सोमवार, 2 सितंबर 2019

लालू की दोनों किडनी डैमेज, गंभीर

दिल्ली। कभी देश की राजनीति को अपने इशारे से चलाने वाले लालू यादव आज बेहद लाचार हाल में जिंदगी बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं।


चारा घोटाले में 14 साल कैद की सजा पाने के बाद रांची स्थित रिम्स अस्पताल में लालू का इलाज किया जा रहा है। डाक्टरों का कहना है कि लालू की तबीयत हर रोज खराब होती जा रही है। उनकी दोनों किडनी संक्रमित हो गई हैं और सिर्फ बेहद मामूली सा हिस्सा काम कर रहा है। उसके साथ ही लालू को ब्लड प्रेशर और ब्लड शुगर के बढ़ने की वजह से कई दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।


दंपत्ति ने एक ही रस्सी से लगाई फांसी

कोरिया। जिले के लोटाबहरा गांव में पति-पत्नी की लाश एक ही रस्सी में लटकी मिली। बताया जा रहा है कि मृत दंपती के चार छोटे बच्चे हैं, जो उनकी मौत के बाद बेसहारा हो गए। मामला खड़गवां थाना क्षेत्र के अंतर्गत ग्राम लोटाबहरा की है। प्रथम दृष्टया आशंका जताई जा रही है कि दिकेश्वर ने अपनी पत्नी धर्मकुंवर ने एक ही रस्सी से फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। जानकारी के अनुसार पति पत्नी धार्मिक प्रवित्ति के थे। दोनों का पूजा पाठ में समय व्यतीत होता था। पति का लगाव धर्म की ओर ज्यादा था। दोनों के चार बच्चे थे। थाना प्रभारी आनंद सोनी ने बताया कि 'घटना की सूचना मिलने पर पुलिस मौके पर पहुंची और पंचनामा कर लाश को पोस्टमार्डम के लिये भेज दिया गया है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद खुलासा हो पायेगा।


9 सितंबर को मनेगी शहादत की रात

नई दिल्ली। इस्लामी कैलेंडर के अनुसार वर्ष 1441 का पहला माह मोहर्रम का पवित्र महीना रविवार से शुरू हो गाया है।इस लिहाज से आगामी 09 सितंबर को देश भर में शहादत की रात मनाई जाएगी। एक सितंबर से इमामबाड़ों, जमातखानों, दरगाहों में जलसे और मजलिसें शुरू की जाएगी, जबकि 10 सितंबर को ताजियों का जुलूस निकाला जाएगा। इनमें इस्लामी परचम, ताजिए, सवारियां, अखाड़े, अलम मुबारक आदि शामिल होंगे।


ममता की छत, मातृ स्नेह

जानवरों की संवेदनशीलता भरी कहानी
बारिश से बचाने के लिए छत बन गई मां

मां तो मां होती है। अपने बच्चों की तकलीफ भला वो कैसे सहन कर सकती है ।यह संवेदना मानव जाति तक ही सीमित नही है। जानवर भी अपने बच्चों की सुरक्षा में अपना सब कुछ न्यौछावर करने के लिए तैयार रहते है।


राष्‍ट्रीय बांधवगढ़ पार्क उमरिया में मां की ममता और संवेदना का एक सुखद नजारा देखने मे आया। अचानक तेज बारिश के दौरान एक दिन नेशनल पार्क के ताला गेट के पास स्थित हाथी कैंप में यह सुखद नजारा देखने को मिला जब बारिश बचाने के लिए हाथिनी मां ने अपने एक साल से भी कम उम्र के बच्चे को अपनी आगोश में छिपा लिया। उसने बच्चे को अपने विशाल शरीर के नीचे कुछ इस तरह से छिपाया कि वह उसके सिर पर छत की तरह हो गई। अपने बच्चे के प्रति हाथिनी के इस प्रेम भाव को जिसने भी देखा उसका ह्दय भाव विभोर हो गया।


'कैप्टन गोगो' के सामने नारकोटिक्स फैल

युवा वर्ग की नसों में दौड़ता हारमोंस उसे प्रयोगवादी बना देता है । वह हर क्षेत्र में नए-नए प्रयोग करना क्रांतिकारी समझने लगता है। नशा भी इसी का एक हिस्सा है। अधिकांश युवा प्रयोग के तौर पर नशे को ट्राई करते हैं और देखते ही देखते उसकी गिरफ्त में अपनी जिंदगी तबाह कर लेते हैं । इन दिनों दबे छुपे एक नशा तेजी से युवा वर्ग को अपनी आगोश में ले रहा है और वह है कैप्टन गोगो। वैसे तो कैप्टन गोगो खुद में एक नशा नहीं है लेकिन यह नशे का बड़ा जरिया जरूर बन चुका है।


