बुधवार, 14 अगस्त 2019

जापान मे लू ने ली 23 लोगों की जान

टोक्यो। जापान में भीषण गर्मी और लू के प्रकोप से पिछले एक सप्ताह के भीतर कम से कम 23 लोगों की जानें जा चुकी है और 12,000 से अधिक लोगों को अस्पताल में भर्ती कराया गया है। अग्निशमन विभाग ने बुधवार को यह जानकारी दी। विभाग ने पांच से 11 अगस्त की अवधि में संग्रहित डाटा जारी किया है। डाटा के मुताबिक मृतकों में ज्यादातर लोग राजधानी टोक्यो से हैं , जहां गर्मी और लू से प्रभावित करीब 1460 लोगों का अस्पताल में उपचार चल रहा है। देश के कुछ इलाकों में तापमान 102 डिग्री फारेनहाइट से अधिक चल रहा है। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि तापमान की यह अधिकता कम से कम दो सप्ताह और बना रह सकता है।


प्रिय व्यक्ति का साथ मिलेगा:वृश्चिक

राशिफल


मेष: मेष राशि वालों के लिए धन प्राप्ति का योग बना हुआ है। निवेश से लाभ मिलेगा। निकट संबंधियों से मेल मुलाकात हो सकती है। कार्यक्षेत्र में परिवर्तन के योग हैं। कारोबार से संबंधित यात्रा मंगलमय रहेगी। आर्थिक योजनाएं सफल होंगी। शुभ समाचार मिलेगा। 
वृषभ: आज भाग्य आपका साथ देगा। बीते दिनों में जिन लाभों से आप वंचित रह गए हैं, उन्हें पाने का प्रयास सफल होगा। मंदिर या किसी धर्मिक स्थल की यात्रा कर सकते हैं। भाई-बहनों से लाभ होगा। शारीरिक और मानसिक रूप से आप आनंद का अनुभव करेंगे। 
मिथुन: आज शत्रुओं द्वारा रचे जा रहे षड्यंत्र से सावधान रहने की आवश्यकता है। आज का दिन संयम पूर्वक बिताना होगा। हो सके तो आज कोई नई डील ना करें। महत्वपूर्ण निर्णयों को आज टाल देना बेहतर होगा। पारिवारिक जीवन में ताल-मेल की कमी हो सकती है। आज अपनी चीजों को संभालकर रखें, गुम होने की आशंका है। भाग्य 48%साथ देगा।


कर्क : आज का दिन मंगलमय बीतेगा। जीवनसाथी और निकट संबंधियों से सहयोग मिलेगा। नकारात्मक विचारों से बचें। क्रोध और वाणी पर नियंत्रण रखें, अन्यथा हानि हो सकती है। विदेश में स्थित संबंधियों के समाचार से मन प्रफुल्लित होगा। 
सिंह: आज का दिन उत्साहवर्धक है, हर क्षेत्र में भाग्य का पूरा साथ मिलेगा। अगर कहीं पैसा फंसा है तो आज मिल सकता है। कहीं से शुभ सूचना मिल सकती है। मित्रों या संबंधियों से उपहार मिलने का भी योग है। कार्यक्षेत्र में अनुकूलता से प्रगति होगी। 
कन्या: किसी प्रिय व्यक्ति से मुलाकात होगी। रुचिकर भोजन मिल सकता है। दोस्तों से संग कहीं बाहर खान-पान का भी संयोग बना सकता है। कार्यक्षेत्र में सहकर्मियों से पूरा सहयोग मिलेगा। रात तक घर में किसी मेहमान का आगमन हो सकता है। दिन आनंद-उत्साह में बीतेगा। 
तुला: सावधान रहकर कार्य करने का दिन है। अपनी कार्य योजना को गुप्त रखें नहीं तो नुकसान हो सकता है। व्यर्थ के तर्क-वितर्क से दूर रहें। यात्रा हो सके तो आज टालें, वाहन धीमी गति से चलाएं। माता के साथ मनमुटाव न हो, ध्यान रखें। 


वृश्चिक: किस्मत के भरोसे ना बैठें। मेहनत से सफलता प्राप्ति के योग बन रहे हैं। जिन क्षेत्रों में प्रयास करेंगे उनमें पूरा लाभ मिलेगा। खरीदारी में धन खर्च होगा। प्रिय व्यक्ति का साथ मिलेगा। शेयर और लंबी अवधि के निवेश कर सकते हैं। 


