रविवार, 13 अक्टूबर 2019

राजनीति विज्ञान की विभिन्न परिभाषा

राजनीति विज्ञान का क्षेत्र 
जिस प्रकार राजनीति विज्ञान की परिभाषा विभिन्न विचारकों ने विभिन्न प्रकार से की है, उसी प्रकार उसके क्षेत्र को भिन्न-भिन्न लेखकों ने विभिन्न शब्दों में व्यक्त किया है। उदाहरणार्थ फ्रांसीसी विचारक ब्लुंशली के अनुसार ''राजनीति विज्ञान का संबंध राज्य के आधारों से है वह उसकी आवश्यक प्रकृति, उसके विविध रूपों, उसकी अभिव्यक्ति तथा उसके विकास का अध्ययन करता है।'' डॉ॰ गार्नर के अनुसार ''इसकी मौलिक समस्याओं में साधारणतः प्रथम राज्य की उत्पत्ति और उसकी प्रकृति का अनुसंधान, द्वितीय राजनीतिक संस्थाओं की प्रगति, उसके इतिहास तथा उनके स्वरूपों का अध्ययन, तथा तृतीय, जहां तक संभव हो, इसके आधार पर राजनैतिक और विकास के नियमों का निर्धारण करना सम्मिलित है। गैटेल ने राजनीति शास्त्र के क्षेत्र का विस्तृत वर्णन करते हुये लिखा है कि ''ऐतिहासिक दृष्टि से राजनीति शास्त्र राज्य की उत्पत्ति, राजनीतिक संस्थाओं के विकास तथा अतीत के सिद्धान्तों का अध्ययन करता है।... वर्तमान का अध्ययन करने में यह विद्यमान राजनीतिक संस्थाओं तथा विचारधाराओं का वर्णन, उनकी तुलना तथा वर्गीकरण करने का प्रयत्न करता है। परिवर्तनशील परिस्थितियों तथा नैतिक मापदण्डों के आधार पर राजनीतिक संस्थाओं तथा क्रियाकलापों को अधिक उन्नत बनाने के उद्धेश्य से राजनीति शास्त्र भविष्य की ओर भी देखता हुआ यह भी विचार करता है कि राज्य कैसा होना चाहिये।''


राजनीति शास्त्र के क्षेत्र के विषय में उपरोक्त परिभाषाओं से तीन विचारधाराएँ सामने आती है-


प्रथम राज्य को राजनीति विज्ञान का प्रतिपाद्य विषय मानती है,
द्वितीय विचारधारा सरकार पर ही ध्यान केन्द्रित करती है
तृतीय विचारधारा राज्य व सरकार दोनों को राजनीति विज्ञान का प्रतिपाद्य विषय मानती है।
परम्परागत राजनीति विज्ञान का क्षेत्र निर्धारण करने हेतु संयुक्त राष्ट्र संघ की यूनेस्को द्वारा सितम्बर 1948 में विश्व के प्रमुख राजनीतिशास्त्रियों का सम्मेलन अयोजित किया गया जिसमें परम्परागत राजनीति विज्ञान के क्षेत्र के अन्तर्गत निम्नलिखित अध्ययन विषय शामिल किये जाने का निर्णय किया गया-


(१) राजनीति के सिद्धान्त- अतीत और वर्तमान के राजनीतिक सिद्धान्तों एवं विचारों का अध्ययन।


(२) राजनीतिक संस्थाएँ - संविधान, राष्ट्रीय सरकार, प्रादेशिक व स्थानीय शासन का सरल व तुलनात्मक अध्ययन।


(३) राजनीतिक दल, समूह एवं लोकमत- राजनीतिक दल एवं दबाब समूहों का राजनीतिक व्यवहार, लोकमत तथा शासन में नागरिकों के भाग लेने की प्रक्रिया का अध्ययन।


(४) अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध- अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति, अन्तर्राष्ट्रीय विधि, अन्तर्राष्ट्रीय संगठन तथा अन्तर्राष्ट्रीय प्रशासन का अध्ययन।


