शुक्रवार, 11 अक्टूबर 2019

'मानद नागरिकता' की प्रक्रिया

कुछ देश उन लोगों को "मानद नागरिकता" प्रदान करते हैं, जिन्हें विशेष रूप से सराहनीय या प्रशंसनीय माना जाता है।


राष्ट्रपति की मंजूरी और संयुक्त राज्य कांग्रेस अधिनियम के द्वारा, मानद नागरिकता केवल सात व्यक्तियों को दी गयी है।


कनाडा की मानद नागरिकता के लिए संसद के सर्वसम्मति से अनुमोदन की आवश्यकता होती है। गिने चुने लोग जिन्हें कनाडा की मानद नागरिकता दी गयी है, वे हैं 1985 में राउल वालेन्बर्ग पोस्थुमोसली, 2001 में नेल्सन मंडेला, 14 वें दलाई लामा, 2006 में तेनजिन ग्यात्सो, 2007 में ऑंग सेन सू क्यी और 2009 में प्रिंस करीम आगा खान।


2002 में दक्षिण कोरिया ने डच फुटबॉल (सॉकर) कोच गूस हिडिंक को मानद नागरिकता दी जिन्होंने सफलतापूर्वक और अप्रत्याशित रूप से राष्ट्रीय टीम को 2002 फीफा विश्व कप में पहुंचा दिया. 2006 में एक ब्लैक कोरियन अमेरिकी फुटबॉल खिलाडी हिनेस वार्ड को भी मानद नागरिकता से सम्मानित किया गया, क्योंकि उन्होंने हाफ-कोरियंस के खिलाफ कोरिया में भेदभाव को कम करने का प्रयास किया था।


अमेरिकी अभिनेत्री एंजेलिना जोली को 2005 में उनके मानवतावादी प्रयासों के लिए कम्बोडिया की मानद नागरिकता से सम्मानित किया गया।


क्रिकेटर मैथ्यू हेडन और हर्शल गिब्स को 2007 क्रिकेट विश्व कप में उनकी रिकॉर्ड तोड़ पारी के लिए 2007 में सेंट किट्स और नेविस की मानद नागरिकता से सम्मानित किया गया।


जर्मनी में मानद नागरिकता शहरों, कस्बों और कभी कभी संघीय राज्यों के द्वारा प्रदान की जाती है। मानद नागरिकता व्यक्ति की मृत्यु के साथ समाप्त हो जाती है, या असाधारण मामलों में, इसे शहर, कस्बे या राज्य की संसद या परिषद के द्वारा वापस ले लिया जाता है। युद्ध के अपराधियों के मामले में, ऐसे सभी सम्मान 12 अक्टूबर 1946 को "जर्मनी की मित्र नियंत्रण परिषद के अनुच्छेद VIII, खंड II, अक्षर i" के द्वारा ले लिए गए। कुछ मामलों में, मानद नागरिकता को 1989/90 को GDR के पतन के बाद पूर्व GDR सदस्यों जैसे एरिच होनेकर से ले लिया गया।[कृपया उद्धरण जोड़ें]


आयरलैंड में, "मानद नागरिकता" वास्तव में एक पूर्ण क़ानूनी नागरिकता है जिसमें आयरलैंड में रहने और मतदान करने का अधिकार शामिल होता है।


क्यूबा के संविधान के अध्याय II अनुच्छेद 29 पैराग्राफ 'e) के अनुसार जन्म से क्यूबा के वे नागरिक विदेशी हैं, जिन्होंने अपने असाधारण गुणों के से क्यूबा के संघर्ष में जीत हासिल की, उन्हें जनस के द्वारा क्यूबा के नागरिक माना जाता है।चे ग्वेरा को क्यूबा क्रांति में भाग लेने के लिए फिदेल कास्त्रो के द्वारा क्यूबा के मानद नागरिक का सम्मान दिया गया, बाद में ग्वेरा ने उन्हें प्रख्यात विदाई भी दी।


