गतांक से...
राजा जानवी ने बहुत पुरातन काल में कहा था मेरे यहां मेरे राष्ट्र में भोगवाद नहीं है। मेरे राज्य में तो केवल शिष्टाचार है। मेरे राष्ट्र में यज्ञ होते हैं और यह भी भिन्न-भिन्न प्रकार के, माता-पिता यह चाहते हैं कि हमें संतान को जन्म देना। हमें संतान को उत्पन्न करना है तो माता-पिता चिंतन करते हैं और चिंतन करने के पश्चात वह अपनी अपनी हवी को अपने अपने आसन पर परिणीत कर देते हैं। उससे सुसन्तान का जन्म होता है और वह जो संतान है वह ग्रह को ऊंचा बनाती है। और जो माता-पिता अपने बालक को ऊंचा नहीं बना सकते महान नहीं बना सकते ब्रह्मचारीष्यमी नहीं बना सकते। उन माताओं का जीवन न होने के तुल्य कहलाता है। वह माता सौभाग्य नहीं होती है। जो माता अपने गर्भ स्थल में माता मदालसा की भांति अपने प्यारे पुत्र को गर्भाशय में ब्रह्मा का उपदेश देने वाली है। वह ग्रह धन्य होते हैं वह राष्ट्रीय धन्य होता है। जिस राजा के राष्ट्रीय चिंतन होता है। प्रत्येक ग्रह अपने आश्रम में ब्रह्म का चिंतन करने वाले हो और उसके पश्चात वह देव पूजा करने वाले हो देव पूजा कौन करता है। देव पूजा में माता-पिता करते हैं जिनके ग्रह में सुगंधी होती है। बालक ऊंचे बनते हैं माता-पिता प्रातः कालीन देव पूजा करते हैं। देव पूजा किसे कहते हैं संमिधा को अग्न्यधान किया अग्नि प्रदीप्त हो गई और उसमें स्वाहा कहते हैं अपनी वाणी को अग्नि की तरंगों पर विश्राम करा करके वह दोनों को प्राप्त हो जाता है। वह दो लोक में प्रवेश कर जाती है वह देव पूजा कैसी स्वच्छ हृदय से होती है। परमात्मा की वाणी से कहता आचार्य अद्भुत स्वाहा, अग्नि मानव अद्भुत कहता है और स्वाहा कह रहा है। दग्ध होने वाली अग्नि अंतरिक्ष में रमण करने वाली है। लोको का प्राप्त होने वाली है। वह माता पिता धन्य है जो अपनी वाणी को ब्रह्मलोक में पहुंचा देते हैं। अंतरिक्ष में पहुंचा देते हैं अग्नि की धाराओं पर विद्यमान हो करके यह वाणी अपने स्वरूप को लेकर के 2 लोक प्राप्त कर लेती है। परिणाम क्या देवताओं का दूत कौन है वह देवताओं का दूत ही अग्नि कहलाती है अग्नि महान। तृतीय जो संमिधा है जो जीवन में प्रदीप्त होती है। वह अतिथि की सेवा है अतिथि की सेवा किसे कहते हैं। बुद्धिमान गृह में आता है और बुद्धिमान का स्वागत करते हैं और बुद्धिमान का जब स्वागत होता है तो बुद्धिमान प्रसन्न होता है। योगेश्वर प्रसन्न होता है और जब वह प्रसन्न में होता है तो देखो अपने ज्ञान को दे कर के वहां से प्रस्थान करता है। जो उसने अध्ययन किया है, शिक्षाओं का व्रत किया है। उस शिक्षा को ग्रह को देख कर के मैं अपने आसन को प्रस्थान करता है। तो मुनिवरो, उस समय महाराजा जानवी ने जब यह ब्रह्मवेताओं को कहा तो उन्होंने कहा धन्य है प्रभु। उन्होंने कहा प्रभु, हम तो आत्मा की समाधि को जानना चाहते हैं। जिससे आत्मकथा बनता है यह तो हमने साधारण उपदेश आपसे पाया है। परंतु हम यह जानना चाहते हैं कि आत्मा का उत्थान कौन सी अग्नि से कौन सी समिधा से होता है? जिससे हम आत्मत्व बने और आत्मा में प्रवेश करते हुए आत्मा को प्राप्त होते रहे। मेरे प्यारे महाराजा जानवी ने कहा कि आत्मा का उत्थान करना है। हे ब्रह्म, जिज्ञासा है आत्मा कि यदि आज तुम चाहते हो कि हर आत्मा का कल्याण चाहते हैं। आत्मा को उधरवागति में ले जाना चाहते हैं। तो बेरसिया में उत्तर बिरलोका आज मैं तुम्हें एक ही वाक्य प्रकट करा देता हूं। जहां यह जो ब्रह्मा की ॠचा है ॠचा जो हमारे शरीर में प्रवास है गति कर रहा है। इसको प्राण के द्वारा प्राण रूपी तरकश से तीर की भांति इसका संधान करा दो। उससे आत्माओं का एक ही लक्ष्य रहता है कि आत्मा को जानना है। जब उस धनुष पर तीर रख लिया जाता है तो उसका लक्ष्य ब्रह्म को प्राप्त करना, वह ब्रह्म का यह प्राणायाम करना और प्राण के द्वारा इस आत्मा को जानना। क्योंकि मन को आत्मा के आत्मा मन को पुराण रूपी तरकस के ऊपर तीर कि आप हमें अभ्यस्त करा देना चाहिए। जिससे आत्मा में प्रवेश कर जाए और आत्मात्व हो। यह आत्मा का ज्ञान ही संसार में एक मानवता को प्रवास प्रवेश करा देता है। आत्मज्ञान है तो राष्ट्र को ऊंचा बनाता है आत्मज्ञान है। जो मोक्ष ले जाता है। आत्मा का जो बलिष्ठ प्राणी होता है वह संतान से हीन नहीं होता है। वह अपने जीवन में ऊंचे कर्मों से हिनता को प्राप्त नहीं होता है। इसलिए मैंने बहुत पुरातन काल में अपने प्यारे महानंद जी के प्रश्नों का उत्तर देते हुए कहा था कि मानव को अपनी आत्मा को उधरवा बनाना चाहिए। आत्मक जो पुरुष होता है उसके शरीर में वीर्य होता है और जो होता है वह देखो रचना करता है। जहां योग में सफलता को प्राप्त होता है। मैंने बहुत पुरातन काल में अपने वाक्यों को प्रकट करते हुए कहा था। इस संसार में मानव को अपने जीवन को ऊंचा बनाना है। अपने जीवन में आत्म तत्व को प्राप्त कराना है। आत्म लोको को प्राप्त करना है। आज का हमारा यह वाक्य कह रहा है। आज मैं महाराजा जानवी के वाक्यों को प्रकट कर रहा हूं। महाराजा जानवी जहां-जहां राष्ट्र में कुशल थे वह आत्म को जानते थे। वह भी कह जाते ब्रह्मा वाक प्रकट किया। तो उसने कहा महाराज आत्मा, संतान का क्या संग्रह हैं?