मंगलवार, 15 अक्टूबर 2019

भावनाओं को वश में रखे: मेष

राशिफल


मेष-दूर से बुरी सूचना प्राप्त हो सकती है। किसी व्यक्ति से विवाद संभव है। स्वाभिमान को चोट पहुंच सकती है। पुराना रोग उभर सकता है। कीमती वस्तुएं संभालकर रखें। भावनाओं को वश में रखें। मन की बात किसी को न बताएं। व्यापार-व्यवसाय लाभदायक रहेगा।


वृष-शेयर मार्केट व म्युचुअल फंड इत्यादि से मनोनुकूल लाभ होगा। मेहनत का फल मिलेगा। कार्य पूर्ण होंगे। प्रसन्नता तथा उत्साह से काम कर पाएंगे। मित्रों तथा संबंधियों की सहायता करने से मान-सम्मान मिलेगा। नौकरी में सहयोगी सहायता करेंगे। व्यापार ठीक चलेगा।


मिथुन-भूले-बिसरे साथियों से मुलाकात होगी। व्यय होगा। आत्मसम्मान बना रहेगा। उत्साहवर्धक सूचना मिलेगी। कोई बड़ा काम करने का मन बनेगा। दुष्ट व्यक्तियों से सावधान रहें। वाणी में हल्के शब्दों के प्रयोग से बचें। व्यस्तता रहेगी। थकान हो सकती है। व्यापार ठीक चलेगा।


कर्क-यात्रा लाभदायक रहेगी। भेंट उपहार की प्राप्ति हो सकती है। रोजगार प्राप्ति के प्रयास सफल रहेंगे। समय की अनुकूलता का लाभ लें। प्रमाद न करें। निवेश शुभ फल देगा। नौकरी में अधिकार बढ़ सकते हैं। व्यापार-व्यवसाय अच्छा चलेगा। घर-बाहर प्रसन्नता रहेगी।


सिंह-नए संबंध बनाने से पहले विचार कर लें। अपरि‍चितों पर अधिक भरोसा ठीक नहीं। फालतू खर्च पर नियंत्रण रखें। आर्थिक तंगी रहेगी। नौकरी में अधिकारी की अपेक्षाएं बढ़ेंगी। मन में दुविधा रहेगी। आय में निश्चितता रहेगी। कारोबार अच्‍छा चलेगा।


कन्या-डूबी हुई रकम प्राप्ति होने के योग हैं। व्यावसायिक यात्रा सफल रहेगी। आय बढ़ेगी। व्यापार- व्यवसाय से संतुष्टि रहेगी। शेयर मार्केट व म्युचुअल फंड से लाभ होगा। किसी समस्या का अंत होगा। प्रसन्नता व उत्साह में वृद्धि होगी। भाग्य का साथ रहेगा।


तुला-कार्यकारी नए अनुबंध हो सकते हैं। योजना फलीभूत होगी। कार्यस्थल पर सुधार या परिवर्तन हो सकता है। मित्रों तथा संबंधियों की सहायता करने का अवसर प्राप्त होगा। मान-सम्मान मिलेगा। धन प्राप्ति सुगम होगी। काम में मन लगेगा।


वृश्चिक-कीमती वस्तुएं संभालकर रखें। स्वास्थ्य का पाया कमजोर रहेगा। पूजा-पाठ में मन लगेगा। सत्संग का लाभ प्राप्त होगा। कोर्ट व कचहरी के कार्यों में गति आएगी। चिंता में कमी रहेगी। व्यापार-व्यवसाय मनोनुकूल लाभ देगा। पारिवारिक सहयोग प्राप्त होगा।


धनु-चोट व दुर्घटना आदि से शारीरिक व आर्थिक हानि की आशंका है। लापरवाही न करें। क्रोध व उत्तेजना पर नियंत्रण रखें। हताशा का अनुभव होगा। जोखिम व जमानत के कार्य टालें। आय में निश्चितता रहेगी। कारोबार ठीक चलेगा। नौकरी में जिम्मेदारी बढ़ सकती है।


मकर-जीवनसाथी से सहयोग प्राप्त होगा। घर में प्रसन्नता का वातावरण रहेगा। कारोबार मनोनुकूल लाभ देगा। नौकरी में उच्चाधिकारी की प्रसन्नता प्राप्त होगी। बाहरी वातावरण सुखद रहेगा। निवेश शुभ फल देगा। भाग्य का साथ रहेगा। सभी कार्यों में सफलता प्राप्त होगी।


