बुधवार, 16 अक्टूबर 2019

समसामयिक एवं राशिफल

1-राशिफल


मेष -किसी अपने नजदीकी से कहासुनी हो सकती है। हृदय को ठेस पहुंच सकती है। स्वास्थ्य का पाया कमजोर रहेगा। काम में उत्साह की कमी रहेगी। जोखिम व जमानत के कार्य टालें। भागदौड़ रहेगी। मानसिक उलझनें रहेंगी। व्यापार-व्यवसाय मनोनुकूल चलेगा। फालतू बातों पर ध्यान न दें।


वृष -कम मेहनत से ही कार्यसिद्धि होगी। काफी समय से रुके कार्य पूर्ण होने से प्रसन्नता रहेगी। कार्य की प्रशंसा होगी। नौकरी में सहकर्मी साथ देंगे। घर में भाइयों का सहयोग प्राप्त होगा। व्यापार-व्यवसाय में गति आएगी। निवेश आदि मनोनुकूल लाभ देंगे। प्रमाद न करें।


मिथुन -नए मित्र बनेंगे। नए कार्य प्रारंभ करने की योजना बनेगी। अच्‍छी खबर मिलने से प्रसन्नता रहेगी। पारिवारिक सहयोग प्राप्त होगा। आय में वृद्धि होगी। शत्रु सक्रिय रहेंगे। किसी भी तरह के विवाद में भाग न लें। व्यापार-व्यवसाय में लाभ वृद्धि होगी। प्रसन्नता बनी रहेगी।


कर्क -भाग्योन्नति के प्रयास सफल रहेंगे। यात्रा मनोनुकूल लाभ देगी। निवेश में सोच-समझकर हाथ डालें। नौकरी में कार्यभार रहेगा। कारोबार अच्‍छा चलेगा। पार्टनरों का सहयोग प्राप्त होगा। नवीन वस्त्राभूषण पर व्यय होगा। परीक्षा व साक्षात्कार आदि में सफलता प्राप्त होगी। प्रमाद न करें।


सिंह -व्ययवृद्धि होगी। बजट बिगड़ेगा। दूसरों से अपेक्षा पूरी नहीं होगी। कार्य की गति धीमी रहेगी। नौकरी में कार्यभार रहेगा। थकान व कमजोरी रह सकती है। धैर्यशीलता में कमी रहेगी। किसी व्यक्ति की अच्छी बात भी बुरी लग सकती है। सोच-समझकर महत्वपूर्ण निर्णय लें।


कन्या -रुका पैसा मिल सकता है। यात्रा में जल्दबाजी न करें। लाभ के अवसर हाथ आएंगे। सभी कार्य पूर्ण व सफल रहेंगे। घर-बाहर प्रसन्नता का वातावरण रहेगा। उत्साह बना रहेगा। समय की अनुकूलता का लाभ लें। प्रमाद न कर भरपूर प्रयास करें। वाहनादि का प्रयोग संभलकर करें।


तुला-आर्थिक नीति का परिवर्तन सुखद रहेगा। कई तरह के लाभ प्राप्त होंगे। किसी बड़े कार्य को करने की योजना बनेगी। सामाजिक प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। नए काम मिल सकते हैं। लाभ के अवसर हाथ आएंगे। उत्साह व प्रसन्नता से काम कर पाएंगे। दूसरों की बातों में न आएं।


वृश्चिक -शारीरिक कष्ट की आशंका प्रबल है अत: लापरवाही न करें। अध्यात्म तथा तंत्र-मंत्र में रुचि रहेगी। किसी विद्वान व्यक्ति का मार्गदर्शन प्राप्त होगा। राजकीय सहयोग प्राप्त होगा। लंबित कार्य पूर्ण होंगे। प्रसन्नता रहेगी। चिंता तथा तनाव में कमी रहेगी।


धनु-वाहन, मशीनरी व अग्नि आदि के प्रयोग में लापरवाही न करें। शारीरिक कष्ट संभव है। दूसरों के उकसाने में न आएं। महत्वपूर्ण निर्णय लेने में जल्दबाजी न करें। स्वास्थ्य संबंधी परेशानी हो सकती है। समय शीघ्र ही बदलेगा। व्यापार-व्यवसाय मनोनुकूल रहेंगे।


मकर -पारिवारिक मांगलिक कार्य का आयोजन हो सकता है। कुंआरों को वैवाहिक प्रस्ता‍व मिल सकता है। नौकरी में प्रमोशन इत्यादि मिल सकता है। घर-बाहर उत्साह व प्रसन्नता का वातावरण रहेगा। समय की अनुकूलता का लाभ लें। प्रमाद न करें। फालतू बातों पर ध्यान न दें।


