देश की पहली और सबसे बड़ी मुसीबत में फंसे डेढ़ हजार यात्रियों को समय पर राहत देने में विफल रही केन्द्र और महाराष्ट्र सरकार। बाढ़ के पानी में फंसी महालक्ष्मी एक्सप्रेस ट्रेन।
मुंबई ! देश में यह पहला मौका रहा, जब डेढ़ हजार यात्रियों से भरी ट्रेन बाढ़ के पानी में कोई बीस घंटे तक फंसी रही। यात्रियों में छोटे बच्चों से लेकर गर्भवती महिलाएं भी थीं। 27 जुलाई को सूर्योदय होते ही खबरिया चैनलों पर पानी में फंसी ट्रेन के दृश्य दिखना शुरू हो गए। बताया गया कि मुम्बई से कोल्हापुर के बीच चलने वाली महालक्ष्मी एक्सप्रेस ट्रेन मुम्बई से 50 किलोमीटर दूर बदलापुर रेलवे स्टेशन के निकट उल्लास नदी के भराव क्षेत्र में फंस गई है। चूंकि पटरियों के जमीन में धंसने की आशंका थी, इसलिए ट्रेन के ड्राइवर ने अपने विवेक से ही ट्रेन को जंगल में खड़ा कर दिया। 27 जुलाई को तड़के तीन बजे ट्रेन को रोका गया जो शाम तक खड़ी रही। देश के इतिहास में यह पहला अवसर था, जब डेढ़ हजार यात्रियों से भरी ट्रेन इस तरह पानी में फंस गई। टीवी चैनलों पर दावे किए गए कि यात्रियों को मुसीबत से बाहर निकालने के लिए एनडीआरएफ से लेकर वायु सेना तक को तैयार कर दिया गया है। चूंकि यह हादसा देश की वाणिज्यिक राजधानी मुम्बई के पास हुआ था, इसलिए उम्मीद थी कि आज देशवासियों राहत की नई तकनीक देखने को मिलेग की। जब हम चांद पर पहुंच रहे हैं तो धरती पर ट्रेन यात्रियों को निकालने में कोई परेशानी नहीं होगी, लेकिन ऐसा लगता है कि जरुरत पडऩे पर सरकार की सभी तैयारियां धरी रह जाती है। रेल प्रशासन तो इसी इंतजार में था कि पानी कम हो जाए तो ट्रेन को जंगल से निकाल कर निकट के रेलवे स्टेशन पर ले जाए। लेकिन लम्बे इंतजार के बाद भी पानी कम नहीं हुआ तो फिर एनडीआरएफ की नावें मंगा कर यात्रियों को डिब्बों से निकाल कर सुरक्षित स्थान पर लाया गया। राहत के दावे तो लम्बे चौड़ किए, लेकिन मौके पर मुश्किल से 6 नावें ही देखी गई। ग्रामीणों ने अपने स्तर पर प्रयास कर यात्रियों की मदद की। दो हेलीकॉप्टरों को भी ट्रेन पर मंडराते देखा गया। हेलीकॉप्टर से कितने यात्री निकाले, इसकी कोई जानकारी नहीं है। सवाल उठता है कि मुम्बई जैसे महानगर से मात्र पचास किलोमीटर दूर फंसी ट्रेन से भी यदि समय पर यात्रियों क ो नहीं निकाला जा सकता है तो सरकार से क्या उम्मीद की जा सकती है।
रेल प्रशासन फेल:
महालक्ष्मी एक्सप्रेस ट्रेन में फंसे यात्रियों को राहत देने में रेल प्रशासन तो पूरी तरह फेल रहा। डेढ़ हजार यात्री तड़के तीन बजे से दोपहर दो बजे तक फंसे रहे लेकिन रेल प्रशासन ने कोई मदद नहीं की। यात्रियों के पास खाने-पीने का जो सामान था उसे ही मिल बांट कर खाया गया। छोटे बच्चे पानी के लिए बिलखते रहे, लेकिन रेलवे ने ट्रेन में पीने का पानी तक उपलब्ध नहीं करवाया। क्या यात्रियों को चाय नाश्ता उपलब्ध करवाने का दायित्व रेलवे का नहीं था? राहत कार्यों में भी रेलवे की कोई भूमिका नजर नहीं आई। नावों के जरिए ट्रेन से बाहर आए अधिकांश यात्री रेल प्रशासन को कोस रहे थे। हालांकि केन्द्र और महाराष्ट्र में भाजपा की सरकार है, लेकिन इस मुसीबत में दोनों सरकारों के बीच आपसी तालमेल भी देखने को नहीं मिला। चूंकि ऐसी घटना देश की पहली घटना थी, इसलिए सरकार अपने आधुनिक और योग्य होने का उदाहरण पेश कर सकती थी, लेकिन इस मामले में दोनों ही सरकारें विफल रही हैं। ऐसी मुसीबत के समय आधुनिक उपकरण कहां चले जाते हैं?
एस.पी.मित्तल