्ले तैयार हैं। ठंडा होने के बाद, रसगुल्लों को फ्रिज में रख दीजिये और अब ठंडा ठंडा रसगुल्ला परोसिये और खाइये।


भारतीय हाथी लुप्तता की कगार पर

भारतीय हाथी लंबाई में ६.४ मीटर (२१ फ़ुट) तक पहुँच सकता है; यह थाईलैंड के एशियाई हाथी से लंबा व पतला होता है। सबसे लंबा ज्ञात भारतीय हाथी २६ फ़ुट (७.८८ मी) का था, पीठ के मेहराब के स्थान पर इसकी ऊँचाई 11 फीट (3.4 मी॰), ९इंच (३.६१मी) थी और इसका वज़न ८ टन (१७९३५ पौंड) था। भारतीय हाथी अफ़्रीकी हाथियों जैसे ही दिखते हैं पर उनके कान छोटे होते हैं और दाँत छोटे होते हैं।


शारीरिक ढाँचा:-चूँकि भारतीय हाथी एशियाई हाथियों की ही उपजाति हैं, अतः इनमें कोई खास फ़र्क नहीं है। भारतीय हाथियों के अफ़्रीकी हाथियों के मुकाबले कान छोटे होते हैं और माथा चौड़ा होता है। मादा के हाथीदाँत नहीं होते हैं। नर मादा से ज़्यादा बड़े होते हैं। सूँड अफ़्रीकी हाथी से ज़्यादा बड़ी होती है। पंजे बड़े व चौड़े होते हैं। पैर के नाखून ज़्यादा बड़े नहीं होते हैं। अफ़्रीकी पड़ोसियों के मुकाबले इनका पेट शरीर के वज़न के अनुपात में ही होता है, लेकिन अफ़्रीकी हाथी का सिर के अनुपात में पेट बड़ा होता है।


जनसंख्या व लुप्तप्रायता:-विश्व वन्यजीव कोष भारतीय हाथी को काफ़ी जगह प्राप्य लेकिन विलुप्तप्राय मानता है। भारतीय हाथी की मौजूदा जनसंख्या २०,००० से २५,००० के बीच होगी। एशियाई हाथी विशेषज्ञ समूह द्वारा भारतीय हाथी को १९९६ में एक विलुप्तप्राय जाति के तौर पर वर्गीकृत किया गयाा। भारतीय हाथियों को हाथीदाँत के लिए किए गए शिकार से, तथा जंगली इलाकों में इंसानी रिहायिश की वजह से रिहायिश की जगह में कमी तथा इंसानों के युद्धों से खतरा है। अलग अलग वन्यप्राणी अभयारण्यों में मौजूद जंगली हाथियों की पृथक संख्याओं को भी आनुवंशिक विविधता न होने से खतरा है। हाल ही में वन्यप्राणी अभियारण्यों के बीच कुछ गलियारे बनाए गए हैं ताकि जंगली हाथियों का देशांतरण हो सके।


बर्ड ऑफ पैराडाइस

बर्ड ऑफ़ पैराडाइज़ का शरीर आम तौर पर कौवे जैसा होता है तथा वास्तव में ये कॉर्विड्स प्रजाति (कौवे तथा नीलकंठ) से संबंधित हैं। बर्ड ऑफ़ पैराडाइज़ पक्षी विभिन्न आकारों में पाए जाते हैं जो किंग बर्ड ऑफ़ पैराडाइज़ 50 ग्राम (1.8 औंस) और 15 से॰मी॰ (5.9 इंच) से ले कर कर्ल-क्रेस्टेड मनुकोड 44 से॰मी॰ (17 इंच) व 430 ग्राम (15 औंस) तक के आकार के होते हैं। अपनी लंबी पूंछ के साथ नर ब्लैक सिक्लेबिल सभी प्रजातियों में सबसे लंबी प्रजाति है।110 से॰मी॰ (43 इंच) सभी प्रजातियों में नर मादा से बड़े और लंबे होते हैं, तथा यह अंतर मामूली से लेकर विशाल आकार तक का हो सकता है। पंख गोल होते हैं और कुछ प्रजातियों में ध्वनि निकालने के लिए संरचनात्मक रूप से संशोधित होते हैं। पूरी जाति में चोंच के आकार में विविधता पाई जाती है। सिक्लेबिल व राइफ़लबर्ड प्रजातियों में चोंच लंबी तथा अवक्राकार हो सकती है तथा एस्ट्रापिया में छोटी और पतली हो सकती है। लिंग के आधार पर शरीर के साथ-साथ चोंच का औसत आकार बदलता रहता है, हालांकि आम तौर पर नरों की तुलना में लंबी चोंच वाली मादाओं की प्रजातियां अधिक हैं और ऐसा विशेष रूप से कीट खाने वाली प्रजातियों में है। नरों के भड़कीले आकर्षक रंगों वाले पंखों की तुलना में मादाओं के छद्मावरण पंख विशेष रूप से अपने निवास के रंगों में अच्छी तरह घुल मिल जाते हैं।


