बुधवार, 25 सितंबर 2019

सेब का इतिहास और फायदे

सेब एक फल है। सेब का रंग लाल या हरा होता है। वैज्ञानिक भाषा में इसे मेलस डोमेस्टिका (Melus domestica) कहते हैं। इसका मुख्यतः स्थान मध्य एशिया है। इसके अलावा बाद में यह यूरोप में भी उगाया जाने लगा। यह हजारों वर्षों से एशिया और यूरोप में उगाया जाता रहा है। इसे एशिया और यूरोप से उत्तरी अमेरिका बेचा जाता है। इसका ग्रीक और यूरोप में धार्मिक महत्व है।


इतिहास
इसके बारे में पता लगाने का श्रेय सिकंदर महान को दिया जाता है। वह मध्य एशिया में जब आया तब उसने इस फल के बारे में जाना और उसी के कारण यूरोप में भी सेब के कई प्रजातियाँ मौजूद है।


‌‌‌सेब खाने के फायदे-सेब केवल स्वादिष्ट ही नहीं होता है। वरन इसके अंदर कई सारे तत्व भी मौजूद होते हैं। जो हमारे शरीर को पोषण प्रदान करते हैं। शरीर के अंदर आवश्यक पदार्थें की भी पूर्ति करते हैं। इसके अलावा सेब खाने से अनेक प्रकार की बिमारियों के होने की संभावना कम हो जाती है।


‌‌‌एनिमिया को दूर करता है-एनिमिया के अंदर इंसान मे खून की कमी हो जाती है। और शरीर के अंदर खून नहीं बनता है। हिमोग्लोबिन की भी कमी आ जाती है। सेब के अंदर आयरन होता है। जिससे बोड़ी के अंदर हिमोग्लोबिन की मात्रा बढ़ जाएगी । यदि रोज सेब खा नहीं सकते तो सप्ताह के अंदर एक बार अवश्य खाएं ।


‌‌‌चेहरे की खूबसूरती को बढ़ाता है-यदि आपके फेस पर दाग धब्बे हो गए । और आप अपने चेहरे को साफ करना चाहते हैं तो आप रोज एक सेब का सेवन करें । कुछ ही दिनों मे आपको फर्क महसूस हो जाएगा ।


‌‌‌हार्ट के रोगों को दूर करने मे मददगार-सेब हार्ट के लिए भी काफी फायदे मंद है। हार्ट मे oxidation से होने वाली क्षति को कम करता है। यह शरीर के अंदर कॉलेस्ट्रॉल की मात्रा को कंट्रोल करता है। यह शुगर की मात्रा को भी कम करता है हर्ट के अंदर अच्छे से खून का प्रवाह बनाए रखने के लिए भी सेब फायदेमंद है।


‌‌‌वजन घटाने मे सहायक-यदि आपका वजन तेजी से बढ़ रहा है। और आपको इसका कोई कारगर उपाय नहीं सूझ रहा है। तो आपको रोजाना 2 सेब का सेवन करना चाहिए । जिससे आपका वजन कम होगा । यह वैज्ञानिक रिसर्च के अंदर भी प्रमाणित किया जा चुका है।


‌‌‌दिमाग को अच्छा बनाना-सेब का सेवन करने से अल्जाइमर रोग होने की संभावना कम हो जाती है। और यादाश्त भी अच्छी बनी रहती है। यह दिमागी कोशिकाओं को स्वस्थ बनाता है। और दिमाग के अंदर खून का प्रवाह सही करता है।


‌‌‌लिवर को साफ करता है-सेब के अंदर कई प्रकार के विषहर पदार्थ पाए जाते हैं यह लिवर कीगंदगी को साफ करता है।प्रतिदिन सेब का सेवन करने पाचन सही से होता है। और खून भी शरीर के अंदर सही तरह से दौरा करता है।


‌‌‌किडनी स्टोन की संभावना को कम करता है-सेब के अंदर  साइडर विनिजर नामक तत्व पाया जाता है जोकि किडनी के अंदर पैदा होने वाले स्टोन की संभावना को कम कर देता है। वैसे आजकल हर दूसरे इंसान को पथरी की समस्या है। ऐसे लोगों को सेब का अधिक सेवन करना चाहिए।