कैप्टन गोगो का नाम शायद आपने पहली बार सुना होगा लेकिन युवा वर्ग के लिए यह जाना पहचाना नाम है। किसी जमाने में सुट्टा लगाने के लिए चिलम का प्रयोग किया जाता था। समझ लीजिए यह चिलम का नया स्वरूप है। जिस तरह डिस्पोजल ग्लास और प्लेट आ गए हैं उसी तरह का यह भी एक आइटम है, जिस तरह डिस्पोजल सिरिंज का प्रयोग एक बार किया जाता है उसी तरह कागज के इस चिलम का प्रयोग भी एक ही बार करते हैं। आज का युवा कैप्टन गोगा का इस्तेमाल भांग, चरस ,गांजा, अफीम को इसमें भरकर पीने में कर रहे हैं। किशोर वर्ग इस कैप्टन गोगो का सबसे बड़ा खरीदार है।


चोरी-छिपे पान दुकानों में इसे ग्राहकों को उपलब्ध कराया जा रहा है। कई ब्रांड के बारीक पेपर इसके लिए इस्तेमाल किए जाते हैं। दरअसल कैप्टन गोगो एक बहुत ही बारीक़ पारदर्शी कागज है, जिसका पैक बाजार में 10 से 15 रुपये में उपलब्ध है । पीले रंग की पैकिंग में बारीक कागजों की संख्या 2 या इससे अधिक होती है। जिसमें मोटे कागज की स्ट्रिप भी होती है। बारीक कागज को रोल करके भांग चरस स्मैक आदि नशीली पदार्थ को सिगरेट जैसा रूप देकर इसे सरेआम पिया जाता है । अगर आप कैप्टन गोगो से परिचित नहीं है तो आपको लगेगा कि सामने वाला सिगरेट पी रहा है, लेकिन उसका नशा सिगरेट से कहीं गुना अधिक खतरनाक होगा। मोटे कागज की स्ट्रिप को रोल बनाकर फिल्टर बनाया जाता है ।


बारीक और मोटे कागज दोनों के सिर पर लगी गोंद ईसे आसानी से चिपका देती है। बेहद आसानी से इन दिनों उपलब्ध कैप्टन गोगो का इस्तेमाल स्थानीय युवा धड़ल्ले से कर रहे हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि कैप्टन गोगो के इस्तेमाल में युवतियां भी पीछे नहीं है। खासकर कॉलेज गोइंग स्टूडेंट इसका धड़ल्ले से प्रयोग कर रही है। हुक्का बार कल्चर को इसकी जननी कह सकते हैं। नशे के नाम पर नई पीढ़ी धीरे-धीरे कैप्टन गोगो की गिरफ्त में फंसती जा रही है। नशेड़ीयों के लिए कैप्टन गोगो का नाम आज जाना पहचाना नाम है ।एक जमाने में जिस तरह लोग हैंड मेड सिगरेट बनाकर पिया करते थे, कुछ उसी तरह का प्रयोग नई पीढ़ी चरस गांजा , स्मैक जैसे नशे के लिए कर रहे हैं ।10 से 15 रु में मिलने वाले कैप्टन गोगो के कागज के चिलम का प्रयोग तेजी से बढ़ रहा है, जो चिंता का विषय है।