कुंभ -स्थायी संपत्ति की खरीद-फरोख्त से बड़ा लाभ हो सकता है। प्रॉपर्टी ब्रोकर्स समय का लाभ ले सकते हैं। भाग्योन्नति के प्रयास सफल रहेंगे। रोजगार में वृद्धि होगी। धनार्जन सुगम होगा। उत्साह व प्रसन्नता से काम कर पाएंगे। व्यस्तता रहेगी। थकान संभव है।


मीन -पठन-पाठन व लेखन आदि कामों में मन लगेगा। सफलता प्राप्त होगी। किसी प्रबुद्ध व्यक्ति का मार्गदर्शन प्राप्त होगा। मस्तिष्क में नए-नए विचार आएंगे। घर-बाहर पूछ-परख रहेगी। किसी आनंदोत्सव में भाग लेने का अवसर प्राप्त हो सकता है। प्रसन्नता में वृद्धि होगी।


2- सुप्रीम कोर्ट का फैसले का सम्मान होना चाहिए


जल्द ही अयोध्या में भगवान राम के मंदिर का कोर्ट फैसला आने वाला है। हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही बेसब्री से फैसले का इंतजार कर रहे हैं। फैसला जो भी आये और जिस भी वर्ग के पक्ष में आए। प्रत्येक पक्ष को सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पूरा सम्मान करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट भारतीय लोकतंत्र की सबसे बड़ी न्याय संस्था हैं और वह प्रत्येक वर्ग, जाति, समुदाय और धर्म से ऊपर है।


न्यायप्रणाली में आस्था और विश्वास
उसके फैसले व्यक्तिगत ना होकर न्यायपूर्ण होते हैं और देश में न्याय व्यवस्था बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि न्यायप्रणाली में आस्था और विश्वास हो। 2020 से 2022 में भगवान राम के मंदिर का निर्माण कार्य पूर्ण हो जाएगा, ऐसी भविष्णवाणी हम पूर्व ही कर चुके है।


आज हम यह विश्लेषण करने जा रहे है कि भगवान राम को सिंहासन मिलने वाला था, परन्तु रातोंरात स्थिति बदल गई और उन्हें चौदह वर्ष के लिए वनवास के लिए जाना पड़ा। ऐसे कौन से ग्रह योग थे, जिनके फलस्वरुप यह स्थिति बनी। आईये जानें-


भगवान राम की कुंडली विश्लेषण
भगवान राम की कुंड्ली कर्क लग्न और कर्क राशि की है। लग्न में गुरु-चंद्र युति, पराक्रम भाव में राहु, चतुर्थ में शनि, सप्तम में मंगल, शुक्र-केतु नवम भाव, सूर्य दशम भाव, बुध एकादश भावस्थ है।


ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार यदि लग्न और सप्तम दोनों में उच्चस्थ ग्रह स्थित हों तो व्यक्ति को विवाह के बाद अवनति का सामना करना पड़ता है। पद-प्रतिष्ठा के लिए चतुर्थ और द्वितीय भाव का विचार किया जाता है। यहां चतुर्थेश शुक्र नवम भाव में राहु/केतु अक्ष में होने के कारण पीडित है और पूर्ण फल देने की स्थिति में नहीं है।


सप्तम से चतुर्थ भाव अर्थात दशम भाव में सूर्य उच्च पद, सम्मान और अधिकारिक शक्तियां तो देता है परन्तु यहां यह वैवाहिक सुख का नाश करता है। इसी प्रकार द्वादशेश बुध का स्वयं से द्वादश भावस्थ होना शयन सुख में कमी करता है। कुछ ज्योतिषी मतों के अनुसार जब लग्न और सप्तम दोनों भाव उच्च के ग्रहों से युक्त होते हैं तो ग्रह त्याग कर वनवास जाना पड़ता है।


वैदिक ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार यदि सौम्य ग्रह अर्थात वॄष, मिथुन, कर्क, तुला, धनु और मीन लग्न हो, उसमें सौ म्य ग्रह अर्थात शुभ ग्रह स्थित हो और उन्हें कम से कम दो पाप ग्रह पूर्ण दृष्टि दे रहें हो तो व्यक्ति कितना भी बड़ा राजा हो, कुंडली कितने भी राजयोगों से युक्त हो, ऐसे मॆं राजभंग होता है। ऐसा व्यक्ति राजा के घर जन्म लेकर भी राजसिक जीवन नहीं जी पाता है।


उपरोक्त कुंडली में गुरु-चंद्र दोनों लग्नस्थ है और इन्हें मंगल सप्तम दृष्टि से व शनि दशम दृष्टि से देख रहे हैं। इसके अतिरिक्त राहु भी शुक्र को देख रहें है। शनि व सूर्य सप्तसप्तक योग में स्थित है। शनि-सूर्य की युति या दोनों का सप्तसप्तक योग में होना पिता का पुत्र से वियोग देता है।