विभिन्न लिंगों के बीच पंखों में भिन्नता प्रजनन प्रणाली से बारीकी से संबंधित है। मनुकोड और पैराडाइज़ क्रो, जो सामाजिक रूप से एक मादा के साथ रहते हैं, लैंगिक तौर पर मोनोमोर्फिक (अर्थात जिनका जीनोटाइप एक ही प्रकार का होता है) होते हैं। इसी तरह पैराडिगाला की दो प्रजातियां हैं जो एक से अधिक मादा के साथ रहती हैं। इन सभी प्रजातियों के हरे और नीले रंग की घटती बढ़ती मात्रा के साथ आम तौर पर काले पंख होते हैं।


निवास और विस्तार


ब्राउन सिकेलबिल्स पर्वतीय प्रजातियां हैं
न्यू गिनी का विशाल द्वीप बर्ड ऑफ़ पैराडाइज़ पक्षियों की विविधता का प्रमुख केंद्र है; केवल दो को छोड़ कर बाकी सभी प्रजातियां न्यू गिनी पर पाई जाती हैं। जो दो प्रजातियां यहां नहीं पाई जातीं, वे हैं मोनोटाइपिक श्रेणी की लाइकोकॉरेक्स तथा सेमिप्टेरा, जो न्यू गिनी के पश्चिम में स्थित मोलुक्कास की निवासी हैं। टिलोरिस वर्ग के राइफलबर्ड पक्षियों की दो प्रजातियां पूर्वी ऑस्ट्रेलिया के तटीय जंगलों में पाई जाती हैं, एक ऑस्ट्रेलिया तथा न्यू गिनी दोनों जगहों पर पाई जाती हैं, तथा एक प्रजाति केवल न्यू गिनी में मिलती है। केवल मनुकोडिया एक वर्ग है जिसकी प्रजातियां न्यू गिनी के बाहर पाई जाती हैं, तथा इनका एक प्रतिनिधि क्वींसलैंड के उत्तरी छोर पर पाया जाता है। शेष प्रजातियां न्यू गिनी और आसपास के द्वीपों तक सीमित हैं। कई प्रजातियां अत्यधिक सीमित क्षेत्रों में मिलती हैं, विशेष रूप से मध्य-पर्वतीय वन (जैसे ब्लैक सिक्लेबिल) या द्वीप स्थलों (जैसे विल्सन बर्ड ऑफ़ पैराडाइज़) जैसे सीमित निवास स्थानों में पाई जाने वाली कुछ प्रजातियां।