ऐतिहासिक दृष्टि से अधिकांश राज्य नागरिकता को अपनी आबादी तक ही सीमित रकहते हैं, इसके द्वारा वे नागरिक वर्ग को राजनैतिक अधिकार देते हैं, जिन्हें आबादी के अन्य वर्गों से बेहतर माना जाता है, लेकिन वे एक दूसरे के सामान होते हैं। सीमित नागरिकता का एक उदाहरण एथेंस है जहां गुलाम, महिलाएं और आवासी विदेशियों (जो मेटिक कहलाते हैं) को राजनैतिक अधिकारों से वंचित रखा जाता है। रोमन गणराज्य एक अन्य उदाहरण प्रस्तुत करता है (देखें रोमन नागरिकता) और हाल ही में, पोलिश-लिथुनियन राष्ट्रमंडल के अभिजात वर्ग में कुछ ऐसी ही विशेषताएं पायी गयी।


हाथीपांव में पैर सूजना जरूरी नहीं

श्लीपद या फीलपाँव या 'हाथीपाँव' (Elephantiasis) के रोगी के पाँव फूलकर हाथी के पाँव के समान मोटे हो जाते हैं। परंतु यह आवश्यक नहीं कि पाँव ही सदा फूले; कभी हाथ, कभी अंडकोष, कभी स्तन आदि विभिन्न अवयव भी फूल जाते हैं। रोग के बहुत से मामलों में कोई लक्षण होता तथापि, कुछ मामलों में हाथों, पैरों या गुप्‍तांगों में काफी अधिक सूजन हो जाती है। त्‍वचा भी मोटी हो सकती है और दर्द हो सकता है। शरीर में परिवर्तनों के कारण प्रभावित व्‍यक्त्‍िा को सामाजिक और आर्थिक समस्‍याएं हो सकती हैं।


फीलपाँव का रोगी जिसका अण्डकोष फूल गया है।
कारण और निदान:-संक्रमित मच्‍छर के काटने से इसके कीड़े फैलते है। जब मनुष्‍य बच्‍चा होता है तो आम तौर पर संक्रमण आरंभ हो जाता है। तीन प्रकार के कीड़े होते है जिनके कारण बीमारी फैलती है: Wuchereria bancrofti, Brugia malayi, और Brugia timori. Wuchereria bancrofti यह सबसे सामान्‍य है। यह कीड़ा lymphatic system को नुकसान पहुंचाता है। रात के समय एकत्रित किए गए खून को, एक प्रकार के सूक्ष्‍मदर्शी के द्वारा देखने पर इस बीमारी का पता चलता है। खून को thick smear के रूप में और Giemsa के साथ दाग के रूप में होना चाहिए।. बीमारी के विरूद्ध एंटीबाडियों हेतु खून की जांच भी की जा सकती है। यह शोथ न्यूनाधिक होता रहता है, परंतु जब ये कृमि अंदर ही अंदर मर जाते हैं, तब लसीकावाहिनियों का मार्ग सदा के लिए बंद हो जाता है और उस स्थान की त्वचा मोटी तथा कड़ी हो जाती है। लसीका वाहिनियों के मार्ग बंद हो जाने से यदि अंग फूल जाएँ, तो कोई भी औषध ऐसी नहीं है जो अवरुद्ध लसीकामार्ग को खोल सके। कभी कभी किसी किसी रोगी में शल्यकर्म द्वारा लसीकावाहिनी का नया मार्ग बनाया जा सकता है। इस रोग के समस्त लक्षण फाइलेरिया के उग्र प्रकोप के समान होते हैं।


रोकथाम और उपचार:-जिस समूह में यह बीमारी हो, उस संपूर्ण समूह की उपचार के द्वारा वार्षिक आधार पर रोकथाम करके बीमारी से पूरी तरह छुटकारा पाया जा सकता है। इसमें लगभग छ: वर्ष लग लगते है। प्रयोग की गई दवाओं में albendazole के साथ ivermectin या albendazole के साथ diethylcarbamazine शामिल है।. दवाईयां बड़े कीड़ों को नहीं मारती परंतु कीड़ों के स्‍वयं मर जाने तक बीमारी को आगे फैलने से रोकती है। मच्छरों के काटने से बचाव के प्रयासों के साथ साथ मच्‍छरों की संख्‍या को कम करने और बेडनेट के प्रयोग की सिफारिश भी की जाती है।


मिरिस्टिका देता है जायफल-जावित्री

मिरिस्टिका नामक वृक्ष से जायफल तथा जावित्री प्राप्त होती है। मिरिस्टका की अनेक जातियाँ हैं परंतु व्यापारिक जायफल अधिकांश मिरिस्टिका फ्रैग्रैंस से ही प्राप्त होता है। मिरिस्टिका प्रजाति की लगभग ८० जातियाँ हैं, जो भारत, आस्ट्रेलिया तथा प्रशंत महासागर के द्वीपों में उपलब्ध हैं। यह पृथग्लिंगी (डायोशियस, dioecious) वृक्ष है। इसके पुष्प छोटे, गुच्छेदार तथा कक्षस्थ (एक्सिलरी, axillary) होते हैं।