वैदिक काल से होता है पिंडदान

पिण्ड चावल और जौ के आटे, काले तिल तथा घी से निर्मित गोल आकार के होते हैं जो अन्त्येष्टि में तथा श्राद्ध में पितरों को अर्पित किये जाते हैं। पूर्वज पूजा की प्रथा विश्व के अन्य देशों की भाँति बहुत प्राचीन है। यह प्रथा यहाँ वैदिक काल से प्रचलित रही है। विभिन्न देवी देवताओं को संबोधित वैदिक ऋचाओं में से अनेक पितरों तथा मृत्यु की प्रशस्ति में गाई गई हैं। पितरों का आह्वान किया जाता है कि वे पूजकों (वंशजों) को धन, समृद्धि एवं शक्ति प्रदान करें। पितरों को आराधना में लिखी ऋग्वेद की एक लंबी ऋचा (१०.१४.१) में यम तथा वरुण का भी उल्लेख मिलता है। पितरों का विभाजन वर, अवर और मध्यम वर्गों में किया गया है (कृ. १०.१५.१ एवं यजु. सं. १९४२)। संभवत: इस वर्गीकरण का आधार मृत्युक्रम में पितृविशेष का स्थान रहा होगा। ऋग्वेद (१०.१५) के द्वितीय छंद में स्पष्ट उल्लेख है कि सर्वप्रथम और अंतिम दिवंगत पितृ तथा अंतरिक्षवासी पितृ श्रद्धेय हैं। सायण के टीकानुसार श्रोत संस्कार संपन्न करने वाले पितर प्रथम श्रेणी में, स्मृति आदेशों का पालन करने वाले पितर द्वितीय श्रेणी में और इनसे भिन्न कर्म करने वाले पितर अंतिम श्रेणी में रखे जाने चाहिए।


ऐसे तीन विभिन्न लोकों अथवा कार्यक्षेत्रों का विवरण प्राप्त होता है जिनसे होकर मृतात्मा की यात्रा पूर्ण होती है। ऋग्वेद (१०.१६) में अग्नि से अनुनय है कि वह मृतकों को पितृलोक तक पहुँचाने में सहायक हो। अग्नि से ही प्रार्थना की जाती है कि वह वंशजों के दान पितृगणों तक पहुँचाकर मृतात्मा को भीषण रूप में भटकने से रक्षा करें। ऐतरेय ब्राह्मण में अग्नि का उल्लेख उस रज्जु के रूप में किया गया है जिसकी सहायता से मनुष्य स्वर्ग तक पहुँचता है। स्वर्ग के आवास में पितृ चिंतारहित हो परम शक्तिमान् एवं आनंदमय रूप धारण करते हैं। पृथ्वी पर उनके वंशज सुख समृद्धि की प्राप्ति के हेतु पिंडदान देते और पूजापाठ करते हैं। वेदों में पितरों के भयावह रूप की भी कल्पना की गई है। पितरों से प्रार्थना की गई है कि वे अपने वंशजों के निकट आएँ, उनका आसन ग्रहण करें, पूजा स्वीकार करें और उनके क्षुद्र अपराधों से अप्रसन्न न हों। उनका आह्वान व्योम में नक्षत्रों के रचयिता के रूप में किया गया है। उनके आशीर्वाद में दिन को जाज्वल्यमान और रजनी को अंधकारमय बताया है। परलोक में दो ही मार्ग हैं : देवयान और पितृयान। पितृगणों से यह भी प्रार्थना है कि देवयान से मर्त्यो की सहायता के लिये अग्रसर हों (वाज. सं. १९.४६)।


