घुटनों के बल (संपादकीय)
भारतीय साहित्य और इतिहास समय की पुनरावृति करता रहा है। वर्तमान स्थिति के अनुरूप प्रतिपादित हो जाता है ।देश की अंतर्राष्ट्रीय ख्याति बढ़ती जा रही है। लेकिन आंतरिम विकास कहीं स्थिर हो गया है। सुनियोजित ढंग से रूपरेखा निर्माण का अभाव अभी भी समाप्त नहीं हुआ है। सरकार के द्वारा लिए गए अधिकतम निर्णय जनता के हित और राष्ट्रीय विकास पर आधारित रहे हैं। कुछेक निर्णय से देश की अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। प्रभावित अर्थव्यवस्था निम्नता के स्तर की ओर बढ़ने लगी, जब गति और अधिक बढ़ने लगी। स्थिति यह हो गई कि सरकार ने चारों ओर से हटकर संपूर्ण ध्यान गिरती विकास दर की तरफ आकृष्ट कर लिया। जिस विषय पर पूर्व में मनन और अवलोकन करने की आवश्यकता थी। आज उस विषय पर सरकार का केंद्र स्थापित हो गया। लिए गए निर्णय से देश की जनता में एक आशा जागृत हो गई है। परंतु क्या निर्धारित मानक अनुरूप यह सभी निर्णय समय अनुसार धरातल पर प्रतिपादित होंगे। जनता को सच में निर्णय अनुरूप लाभ प्राप्त होगा। व्यवसायिक इकाइयां और स्वरोजगार को बढ़ाने की सरकारी मंशा पूर्ण होगी। भारतीय रिजर्व बैंक की साझेदारी और सहयोग से इसमें ज्यादा विश्वास रखा जा सकता है। अगली दो तिमाही में अर्थव्यवस्था गति पकड़ सकती है। यदि ऐसा परिणाम घटित होता है तो यह देश के स्वर्णिम पल का साक्षी बनेगा। भारतीय गणतंत्र में कई विषम समस्याएं पनप रही है। आर्थिक विकास दर का पिछड़ना भी एक विषमता है। किंतु अर्थव्यवस्था के प्रति सतर्कता अन्य विषमताओं का प्रत्यक्ष अवरोध होगा। सरकार अर्थव्यवस्था के प्रति चिंतित है। जिसके सुधार और विकास पर पहले से ज्यादा और उत्कृष्ट कार्य किया जा रहा है। सरकार को आर्थिक विकास दर को गति प्रदान करने के लिए अभी और अधिक मनन करने की आवश्यकता है। वस्तुतः देश की जनता प्रत्येक परिस्थिति में देश के हर निर्णय में अग्रणी बनी रहेगी।
ससवार गिरा करते हैं जंग-ए- मैदान में, वो क्या गिरेंगे जो घुटनों के बल है।
राधेश्याम 'निर्भय पुत्र'