मिरिस्टिका वृक्ष के बीज को जायफल कहते हैं। यह बीज चारों ओर से बीजोपांग (aril) द्वारा ढँका रहता है। यही बीजोपांग व्यापारिक महत्व का पदार्थ जावित्री है। इस वृक्ष का फल छोटी नाशपाती के रूप का १ इंच से डेढ़ इंच तक लंबा, हल्के लाल या पीले रंग का गूदेदा होता है। परिपक्व होने पर फल दो खंडों में फट जाता है और भीतर सिंदूरी रंग का बीजोपांग या जावित्री दिखाई देने लगती है। जावित्री के भीतर गुठली होती है, जिसके काष्ठवत् खोल को तोड़ने पर भीतर जायफल (nutmeg) प्राप्त होता है। जायफल तथा जावित्री व्यापार के लिये मुख्यत: पूर्वी ईस्ट इंडीज से प्राप्त होता हैं।


जायफल का वृक्ष समुद्रतट से ४००-५०० फुट तक की ऊँचाई पर उष्णकटिबंध की गरम तथा नम घाटियों में पैदा होता है। इसकी सफलता के लिये जल-निकास-युक्त गहरी तथा उर्वरा दूमट मिट्टी उपयुक्त है। इसके वृक्ष ६-७ वर्ष की आयु प्राप्त होने पर फूलते-फलते हैं। फूल लगने के पहले नर या मादा वृक्ष का पहचाना कठिन होता है। ग्रैनाडा (वेस्ट इंडीज) में साधारणत: नर तथा मादावृक्ष ३ : १ के अनुपात में पाए जाते हैं जमैका के वनस्पति उद्यान में जायफल के छोटे पौधों पर मादावृक्ष की टहनी कलम करके मादा वृक्ष की संख्यावृद्धि में सफलता प्राप्त की गई है।


रेडियोएक्टिव पोलोनियम

पोलोनियम की खोज


पोलोनियम को शुरुआत में 'रेडियम एफ' नाम दिया गया था और इसकी खोज मशहूर वैज्ञानिक और नोबल पुरस्कार विजेता दंपति मैरी क्यूरी और उनके पति पियरे क्यूरी ने सन् 1898 में की थी। मैरी क्यूरी मूलतः पोलैंड की निवासी थीं और जब पोलोनियम की खोज हुई थी तो उस समय पोलैंड, रूस, पुरुशियाई, और आस्ट्रिया के कब्ज़े में था। इसलिए मैरी क्यूरी ने सोचा कि अगर इस तत्व का नाम उनके देश पोलैंड के नाम पर रख दिया जाएगा तो शायद दुनिया का ध्यान पोलैंड की गुलामी की ओर जाएगा। इस कारण इस नए खोजे गए तत्व का नाम 'रेडियम एफ' से बदलकर पोलैंड के सम्मान में 'पोलोनियम' रखा और प्रथम विश्व युद्ध के बाद सन् 1918 में पोलैंड एक आजाद देश बन गया। 


इस तत्व की खोज तब हुई, जब क्यूरी दंपति पिचब्लेंड (खोदने पर मिली पथरीली सामग्री) की रेडियोएक्टिविटी (रेडियोधर्मिता) पर शोध कर रहे थे। उन्होंने पाया कि पिचब्लेंड में से दोनों रेडियोएक्टिव पदार्थ यानी यूरेनियम और थोरियम, अलग करने के बावजूद भी पिचब्लेंड, यूरेनियम और थोरियम से ज्यादा रेडियोएक्टिव था। इस नतीजे ने क्यूरी दंपति को और रेडियोएक्टिव तत्वों की खोज करने के लिए प्रेरित किया और इन्होंने पिचब्लेंड से पहले पोलोनियम और इसके कुछ वर्ष बाद रेडियम पृथक किया।


