ब्रह्मा जी ने कहा ,कन्यादान करके दक्ष ने भगवान शंकर को नाना प्रकार की वस्तुएं दहेज में थी! यह सब करके बड़े प्रसन्न हो फिर उन्होंने ब्राह्मणों को भी नाना प्रकार के धन बांटे !तत्पश्चात लक्ष्मी सघं भगवान विष्णु शंभू के पास आकर हाथ जोड़कर खड़े हुए और बोले, देवदेव! महादेव! दयासागर,प्रभु आप संपूर्ण जगत के पिता है और सती देवी सबकी माता है! आप दोनों साथ पुरुषों के कल्याण तथा दुष्टों के दमन के लिए सदा लीला पूर्वक अवतार ग्रहण करते हैं! यह सनातन श्रुति का कथन है! आप चिकने नील अंजन के समान शोभापाने वाली सती के साथ जिस प्रकार सुखा पा रहे हैं मैं उससे उल्टे लक्ष्मी के साथ सुख पा रहा हूं अर्थात सती नील वर्ण तथा आप गोरवण॔, उससे उल्टे मैं नीलवण॔ लक्ष्मी गगौरवण॔ है! नारद,मैं, देवी सती के पास आकर गृह सूत्रों विधि से विस्तारपूर्वक सारा अग्नि कार्य कराने लगा! आचार्य तथा ब्राह्मणों की आज्ञा से शिवा और शिवा बड़े हर्ष के साथ विधिपूर्वक अग्नि की परिक्रमा की उस समय वहां बड़ा अद्भुत उत्सव मनाया गया! गाजे-बाजे और नृत्य के साथ होने वाला वह सब, सबको बड़ा सुखद जान पड़ता! तदनंतर भगवान शिव भोले सदाशिव मैं आपकी आज्ञा से यहां से तत्व का वर्णन करता हूं! समस्त देवता एक दूसरे मुनि अपने मन को एकाग्र करके इस विषय को सुनें! भगवान और प्रधान प्रकृति और उससे अतीत है! आप के अनेक भाग है फिर भी आप भागरहित है! ज्योतिर्मय स्वरूप वाले आप परमेश्वर के ही हम तीनों देवता अंश है! आप कौन, मैं कौन और ब्रह्मा कौन आप परमात्मा के ही यह अंश है! जो सृष्टि पालन और संहार करने के कारण एक-दूसरे से भिन्न प्रतीत होते हैं! आप अपने स्वरूप का चिंतन कीजीए, आपने स्वयं ही ईच्छापूर्वक शरीर धारण किया है! आप निर्गुण ब्रह्म रूप से एक है, आप ही सगुण ब्रह्म और ब्रह्मा विष्णु तथा रूद्र के वंश है! जैसे एक ही शरीर के भिन्न-भिन्न अवयव, मस्तक,ग्रईवा आदि नाम धारण करते हैं! तथापि उस शरीर से विभिन्न नहीं है! उसी प्रकार हम तीनों आप परमेश्वर के ही अंग है! जो सिर में आकाश के समान सर्वव्यापी एवं सवऺज्ञ हैं! स्वयं ही अव्यक्त, अनंत, नित्य तथा दीर्घ विशेष सहित है वही आप रहित है अतः आप ही सब कुछ है! ब्रह्मा जी कहते हैं मुनीश्वर भगवान विष्णु की यह बात सुनकर महादेव जी बड़े प्रसन्न हुए तदनंतर उस विभाग के स्वामी यजमान परमेश्वर शिव प्रसन्न हो लोकीक की गति का आश्रय ले,हाथ जोड़कर खड़े हुए मुझ ब्रह्मा से प्रेम पूर्वक बोले कहा, ब्राह्मण आपने सारा वैवाहिक काय॔ विधी अनुसार संपन्न करा दिया! अब आप मेरे आचार्य है बताइए आपको क्या दूं? महाभाग मुझे आपके लिए कुछ भी अदेय नहीं है! मुने! भगवान शंकर का यह वचन सुनकर मैं हाथ जोड़कर,अधीरता से, उन्हें बारंबार प्रणाम करके बोला!देवेश यदि आप प्रसन्न हो और महेश्वर यदि मैं वर पाने के योग्य हूँ तो प्रसन्नता पूर्वक जो बात कहता हूं उसे आप पूर्ण कीजिए! महादेव आप इसी रूप में इसी वेदी पर सदा विराजमान रहे! जिससे आप के दर्शन से मनुष्यों के पाप धुल जाए, चंद्रशेखर आप का सानिध्य होने से मैं इस निधि के समीप आश्रम बना कर तपस्या करुगां! यह मेरी अभिलाषा है, चैत्र के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में रविवार के दिन इस भूतल पर जो मनुष्य भक्ति भाव से आपका दर्शन करें उसके सारे पाप तत्काल नष्ट हो जाए और समस्त रोगों का नाश हो जाए! जो नारी दुर्भागा अथवा रूप हीन हो, वह भी आपके दर्शन मात्र से ही अवश्य निर्दोष हो जाए! मेरी आवाज सुनकर,जो उनकी आत्मा को सुख देने वाली थी! जिसे सुनकर भगवान शिव ने प्रसन्न चित्त से कहा ,विधाता! ऐसा ही होगा!