सोमवार, 2 सितंबर 2019

मनोदशा की आकृति-चिंता

चिन्ता "एक भविष्य उन्मुख मनोदशा है, जिसमें एक व्यक्ति आगामी नकारात्मक घटनाओं का सामना करने का प्रयास करने के लिये इच्छुक या तैयार होता है”जो कि यह सुझाव देता है कि भविष्य बनाम उपस्थित खतरों के बीच एक अंतर है जो भय और चिन्ता को विभाजित करता है। चिंता को तनाव की एक सामान्य प्रतिक्रिया माना जाता है। यह किसी व्यक्ति कि किसी मुश्किल स्थिति, काम पर या स्कूल में किसी को इससे निपटने के लिए उत्साहित करने पर, से निपटने में मदद कर सकती है। अधिक चिंता करने पर, व्यक्ति दुष्चिन्ता विकार का शिकार हो सकता है।


चिंता के शारीरिक प्रभाव में दिल का पल्पिटेशन, मांसपेशियों में कमजोरी, तनाव, थकान, मिचली, सीने में दर्द, सांस की कमी, पेट में दर्द या सिर दर्द शामिल हो सकते हैं जब शरीर खतरों से निपटने के लिए होता है: तब रक्तचाप और दिल की गति की दर बढ़ जाती है, पसीना बढ़ जाता है, प्रमुख मांसपेशी समूहों के लिए रक्त का बहाव बढ़ जाता है और प्रतिरक्षा और पाचन तंत्र प्रणालीयां में रुकावट आ जाती है (लड़ो या भागो का प्रतिक्रिया)। पीली त्वचा, पसीना, कांप और पपीलअरी फैलाव चिंता के बाहरी लक्षणाँ में शामिल हो सकते हैं। कोई, जिसे चिंता है इसे भय या आतंक का भाव के रूप में अनुभव कर सकता है। हालांकि हर व्यक्ति जिसे चिंता आतंक के दौरे अनुभव नहीं करता, ये एक आम लक्षण है। आतंक के दौरे आम तौर पर बिना चेतावनी के आते हैं और यद्यपि आम तौर पर डर तर्कहीन है, परंतु खतरे की धारणा बहुत वास्तविक है। एक व्यक्ति जो आतंक के दौरे का अनुभव कर रहा हो, अक्सर ऐसा मह्सूस करता है जैसे वह मरने या गुज़रनेवाला,गुज़रनेवाली है।


चिंता केवल भौतिक प्रभाव ही नहीं रखती बल्कि इसमें कई भावनात्मक प्रभाव भी शामिल हैं करती है। इसमें “आशंका या भय की भावनाओं, ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई, तनाव या उछाल की भावना, निकृष्ट्तम का अनुमान, चिड़चिड़ापन, बेचैनी, खतरे या घटना के संकेतों (और घटित होने) को देखना (और इंतजार करना) शामिल हैं और महसूस करना जैसे कि तुम्हारा मस्तिष्क शून्य हो गया हो”और साथ ही साथ ”दुस्वप्न, बुरे सपने, उत्तेजना के बारे में दुराग्रह, मस्तिष्क की भावनाओं इन एक फन्दा, देजा-वू और भावना की सब कुछ डरावना लग रहा है।


चिंता के संज्ञानात्मक प्रभाव में, आशंकित खतरों के विचार, जैसे मृत्यु का डर भी शामिल हो सकता है। "तुम डर सकते हो कि सीने में दर्द 'चिंता के शारीरिक लक्षण हैं' घातक दिल का दौरा है या सिर में शूटिंग दर्द 'चिंता का एक और शारीरिक लक्षण' ट्यूमर या धमनीविस्फार का परिणाम हैं। आप गहन भय का भाव अनुभव करते हैं जब आप मरने की सोंचते हैं या आप इस के विषय में सामान्य से अक्सर अधिक सोंचते हैं या इसे अपने मस्तिष्क से बाहर नहीं कर सकते हैं।