संतान को जातक से अधिक पराक्रमी
अनुभव मंह पाया गया है कि कर्क लग्न की कुंडलियों में पंचमेश का सप्तम भाव में स्थित होना, व्यक्ति की संतान की संतान को जातक से अधिक पराक्रमी बनाता है। यह योग अनेकोनेक कुंडलियों पर लगा कर देखा, पूर्ण फल देता है। आप भी लगाकर देंखे और अपने अनुभव बतायें।


ज्योतिष आचार्या रेखाकल्पदेव पिछले 15 वर्षों से सटीक ज्योतिषीय फलादेश और घटना काल निर्धारण करने में महारत रखती है। कई प्रसिद्ध वेबसाईटस के लिए रेखा ज्योतिष परामर्श कार्य कर चुकी हैं।


आचार्या रेखा एक बेहतरीन लेखिका भी हैं। इनके लिखे लेख कई बड़ी वेबसाईट, ई पत्रिकाओं और विश्व की सबसे चर्चित ज्योतिषीय पत्रिकाओं में शोधारित लेख एवं भविष्यकथन के कॉलम नियमित रुप से प्रकाशित होते रहते हैं।जीवन की स्थिति, आय, करियर, नौकरी, प्रेम जीवन, वैवाहिक जीवन, व्यापार, विदेशी यात्रा, ऋणऔर शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य, धन, बच्चे, शिक्षा,विवाह, कानूनी विवाद, धार्मिक मान्यताओं और सर्जरी सहित जीवन के विभिन्न पहलुओं को फलादेश के माध्यम से हल करने में विशेषज्ञता रखती हैं।


 


प्रकृति और खानपान (विविध)

औषधीय गुणों से भरपूर तुलसी


1-तुलसी - (ऑसीमम सैक्टम) एक द्विबीजपत्री तथा शाकीय, औषधीय पौधा है। यह झाड़ी के रूप में उगता है और १ से ३ फुट ऊँचा होता है। इसकी पत्तियाँ बैंगनी आभा वाली हल्के रोएँ से ढकी होती हैं। पत्तियाँ १ से २ इंच लम्बी सुगंधित और अंडाकार या आयताकार होती हैं। पुष्प मंजरी अति कोमल एवं ८ इंच लम्बी और बहुरंगी छटाओं वाली होती है, जिस पर बैंगनी और गुलाबी आभा वाले बहुत छोटे हृदयाकार पुष्प चक्रों में लगते हैं। बीज चपटे पीतवर्ण के छोटे काले चिह्नों से युक्त अंडाकार होते हैं। नए पौधे मुख्य रूप से वर्षा ऋतु में उगते है और शीतकाल में फूलते हैं। पौधा सामान्य रूप से दो-तीन वर्षों तक हरा बना रहता है। इसके बाद इसकी वृद्धावस्था आ जाती है। पत्ते कम और छोटे हो जाते हैं और शाखाएँ सूखी दिखाई देती हैं। इस समय उसे हटाकर नया पौधा लगाने की आवश्यकता प्रतीत होती है।


तुलसी की सामान्यतः निम्न प्रजातियाँ पाई जाती हैं:


१- ऑसीमम अमेरिकन (काली तुलसी) गम्भीरा या मामरी।
२- ऑसीमम वेसिलिकम (मरुआ तुलसी) मुन्जरिकी या मुरसा।
३- ऑसीमम वेसिलिकम मिनिमम।
४- आसीमम ग्रेटिसिकम (राम तुलसी / वन तुलसी / अरण्यतुलसी)।
५- ऑसीमम किलिमण्डचेरिकम (कर्पूर तुलसी)।
६- ऑसीमम सैक्टम
७- ऑसीमम विरिडी।
इनमें ऑसीमम सैक्टम को प्रधान या पवित्र तुलसी माना गया जाता है, इसकी भी दो प्रधान प्रजातियाँ हैं- श्री तुलसी जिसकी पत्तियाँ हरी होती हैं तथा कृष्णा तुलसी जिसकी पत्तियाँ निलाभ-कुछ बैंगनी रंग लिए होती हैं। श्री तुलसी के पत्र तथा शाखाएँ श्वेताभ होते हैं जबकि कृष्ण तुलसी के पत्रादि कृष्ण रंग के होते हैं। गुण, धर्म की दृष्टि से काली तुलसी को ही श्रेष्ठ माना गया है, परन्तु अधिकांश विद्वानों का मत है कि दोनों ही गुणों में समान हैं। तुलसी का पौधा हिंदू धर्म में पवित्र माना जाता है और लोग इसे अपने घर के आँगन या दरवाजे पर या बाग में लगाते हैं। भारतीय संस्कृति के चिर पुरातन ग्रंथ वेदों में भी तुलसी के गुणों एवं उसकी उपयोगिता का वर्णन मिलता है। इसके अतिरिक्त ऐलोपैथी, होमियोपैथी और यूनानी दवाओं में भी तुलसी का किसी न किसी रूप में प्रयोग किया जाता है।