संहिताओं और ब्राह्मणों की बहुत सी पंक्तियों में मृत्यु के प्रति मिलता है। पहला जन्म साधारण जन्म है। पिता की मृत्यु के उपरांत पुत्र में ओर पुत्र के बाद पौत्र में जीवन की जो निरंतरता बनी रहती है उसे दूसरे प्रकार का जन्म माना गाया है। मृत्युपरांत पुनर्जन्म तीसरे प्रकार का जन्म है। कौशीतकी में ऐसे व्यक्तियों का उल्लेख है जो मृत्यु के पश्चात् चंद्रलोक में जाते हैं और अपने कार्य एवं ज्ञानानुसार वर्षा के माध्यम से पृथ्वी पर कीट पशु, पक्षी अथवा मानव रूप में जन्म लेते हैं। अन्य मृत्क देवयान द्वारा अग्निलोक में चले जाते हैं।


छांदोग्य के अनुसार ज्ञानोपार्जन करने वाले भले व्यक्ति मृत्युपरांत देवयान द्वारा सर्वोच्च ब्राह्मण पद प्राप्त करते हैं। पूजापाठ एवं जनकार्य करने वाले दूसरी श्रेणी के व्यक्ति रजनी और आकाश मार्ग से होते हुए पुन: पृथ्वी पर लौट आते हैं और इसी नक्षत्र में जन्म लेते हैं।


एक यूनिक आइडेंटिटी कार्ड

यूआईडी योजना, यूपीए सरकार की एक बहुत ही महत्वकांशी योजना है। इस योजना के लिए योजना आयोग के तहत यूआईडी अथॉरिटी ऑफ इंडिया यूआईडीएआई का गठन होगा। ये संगठन सुनिश्चित करेगा कि इसका फायदा किसी भी तरह से गैर-सामाजिक तत्व न उठा पाएं। यूआईडी योजना के तहत देश के हर नागरिक को एक अद्वितीय नंबर दिया जाएगा। सरकार देश के हर नागरिक को एक यूनीक आइडेंटिफिकेशन नंबर देने की प्रक्रिया में जोर-शोर से जुट गई है। सरकार की योजना के मुताबिक 2011 तक सभी नागरिकों को यूनिक आइडेंटिफिकेशन संख्या जारी कर दी जाएगी। और इस प्रोजेक्ट के लिए सरकार ने इन्फोसिस के को-चेयरमैन नंदन नीलेकणी को चुन भी लिया है। लेकिन यह लक्ष्‍य सन 2011 तक पूरा नहीं हो पाया।


हर ज़रूरत के लिए सिर्फ 'एक कार्ड'
इसके जरिए देश की आंतरिक सुरक्षा से जुड़ी चिंताओं के समाधान के अलावा वस्तुओं और सेवाओं के सार्वजनिक बंटवारे के लिए एक व्यवस्थित तंत्र भी विकसित किया जा सकेगा। शुरुआत में यूआईडी नंबर राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर या मतदाता सूची के आधार पर आवंटित की जाएगी। व्यक्ति की पहचान पर जालसाजी की संभावना खत्म करने के लिए इसमें तस्वीर और बायोमेट्रिक आंकड़े जोड़े जाएंगे। साथ ही, लोगों के फायदे के लिए इसके आसान पंजीकरण और जानकारियों में बदलाव की प्रक्रिया को आसान बनाने के तरीकों पर भी विचार किया जा रहा है। प्रस्तावित आइडेंटिटी कार्ड ऐसे स्मार्ट कार्ड होंगे जिनपर व्यक्ति की पूरी जानकारी मिलेगी। शख्स के उंगलुइयों के निशान और तस्वीर। ऐसा नहीं है कि ये यूनीक आइडेंटिटी कार्ड वयस्कों को ही मिलेंगे। बल्कि ये उन्हें भी दिए जाएंगे जो 18 साल से कम उम्र के हैं। इसका लक्ष्य विभिन्न सरकारी विभागों के बीच पहचान के लिए प्रचलित अलग-अलग व्यवस्थाओं को खत्म करना है। इन स्मार्ट कार्ड्स पर सरकार 6 अरब डॉलर की रकम खर्च करेगी। वर्तमान सरकार इस परियोजना पर कार्य कर रही है। इस पर खर्च होने वाली रकम भी बढ़ गई है।