परम्परागत राजनीति विज्ञान की विशेषताएँ संपादित करें
परम्परागत राजनीति विज्ञान दर्शन एवं कल्पना पर आधारित है। परम्परावादी विचारक अधिकांशतः दर्शन से प्रभावित रहे हैं। इन विचारकों ने मानवीय जीवन के मूल्यों पर ध्यान दिया हैं। इनके चिन्तन की प्रणाली निगमनात्मक है। परम्परागत राजनीति विज्ञान में प्लेटो का विशेष महत्व है। प्लेटो के अतिरिक्त रोमन विचारक सिसरो और मध्ययुग में संत ऑगस्टाइन के चिन्तन में परम्परागत राजनीति विज्ञान की स्पष्ट झलक मिलती हैं। आधुनिक युग में परम्परागत राजनीति विज्ञान के प्रबल समर्थको की काफी संख्या है। रूसो, काण्ट, हीगल, ग्रीन, बोसांके, लास्की, ओकशॉट एवं लियोस्ट्रास की रचनाओं में प्लेटो के विचारों की स्पष्ट झलक दिखाई देती है।


शल्को वाली नरभक्षी मछलियां

मछली शल्कों वाला एक जलचर है जो कि कम से कम एक जोडा़ पंखों से युक्त होती है। मछलियाँ मीठे पानी के स्त्रोतों और समुद्र में बहुतायत में पाई जाती हैं। समुद्र तट के आसपास के इलाकों में मछलियाँ खाने और पोषण का एक प्रमुख स्रोत हैं। कई सभ्यताओं के साहित्य, इतिहास एवं उनकी संस्कृति में मछलियों का विशेष स्थान है। इस दुनिया में मछलियों की कम से कम 28,500 प्रजातियां पाई जाती हैं जिन्हें अलग अलग स्थानों पर कोई 2,18,000 भिन्न नामों से जाना जाता है। इसकी परिभाषा कई मछलियों को अन्य जलीय प्रणी से अलग करती है, यथा ह्वेल एक मछली नहीं है। परिभाषा के मुताबिक़, मछली एक ऐसी जलीय प्राणी है जिसकी रीढ़ की हड्डी होती है (कशेरुकी जन्तु), तथा आजीवन गलफड़े (गिल्स) से युक्त होती हैं तथा अगर कोई डालीनुमा अंग होते हैं (लिंब) तो वे फ़िन के रूप में होते हैं।


मानवभक्षी मछलियां 
कुछ मछलियाँ न केवल विशालकाय हैं, बल्कि इतनी खतरनाक है कि पूरे इंसान को निगल भी सकती हैं।


किलर कैटफिश-यह हिमालय की तलहटी में मिलने वाली एक विशाल और नरभक्षी कैटफिश प्रजाति है।


डीमन फिश-जैसा कि इसका नाम है, यह दैत्याकार मछली है। यह दुनिया की सबसे खतरनाक मछलियों में से एक है। यह बड़े से बड़े जीवों को भी निगल जाती है। डीमन फिश अफ्रीका की कांगो नदी में पाई जाती है।


डेथ रे-थाइलैंड की मीकांग नदी में जेरेमी ने दुनिया की सबसे बड़ी मछलियों में से एक डेथ रे को खोज निकाला। इसका वजन लगभग 7 सौ पाउंड है। इसके शरीर पर एक जहरीली और कांटेदार पूंछ होती है, जिसके प्रहार से इंसान की जान भी जा सकती है।


किलर स्नेकहेड-मछली से ज्यादा गैंगस्टर लगने वाली यह मछली हवा में सांस लेती है और जमीन पर भी रेंग लेती है। अपनी ही प्रजाति के जीवों को यह शौक से खाती है। यह एशिया में मुख्य रूप से चीन और दक्षिण कोरिया में पाई जाती है।