धनु: सितारे आज अनुकूल नहीं हैं इसलिए संयम और समझदारी से काम लें। आर्थिक मामलों में किसी प्रकार का जोखिम लेने से बचें। शेयर और दूसरे निवेश के मामलों से आज दूर रहना ही फायदेमंद रहेगा। खान-पान का ध्यान रखें, किसी बात से तनाव रहेगा। 
मकर: लंबे समय से रुके हुए कार्य आज पूर्ण होंगे। नौकरी के लिए प्रयास करने वालों को आज सफलता मिल सकती है। शिक्षा के क्षेत्र में प्रदर्शन बेहतर होगा। नया कारोबार शुरू करने के लिए आज शुभ दिन है। उच्च पदाधिकारी आपके कार्य से प्रसन्न होंगे। 
कुंभ: अनावश्यक खर्च मानसिक तनाव दे सकता है। आपसे ईर्ष्या करने वाले आज आपको प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर सकते हैं। सुनी-सुनाई बातों पर विश्वास न करें। नए वस्त्र और आभूषणों के पीछे धन व्यय होगा।
मीन: आज बेहद शुभ दिन है। आपके सभी कार्य तीव्र गति पकड़ेंगे। मनचाही मुराद पूरी होगी। दांपत्य जीवन में निकटता और मधुरता आएगी। विरोधियों का पक्ष कमजोर होगा। समाज में ख्याति मिलेगी। कार्यक्षेत्र में सहकर्मियों से सहयोग मिलेगा।


दुख-सुख का जन्मदाता 'विवेक'

मनुष्य के लिए विवेक का उपयोग विशेष और मुख्य है।जो व्यवहार और परमार्थ में, लोक और परलोक में सब जगह काम आता है। परन्तु जो मनुष्य देह के उपयोग को विवेक अनुसार समझ सके, उसके लिए भगवान स्वधर्म पालन की बात कहते हैं। जिससे वह कोरा वाचक ज्ञानी न बनकर वास्तविक तत्व का अनुभव कर सके। संसार में व्यवहार अलग-अलग होते हुए, विवेकी मनुष्य के लिए परमात्मा एक ही है।  सभी का संसार इक व्यवहार भिन्न-भिन्न हो सकता है। यस विवेक से ही निर्धारित होता है कि दूध गाय का पिएंगे या गधी का पिएंगे? सवारी हाथी की करेंगे कि कुत्ते की करेंगे? तो ज्ञान में एकता होती है, पर व्यवहार में भिन्नता होती है। माता है, बहन है सबसे अलग अलग व्यवहार है, व्यवहार की विभिन्न प्रकृति में होती है। एक समान व्यवहारिकता के चलते अब तक प्रलय हो जाता है। जिनका मन सौम्यावस्था में स्थिर हो गया वो संसार को जीत गए । सबमें परमात्मा ही देखें। अतः अतं-करण में विकार, जन्म-मरण देने वाला है । समता से परमात्मा में स्थिति हो जाती है। बर्ताव ठीक तरह से यथा योग्य हो, यही उपदेश गीता का सिद्धांत है। सेवा सबकी करनी है, भीतर राग द्वेष न हो। सर्व भूत हिते रता:। तो ज्ञानी की दृष्टि परमात्मा की तरफ रहती है। सम सुख दुःख स्वस्थ: । सबका हित करो, अपना स्वार्थ त्याग कर । संसार को परमात्मा का स्वरूप कहा है, और संसार को दुखालय भी कहा है। दोनों विरुद्ध बात है । तो जो लेना चाहता है उसके लिए दुखालय है, और जो सेवा करता है तो परमात्मा का स्वरूप है।