कुंभ-भूमि व भवन संबंधी क्रय-विक्रय की योजना बनेगी। उन्नति के मार्ग प्रशस्त होंगे। परीक्षा व प्रतियोगिता आदि में सफलता प्राप्त होगी। आय में वृद्धि होगी। बेरोजगारी दूर करने के प्रयास सफल रहेंगे। क्रोध व उत्तेजना पर नियंत्रण रखें। शारीरिक कष्ट की आशंका प्रबल है।


मीन-शैक्षणिक व शोध इत्यादि के कार्यों में सफलता प्राप्त होगी। किसी आनंदोत्सव में भाग लेने का अवसर प्राप्त होगा। नौकरी में कोई नया काम कर पाएंगे। मान-सम्मान मिलेगा। अधिकारी वर्ग प्रसन्न रहेगा। किसी लंबी यात्रा का कार्यक्रम बन सकता है। प्रसन्नता रहेगी।


प्रोटीन से भरपूर मूंगफली

मूँगफली वस्तुतः पोषक तत्त्वों की अप्रतिम खान है। प्रकृति ने भरपूर मात्रा में इसे विभिन्न पोषक तत्त्वों से सजाया-सँवारा है। 100 ग्राम कच्ची मूँगफली में 1 लीटर दूध के बराबर प्रोटीन होता है। मूँगफली में प्रोटीन की मात्रा 25 प्रतिशत से भी अधिक होती है, जब कि मांस, मछली और अंडों में उसका प्रतिशत 10 से अधिक नहीं। 250 ग्राम मूँगफली के मक्खन से 300 ग्राम पनीर, 2 लीटर दूध या 15 अंडों के बराबर ऊर्जा की प्राप्ति आसानी से की जा सकती है। मूँगफली पाचन शक्ति बढ़ाने में भी कारगर है। 250 ग्राम भूनी मूँगफली में जितनी मात्रा में खनिज और विटामिन पाए जाते हैं, वो 250 ग्राम मांस से भी प्राप्त नहीं हो सकता है


मूँगफली में सभी पौष्टिक तत्व पाए जाते हैं। भारत में इसे 'गरीबों का काजू' के नाम से भी जाना जाता है।भारत में सिकी हुई मूँगफली खाना काफी प्रचलित है, इसे 'टाइम पास' के नाम से भी जानते हैं।जो लोग टाइम पास के नाम पर मूँगफली का सेवन करते हैं, उनमें से अधिकतर इसके गुणों के बारे में नहीं जानते और अनजाने में ही कई पौष्टिक तत्व ग्रहण कर लेते हैं, जो उनके शरीर के लिए काफी फायदेमंद रहते हैं।मूँगफली में प्रोटीन, चिकनाई और शर्करा पाई जाती है। एक अंडे के मूल्य के बराबर मूँगफलियों में जितनी प्रोटीन व ऊष्मा होती है, उतनी दूध व अंडे से संयुक्त रूप में भी नहीं होती।इसकी प्रोटीन दूध से मिलती-जुलती है, चिकनाई घी से मिलती है। मूँगफली के खाने से दूध, बादाम और घी की पूर्ति हो जाती है।मूँगफली शरीर में गर्मी पैदा करती है, इसलिए सर्दी के मौसम में ज्यादा लाभदायक है। यह खाँसी में उपयोगी है व मेदे और फेफड़े को बल देती है।भोजन के बाद यदि 50 या 100 ग्राम मूँगफली प्रतिदिन खाई जाए तो सेहत बनती है, भोजन पचता है, शरीर में खून की कमी पूरी होती है और मोटापा बढ़ता है। इसे भोजन के साथ सब्जी, खीर, खिचड़ी आदि में डालकर नित्य खाना चाहिए। मूँगफली में तेल का अंश होने से यह वायु की बीमारियों को भी नष्ट करती है। मुट्ठीभर भुनी मूँगफलियाँ निश्चय ही पोषक तत्वों की दृष्टि से लाभकारी हैं। मूँगफली में प्रोटीन, केलोरिज और विटामिन के, इ, तथा बी. होते हैं, ये अच्छा पोषण प्रदान करते हैं।