कांगो किलर-अफ्रीका की कांगो नदी में पाई जाने वाली कांगो किलर के खतरनाक होने का अंदाजा इस बात से लगा सकते है कि अफ्रीका में इसके बारे में एक लोककथा है, जिसमें कहा गया है कि यह मछली एक आत्मा के रूप में मछुआरों को ललचा कर उन्हें मौत की तरफ ले जाती है।


अलास्कन हॉरर-अलास्का की बर्फीली झील में मिलती है महाकाय अलास्कन हॉरर। इसके बारे में प्रचलित लोककथाओं में इसे आदमखोर माना जाता है।


रिट वैली किलर-अफ्रीका की रिट वैली में एक विशालकाय जीव रहता है -एम्पुटा या नाइल पर्च। यह अफ्रीका के ताजे पानी की सबसे बड़ी मछली है।


पिरान्हा-वर्ष 1976 में यात्रियों से भरी बस अमेरिका के अमेजॉन नदी में गिर गई और कई लोगों की जान चली गई। जब शवों को बाहर निकाला गया, तो उनमें से कुछ को पिरान्हा मछलियों ने इतनी बुरी तरह खा लिया था कि उनकी पहचान उनके कपड़ों से हुई।


एलिगेटर गार-यह सादे पानी की ऐसी मछली है, जो इंसानों पर आक्रामक हमले करती है। यह शार्क की तरह खतरनाक और मगरमच्छ की तरह विशाल है।


यूरोपिययन मैनईटर-यह यूरोप के ताजे पानी वाली नदियों में अपनी थूथन उठाए घूमती रहती है। आक्रामक वैल्स कैटफिश इंसानों को भी अपना शिकार बना सकती है।


अमेजॉन असासिंस-अमेजन की गहराइयों में रहने वाली असासिंस शिकार को अपनी जीभ से कुचलती है, जो हड्डी से बनी होती है।


अमेजन लैश ईटर्स-यह अफ्रीकन मछली इंसान को निगल सकती है। यह जब हमला करती है, तो शरीर पर छुरा घोंपने जैसा निशान बन जाता है।


जीवाणु-रोधी शहद

शहद को जीवाणु निवारण रूप में प्रयोग किया जाता है। इस प्रक्रिया में शहद के उत्पादन में काम करने वाली मधुमक्खियां एन्जाइम ग्लूकोज ऑक्सीडेज को नेक्टर में बदल देती हैं। जब शहद को घाव पर लगाया जाता है तो इस एंजाइम के साथ हवा की ऑक्सीजन के संपर्क में आते ही बैक्टीरीसाइड हाइड्रोजन पर आक्साइड बनती है। मनुका (मेडिहनी) औषधीय मधु होता है जिसके जीवाणु-रोधी कई तरह के स्रोतों से ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड आदि स्थानों से प्राप्त किए जाते हैं। वर्ष २००७ में हेल्थ कनाडा ओर यूएस फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) ने क्रमश: पहली बार इस मेडिसिनल हनी को घाव और जलने में प्रयोग की अनुशंसा की है। इनके अलावा शहद के प्रयोग से सूजन और दर्द भी दूर हो जाते हैं। घावों या सूजन से आने वाली दुर्गंध भी दूर होती है। शहद की पट्टी बांधने से मरे हुए ऊतकों की कोशिकाओं के स्थान पर नई कोशिकाएं पनप आती हैं। इस प्रकार मधु से घाव तो भरते ही हैं और उनके निशान भी नहीं रहते।