कहां चलेगा पायलट प्रोजेक्ट? 
सरकार ने इस प्रोजेक्ट के लिए 'कर्नाटक' को बतौर पायलट राज्य चुना है। नैशनल अथॉरिटी फॉर युनीक आइडेंटिटी (NAUI), ने राज्य सरकार से छोटे पैमाने पर इस योजना को लागू करने को कहा है। कर्नाटक में इस योजना की जिम्मेदारी ई-गवर्नेस डिपार्टमेंट के हाथों में होगी। डिपार्टमेंट शहरी और ग्रामीण जिलों की पहचान कर डाटाबेस इकट्ठा करेगा और इसकी अनुकूलता को आंकेगा।


तीन साल में पूरी होगी योजना
इस योजना को पूरा होने में काफी समय लगेगा। कारण है जन्म, मौतें, शादियों, पासपोर्ट डाटा, बैंक अकाउंट और राशन आँकड़ो को एक डाटाबेस में डालना। और फिर, ऐसा करने से अलग-अलग कार्यालयों के लिए भी सहुलियत होगी। अपने खातों का अद्यतनीकरण करने के लिए सीधे केंद्रीय डाटाबेस का अन्वेषण कर सकते हैं। सरकार को उम्मीद है कि इस योजना को पूरा होने में 3 साल का समय लग जाएगा।