कर्तव्यवाद:यम नचिकेता वार्ता

कर्तव्यवाद
 मुनिवरो, पूर्व की भांति आपके समक्ष कुछ मनोहर वेद मंत्रों का गुणगान गाते चले जा रहे हैं। तुम्हें यह भी प्रतीत हो गया होगा कि आज हमने पूर्व से जिन वेद मंत्रों का पठन-पाठन किया है । हमारे यहां परंपरागत ही उस मनोहर वेदवाणी का प्रसार होता रहता है। जिस पवित्र वेद वाणी में मेरे देव परमपिता परमात्मा की महिमा का गुणगान गाया जाता है। क्योंकि वह परमपिता परमात्मा महान विज्ञान में रत रहने वाला है। जितना भी यह जगत मानवीय दृष्टिपात आ रहा है। उस सर्वत्र ब्राह्मण की आभा में वह परमपिता परमात्मा निहित हो रहे हैं। उसी में जिसके ऊपर मानव परंपरागत उसमे ही अनुसंधानकर्ता आ रहा है। विचार-विनिमय करता रहा है कि हम परमपिता परमात्मा के समीप जाना चाहते हैं। प्रत्येक मानव इसी विडंबना में नाना प्रकार की आभा में भ्रमण करता रहता है और कहीं न कहीं अपनी आभा में नियुक्त होता रहता है कि मैं उस परमपिता परमात्मा की आभा हूं। जिस प्रकार में घूमे विद्युत वास करती है  दृष्टिपात होने के बाद उसी में ओझल हो जाती है। उसी प्रकार उसमें अपने को ले जाओ उसमे ओझल हो जाओ। इसी प्रकार प्रत्येक मानव प्रकृति के आवेश में और प्रकृति के गर्भ में ओझल हो जाता है। परमपिता परमात्मा की आभा हम जानना चाहते है। परंतु जब संसार के नाना प्रकार के रूपों में रत होता है तो परमपिता परमात्मा के समीप में जाकर के वह प्रकृति के गर्भ में ही रमण करने लगता है। हमारा वेद मंत्र यह कहता है। हे मानव, यदि तू परमपिता परमात्मा को जानना चाहता है और उसके समीप जाना चाहता है। तुझे नाना प्रकार के इस प्रकृति के आवेशों को त्यागना होगा। प्रकृति को वह मानव त्‍याग आता है। जान लेता है यह इसकी जडवत प्रवृत्ति है। उस प्रवृत्ति को जो नहीं जान पाता है। वह प्रकृति को नहीं जान सकता। प्रकृति के आवावेशो को नहीं जान सकता। इसलिए हमारे ऋषि मुनि परंपरागत उसे ही इसके ऊपर विचार विनिमय करते रहें। विचारते रहे हैं कि हम प्रकृति के उन आवेशों को त्यागना चाहते हैं। जिन आवेशों में मानव अपने को जडवत बना लेता है। ज्ञान और चेतना के स्थान में वह जडवत बन जाता है। जडवत को त्यागना है और चेतना को अपनाना है। जो चेतना लाने का प्रयास करता है। और जडवत को त्याग देता है ।वहीं मानव संसार में महान बनता है। इसलिए हमारे आचार्यों ने अनुसंधानवेताओं ने राष्ट्रवेताओं ने अपने राष्ट्र को त्‍याग करके भयंकर वनों में अपनी चेतना में सदैव तत्पर रहें, रत रहे हैं। मुझे आज  कुछ वाक्य स्‍मरण आ रहे हैं जिन वाक्यों को मैंने पुरातन काल में तुम्हारे सम्मुख प्रकट किया है। एक समय बेटा महॠषि साक्लय मुनि परमपिता परमात्मा के हृदय मन हो रहे थे। अन्वेषण करते हुए महर्षि साक्‍लय मुनि के समीप एक वाक्य आया कि मैं तपस्वी कैसे बनूंगा। भयंकर वनों में यह विचार कर रहे थे और मन को कह रहे थे। हेमन तपस्वी कैसे बनेगा? नाना प्रकार की प्रवृत्ति वाला जो मन है। उसको अपने में धारण करने के लिए मैं ऋषि साक्‍लय मुनि महाराज के मन मे एक निष्ठा बनी और तपस्या करने लगे। हमारे यहां तप के नाना प्रकार के प्रयायवाची माने गए हैं। परंतु वेद कुछ और कहता है। वेद का मंत्र कहता है। तप:तपश्‍चयम्‌ ब्रह्मावाचोः तप किसे कहते हैं प्रत्येक मानव तप की विवेचना जानना चाहता है। 'तपस्या ब्रह्मा' कहलाता है। जिसके द्वारा मानव इंद्रियों का शुद्धिकरण होता है। प्रत्येक मानव परंपरागत नाना प्रकार के अनुष्ठान करता रहता है। अनुष्ठानों में केवल वायु का सेवन करने लगता है। नाना प्रकार की वनस्पतियों को पान करता है और अपान बना रहता है। नाना प्रकार के रूपों में एक ही मंत्र में मन को पवित्र बनाना है। क्योंकि मन को पवित्र बनाने के लिए मानव कहीं वायु का सेवन करता है। कहीं सत्यवादी बना रहता है और मुनिवर कहीं मन के शोधन के लिए अलग वारी बन जाता है। नौदा में भक्त बन जाता है कहीं पित्र भक्ति करने लगता है। कहीं आचार्य अनुष्ठान में लग जाता है। नाना प्रकार के भाव में रत हो जाता है। परंतु मंतव्य सब का एक ही है कि मेरा मन पवित्र हो जाए। मेरे पुत्रों, मन को पवित्र बनाने के लिए ऋषि-मुनियों ने एक मार्ग बड़ा सा एकत्रित किया हैं । उन्होंने अपने वाक्यों में वेद के कुछ मंत्रों को लाने का प्रयास किया। वाक्य इस प्रकार आए हैं।अन्‍न ब्रह्म वाचप्रहे वक्तव्य लोका: वेद का वाक्य कहता है कि अन्‍न ब्रह्म के समीप ले जाता है। वेद का मंत्र कहता है अन ब्रह्म के समीप ले जाता है तो बेटा याद कैसा वेद का शब्द है इसके ऊपर जब अन्वेषण करते हैं ऋषि मुनि तो बेटा विचार आया कि मना: वाचो व्रतम ब्रह्मा वाचा: वेद का वाक्य कहता है कि उनके पवित्र होने पर मन में पवित्रता आती है। इसलिए 'अन्न ब्रह्मा' कहा गया है।