आंवला सर्वोत्कृष्ट फल

आँवला एक फल देने वाला वृक्ष है। यह करीब २० फीट से २५ फुट तक लंबा झारीय पौधा होता है। यह एशिया के अलावा यूरोप और अफ्रीका में भी पाया जाता है। हिमालयी क्षेत्र और प्राद्वीपीय भारत में आंवला के पौधे बहुतायत मिलते हैं। इसके फूल घंटे की तरह होते हैं। इसके फल सामान्यरूप से छोटे होते हैं, लेकिन प्रसंस्कृत पौधे में थोड़े बड़े फल लगते हैं। इसके फल हरे, चिकने और गुदेदार होते हैं। स्वाद में इनके फल कसाय होते हैं।


संस्कृत में इसे अमृता, अमृतफल, आमलकी, पंचरसा इत्यादि, अंग्रेजी में 'एँब्लिक माइरीबालन' या इण्डियन गूजबेरी (Indian gooseberry) तथा लैटिन में 'फ़िलैंथस एँबेलिका' (Phyllanthus emblica) कहते हैं। यह वृक्ष समस्त भारत में जंगलों तथा बाग-बगीचों में होता है। इसकी ऊँचाई 2000 से 25000 फुट तक, छाल राख के रंग की, पत्ते इमली के पत्तों जैसे, किंतु कुछ बड़े तथा फूल पीले रंग के छोटे-छोटे होते हैं। फूलों के स्थान पर गोल, चमकते हुए, पकने पर लाल रंग के, फल लगते हैं, जो आँवला नाम से ही जाने जाते हैं। वाराणसी का आँवला सब से अच्छा माना जाता है। यह वृक्ष कार्तिक में फलता है।


आयुर्वेद के अनुसार हरीतकी (हड़) और आँवला दो सर्वोत्कृष्ट औषधियाँ हैं। इन दोनों में आँवले का महत्व अधिक है। चरक के मत से शारीरिक अवनति को रोकनेवाले अवस्थास्थापक द्रव्यों में आँवला सबसे प्रधान है। प्राचीन ग्रंथकारों ने इसको शिवा (कल्याणकारी), वयस्था (अवस्था को बनाए रखनेवाला) तथा धात्री (माता के समान रक्षा करनेवाला) कहा है।


पुष्पक पौधा यूडीकॉट

युडिकॉट​ (Eudicot) सपुष्पक पौधों का एक समूह है जिनके बीजों के दो हिस्से (बीजपत्र) होते हैं, जिसके विपरीत मोनोकॉट (Monocot) पौधों के बीजों में एक ही बीजपत्र होता है। फूलधारी (सपुष्पक) पौधों की यही दो मुख्य श्रेणियाँ हैं। इन्हें पहले द्विबीजपत्री (Dicotyledon या Dicot) बुलाया जाता था लेकिन वह एक मोनोफेलटिक (एक ही पूर्वज जाति से फैला) समूह नहीं है जबकि युडिकॉट​ में वही द्विबीजपत्री शामिल किये जाते हैं जो एक मोनोफेलटिक गुट की जातियाँ हैं। युडिकॉट​ समूह में आने वाले सभी के फूलों के पराग की यह भी विशेषता है कि उसके कणों में अक्ष के साथ चलने वाली तीन नालियाँ (कटी हुई धारियाँ) होती हैं - यदि पराग के कण के ध्रुव से देखा जाए तो उसके तीन हिस्से दीखते हैं। अनुवांशिकी (जेनेटिक) अनुसंधान से पता चला है कि इन पौधों में और भी बहुत से सांझे गुण होते हैं।