लोमस और कागभुसडं क्रिया-कलाप

गतांक से...
 मुझे वह काल स्मरण आता रहता है जिस समय कागभुसडं जी प्रणायाम और साधना में परिणत होते थे। महर्षि लोमस और कागभुसडं जी दोनों अपनी आभा में भ्रमण करते रहते थे। मैं ऋषि कागभुसडं जी का जब बालक काल था, तो माता के चरणों में जब औत-प्रॏत होता तो माता बालक काल में उसे ज्ञान देती रहती थी। एक समय कागभुसडं जी से कहा है बालक उनका बालक का नाम सभुंख ऋषि था। संभुख नामक बालक था, ब्रह्मचारी था, शंभुख ऋषि जब माता की लोरीओ का पान करता रहता था। तो माता का नाम राकेश्‍वरी था। जब राकेश्वरी अपने बालक को लोरियो का पान कराती रहती थी। यह कहती रहती 'संभवा देवो ब्रह्मवाचा दिव्‍यंगतम्‌ प्रमाणं रूद्र वाचा' राकेश्‍वरी ने कहा कि है बालक तुमने मेरे गर्भ से जन्म लिया है। तू महान है तो पवित्र है आत्मा चेतन में होता है तो आत्मा है। तू अज्ञान में रत रहने वाला नहीं है तो योगिक है, योग में परिणत होने वाला बन। यह माता के उपदेशों को पान करता हुआ बालक अपने मे अपनी माता के शब्दों को निहारता रहता था। लोरीओ का पान करता रहता था। जब माता के गर्भ से अर्थात लोरियों से पृथक हुआ तो पिता के द्वार पर पिता भी उसे उपदेश देते रहते थे। हे बालक। तेरा जीवन महान बनना चाहिए। क्योंकि हमारा ग्रह सदैव  ब्रह्मवेताओं का रहा है। ब्रह्म जिज्ञासा हमारे गोत्र में रहते चले आए हैं और तुम भी ब्रह्म वेता बनो। परंतु देखो ब्रह्मा की जिज्ञासा में जो पुत्र को जानने वाला बनता है वही ब्रह्म की धाराओं में रमण करने वाला होता है। तो मुनिवरो, देखो कागभुसडं जी के उस बालक के नामकरण ब्रह्म वाचा वह जो पिता थे वह स्वेतकेतु ऋषि महाराज थे। श्वेतकेतु ऋषि महाराज पारा गोत्र में होते थे क्योंकि पारा गोत्र का विकास हुआ था वह किसी काल में 'संभो वाचम व्रही' कुटकुट गोत्र से हुआ था। कुटकुट गोत्र का जो निकास था, वह वायु गोत्र से हुआ था। वायु गोत्र का जो निकास हुआ वह ब्रह्मा के पुत्र अथर्वा से हुआ था। ब्रह्मा के पुत्र अथर्वा से वेदों की प्रतिभा व्याकरण की धाराओं का जन्म होता रहता है। कागभुसडं जी को जब यह वाक्य पिता ने प्रकट किया तो वह विद्यालय में प्रवेश हो गये।कागभुसडं जी के आचार्य जी का नामकरण मऋषि समितकेतू महाराज था। समितकेतु ऋषि महाराज वरतेतु ऋषि के पुत्र कहलाते थे। उनके यहां उनका वह संस्कार अब्रहे विद्या का संस्कारों का आचार्य के कुल में हुआ। आचार्य उसे शिक्षा देते रहे परंतु जैसे कागा प्रवृत्ति वाला पक्षी होता है। वह काग प्रवृत्ति उसकी चंचलता होती है। इसी प्रकार वह बालक विद्यालय में काग प्रकृति वाला ब्रह्मचारी था, चंचल था। जब वह अध्ययन करने लगा तो उसका जो क्रियाकलाप था वह प्राण सूत्र की चर्चा करता रहता था। प्राण सूत्र में अपने को पिरोता रहता था। प्राण सूत्र की विवेचना करता हुआ प्राण में रत रहता था। तो आचार्य ने उनका नामों का भुसडं जी जैसे काका प्रवृत्ति वाला एक पक्षी होता है वह 'काग व्रहे वृत्‍ति देवा:' वह अपने में चंचल रहता है, अपने तक उसका जीवन सीमित रहता है। परंतु दूसरों के लिए शिक्षाप्रद होता है। कि मानव को अपने कार्य में रत रहना चाहिए। अपने कार्य में अपनी प्रवृत्तियों में चिंतन करते रहना चाहिए। अपने में गंभीर बने रहना चाहिए। कागभुसडं जी का नाम कागा चंचल है और भुसडं नामा व्रहे वृतांम, जो वेदों के पठन-पाठन करने में उसकी प्रवृत्तियों में रमन रमने वाला हो ।उसको भुसडं जी कहते हैं तो चंचल हो और वेदों का अध्ययन करने वाला, गंभीर रहस्यों का उत्कर्ष करने वाला, उसका नामकरण कागभुसडं किया गया। वह अध्ययन सील रहते हुए, वह महान प्राण की चर्चा करते रहते थे। अपने को प्राण सूत्र में पिरोते हुए एक समय अपने पूज्य पाद गुरुदेव से उन्होंने यह कहा। हे प्रभु, मैं प्राण सूत्र को जानना चाहता हूं, यह प्राण सूत्र क्या है। तो आचार्य जी ने कहा प्राण सूत्र प्राणों को कहा गया है। वह सर्वत्र ब्रह्मांड एक प्राण सूत्र में पिरोया हुआ है। प्राण सूत्र में अपने को जो मानव गिरोह देता है संसार सागर से पार हो जाता है।


प्राधिकृत प्रकाशन विभाग

यूनिवर्सल एक्सप्रेस


प्राधिकृत प्रकाशन विवरण


september 26, 2019 RNI.No.UPHIN/2014/57254


1. अंक-54 (साल-01)
2. बृहस्पतिवार,26 सितबंर 2019
3. शक-1941,अश्‍विन, कृष्‍णपक्ष,तिथि द्वादशी,विक्रमी संवत 2076


4. सूर्योदय प्रातः 6:15,सूर्यास्त 6:10
5. न्‍यूनतम तापमान -24 डी.सै.,अधिकतम-34+ डी.सै., हवा की गति धीमी रहेगी, बरसात की संभावना रहेगी।
6. समाचार पत्र में प्रकाशित समाचारों से संपादक का सहमत होना आवश्यक नहीं है! सभी विवादों का न्‍याय क्षेत्र, गाजियाबाद न्यायालय होगा।
7. स्वामी, प्रकाशक, मुद्रक, संपादक राधेश्याम के द्वारा (डिजीटल सस्‍ंकरण) प्रकाशित।