खतरनाक नशे के आदी पहले सिगरेट से तंबाकू निकालकर उसकी जगह नशीले पदार्थ मिलाकर पिया करते थे। लेकिन अब कैप्टन गोगो के आ जाने से उन्हें ऐसा करने की जरूरत नहीं पड़ती। कैप्टन गोगो खाली सिगरेट का विकल्प बन चुका है । छत्तीसगढ़ में भी यह नशा तेजी से पांव पसार रहा है । इस कारोबार में अच्छा-खासा मुनाफा होने की वजह से अधिकांश पान दुकान वाले इसे बेच रहे हैं। महज दो से ढाई रुपए में मिलने वाले कागज को आराम से 10 से 15 रु और कभी-कभी तो इससे भी अधिक में बेचा जाता है । नई शक्ल और आकर्षण की वजह से नई पीढ़ी इसकी लत में फंसती जा रही है । परेशानी की बात तो यह है कि कि यह सिर्फ एक कागज होता है। इसलिए इन पर कोई कानूनी कार्यवाही भी नहीं की जा सकती। असली बुराई तो उन नशीले पदार्थों में है जिन्हें कैप्टन गोगो में भरकर पिया जाता है और इन दिनों बिलासपुर और मुंगेली में भी यह नशीली सामग्रियां आसानी से मिल रही है। क्षेत्र में अधिकांश गांजे की आपूर्ति उड़ीसा से होती है तो वही मुंगेली क्षेत्र में भी बड़े पैमाने पर गांजे की खेती की जाती है और छोटी छोटी पुडियो की शक्ल में इन्हें बेचा जाता है। कारोबार छोटा होने की वजह से पुलिस भी इस पर खास ध्यान नहीं देती और यही कोताही नई पीढ़ी को नशे के गर्त में धकेल रही है। सरेआम कॉलेज परिसर में नशाखोरी हो रही है और बिना किसी शोर-शराबे के इसकी बिक्री जारी है। अधिकांश कॉलेज के शिक्षकों और प्रबंधकों को इसकी जानकारी तक नहीं है। केवल नई पीढ़ी इससे वाकिफ है। इसमें सफेद या भूरे या किसी और रंग का एक महीन कागज होता है । जिसके अंदरूनी सिरे पर गोंद की परत लगी रहती है । इस हिस्से को लेमिनेशन कर देते हैं ,साथ में मोटे कागज का टुकड़ा भी दिया जाता है। पतले कागज को रोल कर नीचे मोटा कागज जोड़ दिया जाता है। इसमें पहले से मौजूद गोंद की वजह से दोनों हिस्से आपस में चिपक जाते हैं। नीचे वाला मोटा कागज फिल्टर और धुआं खींचने की चुल्ली की तरह काम करता है जबकि ऊपर का हिस्सा खाली सिगरेट की तरह। कैप्टन गोगो की बिक्री कॉलेज, कोचिंग सेंटर, डिस्को थिक और थीम पार्टियों वाले क्षेत्रों में की जा रही है। इसका अच्छा खासा बाजार खड़ा हो चुका है। घर वाले भी जब इसे देखते हैं तो आम तौर पर पहचान नहीं पाते। मुश्किल यह है कि अब लड़कियां भी यह नशा करने लगी है । चूँकि नारकोटिक्स विभाग नशीले पदार्थों के खिलाफ कार्यवाही करता है इसलिए सिर्फ कागज बेचे जाने पर उसके भी हाथ बंध जाते हैं । ऐसे में अभिभावकों की जिम्मेदारी अहम हो जाती है । उन्हें अपने बच्चों पर खास निगाह रखनी होगी । अगर बच्चा गुमसुम है और अधिक बातें नहीं करता तो फिर माता-पिता को अलर्ट होने की जरूरत है। अगर बच्चे के पास इसी तरह का कागज नजर आए तो भी सावधान होना पड़ेगा। खतरे को दूर भगाने के लिए उसकी आहट ही काफी है। जिसे समझ कर अभिभावकों को संघर्ष करना होगा। वही नई पीढ़ी को भी समझना होगा कि क्षणिक आनंद के लिए किया जा रहा नशा, जीवन में अभिशाप बन सकता है। याद रखिए, कैप्टन गोगो नाम जितना मजेदार है उसके नतीजे उतने ही खतरनाक है।


आज मिलेगी स्विस खाताधारको की सूची

नई दिल्ली। पिछले पाँच सालों में मोदी सरकार ने ब्‍लैकमनी पर नकेल कसने के लिये नोटबंदी और बेनामी प्रॉपर्टी से जुड़े कई अहम फैसले लिये हैं। अब सरकार के दूसरे कार्यकाल में ब्‍लैकमनी को लेकर जो खबर आई है वो थोड़ी राहत देने वाली है। स्विस बैंकों में किन भारतीयों के बैंक खाते हैं इस बात से आज पर्दा उठने वाला है। स्विट्जरलैंड में बैंक खाते रखने वाले भारतीय नागरिकों की जानकारी आज से टैक्स अधिकारियों के पास उपलब्ध हो जायेगी। इस कदम को लेकर केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) ने कहा, 'काले धन के खिलाफ सरकार की लड़ाई में एक महत्वपूर्ण कदम है और स्विस बैंकों के गोपनीयता का युग आखिरकार अब खत्म हो जायेगा। ' सीबीडीटी आयकर विभाग के लिये नीति बनाता है वहीं सीबीडीटी ने बताया कि भारत को स्विट्जरलैंड में भारतीय नागरिकों के साल 2018 में बंद किये खातों की जानकारी भी मिलेगी।
सीबीडीटी का कहना है कि सूचना आदान-प्रदान की यह व्यवस्था शुरू होने के ठीक पहले भारत आये स्विट्जरलैंड के एक प्रतिनिधिमंडल ने राजस्व सचिव एबी पांडेय, बोर्ड के चेयरमैन पीसी मोदी और बोर्ड के सदस्य (विधायी) अखिलेश रंजन के साथ बैठक की। 29-30 अगस्त के बीच आये इस प्रतिनिधिमंडल की अगुआई स्विट्जरलैंड के अंतरराष्ट्रीय वित्त मामलों के राज्य सचिवालय में कर विभाग में उप प्रमुख निकोलस मारियो ने की।


कितना है काला धन?