विश्व का उड़ने वाला विशाल पक्षी

सारस विश्व का सबसे विशाल उड़ने वाला पक्षी है। इस पक्षी को क्रौंच के नाम से भी जानते हैं। पूरे विश्व में भारतवर्ष में इस पक्षी की सबसे अधिक संख्या पाई जाती है। सबसे बड़ा पक्षी होने के अतिरिक्त इस पक्षी की कुछ अन्य विशेषताएं इसे विशेष महत्व देती हैं। उत्तर प्रदेश के इस राजकीय पक्षी को मुख्यतः गंगा के मैदानी भागों और भारत के उत्तरी और उत्तर पूर्वी और इसी प्रकार के समान जलवायु वाले अन्य भागों में देखा जा सकता है। भारत में पाये जाने वाला सारस पक्षी यहां के स्थाई प्रवासी होते हैं और एक ही भौगोलिक क्षेत्र में रहना पसंद करते हैं।
सारस पक्षी का अपना विशिष्ट सांस्कृतिक महत्व भी है। विश्व के प्रथम ग्रंथ रामायण की प्रथम कविता का श्रेय सारस पक्षी को जाता है। रामायण का आरंभ एक प्रणयरत सारस-युगल के वर्णन से होता है। प्रातःकाल की बेला में महर्षि वाल्मीकि इसके द्रष्टा हैं तभी एक आखेटक द्वारा इस जोड़े में से एक की हत्या कर दी जाती है। जोड़े का दूसरा पक्षी इसके वियोग में प्राण दे देता है। ऋषि उस आखेटक को श्राप देते हैं।पूरे विश्व में इसकी कुल आठ जातियां पाई जाती हैं। इनमें से चार भारत में पाई जाती हैं। पांचवी साइबेरियन क्रेन भारत में से सन् २००२ में ही विलुप्त हो गई। भारत में सारस पक्षियों की कुल संख्या लगभग ८००० से १०००० तक है। इनका वितरण भारत के उत्तरी, उत्तर-पूर्वी, उत्तर-पश्चिमी एवं पश्चिमी मैदानो में और नेपाल के कुछ तराई इलाको में है। विशेषतः गंगीय प्रदेशों के मैदानी भाग इनके प्रिय आवासीय क्षेत्र होते हैं। भारत में पाए जाने वाले सारस प्रवासी नहीं होते हैं और मुख्यतः स्थाई रूप से एक ही भौगोलिक क्षेत्र में निवास करते हैं। इनके मुख्य निवास स्थान दलदली भूमि, बाढ़ वाले स्थान, तालाब, झील, परती जमीन और मुख्यतः धान के खेत इत्यादि हैं। ये मुख्यतः २ से ५ तक की संख्या में रहते हैं। अपने घोसले छिछले पानी के आस-पास में जहां हरे-भरे पौधों (मुख्यतः झाड़ियां और घास) की बहुतायत होती है वहीं बनाना पसंद करते हैं। ये मुख्यतः शाकाहारी होते हैं और कंदो, बीजों और अनाज के दानों को ग्रहण करते हैं। कभी कभी ये कुछ छोटे अकशेरुकी जीवों को भी खाते हैं।