लाल हल्के पीले रंग का खुबानी


2-ख़ुबानी के पेड़ का कद छोटा होता है - लगभग ८-१२ मीटर तक। उसके तने की मोटाई क़रीब ४० सेंटीमीटर होती है। ऊपर से पेड़ की टहनियां और पत्ते घने फैले हुए होते है। पत्ते का आकार ५-९ सेमी लम्बा, ४-८ सेमी चौड़ा और अण्डाकार होता है। फूल पाँच पंखुड़ियों वाले, सफ़ेद या हलके गुलाबी रंग के होते हैं और हाथ की ऊँगली से थोड़े छोटे होते हैं। यह फूल या तो अकेले या दो के जोड़ों में खिलते हैं। ख़ुबानी का फल एक छोटे आड़ू के बराबर होता है। इसका रंग आम तौर पर पीले से लेकर नारंगी होता है लेकिन जिस तरफ सूरज पड़ता हो उस तरफ ज़रा लाल रंग भी पकड़ लेता है। वैसे तो ख़ुबानी के बहरी छिलका काफी मुलायम होता है, लेकिन उस पर कभी-कभी बहुत महीन बाल भी हो सकते हैं। ख़ुबानी का बीज फल के बीच में एक ख़ाकी या काली रंग की सख़्त गुठली में बंद होता है। यह गुठली छूने में ख़ुरदुरी होती है।


पैदावार-विश्व में सबसे ज़्यादा ख़ुबानी तुर्की में उगाई जाती है जहाँ २००५ में ३९०,००० टन ख़ुबानी पैदा की गई। मध्य-पूर्व तुर्की में स्थित मलत्या क्षेत्र ख़ुबानियों के लिए मशहूर है और तुर्की की लगभग आधी पैदावार यहीं से आती है। तुर्की के बाद ईरान का स्थान है, जहाँ २००५ में २८५,००० टन ख़ुबानी उगाई गई। ख़ुबानी एक ठन्डे प्रदेश का पौधा है और अधिक गर्मी में या तो मर जाता है या फल पैदा नहीं करता। भारत में ख़ुबानियाँ उत्तर के पहाड़ी इलाकों में पैदा की जाती है, जैसे के कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, वग़ैराह।


ख़ुबानी के बीज-ख़ुबानी की गुठली के अन्दर का बीज एक छोटे बादाम की तरह होता है और ख़ुबानी की बहुत सारी क़िस्मों में इसका स्वाद एक मीठे बादाम सा होता है। इसे खाया जा सकता है, लेकिन इसमें हलकी मात्रा में एक हैड्रोसायनिक ऐसिड नाम का ज़हरीला पदार्थ होता है। बच्चों को ख़ुबानी का बीज नहीं खिलाना चाहिए। बड़ों के लिए यह ठीक है लेकिन उन्हें भी एक बार में ५-१० बीजों से अधिक नहीं खाने चाहिए।


किस्में-खुबानी कई रंगों में आती है, जैसे सफेद, काले, गुलाबी और भूरे (ग्रे) रंग। रंग से खुबानी के स्वाद पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, लेकिन इसमें जो कैरोटीन होता है, उसमें जरूर अंतर आ जाता है।


 


3-दक्षिण भारतीय खाना


दक्षिण भारतीय खाना भारत के द्रविड़ राज्यों के खाने को कहा जाता है। इसमें मुख्यतः तमिल नाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और केरल राज्य गिने जाते है। प्रसिद्ध पकवाने है- पेरुगु पुरी, इडली, डोसा, सांभर, पोंगल आदि। यहाँ का प्रमुख भोजन चावल है। नारियल, इमली, हरी मिर्च का प्रयोग होता है।


तमिल खाना
तमिल खाना मैं चावल, फलियां और मसूर की दाल का प्रयोग होता है। अपनी विशिष्ट सुगंध और स्वाद करी पत्ते, सरसों के बीज, धनिया, अदरक, लहसुन, मिर्च, काली मिर्च, दालचीनी, लौंग, हरी इलायची, जीरा, जायफल, नारियल और गुलाब जल हर एक पकवान को सुगंधित और स्वादिष्ट बनाते है। चेट्टीनाद व्यंजन पूरे दुनीया मैं प्रसिद्ध है। प्रसिद्ध खान है- मीन कोज़हमबु, पोलि, पोगल, इड्डीअपम, इडली, रस्म, पारुपु डोसा।