प्राधिकृत प्रकाशन विवरण

प्राधिकृत प्रकाशन विवरण
september 03, 2019 RNI.No.UPHIN/2014/57254
1.अंक-31 (साल-01)
2. मंगलवार,03सितबंर 2019
3.शक-1941,भादप्रद शुक्‍लपक्ष गणेश चतुर्थी,विक्रमी संवत 2076
4. सूर्योदय प्रातः 5:53,सूर्यास्त 6:54
5.न्‍यूनतम तापमान -27 डी.सै.,अधिकतम-35+ डी.सै., हवा की गति धीमी रहेगी, उमस बनी रहेगी।
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रविवार, 1 सितंबर 2019

अभाव मे महिला ने दम तोडा:सरकार

विजाग। आंध्र प्रदेश के विज़ाग से एक खबर आई है। यहां 28 साल की एक प्रेगनेंट औरत ने इसलिए दम तोड़ दिया क्योंकि उसे 20 किलोमीटर पैदल चलना पड़ा।
लक्ष्मी नाम की ये महिला अपने गांव जामदांगी से गई थी।डॉक्टर को दिखाने। मदुगुला मंडल  के रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टिश्नर के पास। ये जगह उसके गांव से 20 किलोमीटर दूर है।वहां तक जाने के लिए कोई पक्की सड़क नहीं बनी हुई। इस वजह से वहां यातायात के साधन नहीं हैं, ऐसा खबरें बताती हैं। इंडियन एक्सप्रेस में छपी रिपोर्ट के मुताबिक़ औरत डॉक्टर को दिखा कर लौट रही थी। तभी रास्ते में उसे ब्लीडिंग शुरू हो गई। बाकी के रास्ते महिला को फिर बल्लियों पर कपड़ा बांध उसमें टांग कर लाया गया। लेकिन तब तक खून बहुत बह चुका था। वो औरत और उसका बच्चा, दोनों ही बच नहीं सके। ये पहला मामला नहीं है जहां इस तरह की परेशानी से गुज़रना पड़ा है लोगों को।इसी साल जुलाई में खबर आई।आंध्र प्रदेश से ही कोठवालसा नाम के गांव में रहने वाली जनपारेड्डी देवी के पास एम्बुलेंस नहीं पहुंच पाई। क्योंकि बारिश की वजह से कच्चा रास्ता बर्बाद हो गया था। फिर जनपारेड्डी को भी बल्ल्लियों पर कपड़ा बांध कर उसमें टांग कर हॉस्पिटल लााा गया।