सनातनी संदीप गुप्ता


जिनके खूं से जलते हैं ये चिरागे वतन

देश को अंग्रेजी हुकूमत से मुक्त कराने के लिए सशस्त्र विद्रोह की एक अखण्ड परम्परा रही है। अंग्रेज़ी राज्य की स्थापना के साथ ही सशस्त्र विद्रोह का आरम्भ हो गया था। बंगाल में सैनिक-विद्रोह, चूआड़ विद्रोह, सन्यासी विद्रोह, संथाल विद्रोह अनेक सशस्त्र विद्रोहों की परिणति सत्तावन के विद्रोह के रूप में हुई। प्रथम स्वातन्त्र्य–संघर्ष के असफल हो जाने पर भी विद्रोह की अग्नि ठण्डी नहीं हुई। शीघ्र ही दस-पन्द्रह वर्षों के बाद पंजाब में कूका विद्रोह व महाराष्ट्र में वासुदेव बलवन्त फड़के के छापामार युद्ध शुरू हो गए। संयुक्त प्रान्त में पं॰ गेंदालाल दीक्षित ने शिवाजी समिति और मातृदेवी नामक संस्था की स्थापना की। बंगाल में क्रान्ति की अग्नि सतत जलती रही। सरदार अजीतसिंह ने सत्तावन के स्वतंत्रता–आन्दोलन की पुनरावृत्ति के प्रयत्न शुरू कर दिए। रासबिहारी बोस और शचीन्द्रनाथ सान्याल ने बंगाल, बिहार, दिल्ली, राजपूताना, संयुक्त प्रान्त व पंजाब से लेकर पेशावर तक की सभी छावनियों में प्रवेश कर 1915 में पुनः विद्रोह की सारी तैयारी कर ली थी। दुर्दैव से यह प्रयत्न भी असफल हो गया। इसके भी नए-नए क्रान्तिकारी उभरते रहे। राजा महेन्द्र प्रताप और उनके साथियों ने तो अफगान प्रदेश में अस्थायी व समान्तर सरकार स्थापित कर ली। सैन्य संगठन कर ब्रिटिश भारत से युद्ध भी किया। रासबिहारी बोस ने जापान में आज़ाद हिन्द फौज के लिए अनुकूल भूमिका बनाई।


मलाया व सिगांपुर में आज़ाद हिन्द फौज संगठित हुई। सुभाषचन्द बोस ने इसी कार्य को आगे बढ़ाया। उन्होंने भारतभूमि पर अपना झण्डा गाड़ा। आज़ाद हिन्द फौज का भारत में भव्य स्वागत हुआ, उसने भारत की ब्रिटिश फौज की आँखें खोल दीं। भारतीयों का नाविक विद्रोह तो ब्रिटिश शासन पर अन्तिम प्रहार था। अंग्रेज़, मुट्ठी-भर गोरे सैनिकों के बल पर नहीं, बल्कि भारतीयों की फौज के बल पर शासन कर रहे थे। आरम्भिक सशस्त्र विद्रोह में क्रान्तिकारियों को भारतीय जनता की सहानुभूति प्राप्त नहीं थी। वे अपने संगठन व कार्यक्रम गुप्त रखते थे। अंग्रेज़ी शासन द्वारा शोषित जनता में उनका प्रचार नहीं था। अंग्रेजों के क्रूर व अत्याचारपूर्ण अमानवीय व्यवहारों से ही उन्हें इनके विषय में जानकारी मिली। विशेषतः काकोरी काण्ड के अभियुक्त तथा भगतसिंह और उसके साथियों ने जनता का प्रेम व सहानुभूति अर्जित की। भगतसिंह ने अपना बलिदान क्रांति के उद्देश्य के प्रचार के लिए ही किया था। जनता में जागृति लाने का कार्य महात्मा गांधी के चुम्बकीय व्यक्तित्व ने किया। बंगाल की सुप्रसिद्ध क्रांतिकारी श्रीमती कमला दास गुप्ता ने कहा कि क्रांतिकारी की निधि थी 'कम व्यक्ति अधिकतम बलिदान', महात्मा गांधी की निधि थी 'अधिकतम व्यक्ति न्यूनतम बलिदान'। सन् 42 के बाद उन्होंने अधिकतम व्यक्ति तथा अधिकतम बलिदान का मंत्र दिया। भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति में क्रांतिकारियों की भूमिका महत्त्वपूर्ण है।