मलयाली खाना
मलयाली खाना बहुत विविध है। शाकाहारी व मांसाहरी पकवाने यहाँ मिलती है। प्रसिद्ध पकवान है-पुटू, आपम, इडीआपम, अवीयल, अलग- अलग प्रकार के मछली करी, मालाबार बिरयानी, पेडी, चिकन स्टू, पायसम। मलयाली खाने मैं केरल (चोर) चावल पसंद करते हैं। यहाँ का सबसे प्रसिद्ध पकवान सादया है।


कन्नड़ खाना
केरला के पकवान के तरह हि कन्नड़ पकवान मैं शाकाहारी व मांसाहरी पकवाने मिलती है। दक्षिण राज्यों का प्रभाव कन्नड़ खाने पर बहुत पड़ा है। प्रसिद्ध पकवान है - कोसमबारी, बिसी बेले बाथ, अक्कि रोटी, रागी मुद्दे, कायी चटनी, नुपुत्तु, टमाटर बाथ, मैसूर पाक, पानदि करी, अलग- अलग प्रकार के अचार। उडुपी व्यंजन पूरे राज्य व दुनीया मैं प्रसिद्ध है।


आंध्र प्रदेश का खाना
आंध्र खाना अपने नोंकदार, मसालेदार खाने के लिए जाना जाता है। दल, टमाटर और इमली इनके प्रमुक सामग्रीया है। प्रसिद्ध पकवान है- पेरुगु पुरी, पाचहि पुलुसु, बदाम हलवा, बिरयानी। इस राज्य के अन्दर बहुत सारे व्यंजन मिलेगेे।


राम चिरैया चमकीले रंगों का पक्षी


4-किंगफिशर कोरासीफोर्म्स वर्ग के छोटे से मध्यम आकार के चमकीले रंग के पंक्षियों का एक समूह है। इनका एक सर्वव्यापी वितरण है जिनमें से ज्यादातर प्रजातियाँ ओल्ड वर्ल्ड और ऑस्ट्रेलिया में पायी जाती हैं। इस समूह को या तो एक एकल परिवार एल्सिडिनिडी के रूप में या फिर उपवर्ग एल्सिडाइन्स में माना जाता है जिनमें तीन परिवार शामिल हैं, एल्सिडिनिडी (नदीय किंगफिशर), हैल्सियोनिडी (वृक्षीय किंगफिशर) और सेरीलिडी जलीय किंगफिशर). किंगफिशर की लगभग 90 प्रजातियां हैं। सभी के बड़े सिर, लंबे, तेज, नुकीले चोंच, छोटे पैर और ठूंठदार पूंछ हैं। अधिकांश प्रजातियों के पास चमकीले पंख हैं जिनमें अलग-अलग लिंगों के बीच थोड़ा अंतर है। अधिकांश प्रजातियां वितरण के लिहाज से उष्णकटिबंधीय हैं और एक मामूली बड़ी संख्या में केवल जंगलों में पायी जाती हैं। ये एक व्यापक रेंज के शिकार और मछली खाते हैं, जिन्हें आम तौर पर एक ऊंचे स्थान से झपट्टा मारकर पकड़ा जाता है। अपने वर्ग के अन्य सदस्यों की तरह ये खाली जगहों में घोंसला बनाते हैं, जो आम तौर पर जमीन पर प्राकृतिक या कृत्रिम तरीके से बने किनारों में खोदे गए सुरंगों में होते हैं। कुछ प्रजातियों, मुख्यतः द्वीपीय स्वरूपों के विलुप्त होने का खतरा बताया जाता है।


तीन परिवारों का वर्गीकरण जटिल है और कहीं अधिक विवादास्पद है। हालांकि आम तौर पर इन्हें कोरासीफोर्म्स वर्ग में रखा जाता है, लेकिन इस स्तर से नीचे भ्रम पैदा होने लगता है।


पारंपरिक रूप से किंगफिशर को तीन उप-परिवारों के साथ एक परिवार, एल्सिडिनिडी माना जाता था, लेकिन पक्षी वर्गीकरण में 1990 के दशक की क्रांति के बाद, पहले तीन उप-परिवारों को अब परिवार के स्तर से कहीं ऊंचा कर दिया गया है। यह परिवर्तन गुणसूत्र और डीएनए संकरण के अध्ययन द्वारा समर्थित था, लेकिन इस आधार पर इसे चुनौती दी गयी कि सभी तीन समूह अन्य कोरासीफोर्म्स के संदर्भ में मोनोफाइलेटिक हैं। यही उन्हें उपवर्ग एल्सिडाइन्स के रूप में वर्गीकृत करने का कारण है।