बर्ड ऑफ़ पैराडाइज़ की अधिकांश प्रजातियां वर्षा वनों, दल-दली जगहों, तथा काई के वनों सहित उष्णकटिबंधीय वनों में पाई जाती हैं, लगभग सभी प्रजातियां एकांत रूप से वृक्षों पर निवास करती हैं। तटीय सदाबहार वनों में कई प्रजातियां पाई जाती हैं। सुदूर दक्षिण में पाई जाने वाली ऑस्ट्रेलिया की पैराडाइज़ राइफलबर्ड प्रजातियां उप उष्णकटिबंधीय और शीतोष्ण नम वनों में रहती हैं। एक समूह के रूप में मनुकोड अपने निवास स्थलों के प्रति सबसे अधिक अनुकूलित स्वभाव वाले होते हैं, जिसमे से विशेष रूप से ग्लॉसी-मेंटल्ड मनुकोड वनों तथा सवाना वुडलैंड, दोनों जगहों पर निवास करते हैं। मध्य-पर्वतीय निवास स्थल सर्वाधिक आबादी वाले निवास स्थल हैं, चूंकि 40 में से 30 प्रजातियां 1000-2000 मीटर की ऊंचाइयों पर पाई जाती हैं।


गाजर घास की आक्रामकता

गाजर घास या 'चटक चांदनी' (Parthenium hysterophorus) एक घास है जो बड़े आक्रामक तरीके से फैलती है। यह एकवर्षीय शाकीय पौधा है जो हर तरह के वातावरण में तेजी से उगकर फसलों के साथ-साथ मनुष्य और पशुओं के लिए भी गंभीर समस्या बन जाता है। इस विनाशकारी खरपतवार को समय रहते नियंत्रण में किया जाना चाहिए। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इस घास को चिड़िया बाड़ी के नाम से भी पुकारते है।


गाजर घास का उपयोग अनेक प्रकार के कीटनाशक, जीवाणुनाशक और खरपतवार नाशक दवाइयों के र्निमाण में किया सकता है। इसकी लुग्दी से विभिन्न प्रकार के कागज तैयार किये जा सकते हैं। बायोगैस उत्पादन में भी इसको गोबर के साथ मिलाया जा सकता है।


परिचय:-इस खरपतवार की बीस प्रजातियां पूरे विश्व में पाई जाती हैं। अमेरिका, मैक्सिको, वेस्टइंडीज, भारत, चीन, नेपाल, वियतनाम और आस्ट्रेलिया के विभिन्न भागों में फैली खरपतवार का भारत में प्रवेश तीन दशक र्पूव अमेरिका या कनाडा से आयात किये गये गेहूं के साथ हुआ। अल्पकाल में ही लगभग पांच मिलियन हैक्टेयर क्षेत्र में इसका भीषण प्रकोप हो गया। यह खरपतवार जम्मू-कश्मीर, हिमाचल, दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, महाराष्ट्र, उत्तर-प्रदेश, मध्यप्रदेश, उडीसा, पश्चिमी बंगाल, आन्ध्रप्रदेश, र्कनाटक, तमिलनाडु, अरुणाचल प्रदेश और नागालैण्ड के विभिन्न भागों में फैली हुई है।


एक से डेढ मीटर तक लम्बी गाजर घास के पौधे का तना रोयेदार अत्यधिक शाखा युक्त होता है। इसकी पत्तियां असामान्य रूप से गाजर की पत्ती की तरह होती हैं। इसके फलों का रंग सफेद होता है। प्रत्येक पौधा 1००० से 5०००० अत्यंत सूक्ष्म बीज पैदा करता है, जो शीघ्र ही जमीन पर गिरने के बाद प्रकाश और अंधकार में नमी पाकर अंकुरित हो जाते हैं। यह पौधा 3-4 माह में ही अपना जीवन चक्र पूरा कर लेता है और र्वष भर उगता और फलता फूलता है। यह हर प्रकार के वातावरण में तेजी से वृद्धि करता है। इसका प्रकोप खाद्यान्न, फसलों जैसे धान, ज्वार, मक्का, सोयाबीन, मटर तिल, अरंडी, गन्ना, बाजरा, मूंगफली, सब्जियों एवं उद्यान फसलों में भी देखा गया है। इसके बीज अत्यधिक सूक्ष्म होते हैं, जो अपनी दो स्पंजी गद्दि्यों की मदद से हवा तथा पानी द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान तक आसानी से पहुंच जाते हैं।