भारतीय क्रांतिकारियों के कार्य सिरफिरे युवकों के अनियोजित कार्य नहीं थे। भारतामाता के परों में बंधी शृंखला तोड़ने के लिए सतत संघर्ष करने वाले देशभक्तों की एक अखण्ड परम्परा थी। देश की रक्षा के लिए कर्तव्य समझकर उन्होंने शस्त्र उठाए थे। क्रान्तिकारियों का उद्देश्य अंग्रेजों का रक्त बहाना नहीं था। वे तो अपने देश का सम्मान लौटाना चाहते थे। अनेक क्रान्तिकारियों के हृदय में क्रांति की ज्वाला थी, तो दूसरी ओर अध्यात्म का आकर्षण भी। हंसते हुए फाँसी के फंदे का चुम्बन करने वाले व मातृभूमि के लिए सरफरोशी की तमन्ना रखने वाले ये देशभक्त युवक भावुक ही नहीं, विचारवान भी थे। शोषणरहित समाजवादी प्रजातंत्र चाहते थे। उन्होंने देश के संविधान की रचना भी की थी। सम्भवतः देश को स्वतंत्रता यदि सशस्त्र क्रांति के द्वारा मिली होती तो भारत का विभाजन नहीं हुआ होता, क्योंकि सत्ता उन हाथों में न आई होती, जिनके कारण देश में अनेक भीषण समस्याएँ उत्पन्न हुई हैं।


जिन शहीदों के प्रयत्नों व त्याग से हमें स्वतंत्रता मिली, उन्हें उचित सम्मान नहीं मिला। अनेकों को स्वतंत्रता के बाद भी गुमनामी का अपमानजनक जीवन जीना पड़ा। ये शब्द उन्हीं पर लागू होते हैं:


उनकी तुरबत पर नहीं है एक भी दीया,
जिनके खूँ से जलते हैं ये चिरागे वतन।
जगमगा रहे हैं मकबरे उनके,
बेचा करते थे जो शहीदों के कफन।।
नाविक विद्रोह के सैनिकों को स्वतंत्र भारत की सेना में महत्वपूर्ण कार्य देना न्यायोचित होता, परन्तु नौकरशाहों ने उन्हें सेना में रखना शासकीय नियमों का उल्लंघन समझा। अनेक क्रांतिकारियों की अस्थियाँ विदेशों में हैं। अनेक क्रांतिकारियों के घर भग्नावशेष हैं। उनके घरों के स्थान पर आलीशान होटल बन गए हैं। क्रांतिकारियों की बची हुई पीढ़ी भी समाप्त हो गई है। निराशा में आशा की किरण यही है कि सामान्य जनता में उनके प्रति सम्मान की थोड़ी-बहुत भावना अभी भी शेष है। उस आगामी पीढ़ी तक इनकी गाथाएँ पहुँचाना हमारा दायित्व है। क्रान्तिकारियों पर लिखने के कुछ प्रयत्न हुए हैं। शचीन्द्रनाथ सान्याल, शिव वर्मा, मन्मथनाथ गुप्त व रामकृष्ण खत्री आदि ने पुस्तकें लिखकर हमें जानकारी देने का महत्त्वपूर्ण कार्य किया है। इतर लेखकों ने भी इस दिशा में कार्य किया है।



स्नेह और समर्पण का बंधन-रक्षाबंधन

रक्षाबन्धन एक हिन्दू व जैन त्योहार है जो प्रतिवर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। श्रावण (सावन) में मनाये जाने के कारण इसे श्रावणी (सावनी) या सलूनो भी कहते हैं।रक्षाबन्धन में राखी या रक्षासूत्र का सबसे अधिक महत्त्व है। राखी कच्चे सूत जैसे सस्ती वस्तु से लेकर रंगीन कलावे, रेशमी धागे, तथा सोने या चाँदी जैसी मँहगी वस्तु तक की हो सकती है। रक्षाबंधन भाई बहन के रिश्ते का प्रसिद्ध त्योहार है, रक्षा का मतलब सुरक्षा और बंधन का मतलब बाध्य है।रक्षाबंधन के दिन बहने भगवान से अपने भाईयों की तरक्की के लिए भगवान से प्रार्थना करती है। राखी सामान्यतः बहनें भाई को ही बाँधती हैं परन्तु ब्राह्मणों, गुरुओं और परिवार में छोटी लड़कियों द्वारा सम्मानित सम्बंधियों (जैसे पुत्री द्वारा पिता को) भी बाँधी जाती है। कभी-कभी सार्वजनिक रूप से किसी नेता या प्रतिष्ठित व्यक्ति को भी राखी बाँधी जाती है। रक्षाबंधन के दिन बाजार मे कई सारे उपहार बिकते है, उपहार और नए कपड़े खरीदने के लिए बाज़ार मे लोगों की सुबह से शाम तक भीड होती है। घर मे मेहमानों का आना जाना रहता है। रक्षाबंधन के दिन भाई अपने बहन को राखी के बदले कुछ उपहार देते है। रक्षाबंधन एक ऐसा त्योहार है जो भाई बहन के प्यार को और मजबूत बनाता है, इस त्योहार के दिन सभी परिवार एक हो जाते है और राखी, उपहार और मिठाई देकर अपना प्यार साझा करते है।