वृक्षीय किंगफिशर को पहले डेसिलोनिडी का पारिवारिक नाम दिया गया था लेकिन फिर हेल्सियोनिडी को प्राथमिकता दी गयी।


किंगफिशर की विविधता का केंद्र है ऑस्ट्रेलेसियन क्षेत्र, लेकिन ऐसा माना जाता है कि इस परिवार की उत्पत्ति यहाँ नहीं हुई, इसके बजाय ये उत्तरी गोलार्द्ध में विकसित हुए और कई बार ऑस्ट्रेलेसियन क्षेत्र पर आक्रमण किया। जीवाश्म किंगफिशर का उल्लेख 30-40 मिलियन वर्षों पहले, जर्मनी में व्योमिंग और मध्य इयोसीन चट्टानों में निम्न इयोसीन चट्टानों से किया गया मिलता है। और अधिक हाल ही के जीवाश्म किंगफिशर का उल्लेख ऑस्ट्रेलिया के मिओसिन चट्टानों में (5-25 मिलियन वर्षों पहले) किया गया मिलता है। कई जीवाश्म पक्षियों का संबंध ग़लती से किंगफिशर से जोड़ दिया गया है, जिनमें केंट में लोअर इयोसीन चट्टानों के हैल्सियोमिस शामिल हैं जिन्हें एक गल भी समझा जाता है, लेकिन अब इन्हें एक विलुप्त परिवार का एक सदस्य माना जाता है। उनमें किंगफिशर की 85,000 प्रजातियाँ हैं।


तीनों परिवारों में एल्सिडिनिडी अन्य दो परिवारों पर आधारित हैं। अमेरिका में पायी जाने वाली कुछ प्रजातियाँ, जो सभी सेरीलिडी परिवार से हैं, यह बताती हैं कि पश्चिमी गोलार्द्ध में इनकी छिटपुट मौजूदगी केवल दो मूल नयी बस्तियाँ बनाने वाली प्रजातियों के परिणाम स्वरुप है। यह परिवार प्राचीन युग में सबसे अधिक हाल ही में मिओसिन या प्लिओसीन में विविधतापूर्ण तरीके से अपेक्षाकृत हैल्सियोनिडी से विभाजित हुआ है।


महर्षि वशिष्ठ का राष्ट्रवाद उपदेश

गतांक से...
मेरे प्यारे मुझे स्मरण आता रहता है कि महाराजा सगर के भ्रमण करते आश्व को किसी ने अपने यहां स्थिर नहीं किया। महर्षि कपिल मुनि महाराज अपने विद्यालय में विद्यमान थे। उनके यहां जय और विजय दो राजकुमार अध्ययन करते रहते थे। वह अस्त्र-शस्त्र विद्या में बड़े निपुण ,पूर्णता को प्राप्त हुए थे। उन्होंने अश्व को अपने विद्यालय में स्थिर कर लिया। अब अश्व कहीं दृष्टिपात नहीं हुआ तो महाराज सगर ने अपने पुत्र सुख मंजस से कहा कि हमारी चौमुखी पुत्रवत सेना के साथ अश्व को लेने जाओ। वह सर्वत्र पृथ्वी पर भ्रमण करके कहीं अश्व को प्राप्त नहीं कर सके। वे राजा सागर के द्वार पर आकर बोले प्रभु हमें कहीं ऐसा भान नहीं हुआ कि हम उस अश्व को ले आए। उन्होंने कहा, कहां गया। पर वह हमें कहीं प्रतीत नहीं है। उन्होंने कहा जानकारी लाओ सेनापति सहित उन्हें भ्रमण करने लगे और पृथ्वी के ऊपर तथा ग्रह में दृष्टिपात करने लगे। इसी प्रकार भ्रमण करते जब कपिल मुनि के द्वार पर पहुंचे तो महात्मा कपिल ने उन्हें आसन दिया। उन्होंने दृष्टिपात किया कि अश्व वहां विद्यमान है। उन्होंने कहा है कपिल 'अमृतम भूतम ब्रह्मा:' ऋषि विचार रहा है कि तुम्हारा हमारा संग्राम होगा। क्योंकि तुमने अश्वमेघ यज्ञ के अश्व को अपने यहां स्थिर किया है। उन्होंने कहा भगवन बहुत प्रिय कपिल मुनि महाराज जहां दर्शनों के मर्म को जानते थे, जहां वे तपस्वी थे, वहां अस्त्र-शस्त्रों की भी विद्या भली प्रकार जानते थे। जय और विजय जो उनके शिष्य थे और विद्या के ऊपर यंत्रों का निर्माण करते रहते थे। उन्हें भी यह प्रतीत हुआ। मेरे प्यारे, मुझे स्मरण आता रहता है कि महात्मा कपिल मुनि महाराज ने 'अमृता: ब्रह्म वर्तम राजसुताहम: कहा हे राजन, तुम इस प्रकार व्रत मे क्यों हो, उन्होंने कहा नहीं हम संग्राम करेंगे। बहुत प्रिय कहकर जय और विजय को आज्ञा दी। जय- विजय धनुष याग करते थे। धनुर्विद्या के महात्मा कपिल मुनि बड़े परायण थे। धनुर्विद्या के आधार पर उन्होंने संग्राम करना आरंभ किया। जय और विजय ने जहां एक-दो यंत्रों का प्रहार किया तो उनकी बहूरंगनी सेना नष्ट हो गई। सर्वत्र सेना के नष्ट हो जाने पर राजा को यह प्रतीत हुआ कि यह जय और विजय ने की है और महात्मा कपिल के यहां जिंनका वर्तम ब्रह्म: अध्ययन होता रहता है। उसमें सब विद्या विद्यमान है। मुझे ऐसा स्मरण आ रहा है कि राजा ने जब यह स्वीकार कर लिया। राज नवरत्न घोषणा वर्तम् ब्रह्म: क्रतम, महात्मा कपिल मुनि के आश्रम में युवा सब विद्वान है। सगर और उनके पुत्र सुखमंजस दोनों ने वहां से गमन किया और दोनों भ्रमण करते हुए वे महात्मा कपिल के आश्रम में पहुंचे। महात्मा कपिल ने राजा को दृष्टिपात करते हुए उनका नमन किया। अनुवादन किया, अनुकृतियों में रत रहने लगे तो उन्होंने अपनी गाथा का वर्णन किया। महात्मा सगर ने कहा रहस्यतम हे ऋषि, आप महात्मा है मैं भी एक महात्मा के तुल्य हूं।भगवन आप मेरे आश्रम में गमन कीजिए। उन्होंने कहा मैं इस समय नहीं जा पाऊंगा। मेरे प्यारे उन्होंने कहा यह मेरी सेना किसने नष्ट किया। उन्होंने कहा यह जय और विजय ने की है। तुम्हारा अश्वमेघ यज्ञ का अश्व भी यही विधमान है। जय और विजय से संग्राम करने को तत्पर हुए तो उस समय महात्मा कपिल ने कहा कि जय-विजय तुम यंत्र में बड़े परायण हो। यंत्रों की नाना लोको की आभा में रत रहने के लिए तत्पर रहते हो।