मदुगुला मंडल में ही ये गांव भी आता था। वहां के कई छोटे-छोटे गांवों में कनेक्टिविटी नहीं है। ऐसा वहां के लोकल लोगों ने मीडिया को बताया। इसको लेकर पदेरू शहर की विधायक के. भाग्यलक्ष्मी ने कहा था कि इन पर काम किया जाएगा ताकि आगे इस तरह की दिक्कतें न हों। लेकिन फिर भी लक्ष्मी और जनपारेड्डी जैसे मामले सामने आते रहते हैं।इस आदिवासी इलाके के पदेरू शहर में जो डेटा है, उसके हिसाब से वहां की नई मांओं की मृत्यु दर काफी ज्यादा है। जहां पूरे देश में प्रति एक लाख जन्म देने वाली महिलाओं में से 130 की मौत होती है, वहीं पदेरू में ये संख्या 204 को पहुंच जाती है।इसको लेकर अभी भी कोई ख़ास कदम उठाया गया हो, इसकी खबर नहीं है।


मिट्टी का गणेश (अध्यात्मिक)

मिट्टी के गणेश बनाए और घर में ही विसर्जित करें। यह अच्छी बात है। लेकिन ऐसी ज्ञानवर्धक, पर्यावरण बचाने वाली सलाहें सिर्फ हिन्दू त्यौंहार पर ही क्यों?

दो सितम्बर से देशभर में गणेश उत्सव की धूम शुरू हो जाएगी। घरों से लेकर सार्वजनिक स्थलों एवं मंदिरों में भगवान गणेश की मूर्ति की स्थापना कर अगले एक सप्ताह तक उत्सव मनाया जाएगा। गणेश उत्सव को ध्यान में रखते हुए पेशेवर मीडिया घराने, सामाजिक संस्थाएं और स्वयं को पर्यावरण का हितैषी मानने वाले पर्यावरणविद् सलाह दे रहे हैं कि इस बार प्लास्टर ऑफ पेरिस या अन्य किसी पदार्थ से गणेश मूर्तियां बनाने के बजाए मिट्टी से बनाई जाए। और मिट्टी से बनी प्रतिमा को घर में ही विसर्जित किया जावे। ऐसी सलाह को लेकर अखबरों में प्रथम पृष्ठ पर खबरें भी छप रही हैं। जो अखबार मालिक पांच सेंटीमीटर सिंगल कॉलम के विज्ञापन के पांच हजार रुपए तक वसूलता है, वह मिट्टी वाले गणेश की सलाह के पांच सौ सेंटीमीटर में खबर प्रकाशित कर रहा है। पीओपी की जगह मिट्टी के गणेशजी बने और घरों में ही विसॢजत हों, यह अच्छी सलाह और इस पर अमल भी होना चाहिए। जब प्रदूषण विकराल रूप ले रहा है, तब समाज में ऐसे उपाय होने ही चाहिए। लेकिन सवाल उठता है कि पर्यावरण की चिंता सिर्फ हिन्दू समुदाय के त्यौंहारों पर ही क्यों होती है? जब हमारा देश धर्म निरपेक्ष है तो फिर सभी धर्मों के अनुयायियों को पर्यावरण बचाने की चिंता होनी चाहिए। मूर्ति पूजा के घोर विरोधी बुद्धिजीवी भी मिट्टी के गणेश बनाने की सलाह देते हैं, लेकिन ऐसे बुद्धिजीवी अन्य समुदाय के परंपराओं और मान्यताओं को बदलने पर एक शब्द भी बोलने की हिम्मत नहीं दिखाते। जबकि अन्य धर्मों में ऐसी परंपराओं से पर्यावरण को काफी नुकसान होता है। कई बार हिन्दू धर्म की अच्छाइयां को लेकर सवाल उठते हैं। हिन्दू धर्म की सबसे बड़ी अच्छाई यही है कि आलोचनाओं का भी स्वागत किया जाता है। और ऐसी सलाह को स्वीकार भी किया जा रहा है। यदि हम किसी दोषपूर्ण परंपरा में बदलाव करते हैं तो यह उस धर्म की महानता ही है। हिदू धर्म विशाल हृदयवाला है जिसमें विपरित विचार धारा वाला व्यक्ति भी समा सकता है। हिन्दू धर्म की परंपराएं और मान्यताएं भी ऐसी है जिससे हर कोई व्यक्ति सहर्ष स्वीकार कर लेता है। जैन धर्म में शरीर से बाहर निकलने वाले सांस सेे भी जीव हत्या होना माना जाता है। इसलिए अनेक जैन सधु संत अपने मुंह पर कपड़ा बांधते हैं। इन जैन समुदाय के पर्यूषण पर्व भी चल रहे हैं। महिलाएं भी एक दो चम्मच पानी पीकर एक पखवाड़े तक का उपवास कर रही है। 
एस.पी.मित्तल