राखियाँ, जिन्हें रक्षाबन्धन के अवसर पर 
बहनें भाइयों के हाथ में बाँधती हैं।
आधिकारिक नाम-रक्षाबन्धन
अन्य नाम-राखी, सलूनो, श्रावणी
अनुयायी-हिंदू धर्म व जैन धर्म
उद्देश्य-भ्रातृभावना और सहयोग
उत्सव-राखी बाँधना, उपहार, भोज
अनुष्ठान-पूजा, प्रसाद
आरम्भ-पौराणिक काल से
तिथि-श्रावण पूर्णिमा
समान पर्व-भैया दूज
अब तो प्रकृति संरक्षण हेतु वृक्षों को राखी बाँधने की परम्परा भी प्रारम्भ हो गयी है। हिन्दुस्तान में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पुरुष सदस्य परस्पर भाईचारे के लिये एक दूसरे को भगवा रंग की राखी बाँधते हैं। हिन्दू धर्म के सभी धार्मिक अनुष्ठानों में रक्षासूत्र बाँधते समय कर्मकाण्डी पण्डित या आचार्य संस्कृत में एक श्लोक का उच्चारण करते हैं, जिसमें रक्षाबन्धन का सम्बन्ध राजा बलि से स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है। भविष्यपुराण के अनुसार इन्द्राणी द्वारा निर्मित रक्षासूत्र को देवगुरु बृहस्पति ने इन्द्र के हाथों बांधते हुए निम्नलिखित स्वस्तिवाचन किया (यह श्लोक रक्षाबन्धन का अभीष्ट मन्त्र है)-


येन बद्धो बलिराजा दानवेन्द्रो महाबल:।
तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल ॥
इस श्लोक का हिन्दी भावार्थ है- "जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बाँधा गया था, उसी सूत्र से मैं तुझे बाँधता हूँ। हे रक्षे (राखी)! तुम अडिग रहना (तू अपने संकल्प से कभी भी विचलित न हो।)


स्वतंत्रता का ऐतिहासिक संस्मरण

यूरोपिय व्यापारियों ने 17वीं सदी से ही भारतीय उपमहाद्वीप में पैर जमाना आरम्भ कर दिया था। अपनी सैन्य शक्ति में बढ़ोतरी करते हुए ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने 18वीं सदी के अन्त तक स्थानीय राज्यों को अपने वशीभूत करके अपने आप को स्थापित कर लिया था। 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के बाद भारत सरकार अधिनियम 1858 के अनुसार भारत पर सीधा आधिपत्य ब्रितानी ताज (ब्रिटिश क्राउन) अर्थात ब्रिटेन की राजशाही का हो गया। दशकों बाद नागरिक समाज ने धीरे-धीरे अपना विकास किया और इसके परिणामस्वरूप 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आई० एन० सी०) निर्माण हुआ। प्रथम विश्वयुद्ध के बाद का समय ब्रितानी सुधारों के काल के रूप में जाना जाता है जिसमें मोंटेगू-चेम्सफोर्ड सुधार गिना जाता है लेकिन इसे भी रोलेट एक्ट की तरह दबाने वाले अधिनियम के रूप में देखा जाता है जिसके कारण स्वरुप भारतीय समाज सुधारकों द्वारा स्वशासन का आवाहन किया गया। इसके परिणामस्वरूप महात्मा गांधी के नेतृत्व में असहयोग और सविनय अवज्ञा आंदोलनों तथा राष्ट्रव्यापी अहिंसक आंदोलनों की शुरूआत हो गयी।1930 के दशक के दौरान ब्रितानी कानूनों में धीरे-धीरे सुधार जारी रहे; परिणामी चुनावों में कांग्रेस ने जीत दर्ज की। अगला दशक काफी राजनीतिक उथल पुथल वाला रहा: द्वितीय विश्व युद्ध में भारत की सहभागिता, कांग्रेस द्वारा असहयोग का अन्तिम फैसला और अखिल भारतीय मुस्लिम लीग द्वारा मुस्लिम राष्ट्रवाद का उदय। 1947 में स्वतंत्रता के समय तक राजनीतिक तनाव बढ़ता गया। इस उपमहाद्वीप के आनन्दोत्सव का अंत भारत और पाकिस्तान के विभाजन के रूप में हुआ।