अहार-रूप में उपयोग-मधु एक ऊष्मा व ऊर्जा दायक आहार है तथा दूध के साथ मिलाकर यह सम्पूर्ण आहार बन जाता है। इसमें मुख्यतः अवकारक शर्कराएं, कुछ प्रोटीन, विटामिन तथा लवण उपस्थित होते हैं। शहद सभी आयु के लोगों के लिए श्रेष्ठ आहार माना जाता है और रक्त में हीमोग्लोबिन निर्माण में सहायक होता है। एक किलोग्राम शहद से लगभग ५५०० कैलोरी ऊर्जा मिलती है। एक किलोग्राम शहद से प्राप्त ऊर्जा के तुल्य दूसरे प्रकार के खाद्य पदार्थो में ६५ अण्डों, १३ कि.ग्रा. दूध, ८ कि.ग्रा. प्लम, १९ कि.ग्रा. हरे मटर, १३ कि.ग्रा. सेब व २० कि.ग्रा. गाजर के बराबर हो सकता है।


विभिन्न धर्मों-शहद को प्राचीन काल से ही विभिन्न धर्मों में उच्च मान्यता मिली हुई है। हिन्दु धर्म के प्राचीन ग्रन्थ, ऋगवेद में भी शहद तथा मधुमक्खियों के बारे में बहुत से सन्दर्भ मिलते हैं। शहद हिन्दू धर्म के बहुत से धार्मिक कृत्यों तथा समारोहों में प्रयोग होता है। प्राचीन यूनानी सभ्यता में भी शहद को बहुत मूल्यवान आहार तथा भगवान की देन माना जाता था। यूनानी देवताओं को अमरत्व प्राप्त था जिसका कारण उनके द्वारा किया गया ऐम्ब्रोसिआ सेवन बताया गया था, जिसमें शहद एक प्रमुख भाग होता था। अरस्तु की पुस्तक नेचुरल हिस्टरी में भी शहद पर बहुत से प्रत्यक्ष प्रेक्षण उपलब्ध हैं। उसका विश्वास था कि शहद में जीवन वृद्धि तथा शरीर हृष्ट-पुष्ट रखने के लिए आसाधारण गुण होते हैं। इस्लाम के पवित्र ग्रन्थ कुरान के सूरा-१६ अन-नह्ल के अनुसार शहद सभी बीमारियों को निदान करता है। यहूदी धर्म में भी शहद को आहार या हनी बनाने में प्रयोग किया जाता है। संसार के लगभग सभी धर्मो ने शहद की अनूठी गुणवत्ता की प्रशंसा की है। जैन धर्म में मधु सेवन को अनैतिक माना जाता हैं। जैन ग्रन्थ, पुरुषार्थ सिद्धयुपाय में लिखा हैं


लोक में मधु का एक छोटा सा खंड भी बहुधा मधुमक्खियों की हिंसा का स्वरुप होता है। जो मूढ बुद्धि रखने वाला मधु का सेवन करता है वह अत्यंत हिंसक होता है।
—पुरुषार्थ सिद्धयुपाय (६९)


औषधीय गुणों से भरपूर चकोतरा

चकोतरा निम्बू-वंश का एक फल है, जो उस वंश की सबसे बड़ी जातियों में से एक है। हालांकि निम्बू-वंश के बहुत से फल दो या उस से अधिक जातियों के संकर (हाइब्रिड) होते हैं, चकोतरा एक शुद्ध प्राकृतिक जाति है। इसके कच्चे फल का रंग हरा, और पके हुए का हल्का हरा या फिर पीला होता है। पूरा बड़ा होने पर इसके फल का व्यास (डायामीटर) १५-२५ सेमी और वज़न १ से २ किलोग्राम होता है। इसके स्वाद में खटास और कुछ मीठापन तो होता है, लेकिन कड़वाहट नहीं। चकोतरा मूलतः भारतीय उपमहाद्वीप और दक्षिणपूर्वी एशिया क्षेत्र की जन्मी हुई जाति है।


वैसे तो चकोतरा स्वस्थ व्यक्तियों के लिए लाभदायक माना जाता है, लेकिन चकोतरे के रस में कुछ ऐसे रसायन हैं जो कुछ दवाओं का असर को कम कर देते हैं या उनसे मिलकर शरीर में हानिकारक रासायनिक यौगिक बना देते हैं।