मार्गदर्शक मंडल में शामिल होंगे 'कल्याण'

तो अब भाजपा के मार्गदर्शक मंडल में शामिल होंगे राजस्थान के राज्यपाल कल्‍याण सिंह। 
कलराज मिश्र को नया राज्यपाल नियुक्त किया। 

केन्द्र सरकार ने जिन पांच राज्यों में नए राज्यपालों की नियुक्ति की है उसमें राजस्थान में कलराज मिश्र का नाम भी शामिल है। मिश्र अब तक हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल थे, लेकिन अब उन्हें राजस्थान का राज्यपाल नियुक्त किया गया है। मिश्र राज्यपाल बनने से पहले भाजपा के दिग्गज नेता रहे। मिश्र की कर्मभूमि उत्तर प्रदेश रही। गत लोकसभा चुनाव से पहले तक मिश्र देवरिया से भाजपा के सांसद थे। 22 जुलाई 2019 को मिश्र को हिमाचल प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त किया गया। राजस्थान के मौजूदा राज्यपाल कल्याण सिंह का कार्यकाल 3 सितम्बर को समाप्त हो रहा है। सरकार ने कल्याण सिंह के कार्यकाल में न तो वृद्धि की है और न ही उन्हें किसी अन्य राज का राज्यपाल नियुक्त किया है। ऐसी स्थिति में माना जा रहा है। 3 सितम्बर के बाद कल्याण सिंह अपना शेष जीवन उत्तर प्रदेश में ही व्यतीत करेंगे। हालंकि राजनीति में कब कुछ क्या हो जाए, कहा नहीं जा सकता। लेकिन कल्याण सिंह लम्बेे अर्से से अस्वस्थ चल रहे हैं। कल्याण सिंह के अस्वस्था से कई बार सरकारी कार्यक्रम भी निरस्त हुए हैं। माना जा रहा है कि अब कल्याण सिंह की भूमिका भाजपा के मार्ग दर्शक मंडल के सदस्य की होगी। मार्ग दर्शक मंडल में पहले ही लाल कृष्ण आडवानी और मूरली मनोहर जोशी से वरष्ठि नेता विराजमान है। कल्याण का राजनीतिक पद भी बहुत बड़ा रहा है। कल्याण सिंह जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे, तभी अयोध्या में बावरी मस्जिद का ढांचा गिराया गया था। हालांकि तब कल्याण सिंह को मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा था। उस समय कल्याण सिंह भाजपा में सबसे बड़े नेता रहे। कल्याण सिंह की पार्टी में भूमिका को ध्यान में रखते हुए ही नरेन्द्र मोदी जब प्रधानमंत्री बने तो उन्हें राजस्थान का राज्यपाल नियुक्त किया गया। चूंकि अब कल्याण सिंह का राज्यपाल के तौर पर कार्यकाल पूरा हो रहा है। इसलिए यह माना जा रहा है कि कल्याण सिंह की सियायत से विदाई हो रही है।
एस.पी.मित्तल


मोबाइल उपभोक्ता परेशान (विविध)

टाटा पावर की दादागिरी से अजमेर के मोबाइल उपभोक्ता भी परेशान। 
पुलिस और प्रशासन से भी नहीं डरते कंपनी के अफसर।
डिस्कॉम तो लाचार है। 