स्वतंत्रता से पहले स्वतंत्रता दिवस 
1929 लाहौर सत्र में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज घोषणा की और 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस के रूप में घोषित किया। कांग्रेस ने भारत के लोगों से सविनय अवज्ञा करने के लिए स्वयं प्रतिज्ञा करने व पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्ति तक समय-समय पर जारी किए गए कांग्रेस के निर्देशों का पालन करने के लिए कहा।


इस तरह के स्वतंत्रता दिवस समारोह का आयोजन भारतीय नागरिकों के बीच राष्ट्रवादी ईधन झोंकने के लिये किया गया व स्वतंत्रता देने पर विचार करने के लिए ब्रिटिश सरकार को मजबूर करने के लिए भी किया गया।कांग्रेस ने 1930 और 1950 के बीच 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया। इसमें लोग मिलकर स्वतंत्रता की शपथ लेते थे। जवाहरलाल नेहरू ने अपनी आत्मकथा में इनका वर्णन किया है कि ऐसी बैठकें किसी भी भाषण या उपदेश के बिना, शांतिपूर्ण व गंभीर होती थीं। गांधी जी ने कहा कि बैठकों के अलावा, इस दिन को, कुछ रचनात्मक काम करने में खर्च किया जाये जैसे कताई कातना या हिंदुओं और मुसलमानों का पुनर्मिलन या निषेध काम, या अछूतों की सेवा। 1947 में वास्तविक आजादी के बाद,भारत का संविधान 26 जनवरी 1950 को प्रभाव में आया; तब के बाद से 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है।


तात्कालिक पृष्ठभूमि 
सन् 1946 में, ब्रिटेन की लेबर पार्टी की सरकार का राजकोष, हाल ही में समाप्त हुए द्वितीय विश्व युद्ध के बाद खस्ताहाल था। तब उन्हें एहसास हुआ कि न तो उनके पास घर पर जनादेश था और न ही अंतर्राष्ट्रीय समर्थन। इस कारण वे तेजी से बेचैन होते भारत को नियंत्रित करने के लिए देसी बलों की विश्वसनीयता भी खोते जा रहे थे। फ़रवरी 1947 में प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली ने ये घोषणा की कि ब्रिटिश सरकार जून 1948 से ब्रिटिश भारत को पूर्ण आत्म-प्रशासन का अधिकार प्रदान करेगी। अंतिम वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने सत्ता हस्तांतरण की तारीख को आगे बढ़ा दिया क्योंकि उन्हें लगा कि, कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच लगातार विवाद के कारण अंतरिम सरकार का पतन हो सकता है। उन्होंने सत्ता हस्तांतरण की तारीख के रूप में, द्वितीय विश्व युद्ध, में जापान के आत्मसमर्पण की दूसरी सालगिरह 15 अगस्त को चुना। ब्रिटिश सरकार ने ब्रिटिश भारत को दो राज्यों में विभाजित करने के विचार को 3 जून 1947 को स्वीकार कर लिया व ये भी घोषित किया कि उत्तराधिकारी सरकारों को स्वतंत्र प्रभुत्व दिया जाएगा और ब्रिटिश राष्ट्रमंडल से अलग होने का पूर्ण अधिकार होगा।यूनाइटेड किंगडम की संसद के भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 (10 और 11 जियो 6 सी. 30) के अनुसार 15 अगस्त 1947 से प्रभावी (अब बांग्लादेश सहित) ब्रिटिश भारत को भारत और पाकिस्तान नामक दो नए स्वतंत्र उपनिवेशों में विभाजित किया और नए देशों के संबंधित घटक असेंबलियों को पूरा संवैधानिक अधिकार दे दिया।18 जुलाई 1947 को इस अधिनियम को शाही स्वीकृति प्रदान की गयी।