प्राधिकृत प्रकाशन विवरण

यूनिवर्सल एक्सप्रेस


हिंदी दैनिक


प्राधिकृत प्रकाशन विवरण


October 17, 2019 RNI.No.UPHIN/2014/57254


1. अंक-74 (साल-01)
2. बृहस्पतिवार,17 अक्टूबर 2019
3. शक-1941,अश्‍विन,कृष्णपक्ष,तिथि- चतुर्थी,विक्रमी संवत 2076


4. सूर्योदय प्रातः 06:18,सूर्यास्त 06:00
5. न्‍यूनतम तापमान -20 डी.सै.,अधिकतम-31+ डी.सै., हवा की गति धीमी रहेगी।
6. समाचार-पत्र में प्रकाशित समाचारों से संपादक का सहमत होना आवश्यक नहीं है। सभी विवादों का न्‍याय क्षेत्र, गाजियाबाद न्यायालय होगा।
7. स्वामी, प्रकाशक, मुद्रक, संपादक राधेश्याम के द्वारा (डिजीटल सस्‍ंकरण) प्रकाशित।


8.संपादकीय कार्यालय- 263 सरस्वती विहार, लोनी, गाजियाबाद उ.प्र.-201102


9.संपर्क एवं व्यावसायिक कार्यालय-डी-60,100 फुटा रोड बलराम नगर, लोनी,गाजियाबाद उ.प्र.,201102


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cont.935030275
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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2019