टाटा पावर कंपनी के विद्युत वितरण की व्यवस्था संभालने के बाद अजमेर शहर के बिजली उपभोक्ता पहले से ही परेशान थे और मोबाइल उपभोक्ताओं को भी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। इसे टाटा पावर की दादागिरी ही कहा जाएगा कि जियो ने जो ऑप्टिल फाइबर केबल बिजली के खंबों पर डाली थी, उसे टाटा पावन ने काट कर खंबों से उतार दिया। इससे शहर के जियो मोबाइल उपभोक्ता परेशान है। टाटा पावर ने केबल काटने से पहले उपभोक्ताओं के हितों का कोई ख्याल नहीं रखा। टाटा पावर के सीईओ गजानन काले का कहना है कि बिजली के खंबों के उपयोग का शुल्क जियो नहीं दे रहा है। चूंकि खंबों का रख रखाव अब टाटा पावर कर रहा है, इसलिए शुल्क हम वसूलेंगे। खंबों से केबल हटाने के कृत्य को काले ने जायज बताया। वहीं जियो का कहना है कि खंबों के उपयोग से पहले दो करोड़ 68 लाख रुपए की राशि अजमेर विद्युत वितरण निगम में जमा कवाई गई थी। खंबों के उपयोग से पहले निगम के साथ अनुबंध भी हुआ। ऐसे में निगम की फे्रंचाइजी टाटा पावर को केबल काटने का कोई अधिकार नहीं है। जियो की ओर से इस संबंध में पुलिस में एफआईआर भी दर्ज करवाई है। 
टाटा पावर का अपराधी कृत्य:
अजमेर विद्युत वितरण निगम के प्रबंध निदेशक बीएस भाटी ने जियो की केबल काटने को टाटा पावर का अपराधी कृत्य माना है। भाटी का कहना है कि निगम ने टाटा पावर को अपना सिस्टम उपयोग करने के लिए दिया है। निगम की सम्पत्तियों पर टाटा पावर मालिकाना हक नहीं जता सकता। जब जियो ने निगम में शुल्क जमा करा दिया है तो टाटा पावर को केबल काटने या उतारने का कोई अधिकारी नहीं है। यदि टाटा पावर को अपने हितों के लिए कोई शिकायत थी तो उसे निगम से संवाद करना चाहिए। टाटा पावर के कृत्य को लेकर उच्च स्तरीय विचर विमर्श हो रहा है। आवश्यकता होने पर कंपनी के खिलाफ जुर्माना निर्धारित किया जाएगा। भाटी ने माना कि टाटा पावर को मनमर्जी करने की छूट नहीं दी जा सकती है। 
प्रशासन और पुलिस से भी नहीं डरते:
चूंकि टाटा पावर निजी क्षेत्र की कंपनी है इसलिए उसे प्रशासनिक अधिकारियों को खुश करने के तौर तरीके आते हैं। कंपनी के एक अधिकारी को जिला एवं पुलिस प्रशासन के अफसरों के दफ्तरों तथा घर पर मिजाजपुर्सी करते देखा गया है। चूंकि बड़े अफसर खुश हैं, इसलिए टाटा पावर अजमेर शहर में दादागिरी पर उतर आई है। हिम्मत इतनी बढ़ गई है कि आपराधिक कृत्य करने से भी डर नहीं लगता है। चूंकि टाटा पावर के अधिकारी अब जिला स्तरीय स्तर पर सम्मानित भी होने लगे हैं। इसलिए प्रशासनिक अधिकारियों को अपनी जेब में समझते हैं। सवाल उठता है कि जो कंपनी पैसा वसूल कर बिजली दे रही है उसके अधिकारी कौन सी समाज सेवा कर रहे हैं? जब जियो जैसे संस्था की केबल काटी जा रही है तो आम बिजली उपभोक्ता के साथ सलूक का अंदाजा लगाया जा सकता है। बिजली उपभोक्ताओं की शिकायतों का निवारण नहीं हो रहा है। ओवर बिलिंग से आम उपभोक्ता परेशान है। 
एस.पी.मित्तल


'सीएम' शिंदे ने अपने पद से इस्तीफा दिया

'सीएम' शिंदे ने अपने पद से इस्तीफा दिया  कविता गर्ग  मुंबई। राजभवन पहुंचे मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने राज्यपाल सीपी राधा कृष्णन से मु...