महर्षि वशिष्ठ का राष्ट्रवाद उपदेश

गतांक से...
 वह वेद के मर्म को जानने वाले विवेकी पुरुषों से विचार-विनिमय करता है और विचार-विनिमय करता हुआ, अपने राष्ट्र को उन्नत बनाने में लगा रहता है। हे राम, तुम्हारे पूर्वजों में भी इसी प्रकार रहा है। महाराजा दिलीप ने संतान उत्पत्ति के लिए एक महान तप किया। उन्होंने रेणु के पीछे 12 वर्ष का जीवन उपार्जन किया और वह अपने में महानता का गान गाने लगे। तपस्या के पूर्ण होने पर देवताओं की उद्गीथ वाली आमोध वाणी का वहां उपयोग होता रहता है। उसे श्रवण करता हुआ मानव अपने में मानवता की आभा में रत हो जाता है। मेरे पुत्रों, देखो विचार है आता रहता है आज केवल यह कि राष्ट्रवाद किसे कहते हैं? यह विचार आ रहा है। मेरे प्यारे जब उन्होंने महर्षि वशिष्ठ से इस प्रकार का विश्लेषण किया। तो राम ने वशिष्ठ मुनि महाराज से कहा कि महाराज यह राष्ट्रवाद क्या है? उन्होंने कहा राष्ट्रवाद वह होता है जब प्रजा के एक कर्तव्य वाद की धारणा बलवती हो जाती है। तो राजा एक चुनौती लिए होता है वह राजा वशिष्ठ कहलाता है। जो समय से प्रजा को अपना उपदेश देना प्रारंभ कर देता है। वह राष्ट्रवाद क्या है। यह विचार प्रसंग है। देखो महात्मा वशिष्ठ मुनि महाराज ने कहा कि राष्ट्रवाद वह कहलाता है जो राजा राष्ट्रधर्म, जो धर्म और मानवता को लेकर गमन करता है और अपने राष्ट्र का पालन करता है। संसार में वह राष्ट्र कहलाता है। जिस राजा के राष्ट्र में प्राण चला जाए, धर्म ही तो राष्ट्र का प्राण कहलाता है। मेरे प्यारे जैसे मानव के शरीर से जब धर्म चला जाता है तो यह आत्मा नग्न रह जाती है। जब राष्ट्र से धर्म चला जाता है तो राष्ट्र अपंग बन जाता है। मेरे प्यारे विचार आता है कि धर्म क्या है? जिसके ऊपर मानव कितना बल देता चला आया है। मुनिवरो देखो, वह धर्म कहलाता है जो देवताओं की ध्वनि है अथवा धरोहर है। वही तो ध्वनि बनकर के राष्ट्र को उन्नत बनाती है। राष्ट्रवाद बेटा वही कहलाता है जहां धर्म को, मानवता को उधरवा में गमन कराके इस सागर से पार होने का मानस प्रयास करता है। वही तो राष्ट्रवाद कहलाता है। राष्ट्रतम ब्रह्म:, जो धर्म और मानवता को लेकर गमन करता है और अपने राष्ट्र का पालन करता है। विद्यालय में अध्ययन कराने वाला आचार्य ब्रह्मचारी को अनुशासन में लाता है। अनुशासित होता हुआ अपने ग्रह को भी त्याग देता है। मेरे प्यारे विचार-विनिमय यह हो रहा है कि महात्मा से यह प्रश्न किया गया कि राष्ट्रवाद क्या है। जब उन्हें यह प्रसन्न हुआ कि राष्ट्रवाद क्या है। तो वशिष्ठ बोले हे राम, राष्ट्रवाद उसे कहते हैं जहां प्रत्येक मानव शांति प्रिय ‌हो। जिस राजा के राष्ट्र में अश्वमेघ यज्ञ होते हैं और अश्वमेघ यज्ञ इस प्रकार होते हो। वहां वृति विद्यमान हो और राष्ट्र अपनी आभा मे रत होने वाला हो। मैंने तुम्हें कई काल में वर्णन कराते हुए कहा हे राम, तुम्हारे पूर्वज महाराजा सागर ने जिस समय अश्वमेघ यज्ञ किया तो उससे पूर्व यह जानकारी दी कि मेरा कोई शत्रु तो नहीं है। जब कोई शत्रु नहीं रहेगा तो राजा को यह अधिकार है कि वह राष्ट्र का पालन करें और राष्ट्र को पालन करता हुआ देखो अश्वमेघ यज्ञ को रचने वाला हो। मेरे प्यारे, मुझे स्मरण आता रहता है कि महाराज सगर ने अपनी चौमुखी सेना को कहा कि तुम इस घोड़े के पीछे चले जाओ और जो भी इस घोड़े को अपने आसन पर नियुक्त कर लेता है। उस राजा को विजय करना है। महाराजा सगर ने अपने पुत्र सुखमंजस से कहा हे सुख मंजस मेरा यह अश्व जा रहा है। अश्वमेघ के लिए इसकी सुरक्षा करना है। उन्होंने कहा बहुत प्रियतम राजा का श्रृंगार से सुशोभित है। स्वर्णमयी उसका श्रृंगार बना है। उसके मस्तक पर एक लेखनी बध्द कर दी। यह अश्वमेघ यज्ञ का प्रतीक है और जो भी इसे अपने में धारण करेगा। उसको विजय करना होगा। देखो यह विचार हो रहा था अमृताम ब्राह्मणे: प्रहा सधनम् दृश्वता: ऐसा मुझे स्मरण आता रहता है कि वेद के मंत्रों को जानने के लिए तत्पर रहता है। उसको जानता हुआ अपने में कृति करता रहता है।


प्राधिकृत प्रकाशन विवरण

यूनिवर्सल एक्सप्रेस


हिंदी दैनिक


प्राधिकृत प्रकाशन विवरण


October 16, 2019 RNI.No.UPHIN/2014/57254


1. अंक-73 (साल-01)
2. बुधवार,16 अक्टूबर 2019
3. शक-1941,अश्‍विन,कृष्णपक्ष,तिथि- तीज,विक्रमी संवत 2076


4. सूर्योदय प्रातः 06:18,सूर्यास्त 06:00
5. न्‍यूनतम तापमान -21 डी.सै.,अधिकतम-31+ डी.सै., हवा की गति धीमी रहेगी।
6. समाचार पत्र में प्रकाशित समाचारों से संपादक का सहमत होना आवश्यक नहीं है! सभी विवादों का न्‍याय क्षेत्र, गाजियाबाद न्यायालय होगा।
7. स्वामी, प्रकाशक, मुद्रक, संपादक राधेश्याम के द्वारा (डिजीटल सस्‍ंकरण) प्रकाशित।


8.संपादकीय कार्यालय- 263 सरस्वती विहार, लोनी, गाजियाबाद उ.प्र.-201102


9.संपर्क एवं व्यावसायिक कार्यालय-डी-60,100 फुटा रोड बलराम नगर, लोनी,गाजियाबाद उ.प्र.,201102


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