अल्फा एवं बीटा विकिरण


अल्फा विकिरण एक उच्च आयनीकृत कणों का विकिरण होता है, जिसकी भेदने की क्षमता सबसे कम होती है। अल्फा कणों में दो प्रोटोन और दो न्यूट्रॉन होते हैं, जो हीलियम के नाभिक जैसे कण में आपस में जुड़े होते हैं, इसलिए इन्हें He2+ लिखा जाता है। परमाणु की परमाणविक संख्या 2 के अनुसार कम हो जाती है क्योंकि परमाणु से 2 प्रोटोन निकल जाते हैं और नए तत्व का निर्माण होता है, उदाहरण के लिए अल्फा विघटन के कारण रेडियम, रोडोन गैस बन जाता है। अल्फा कणों की गति ज्यादा नहीं होती बल्कि सभी सामान्य प्रकार के विकरण में सबसे कम होती है क्योंकि इनका द्रव्यमान ज्यादा होता है यानी ज्यादा ऊर्जा अपने चार्ज (आवेश) और बड़े द्रव्यमान के कारण इन्हें एक पतला टिशू पेपर या फिर मानव शरीर की बाह्य त्वचा भी आसानी से अवशोषित कर सकते हैं। इसीलिए अल्फा उत्सर्जकों का फेफड़ों या शरीर में अवशोषित होना या खाने के साथ शरीर में जाना काफी खतरनाक होता है। बीटा विकिरण में इलेक्ट्रॉन होते हैं, जो एल्यूमीनियम प्लेट से रोके जा सकते हैं। गामा विकिरण और अंदर तक भेद सकते हैं। बीटा कण, पोटैशियम-40 जैसे कुछ रेडियोएक्टिव नाभिक से उत्सर्जित होते हैं जो उच्च ऊर्जा, उच्च गति वाले इलेक्ट्रॉन या पोजीट्रॉन होते हैं। 


कितना है पोलोनियम?


पोलोनियम प्रकृति में पाया जाने वाला एक दुर्लभ एवं अत्यधिक रेडियोएक्टिव (रेडियोधर्मी) रासायनिक तत्व है जो Po के चिन्ह द्वारा दर्शाया जाता है और इसकी परमाणु संख्या 34 है। पोलोनियम की विरलता का पता इसी से लगाया जा सकता है कि यूरेनियम अयस्क के प्रति मीट्रिक टन में इसकी मात्रा करीब 100 ग्राम होती है। प्रकृति में जितनी रेडियम की मात्रा होती है, उसकी लगभग 0.2 प्रतिशत मात्रा पोलोनियम की होती है। 


किसी भी ज्ञात तत्व में सर्वाधिक आइसोटोप यानी समस्थानिक, पोलोनियम के हैं और पोलोनियम के सभी आइसोटोप रेडियोएक्टिव हैं। पोलोनियम के 25 ज्ञात आइसोटोप हैं। इनमें 210Po यानी पोलोनियम 210, सबसे ज्यादा उपलब्ध है। 


पोलोनियम 210 की हाफ लाइफ यानी अर्ध आयु (वह अवधि, जिसमें तत्व अपनी रेडियोधर्मिता की आधी क्षमता खो देता है), लगभग 138 दिनों की होती है। इसी तरह, पोलोनियम 209 (209Po) की अर्ध आयु 103 वर्ष तथा पोलोनियम 208 (208Po) की अर्ध आयु 2.9 वर्षों की होती है। पोलोनियम 209 और 208 को सीसे (Pb) या बिस्मथ (Bi) पर अल्फा, प्रोटॉन या ड्यूट्रॉन की साइक्लोट्रॉन में बारिश द्वारा भी बनाया जा सकता है। साइक्लोट्रॉन एक ऐसा उपकरण है जो परमाणविक कणों की गति बढ़ा सकता है यानी साइक्लोट्रॉन के उपयोग द्वारा बिस्मथ पर प्रोटॉन की बारिश करवा कर ज्यादा आयु वाले पोलोनियम के आइसोटोप बनाए जा सकते हैं। 


1934 में अमेरिका में किए गए एक प्रयोग से यह सामने आया कि जब प्राकृतिक बिस्मथ (209Bi) पर न्यूट्रॉन की बारिश की जाती है तो 210Bi यानी बिस्मथ 210 बन जाता है, जो बीटा क्षय के कारण 210Po यानी पोलोनियम 210 में परिवर्तित हो जाता है। इस विधि द्वारा भी 'न्यूक्लियर रिएक्टरों' में पाए जाने वाले न्यूट्रॉन प्रवाह से भी कुछ मि.ग्रा. मात्रा में ही पोलोनियम तैयार किया जाने लगा है। हर वर्ष करीब 100 ग्राम पोलोनियम का उत्पादन किया जाता है, जिस कारण बहुत ही दुर्लभ तत्वों में इसकी गिनती होती है।