8.संपादकीय कार्यालय- 263 सरस्वती विहार, लोनी, गाजियाबाद उ.प्र.-201102


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मंगलवार, 24 सितंबर 2019

जीवित चूहों का प्रसिद्ध मंदिर

रामचन्द्र गहलोत


बीकानेर। थार रेगिस्तान में बीकानेर से लगभग 32 किलोमीटर दूर मरू टीलों के बीच एक चर्चित गांव है-देशनोक। बीकानेर जिले के इस प्रसिद्ध गांव में करणी माता का एक मन्दिर है जो 'चूहों का मन्दिर' नाम से प्रसिद्ध हैं। मरू टीलों के बीच बसा यह छोटा सा गांव इस मन्दिर के कारण दुनियाभर में विख्यात है। इसे 'चूहों का स्वर्ग मन्दिर' भी कहा जाता है। चूहों का ऐसा संगम शायद ही दुनिया में अन्यत्रा कहीं देखने को मिले। इस मन्दिर में हर तरफ चूहे ही चूहे नजर आते हैं। कोई आराम करता हुआ, कोई खाता हुआ, कोई पीता हुआ तो कोई आपस में खेलता हुआ। रोचक बात यह है कि मन्दिर में जहां तक नजर जाती है वहीं ये चूहे विचरण करते हुए नजर आएंगे।


सुबह एवं संध्या की आरती के समय आपको मन्दिर प्रांगण में हजारों की संख्या में चूहे नजर आयेंगे। संध्या आरती के समय तो जो भक्त एक बार जहां खड़ा होता है, आरती पूर्ण होने तक उसे वहीं खड़ा रहना पड़ता है क्योंकि पूरा मन्दिर प्रागंण चूहों से भर जाता है। आरती के पश्चात बड़े-बड़े थालों में इनके लिए भोजन रख दिया जाता है तथा भक्त लोग इतने चूहों को एक साथ भोजन करते देख धन्य हो जाते हैं। कहते हैं इस मन्दिर में एक सफेद चूहा है जो किसी सौभाग्यशाली को ही दिखाई देखा है और उस पर माता की विशेष कृपा होती हैं। यह चूहा बहुत कम लोगों को दिखाई देता है।


इन चूहों को खाने के लिए मन्दिर के पुजारी मिठाई, अनाज, दूध एवं पानी देते हैं। मन्दिर में आने वाले भक्त भी इनके लिए लड्डू, बर्फी, पेड़ा, दूध एवं अन्य मिठाई चढ़ाते हैं। मन्दिर में इन चूहों के लिए एक अलग रसोईघर है जहां बड़े-बड़े कड़ाहों में इनके लिए भोजन तैयार होता हैं। खास बात यह है कि इनके छोड़े हुए भोजन को भक्तों में प्रसाद के रूप में वितरित कर दिया जाता है और भक्त लोग बड़ी प्रसन्नता से प्रसाद ग्रहण करते हैं। चूहों को कोई पक्षी न झपट ले जाए, इसके लिए मंदिर प्रांगण के ऊपर लोहे की जालियां लगी हुई हैं।


मन्दिर में प्रवेश करते ही एक बोर्ड पर लिखा है, कि 'अगर किसी के पैर के नीचे दबकर कोई चूहा मर गया तो बदले में उसे चांदी का चूहा देना होगा। कृपया सावधानी से चलिए, इसलिए श्रद्धालु मन्दिर में पैर घिसटाकर चलते हैं। इस चूहों ने आज तक किसी को नहीं काटा है। गुजरात में फैले प्लेग के दौरान एक वैज्ञानिक दल भी निरीक्षण के लिए आया था परंतु इन चूहों में किसी तरह की कोई बीमारी नहीं पाई गई।