डोरबैल खराब है, मोदी-मोदी चिल्लाए

अंबाला। जिले की एक मुस्लिम बस्ती में लोगों ने अपने-अपने घरों के बाहर पोस्टर चिपका दिए हैं कि डोर बेल खराब है, कृपया दरवाजा खुलवाने के लिए मोदी-मोदी चिल्लाएं। इन पोस्टरों को क्यों चिपकाया गया और इसके पीछे कारण क्या है ? इसकी सच्चाई जानने के लिए जब यहां के लोगों से बात की गई, तो उन्होंने बताया कि इस चुनावी समर में बहुत से प्रत्याशी वोट अपील करने उनके घर आ रहें हैं, जिसके कारण वह बार बार डोर बेल बजाते हैं। लिहाजा यह पोस्टर उन्होंने उन्हीं प्रत्याशियों के लिए लगाए हैं कि वह डोर बेल न बजाएं। क्योंकि यह दरवाजा सिर्फ मोदी-मोदी बोलने वालों के लिए खुलेगा।
मुस्लिम बस्ती में रहने वाली महिलाओं ने बताया की जिस तरह मोदी ने तीन तलाक बिल पास करवाया है, वह उनके लिए बहुत बड़ी बात हैं। क्योंकि उनके समाज में कुछ लोग टेलीफोन पर ही तीन बार तलाक बोल कर महिलाओं को मिट्टी में मिला देते थे और ऐसे में जमीन और आसमान दोनों रोते हैं, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा।
उन्होंने कहा कि कानून और पुलिस के डर से तलाक के केसों में भारी कमी आएगी। बस्ती के अन्य लोगों ने इन पोस्टरों के पीछे यही कारण बताया कि उनका वोट सिर्फ मोदी के लिए है। उन्होंने कहा कि ये पोस्टर ऐसे ही लगे रहेंगे क्योंकि मोदी ने उन लोगों के लिए बड़े काम किये हैंं। भले ही उसमे आयुष्मान योजना हो, उजाला योजना या कोई और काम, उनके लिए उनके नेता मोदी हैं। लिहाजा वो नहीं चाहते की किसी और पार्टी का कोई नेता उनके घर आ कर वोट मांगे।


कुछ समय के लिए ड्यूटी खत्म की:ओपी सिंह

लखनऊ। यूपी सरकार द्वारा 25 हजार होमगार्ड जवानों की सेवाएं लेने से इनकार करने के बाद प्रदेशभर के होमगार्डस में बैचेनी बढ़ गई है। इस बीच डीजीपी ओपी सिंह ने राहत देते हुए कहा है कि होमगार्डों को बेरोजगार नहीं किया गया है। कुछ समय के लिए ड्यूटी खत्म की गई है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद बढ़े वेतन और बजट को देखते हुए यह फैसला लिया गया है। हालांकि, उन्होंने यह अभी नहीं बताया कि होमगार्डों की ड्यूटी कब तक नहीं लगेगी।


गर्भ में नवजात की दर्दनाक मौत

गोण्डा। गोंडा महिला अस्पताल का हाल जान आप दंग रह जायेगे। गैर जनपद से आयी महिला प्रसूता महिला फर्श पर पड़ी तड़पती इलाज की भीख मांगती रही। लेकिन डाक्टरो व कर्मचारियो मे नही दिखी मानवीय संवेदना, न तो इलाज किया न ही रेफर, जन्म से पहले ही शिशु की गर्भ मे ही मौत हो गई। बाहर ले जाने के लिए एंबुलेंस भी उपलब्ध नही करा सका।


जनपद बलरामपुर के श्रीदत्तगंज थाना उतरौला के अंतर्गत श्रीदत्तगंज मे रहने वाली गर्भवती महिला, यशोदा देवी को जिला बलरामपुर महिला अस्पताल में भर्ती कराया गया। जहां डॉक्टरों ने जवाब दे दिया, गोंडा जिला महिला अस्पताल में लाकर महिला को भर्ती कराया। सोमवार को महिला अस्पताल की डॉक्टर ने बताया कि पेट में बच्चा मर चुका है। यहां हमारे पास संसाधन नहीं है इसलिए इसको लखनऊ ले जाओ। परिजनों का आरोप है प्रसूता को भर्ती करने के दो दिन बाद भी इलाज न करने से पेट मे ही बच्चे की हुई मौत, वहीं डॉक्टरों ने गर्भवती महिला को रेफर करने के बाद अस्पताल प्रशासन ने महिला को गेट के सामने फेंक दिया। महिला वार्ड के सामने तड़पती रही, न तो एम्बुलेंस मिला, न इलाज हो सका। तमाम लोगो की भीड लग गयी, लोग सीएमएस से इस सम्बन्ध मे जानकारी करना चाहा तो सीएमएस ने डॉक्टरों का किया बचाव। कहा एम्बुलेंस के इंतजार में फर्स पर पड़ी थी महिला,गैर जनपद से आने के कारण प्रसूता का नही किया गया इलाज। लोगो की माने तो जिला महिला चिकित्सालय मे डाक्टरो की मनमानी का यह आलम है कि बिना जुगाड़ का उपचार हो पाना मुश्किल है। यह मामला जिला महिला अस्पताल गोंडा का है। जब रक्षक ही भक्षक हो जाय तो, यही होता है। सरकार के सारे दावे झूठे व दिखावे साबित हो सकते है ।
सीएमएस अनंत प्रकाश मिश्र महिला अस्पताल कहते है कि प्रसूता को रेफर किया गया था। एम्बुलेंस आने मे देरी हुई प्रसूता महिला स्वयं फर्श पर पड़ी थी।


राहुल तिवारी कि रिपोर्ट


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