इतने बेताब, इतने बेक़रार क्यूं हैं?
लोग जरूरत से होशियार क्यूं हैं?
मुँह पे तो सभी दोस्त हैं लेकिन
पीठ पीछे दुश्मन हज़ार क्यूं हैं?
हर चेहरे पर एक मुखोटा हैं यारो
बेवजह,ज़हर में डूबे किरदार क्यूं हैं?
सब काट रहे हैं लोग एक दूजे को,
साकी, सभी दोधारी तलवार क्यूं हैं?
सब को, सबकी, हर ख़बर चाहिए,
रियाज़,चलते-फिरते अखबार क्यूं हैं?
मनोज श्रीवास्तव