माना जाता है कि करणी माता का वरदान है कि देशनोक में कभी कोई महामारी नहीं फैलेगी। ऐतिहासिक एवं धार्मिक मान्यता के अनुसार करणी माता का जन्म सुआप गांव (जोधपुर) के चारण वंश के मेहोजी के घर विक्रमी सवंत 1444 में अविश्वनी शुक्ल सप्तमी को हुआ था। कहते हैं कि मेहोजी एवं उनकी पत्नी देवल ने इष्टदेवी हिंगलाज की लम्बी आराधना की जिससे प्रसन्न होकर देवी ने दुर्गा रूप में इन्हें दर्शन दिए और वर मांगने को कहा। मेहोजी और देवल ने देवी से अपने घर में जन्म लेने का वर मांगा। देवी ने इन्हें यह वर दे दिया और इनके घर जन्म लेने का वचन भरा। मान्यता हैं कि करणी माता ने नौ की बजाय 21 माह गर्भ में रहकर जन्म लिया था और प्रसूति के समग देवल को दुर्गा रूप में दर्शन देकर अपने वचन का स्मरण कराया था।


मेहोजी और देवल माता ने इनका नाम 'रिधूबाई' रखा था परंतु बचपन से ही अपने अलौकिक चमत्कारों, अंधों, लगड़ों को ठीक करने तथा रोगियों के रोग दूर करने के कारण इनका नाम 'करणी' रख दिया गया। करणी माता ने यहां के जनमानस को अनेक चमत्कार दिखाये और धीरे-धीरे करणी माता यहां के लोगों की असाध्य देवी बन गई। करणी माता के संबंध में यहां अनेक जनश्रुति प्रचलित हैं। कहते हैं कि भूख प्यास से व्याकुल युगल राजा की सेना को माता ने भरपेट भोजन कराया था जबकि भोजन कुछ ही लोगों का था।


करणी माता ने जोधपुर, नरेश जोधा जी के पुत्रा बीका जी को देशनोक के पास एक नई रियासत बसाने का आशीर्वाद दिया तथा खुद अपने हाथों से उसकी नींव रखी जिसका नाम बीकानेर रखा गया। करणी माता के आर्शीवाद से बीकानेर एक समृद्ध रियासत बनकर उभरी। राजपूत नरेश जोधा जी एवं बीका जी जीवन पर्यन्त माता के उपासक रहे। वर्तमान मन्दिर के स्थान पर पहले एक गुफा थी जहां करणी माता ने ज्यादातर समय बिताया। बाद में बीकाजी के वंशज नरेशों में यहां संगमरमर का मन्दिर बनवा दिया। मन्दिर के गर्भगृह में उस गुफा का कुछ हिस्सा अब भी है।


सुआप गांव देशनोक से लगभग 127 किलोमीटर दूर है और यहां पुराना जाल का वृक्ष अब भी है जहां माता का झूला विद्यमान है। मन्दिर का प्रवेश द्वार अत्यंत ही आकर्षक है। प्रवेश द्वार पर फूल, पत्तियों के डिजाईन के अलावा हाथी तराशे गए हैं। प्रवेश द्वार चांदी का बना हुआ है और उस पर महीन कलाकारी की गई है। प्रवेश द्वार के बाहर संगमरमर के बने शेर बैठे हुए दिखाई देते हैं। मन्दिर के बाकी तीन द्वार भी चांदी के बने हुए हैं तथा मन्दिर के गर्भगृह में शुद्ध सोने के अनेकों छत्रा चढ़ाए हुए हंै। करणी माता का सिंहासन भी सोने का बना हुआ है। करणी माता को चूहों एव गायों से विशेष लगाव था, इसलिए इस गांव के लोग अपने पशुओं के क्रय-विक्रम के पश्चात उनका दूध यहां चढ़ाते हैं। इससे इन्हें पशु धन में लाभ मिलता है।


वैसे तो यहां कभी भी आ सकते हैं परंतु नवरात्रों में यहां भारी मेला लगता है तथा दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। यहां अन्य प्रदेशों से भी श्रद्वालु आते हैं। विदेशी सैलानी भी यहां खूब आते हैं और माता के इस अद्भुत मन्दिर एवं उसके चूहों को देखकर दंग रह जाते हैं। निश्चित रूप से मेरी तरह बीकानेर जाने वाले हर श्रद्धालु की यात्रा इस मन्दिर को देखे बिना अधूरी रह जाती है। (अदिति)