टैमोक्सिफ़ेन (Tamoxifen) - यह एक कर्क रोग (कैन्सर) की दवा है और चकोतरा खाने से इसके प्रभाव में कमी आ सकती है।
स्टैटिन (Statin) - यह कई प्रकारों व नामों से बिकने वाली कोलेस्टेरॉल कम करने की औषधि है जिसे हृदय रोग से बचने के लिए लिया जाता है। चकोतरा इसका प्रभाव कम करता है। कुछ स्टैटिन दवाएँ ऐसी हैं जिनपर चकोतरे का कोई असर नहीं होता।
कोडीन (Codeine) - यह दर्द और भारी ख़ासी से राहत देने की दवा है जिसका पीढ़ा-विरोधी प्रभाव चकोतरे से कम हो जाता है।
पैरासिटामोल (Acetaminophen / paracetamol) - चकोतरा खाने से रक्त में पैरासिटामोल का संकेंद्रण (कान्सेन्ट्रेशन) बढ़ सकता है। यह यकृत (लीवर) के लिए हानिकारक हो सकता है।
ऐम्लोडीपीन / ऐम्लोगार्ड (Amlodipine / Amlogard) - चकोतरे से इस दवा का रक्तचाप (ब्लड प्रेशर) कम करने का प्रभाव बिना चेतावनी के अचानक बढ़ सकता है, यानि रक्तचाप में अत्याधिक कमी आ सकती है।
यह कुछ ही दवाएँ हैं जिनपर चकोतरे का असर होता है। ऐसी और भी दवाएँ हैं जो इस सूची में शामिल नहीं।


चकोतरा के फायद 
बुखार के लिए :- चकोतरा में प्राकृतिक रूप से किनीन होता है। जो मलेरिया बुखार में बहुत लाभदायक होता है। बुखार से छुटकारा पाने के लिए चकोतरा का नियमित रूप से सेवन करना चाहिए।
गठिया के लिए :- गठिया जैसी समस्याओं के लिए चकोतरा फल बहुत अच्छा माना जाता है। इसमें प्रचुर मात्रा में कैल्शियम होता है। जो हड्डियों को मजबूत बनाने में मदद व गठिया रोग को दूर करता है
पांचन क्रिया ठीक रखने के लिए :- पांचनक्रिया को ठीक रखने चकोतरा अन्य फलो के मुकाबले हल्का होता है। जो आसानी से पेट में पच जाता है शरीर में पांचन किया को ठीक रखने में मदद करता है। जिससे पेट सम्बंधित अन्य विकार नहीं होता है।