सबसे पुरानी भित्तिचित्र कला

भित्तिचित्र कला (Mural) सबसे पुरानी चित्रकला है। प्रागैतिहासिक युग के ऐतिहासिक रिकॉर्ड में पहले मिट्टी के बर्तन बनाये जाते थे, लेकिन कुछ समय बाद लोगों ने मिट्टी का प्रयोग दीवरों पर चित्र बनाने के लिये करने लगे। भित्तिचित्र कला में दीवारों पर ज्यामितिक आकार, कलापूर्ण अभिप्राय, पारंपरिक आकल्पन, सहज बनावट और अनुकरणमूलक सरल आकृतियों में निहित स्वच्छंद आकल्पन, उन्मुक्त आवेग और रेखिक ऊर्जा, अनूठी ताजगी और चाक्षुष सौंदर्य सृष्टि करती है।


परिचय:-भित्तिचित्रण ज्यादातर अब छत्तीसगढ़ के जिलों में देखने को मिलता है। उदाहरण के लिए सरगुजा, तहसील अंबिकापुर के अंतर्गत आने वाले गांव पुहपुटरा, लखनपुर, केनापारा आदि में लोक एवं आदिवासी जातियों द्वारा अभ्यास की जाने वाली ऐसी लोक कला है जो गांव की औरतों के द्वारा वहां की कच्ची मिट्टी से बनी झोपड़ियों की दीवारों पर गोबर, चाक मिट्टी, गोबर आदि को मिलाकर की जाती है। घर की दीवारें मूर्तियों, जालियों, विविध आकल्पनों और भिति के कलात्मक रूप से सुसज्जित की जाती है। जातिय विश्वासों के अनुरुप उनके सृजनलोक में प्रकृति, पशु पक्षी, मनुष्य और देवी देवताओं की सहजत अनोपचारिक उपस्थिति और समरस भागीदार होते है। दीवारों पर बनाई इन कलाकृतियों में पास पड़ोस का अति परिचित ससांर अपने सामाजिक विश्वासों की ओर बद्धमूल संस्कारों की अकुंठित, सरल और आडम्बरहीन अभिव्यक्ति है। सुदूर आदिवासीय क्षेत्रों में जहाँ कि सजावट आदि के साधन अपर्याप्त होते थे, लोग वहाँ प्रचलित विभिन्न त्योहारों व धार्मिक अवसरों के समय अपने घरों की सज्जा हेतु दीवारों में कच्ची मिट्टी द्चारा पेड़-पौधों, पशु-पक्षियों आदि के आकृतियां बनाकर व उनमें बहुत ही मनोरम रंगों से रंगकर अपने घरों को सजाते हैं।


