यम नचिकेता वार्ता
गतांक से.....
वह नौदामई मंत्रों के ऊपर विचार-विनिमय करने लगे। वह वेद मंत्र कह रहा था 'विप्रजाम भविते ब्राह्म लोको वस्तुतः ब्रह्मचर्यष्यामी गतोवाचम् भवी' उन्होंने नौदा में से एक वेद मंत्र का उच्चारण करके अपने में चिंतन करने लगे और विचारने लगे कि वेद मंत्र यह कहता है। गृह आश्रम में एक ब्रह्मचारी ब्रह्मावेता ब्रह्म की जिज्ञासा वाला अन्य जल पीड़ित रह जाए, तो मानव कि वह मूल्यवान उस ग्रह के गुणों को ले जाता है और अपने पाप कर्मों को त्याग देता है। यह पाप कर्म है मेरा ग्रह तो अशुद्ध होने जा रहा है। मैं व्याकुल हो गई प्रभु से याचना करने लगी। हे प्रभु, मृत्यु को मेरे समीप ला दीजिए। मेरा ग्रह पुण्यवान बना रहे, उज्जवल बना रहे। वह पत्नी प्रातः कालीन अग्निहोत्र करती तो अग्नि के समीप कहती है। अग्नि तू संसार को अपने में ही धारण कर लेती है ।हे अग्नि ,तू तेजोमयी है। हे अग्नि, उद्धारक है। हे अग्नि, तू पतितपावन है। साकल्य अपने में लेकर के तू देवताओं का दूत बन जाती है। देवताओं के समीप निहित हो जाती है। तुम मेरे मानव में भी अंतर आत्मा की वाणी को स्वीकार कर। मंत्रों का उच्चारण कर रही है। देवताओं का आह्वान हो रहा है। परंतु देखो 3रात्रि हो गई, 3 रात्रि वह यही प्रार्थना करती रही। हे प्रभु, जब तीसरा दिवस आया तो प्रातः कालीन यम आचार्य मृत्यु आचार्य अपने गृह में उन्होंने वास किया। दृष्टिपात करते पद से व्याकुल हो गए और यह कहा हे प्रभु हमारे द्वार पर एक ब्रह्मवेता ब्रह्मचारी विद्यमान है और वह अंजल से पीड़ित है। तीन रात्रि और तीन दिवस हो गई। परंतु उसने कोई अन जलपान नहीं किया है। तो भगवन उसे किसी प्रकार अंजल का पान कराइए। जिससे हम पुण्य वान बने रहे। हमारा गृह गुणवान बना रहे। उन्होंने कहा बहुत देवी पर्यत्नशील हूं उन्होंने कहा प्रभु आप क्या करेंगे। इसमें उन्होंने कहा कि उसकी इच्छा होगी ब्रह्मचारी कि मैं उन्हें प्रदान करूंगा उनकी इच्छा पूर्ण करना ही मेरा धर्म है। वह पत्नी के उद्गार श्रवण करके ही आचार्य बालक नचिकेता के द्वार पर पहुंचे। नचिकेता ऋषि के चरणों में स्पर्श किया। वंदना की। आचार्य ने कहा हे बालक, हे ब्रह्मचारी, मैं तुम्हें तीन वर देता हूं और 3 वरों में भी तुम्हारी जो इच्छा हो वह स्वीकार करो। उन्होंने कहा बहुत प्रिय भगवान उन्होंने कहा मैं सबसे उत्तम उस वर्ग को चाहता हूं। जिससे मेरे पिता ने सर्वत्र द्रव्य देवताओं को भूत कर दिया। वह मेरे पिता की अभिलाषा पूर्ण हो। क्योंकि उन्होंने नाना प्रकार याग किया और याग करके उन्होंने मुझे भी मृत्यु को प्रदान कर दिया। वह त्याग और तपस्या में पुनीत होकर ममता को त्याग करके, द्रव्य को त्याग करके, मोक्ष की पगडंडी को ग्रहण का करना चाहते थे। वह मोक्ष में प्रवेश करना चाहते थे। हे प्रभु, हे आचार्यजन, वह मेरे पिता की इच्छा पूर्ण हो। क्योंकि मैं ब्रह्मचारी उद्दालक को प्रिय हूं और उद्धारक गोत्र में पित्र भक्ति महान रही है । क्योंकि यदि मानव पित्रभक्त होता है। अपने पिता की आज्ञा का पालन करता है। महान बना रहता है। वेद का मंत्र और नौदा मई उच्चारण कर रही है कि हमें पितरों का भक्त बन जाना चाहिए। बालक नचिकेता कहता है कि पित्र हमारे यहां सर्वप्रथम पिता है, माता है, आचार्य है। यह हमारे चेतन्य देवता कहलाते हैं ।चैतन्य पुत्र कहलाते हैं। पितरों का अभिप्राय यह है जो अपने ब्रह्मचारी को अपने गृह में स्त्रियों में रत रहने वाले उसको महान दृष्टिपात करना चाहिए। कि वे ब्रह्मचारी महान बने और उनका नामकरण उधरवा में प्रिय हो गतिशील बन जाए। उनके विचारों में यह विशेषता रहती है।