महर्षि वशिष्ठ का राष्ट्रवाद उपदेश

महर्षि वशिष्ठ का राष्ट्रवाद पर उपदेश 
देखो मनिवरो, आज हम तुम्हारे समक्ष पूर्व की भांति कुछ मनोहर वेद मंत्रों का गुणगान गाते चले जा रहे हैं। यह भी तुम्हें प्रतीत हो गया होगा। आज हमने पूर्व से जिन वेद मंत्रों का पठन-पाठन किया है। हमारे यहां परंपरागतो से ही उस मनोहर वेदवानी का प्रसार होता रहता है। जिस पवित्र वेद वाणी में उस परमपिता परमात्मा की महिमा का गुणगान गाया जाता है। क्योंकि वह परमपिता परमात्मा इस ब्रह्मांड में सूत्र की भांति रमण करते रहते हैं। जैसा नाना प्रकार के मनके एक ही सूत्र में पिरोने से माला बन जाती है। इसी प्रकार से जो परब्रह्म परमात्मा है वह वास्तव में तत्व की भांति है। ओर यह जो ब्रह्मांड है, नाना प्रकार के लोक लोकांतरो वाला जगत है और नाना प्रकार के विचारवेता और विचार करने वाले पुरुषत्व है। परंतु वे सर्वत्र जितने भी मनके है,परब्रह्म परमात्मा जो सूत्र रूप में विद्यमान है। उस सूत्र में पिरोए जाते हैं। एक यह भी विचित्रमाला बन जाती है और इस माला को जो भी धारण करता है। मानो यम व्रत्ता व्रते,  वह वर्ती बन जाता है। क्योंकि वास्तव में माला धारण करना ही चाहिए। परमपिता परमात्मा जो 'ब्रह्म सत्यम ब्रव्वे कृतम्' मानो व सूत्र रूप से हमें दृष्टिपात आते रहते हैं और इस सूत्र में हम सब सूत्रित रहते हैं। विचार आता रहता है कि हमें उस सूत्र के ऊपर विचार-विनिमय करना है। क्योंकि सूत्रों की चर्चाएं परंपरागत से ही मानवीय मस्तिष्क में सदैव निहींत रही है और नाना ऋषियो के मध्य में मानो ब्रह्म सूत्र और यह जगत मनका बन कर के कुछ सूत्र में पिरोने से ही मुनिवरो देखो उसकी आभा निहींत हो जाती है। तो विचार आता रहता है कि हम उस माला को अपने में धारण करते रहे। जैसे वेद का एक मंत्र है और वह वेद का मंत्र देखो, वह एक शब्द मानो जैसे माला में मनका होता है। इसी प्रकार एक-एक शब्द और वह भी शब्द नहीं मानो एक-एक अक्षर मानो वह माला की भांति ही तो दृष्टिपात आता है। तो इसलिए हमें उस माला को धारण करना चाहिए और वह कैसी भव्य माला है। जो ब्रह्म सूत्र में पिरोई हुई है। जो माला को जान लेता है माला को अपने में धारण कर लेता है तो बेटा वह मालावान बन जाता है और वह अनंतमयी धारा के ऊपर अपना विचार-विनिमय करना आरंभ कर देता है। आओ मेरे प्यारे, वेद का मंत्र क्या कह रहा है कि हम सूत्र को जानने वाले बने। उस सूत्र में अपनी भावनाओं का मनका रूपी भावना उस सूत्र में पिरो करके बेटा एक माला बन जाती है। मेरे पुत्रों उस माला को धारण करने वाला ही तो मानव अपनी मानवीयता में सदैव निहित रहता है और अपने में धारयामी बना रहता है। मुनिवारो, देखो मैं तुम्हें इस संबंध में विशेष विचार देने नहीं आया हूं। विचार केवल यह है कि परमपिता परमात्मा के राष्ट्र में विद्यमान है। हमें देखो ब्रह्म राष्ट्र और आंतरिक राष्ट्र दोनों को ऊंचा बनाना है। आज के हमारे वेद के पठन-पाठन में उस माला की चर्चा हो रही है। जिस को धारण करने के पश्चात वह मालामयी बन जाता है। हमें बेटा उस माला को धारण करते हुए इस सागर से पार होना है। जैसे राजा अपने राष्ट्र को उन्नत बनाने के लिए माला को धारण करता है और उस माला में प्रत्येक राष्ट्र अव्यवों को पिरो देता है तो बेटा वह माला बन जाती है। आज मैं कैसी माला का वर्णन करने चला हूं। इस माला को धारण करने वाला जिज्ञासु विवेकी बन जाता है और राष्ट्रवेता अपने में राष्ट्रीयता को धारण कर लेता है। विचार आता रहता है कि हम सदैव उस महानता के ऊपर विचार विनिमय करते हुए, उस माला को हमें अपने में धारण करना है। जिस माला को धारण करने के पश्चात मानव को शेष आवश्यकता नहीं रहती है। मेरे प्यारे, मैं तुम्हें विशेषता में नहीं ले जाना चाहता हूं। विचार केवल यह है कि संसार एक माला के सदृश्य है। नाना प्रकार के लोक लोकतंर पिरोए जाते हैं तो माला बन जाती है। मेरे प्यारे, विचारों को एक सूत्र में लाने का प्रयास करते हैं। उसमें विचारों को पिरो देते हैं तो माला बन जाती है। बेटा एक-एक परमाणु जब परमाणु में प्रवेश हो जाता है, तो वह माला बन जाती है।