इस साल लोकसभा में जून महीने में वित्त पर स्टैंडिंग कमिटी की एक रिपोर्ट पेश की गयी थी। इसके मुताबिक साल 1980 से साल 2010 के बीच 30 साल के दौरान भारतीयों के जरिये लगभग 246.48 अरब डॉलर यानी 17,25,300 करोड़ रुपये से लेकर 490 अरब डॉलर यानी 34,30,000 करोड़ रुपये के बीच काला धन देश के बाहर भेजा गया।


छोटी उम्र से मिट्टी गढ़कर देता है 'आकार'

5 वर्ष की उम्र से अभिषेक अपने हाथों से मिट्टी को गढ़कर देवताओं की प्रतिमा को दे रहा स्वरूप


कोरबा-पाली। कला एक ऐसा ज्ञान है जो किसी उम्र की मोहताज नही होती।ना ही इसमें कोई बंधन सीमा होता है।बस उसे सीखने का लगन मन में होना चाहिए।जिस 5 वर्ष की आयु में बच्चे उछलकूद में व्यक्त रहते है।उसी बालपन में अभिषेक अपने हाथों से मिटटी को गढ़ना प्रारंभ किया।और तब से आज तक उसी मिट्टी से विभिन्न देवताओं की प्रतिमा गढ़ उसे रूप प्रदान करते आ रहा है। 


पाली नगर पंचायत के वार्ड क्रमांक-03 का निवासी अभिषेक प्रजापति महज 5 वर्ष की उम्र से ही विभिन्न देवी-देवताओं की प्रतिमा को गढ़कर उन्हें आकार देता आ रहा है।10 वी तक की पढ़ाई कर स्कूल छोड़ चुके 22 वर्षीय अभिषेक के साथ उसकी माँ व एक छोटा भाई है।भाई के पढ़ाई लिखाई के साथ सभी के पेट पालने की जिम्मेदारी भी अभिषेक के कंधों पर ही है।आज गणेश चतुर्थी है।और आज से 10 दिन तक हर गली मोहल्लों में गणपति बप्पा की धूम रहेगी।हर भक्तों के पास विघ्नहर्ता की प्रतिमा पहुँच सके इसके लिए अभिषेक ने छोटे बड़े सहित विभिन्न मुद्राओं में गणेश जी की प्रतिमा तैयार किया है।अपने घर पर एक गणेश प्रतिमा को आकृति दे रहे अभिषेक को देखकर सहसा मेरा वाहन पर ब्रेक लग गया और जिज्ञासावश उसके पास जाकर उसके हुनर के बारे पर जब जानने का प्रयास किया तब अभिषेक ने बताया कि उसके नाना स्वर्गीय पुनाराम प्रजापति मूर्ति बनाने का काम किया करते थे।जिसे देखकर मुझमे भी मूर्ति बनाने की ललक बढ़ी और 5 वर्ष की उम्र से नाना के साथ मिलकर मूर्ति बनाने का काम प्रारंभ किया।साथ ही पढ़ाई भी जारी रखा।लेकिन आर्थिक स्थिति ठीक ना होने के कारण 10 वी के बाद स्कूल जाना बंद हो गया और पढ़ाई छूट गई।इस प्रकार आज लगभग 15 वर्ष से गणेश,दुर्गा,विश्वकर्मा सहित अन्य देवी-देवताओं की छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी प्रतिमा तैयार कर बेचने का काम करता हूँ।साथ ही अन्य भी काम करके घर का खर्च चला रहा हूँ।कहने को तो आज के परिवेश में 20 से 22 वर्ष की उम्र में अधिकतर युवावर्ग काम करने की शुरुआत करते है।लेकिन अभिषेक द्वारा इसी उम्र में घर चलाने का पहिया अपने हाथों थामकर रखना प्रेरणादायी है।अभिषेक द्वारा बनाए गए मूर्तियों को लोग काफी पसंद करते है।जिसके कारण इसके हाथों की बनाई गई मूर्तियों की मांग भी ज्यादा रहती है।गणेशोत्सव समाप्त होने पश्चात विश्वकर्मा जयंती जिसके बाद नवरात्रि का पर्व प्रारंभ होने को है।ऐसे में अभिषेक गणेश के बाद अब विश्वकर्मा और दुर्गा प्रतिमा बनाने में जुट जाएगा।


रिपोर्टर- कमल महंत


'सीएम' शिंदे ने अपने पद से इस्तीफा दिया

'सीएम' शिंदे ने अपने पद से इस्तीफा दिया  कविता गर्ग  मुंबई। राजभवन पहुंचे मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने राज्यपाल सीपी राधा कृष्णन से मु...