संकल्पमयी संसार की विशेषता

गतांक से...
 मेरे प्यारे, राम ने जब इस प्रकार उपदेश दिया अथवा राष्ट्र के ऊपर यह कहां की, कर्मवेताओं तुम राष्ट्र कृतियों को मुझे प्रदान कर रहे हो! मेरा अंतरात्मा यह कहता है कि राजा के राष्ट्र में विवेक की और वेद को जानने वाले पुरुष होने चाहिए! निवेदक कहते हैं जिस राजा के राष्ट्र में वेदों का उद् गीत गाया जाता है और वेदों का उच्चारण करने वाले पक्षी गण भी होते हैं! उस राजा का राष्ट्र होता है जिस राज्य के राष्ट्र में हिंसा नाम की कोई वस्तु नहीं होती! क्योंकि हिंसा होती है या स्वार्थपरता होती है या स्वार्थ नहीं हुआ करता! वहां हिंसा भी नहीं होती तो ऐसा में मानव जाता है! अहिंसा में राजा है अहिंसा में पड़ जाए अहिंसा में विद्यालय है! स्वतंत्र होकर के ब्रह्मचारी को मन करता रहता है मेरे प्यारे विचार विनिमय आता रहता है मैं व्याख्याता नहीं हूं! देखो राम ने जो कर्म वेताओं को उपदेश दिया कर्मवेता उसे कहा जाता‌ है कर्मवेताओअपने राष्ट्र को उन्नत बनाने के लिए सदैव तत्पर हो जाओ। जिससे मैं अपनी आभा में रत हो जाऊं। राम उपदेश देकर मोन हो गए और यह काल की वैदिक कर्मकांड पर की एक ग्रह में सुगंधी आना। क्योंकि राजा का राष्ट्र जब बनता है। जब प्रत्येक प्रकार को सुगँधी आने लगती है। मेरे प्यारे जैसे यजमान यज्ञशाला में विद्यमान हो करके हूत कर रहा है। वह अग्निवेश वादे रहा है और ग्रह में वायुमंडल पवित्र बन रहा है और ग्रह पवित्रता को धारण कर रहा है। यजमान कहता है। हे प्रभु, मेरा राष्ट्र का में परिणत होना चाहिए। मेरे यहां सुगंधी होनी चाहिए। सुगंधी में परिणत हो रहा है मेरे प्यारे यह सुगंधी भी दो प्रकार की होती है। जो मैंने पुरातन काल में भी यह सुना कि एक वह जो सा कल्य से आती है। अग्नि को विभाजन कर रही है। अब नहीं मानो देवता कहलाती है और द्वित याग्निक है। जो ग्रह में सुगंध आती है मानो अग्नि प्रदीप्त हुई और सुगंध आने लगी बेटा प्रातः कालीन प्रत्येक मेरी प्यारी माता और पुत्र जयंत ब्रह्मचारी जन द्वारा प्रत्येक ग्रह में जब वेद का उद् गीत गाया जाता है और वेद के उस गीत गाने के पश्चात प्रत्येक ग्रह से मानो ध्वनि आ रही है। प्रातः कालीन यज्ञ हो रहा है वेद मंत्रों का प्राण की आहुति दी जा रही है। मानव पवमान की ओर से दी गई और वही हूत बनकर के हमारे अंतरण को पवित्र बना रही है। मानव राष्ट्र को उन्नत बना रही है देखो ब्रह्मा जगत की सुगंधित होना चाहिए। चाहे राष्ट्रवाद की वेदी हो चाहे यह आंतरिक वेद मंत्रों की प्रतिभा और उसे राजा का राष्ट्र सुगंधित हो जाए। मेरे प्यारे देखो, भगवान राम ने यही कहा कि मेरा राष्ट्र जो अयोध्या है यह विष्णु राष्ट्र की स्थापना करें और प्रत्येक ग्रह में सुगंधी होनी चाहिए। बेटा सुगंधी जब साले की होती है तो प्रत्येक मानव के हृदय में सुगंधी विचारों की भी होती है। जब मानवीय जगत में विचार पवित्र हो जाते हैं तो वहीं विचार ध्वनित हो करके एक दूसरे प्राणी को स्पर्श करते रहते हैं। बेटा देखो मैंने तुम्हें कहीं काल में वर्णन करते हुए कहा था कि जब मानव के विचारों की सुगंधित यह प्राणी मात्र हो जाता है। तो विचारों में परिणत हो करके हम परमपिता परमात्मा की भक्ति में खो जाते हैं।


प्राधिकृत प्रकाशन विवरण

यूनिवर्सल एक्सप्रेस


हिंदी दैनिक


प्राधिकृत प्रकाशन विवरण


October 12, 2019 RNI.No.UPHIN/2014/57254


1. अंक-69 (साल-01)
2. शनिवार,12 अक्टूबर 2019
3. शक-1941,अश्‍विन,शुक्‍लपक्ष,तिथि- चतुर्दशी,विक्रमी संवत 2076


4. सूर्योदय प्रातः 06:16,सूर्यास्त 06:05
5. न्‍यूनतम तापमान -21 डी.सै.,अधिकतम-32+ डी.सै., हवा की गति धीमी रहेगी।
6. समाचार पत्र में प्रकाशित समाचारों से संपादक का सहमत होना आवश्यक नहीं है! सभी विवादों का न्‍याय क्षेत्र, गाजियाबाद न्यायालय होगा।
7. स्वामी, प्रकाशक, मुद्रक, संपादक राधेश्याम के द्वारा (डिजीटल सस्‍ंकरण) प्रकाशित।


8.संपादकीय कार्यालय- 263 सरस्वती विहार, लोनी, गाजियाबाद उ.प्र.-201102


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