नौ प्रकार की सृष्टिओं का निर्माण

नो प्रकार की सृष्टिओं का निर्माण
शिव की आज्ञा में तत्पर रहने वाले महाविष्णु ने अनंत रूप का आश्रय ले उस अंड में प्रवेश किया। उस समय उन परम पुरुष के सहस्त्र मस्तक,सहस्‍त्र नेत्र और सहस्र पैर थे। उन्होंने भूमि को सब ओर से घेरकर उस अंड को व्याप्त कर लिया। मेरे द्वारा भली-भांति स्तुति की जाने पर श्री विष्णु ने उस अंड में प्रवेश किया। तब वह 24 तत्वों का विकराल रूप अंड सचेतन हो गया। पाताल से लेकर सत्यलोक तक की अवधि वाले उस अंड के रूप में वहां साक्षात श्रीहरि ही विराज रहने लगे। उस विराट खंड में व्यापक होने से ही प्रभु  वैराजपुरुष कहलाए। पंचमुखी महादेव ने केवल अपने रहने के लिए स्वयं में कैलाश नगर का निर्माण किया जो सब लोको से ऊपर सुशोभित होता है। संपूर्ण ब्रह्मांड का नाश हो जाने पर भी बैकुंठ और कैलाश इन दोनों स्‍थानो का यहां कभी नाश नहीं होता। मुनि श्रेष्ठ, सत्यलोक का आश्रय लेकर मै यहां रहता हूं। तात, महादेव जी की आज्ञा से ही मुझ में सृष्टि रचने की इच्छा उत्पन्न हुई है। बेटा, जब मैं सृष्टि की इच्छा से चिंतन करने लगा। उस समय पहले मुझ में अनजान में ही पाप पूर्ण तामसिक सृष्टि का प्रादुर्भाव हुआ । जिसे अविद्या पंचक कहते हैं। तदनंतर प्रसन्न चित्त होकर शंभू की आज्ञा से पुनः अनासक्त भाव से सृष्टि का चिंतन करने लगा। उस समय मेरे द्वारा स्थावर वृक्ष आदि की सृष्टि हुई। जिसे मुख्य सर्ग कहते हैं। यह पहला सर्ग है। उसे देखकर तथा वहां अपने लिए पुरुषार्थ का साधक नहीं है, यह जानकर सृष्टि की इच्छा वाले ब्रह्मा से दूसरा सर्ग प्रकट हुआ। जो दुख से भरा हुआ है उसका नाम है। वह सर्ग भी पुरुषार्थ का साधक नहीं था। उसे भी पुरुषार्थ साधन की शक्ति से रहित जान तब मैं पुनः सृष्टि का चिंतन करने लगा। तब मुझसे शीघ्र ही तीसरे सात्विक सर्ग का प्रादुर्भाव हुआ। जिसे उधरवाश्रोता कहते हैं। यह देवसर्ग के नाम से विख्यात हुआ। देवसरग सत्यवादी तथा अत्यंत सुख दायक है। उसे भी पुरुषार्थ साधन की रुचि एवं अधिकार से रहित मानकर मैंने अन्य सर्ग के लिए अपने स्वामी श्री शिव का चिंतन आरंभ किया ।तब भगवान शंकर की आज्ञा से एक रजोगुण सृष्टि का भाव उत्पन्न हुआ । इस सर्ग के प्राणी मनुष्य है। जो साधन के उच्च अधिकारी है ।तदनंतर महादेव जी की आज्ञा से भूत आदि की सृष्टि हुई। इस प्रकार मैंने 5 तरह की विधि का वर्णन किया है। इनके प्राकृतिक भी कहे गए। जो ब्रह्मा के सानिध्य से प्रकृति से ही प्रकट हुए। पहला महत्व का सर्ग है दूसरा सूक्ष्म भूतों अर्थात  तन्‍मात्राओं का सर्ग और तीसरा अष्‍कारी सर्ग कहलाता है। इस तरह ही तीन प्राकृत सर्ग है। प्राकृत और विकृत दोनों प्रकार के