गाजर घास मनुष्य और पशुओं के लिए भी एक गंभीर समस्या है। इससे खाद्यान्न फसल की पैदावार में लगभग 4॰ प्रतिशत तक की कमी आंकी गई है। इस पौधे में पाये जाने वाले एक विषाक्त पर्दाथ के कारण फसलों के अंकुरण एवं वृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। दलहनी फसलों में यह खतरपतवार जड ग्रंथियों के विकास को प्रभावित करता है तथा नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने वाले जीवाणुओं की क्रियाशीलता को भी कम कर देता है। इसके परागकण बैंगन, र्मिच, टमाटर आदि सब्जियों के पौधे पर एकत्रित होकर उनके परागण अंकुरण एवं फल विन्यास को प्रभावित करते हैं तथा पत्तियों में क्लोरोफिल की कमी एवं पुष्प र्शीषों में असामान्यता पैदा कर देते हैं।


महर्षि वशिष्ठ का राष्ट्रवाद उपदेश

गतांक से...
 भगवान राम ने कहा प्रभु मेरी दृष्टि में तो वही प्रसंग पुन: बना रहा कि यह राष्ट्रवाद क्या है, राष्ट्रवाद किसे कहते हैं? भगवान राम के शब्दों को श्रवण करते हुए महर्षि वशिष्ठ मुनि बोले राष्ट्रवाद का यह कर्तव्य कहलाता है कि वह मोह नहीं करें। अपने पुत्र-पुत्री वह ग्रह ऐसे स्वीकार करें जैसे राजा के राष्ट्र में और अन्य प्रजा होती है। प्रजा की भांति जब उसे दृष्टिपात करोगे तो प्रजा तुम्हारी हितकर बनकर तुम्हारे राष्ट्र को उन्नत करेगी। प्रजा और पुत्र दोनों में अंतर्द्वंद है, पुत्र तो कहते हैं ममता की मौह की कुंजी को और ग्रहणी 'सुथनम ब्रह्मा:' प्रजा कहते हैं। जो अपने कर्तव्य का पालन करते हैं, वही तो प्रजा कहलाती है। माता-पिता को संतान देने से पूर्व संसार को संतान देने से पूर्व यह विचारना है। राष्ट्रवाद में यह आया है कि राजा पुत्र को उत्पन्न न करें, वह प्रजा को उत्पन्न करने वाला, वही प्रजा राष्ट्रवाद का चिंतन करने वाली बनती है। मेरे प्यारे उन्होंने कहा कि तुम्हारी राष्ट्र में प्रजा होनी चाहिए और पालक उसका राजा होना चाहिए। जिससे राष्ट्र अपनी आभा में उन्नत हो जाए। देखो विचार आता रहता है। वशिष्ठ ने कहा है कि हे राम, राष्ट्रवाद वह कहलाता है जब राजा अपने नियमों में पूर्णतव को प्राप्त होता है। प्रातकाल जब अंतरिक्ष तारामंडल अपनी छटा में हो उस समय राजा को भ्रमण करना चाहिए। उसके पश्चात अपनी शारीरिक क्रियाओं से निवृत्त होकर, व्यायाम करें, योगासनों में अारुड हो इन क्रियाकलापों को करने के पश्चात राजा अपनी स्थली पर आता है। और वह चाहता है कि मेरे राष्ट्र में प्रत्येक प्राणी याज्ञिक बने और सुगंध का देने वाला हो। मेरे प्यारे देखो महात्मा ब्राह्मण कर्तम: देवात्मा:, हे राम ,बड़े प्रसन्न हुए उन्होंने कहा जब तक हम अपनी शारीरिक क्रियाओं को और जीवन को उन्नत नहीं कर सकते। विचारों में सुगंधी नहीं ला सकते। हम समाज को, राष्ट्र को ऊंचा नहीं बना सकते। उन्होंने कहा संभवत: प्रव्हे कृतम' जो वाणी में है वही क्रिया में है। जो क्रिया में है वही बॉणी में है। वही उसके हृदय में सदा बन करके रहती है। मेरे प्यारे, जब यह वाक्य उद्गीत रूप में गाया और यह कहा कि राजा में सबसे प्रथम नैतिकता होनी चाहिए। वैदिक विधाओं में उसे रमण करना चाहिए। जैसे देखो राष्ट्रवाद में नाना प्रकार की विधाओं का वर्णन आता रहता है। मेरी प्यारी माता में अपनी विद्या में पूर्ण हो कुछ संतान को जन्म देने वाली हो तो राष्ट्र उन्नत बनता है। मेरे प्यारे जब मैं त्रेता के काल में जाता हूं तो महात्मा दुर्वासा वेद के दृष्टा रहे हैं। वेद का दृष्टा वह होता है जो वेद के प्रत्येक मंत्र के गुणों को जानने वाला हो और उसको क्रिया मे लाने वाला हो। महात्मा दुर्वासा मुनि उसी प्रकार अपने में रत होते रहे हैं। मैं द्वापर में या दुर्वासा ऋषि के स्थान में नहीं जा रहा हूं। विचार केवल यह है कि वशिष्ठ की ही चर्चा कर रहा था। वशिष्ठ मुनि महाराज भी इस विद्या को जानते थे और इस विद्या को महाराज नल भी जानते थे। जिस विद्या को मृर्चीका रेणूकेतू भी जानते थे। वह विद्या कौन सी है। मेरे प्यारे देखो वेद मंत्रों का उदगीत गा रहा है और प्राण भी विद्या को जान रहा है। प्राण विद्या में आता है कि जब प्राण का अपन से मिलान किया जाता है। और उदान से सामान का और सामान को प्राण की प्रतिष्ठा में परिणत किया जाता है। तो हृदय में जो अग्नि का जो स्वरूप है वह अग्नि अपने में प्रचंड हो जाती है। और अग्नि प्राण रूप बनकर के दीपक राग के रूप में परिणत हो जाती है। गृह दीपावली बन जाता है। उसका राष्ट्र भी दीपावली बन जाता है। तो दीप मालिका बन करके एक माला बन जाती है। मेरे प्यारे मुझे स्मरण आता रहता है। इस विद्या को वशिष्ठ मुनि भी जानते थे। एक एक विद्या वह भी कहलाई जाती है माता के गर्भ स्थल में जब हम जैसे शिशु विद्यमान हो जाते हैं। तो माता यह चाहती है कि मेरा बालक पवित्र बन जाए। वह गुरुओं के समीप जाती है और कहती है। प्रभु मैं अपने गर्म से एक ब्रह्मावेता को जन्म देना चाहती हूं। एक तो वह पुत्र है, जो पुत्र है एक वह पुत्र है जो प्रजा है। और एक वह जो मुनि प्रवृत्ति वाले पुत्र को जन्म देने वाली है। जिसे हम ब्रह्मवेता कहते हैं। ब्रह्मनिष्ट कहते हैं।