प्राधिकृत प्रकाशन विवरण

यूनिवर्सल एक्सप्रेस


हिंदी दैनिक


प्राधिकृत प्रकाशन विवरण


October 14, 2019 RNI.No.UPHIN/2014/57254


1. अंक-71 (साल-01)
2. सोमवार,14 अक्टूबर 2019
3. शक-1941,अश्‍विन,कृष्णपक्ष,तिथि- प्रतिपदा, विक्रमी संवत 2076


4. सूर्योदय प्रातः 06:18,सूर्यास्त 06:00
5. न्‍यूनतम तापमान -21 डी.सै.,अधिकतम-32+ डी.सै., हवा की गति धीमी रहेगी।
6. समाचार पत्र में प्रकाशित समाचारों से संपादक का सहमत होना आवश्यक नहीं है! सभी विवादों का न्‍याय क्षेत्र, गाजियाबाद न्यायालय होगा।
7. स्वामी, प्रकाशक, मुद्रक, संपादक राधेश्याम के द्वारा (डिजीटल सस्‍ंकरण) प्रकाशित।


8.संपादकीय कार्यालय- 263 सरस्वती विहार, लोनी, गाजियाबाद उ.प्र.-201102


9.संपर्क एवं व्यावसायिक कार्यालय-डी-60,100 फुटा रोड बलराम नगर, लोनी,गाजियाबाद उ.प्र.,201102


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बांटने-छांटने की राजनीति अतीत: मोदी

महाराष्ट्र में बोले पीएम मोदी- बांटने और छांटने की राजनीति अब अतीत बनी


जलगांव। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से ठीक एक हफ्ते पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जलगांव से चुनाव प्रचार शुरू कर दिया है। जलगांव में अपना भाषण पूरा करने के बाद पीएम भंडारा के साकोली पहुंचे।पीएम मोदी ने सकोली में जनसभा को संबोधित करते हुए कहा, 'पांच साल पहले जब मैं विधानसभा चुनाव के लिए आपके बीच आया था तो मैंने कहा था कि आप महाराष्ट्र में अवसर दीजिए, हम आपको स्थिर सरकार और सशक्त नेतृत्व देंगे। देवेंद्र फडणवीस के रूप में मजबूत नेतृत्व महाराष्ट्र को मिला है।'


पीएम ने विपक्षियों पर निशाना साधते हुए कहा कि बांटने और छांटने वाली राजनीति अब अतीत हो गई है और इसका ट्रेलर 2014 में आपने दिखा दिया था और इस चुनाव में आप लोग पूरी फिल्म दिखाने वाले हैं। पीएम मोदी ने सकोली में कहा कि आज हमारी हर नीति, हर रणनीति- जनकल्याण से राष्ट्रकल्याण की है, जन अभियान से राष्ट्रनिर्माण की है। उन्होंने कहा, 'चाहे गरीबों के घर का और शौचालय का निर्माण हो, हर घर में बिजली का कनेक्शन हो, गरीबों को मुफ्त इलाज मिले। इन सभी योजनाओं के केंद्र में गरीब और सामान्य जन है।'


पीएम मोदी ने पानी का मुद्दा भी जनता के बीच उठाया। पीएम ने कहा, 'पहले पानी के मामलों को अलग-अलग मंत्रालय और विभाग देखते थे, सब बिखरा पड़ा था। इसका एक असर ये भी था कि पानी से जुड़ी योजनाएं पूरा होने में वर्षों लग जाते थे। अब ये सभी विभाग जल शक्ति मंत्रालय के अंतर्गत लाये गए हैं।'


फिर से मेरे खिलाफ छापामार कार्यवाही की जाएगी

फिर से मेरे खिलाफ छापामार कार्यवाही की जाएगी  अकांशु उपाध्याय  नई दिल्ली। आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने भविष्यवाणी क...