सर्ग को मिलाने से 8 सर्ग होते हैं। इनके सिवा नवाँ कुमार सर्ग है। जो प्राकृत और विकृत भी है। इन सबके अवांतर भेद का में वर्णन नहीं कर सकता। क्योंकि उसका उपयोग बहुत थोड़ा है। अब द्विज आत्मक सर्ग का प्रतिपादन करता हूं। इसी का दूसरा नाम कुमार सर्ग है। जिसमें सनकनंदन आदि कुमारों की महत्वपूर्ण सृष्टि हुई है। मेरे चार मानस पुत्र है। जो मुझ ब्रह्मा के ही समान है। वह महान वैराग्य से संपन्न तथा उत्तम व्रत का पालन करने वाले हुए हैं। उनका मन सदा भगवान शिव के चिंतन में ही लगा रहता है। वह संसार से विमुक्त एवं ज्ञानी है। उन्होंने आदेश देने पर भी सृष्टि के कार्यों में मन नहीं लगाया। सनत कुमार के दिए हुए नकारात्मक उत्तर को सुनकर मैंने बड़ा भयंकर क्रोध प्रकट किया। उस समय मुझ पर ताम छा गया। उस अवसर पर मैंने मन ही मन भगवान विष्णु का स्मरण किया वे शीघ्र ही आ गए और उन्होंने मुझे समझाते हुए का तुम भगवान शिव की प्रसन्नता के लिए तपस्या करो। श्रेष्ठ,श्रीहरि के अनुसार में घोर एवं उत्कृष्ट तप करने लगा। सृष्टि के लिए तपस्या करते हुए मेरी दोनों नासिका के मध्य भाग से जो उनका अपना ही नामक स्थान है। महेश्वर की तीन मूर्तियों में से अन्यतम पुनीत पूर्णांक एवं दयासागर अर्धनारीश्वर रूप में प्रकट हुए। जो जन्म से तेज की राशि, सर्वज्ञ तथा सर्वश्रेष्ठ है। नीललोहित नामधारी साक्षात उमाशंकर को सामने देख बड़ी भक्ति से मस्तक झुका उनकी स्तुति करके मैं बड़ा प्रसन्न हुआ और उन देवेश्वर से बोला प्रभु, आप भांती-भांती के जीवो की सृष्टि कीजिए। मेरी बात सुनकर देवाधिदेव महेश्वर में अपने ही समान बहुत से रुद्र घणो की सृष्टि की ।तब मैंने अपने स्वामी महेश्वर महारुद्र से फिर का देव आप ऐसे स्‍वरूप कि सृष्टि कीजिए जो जन्म और मृत्यु के ऐसे कर्म युक्त हो। मुनि श्रेष्ठ ऐसी बात सुनकर करुणासागर महादेव जी हंस पड़े और तत्काल इस प्रकार बोले। महादेव जी, जन्म और मृत्यु के भय से युक्त सृष्टि का निर्माण मै नहीं करूंगा। क्योंकि वह कर्मों के अधीन हो दुख के समुद्र में डूबे रहेंगे। मै तो दुख के सागर में डूबे हुए उनका उदाॄर मात्र करूंगा। गुरु का स्वरूप धारण करके उत्तम ज्ञान प्रदान कर उन सब को संसार सागर से पार कर लूंगा। प्रजापति। दुख में डूबे हुए सारे जीव की सृष्टि करो। मेरी आज्ञा से इस कार्य में प्रवृत्त होने के कारण तुम्हें माया नहीं बांध सकेगी। श्री भगवान महादेव देखते-देखते तत्काल तिरोहित हो गए। ॐ नमः शिवाय्


न्याय सम्मेलन एवं विशाल पैदल मार्च का आयोजन

न्याय सम्मेलन एवं विशाल पैदल मार्च का आयोजन  भानु प्रताप उपाध्याय  मुजफ्फरनगर। जनपद के टाउन हॉल में मंगलवार को सामाजिक न्याय क्रांति मोर्चा ...