प्राधिकृत प्रकाशन विवरण

यूनिवर्सल एक्सप्रेस


हिंदी दैनिक


प्राधिकृत प्रकाशन विवरण


October 19, 2019 RNI.No.UPHIN/2014/57254


1. अंक-76 (साल-01)
2. शनिवार,19 अक्टूबर 2019
3. शक-1941,अश्‍विन,कृष्णपक्ष, षष्ठी-तिथि, संवत 2076


4. सूर्योदय प्रातः 06:18,सूर्यास्त 06:00
5. न्‍यूनतम तापमान -20 डी.सै.,अधिकतम-30+ डी.सै., हवा की गति धीमी रहेगी।
6. समाचार-पत्र में प्रकाशित समाचारों से संपादक का सहमत होना आवश्यक नहीं है। सभी विवादों का न्‍याय क्षेत्र, गाजियाबाद न्यायालय होगा।
7. स्वामी, प्रकाशक, मुद्रक, संपादक राधेश्याम के द्वारा (डिजीटल सस्‍ंकरण) प्रकाशित।


8.संपादकीय कार्यालय- 263 सरस्वती विहार, लोनी, गाजियाबाद उ.प्र.-201102


9.संपर्क एवं व्यावसायिक कार्यालय-डी-60,100 फुटा रोड बलराम नगर, लोनी,गाजियाबाद उ.प्र.,201102


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 (सर्वाधिकार सुरक्षित)



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