भारत आतंकवाद को पनपने दें,

इमरान खान अब हमारे कश्मीर में क्या चाहते हैं?
क्या भारत फिर से आतंकवाद को पनपने दें?
कश्मीर में शांति पाकिस्तान के हित में भी है। 

अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान से साफ कहा कि यदि भारत चाहेगा तो वे कश्मीर के मुद्दे पर मध्यस्थता करने को तैयार हैं। इमरान खान चाहते हैं कि अमरीका अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर भारत-पाक के बीच वार्ता करवाए। लेकिन सवाल उठता है कि इस वार्ता से पाकिस्तान को क्या हासिल होगा? भारत ने जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 को समाप्त कर आतंकवाद को खत्म कर दिया है। सब जानते हैं कि इस अनुच्छेद 370 के प्रावधानों की वह से कश्मीर घाटी में पाकिस्तान का प्रभाव बढ़ रहा था। इसलिए पाकिस्तान में बैठे कट्टरपंथी हमारे कश्मीर में आतंक फैला रहे थे। लेकिन अब पाकिस्तान के कट्टरपंथियों का कनेक्शन कश्मीर घाटी से कट गया है, इसलिए घाटी में शांति है। 5 अगस्त को अनुच्छेद 370 को हटाने की घोषणा की गई, तब से अब तक पचास दिनों में सुरक्षा बलों को एक बार भी गोली नहीं चलानी पड़ी है। अब जब हमारे कश्मीर में शांति हो रही है तो पाकिस्तान से किस मुद्दे पर वार्ता की जाए? 370 के हटने के बाद जम्मू और लद्दाख में तो जश्न का माहौल है। पाकिस्तान को अब अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भी कोई समर्थन नहीं मिल रहा है। अमरीका और भारत की दोस्ती पाकिस्तान ने 22 सितम्बर की रात को ह्यूस्टन में देख ही ली है। कोई देश नहीं चाहता कि आतंकवाद पनपे। अब इस बात को पाकिस्तान को भी समझना चाहिए। अच्छा हो कि पाकिस्तान कश्मीर को भूल जाए और अपने यहां बैठे कट्टपंथियों पर अंकुश लगाए। कट्टरपंथियों की वजह से पाकिस्तान को भी भारी नुकसान हो रहा है। हाउडी मोदी कार्यक्रम में डोनाल्ड ट्रंप ने मुस्लिम आतंकवाद की बात कह कर पाकिस्तान की ओर ही इशारा किया है। 24 सितम्बर को इमरान खान से मीडिया के सामने संवाद करते हुए ट्रंप ने कहा कि भारत की मजबूत स्थिति का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को सुनने के लिए ह्यूस्टन के स्टेडियम में 59 हजार अमरीकी मौजूद रहे। जहां पूरे अमरीका में मोदी मोदी की गूंज हो रही है, वहीं इमरान खान की उपस्थिति को कोई गंभीरता से नहीं ले रहा है। इमरान खान और पाकिस्तान माने या नहीं, लेकिन नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत की स्थिति बहुत मजबूत हुई है। अनुच्छेद 370 को हटा कर मोदी ने बोल्ड कदम उठाया है, इससे आतंकवाद पर लगाम लगी है। पाकिस्तान को अपने ब्लूचीस्तान और सिंध प्रांत के असंतोष पर ध्यान देना चाहिए। अब कश्मीर में पाकिस्तान के लिए कोई गुंजाइश नहीं हैं।
एस.पी.मित्तल


सीएम ने 'महाकुंभ' की तैयारियों का जायजा लिया

सीएम ने 'महाकुंभ' की तैयारियों का जायजा लिया  बृजेश केसरवानी  प्रयागराज। महाकुंभ की तैयारियों का जायजा लेने के लिए मुख्यमंत्री योगी ...