इंसानियत को शर्मसार करती रायबरेली जिला अस्पताल की दो तश्वीरें
सन्दीप मिश्र
रायबरेली ! जिला अस्पताल में बीती रात को इंसानियत को शर्मसार करने वाली दो तस्वीरें देखने को मिली। एक तस्वीर में एक बीमार व्यक्ति जिला अस्पताल परिसर में पैरों में पट्टी बांधे हुए पड़ा है। वहीं पर जिला अस्पताल के विद्युत संयंत्र भी लगे हैं ।लेकिन इस मरीज को पूछने वाला कोई नहीं है ना ही अस्पताल के कर्मचारी दिखाई दिए ना ही समाज सेवा के नाम पर अपना झंडा बुलंद करने वाले लंबरदार ही दिखाई दिए । अचेतन अवस्था में मरीज ने अपना नाम बबलू पुत्र रामकुमार निवासी कानपुर का बताया। मरीज जिला अस्पताल का नहीं है। इसका केवल एक कारण समझ में आता है कि उसने जो कपड़े पहन रखे हैं । वह मरीजों के लिए तो हैं लेकिन किसी निजी चिकित्सालय के दिखाई पड़ते हैं। परंतु सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि मानव के भीतर की इंसानियत कहां खत्म हो गई क्या कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं था जो इस मरीज का इलाज करवाने के लिए अपना एक कदम आगे बढ़ा सके । अब आपको ले चलते हैं दूसरी तस्वीर की तरफ जहां एक वृद्ध महिला अस्पताल कर्मचारियों से हाथ पर जोड़ रही है कि उसका इलाज कर दिया जाए। जितना भी पैसा लगेगा वह देने को तैयार है । वृद्ध महिला आंखों से आंसू बहा रही है तो अस्पताल कर्मी उसे अस्पताल के कायदे कानून बताते हुए दिखाई दिए । इन दो तस्वीरों को देख कर ऐसा लगता है कि बाहर से चाक चौबंद जिला अस्पताल के भीतर मरीजों की चीखें दबकर रह जा रही हैं। मरीज अस्पताल में इलाज के लिए तड़प रहे हैं और स्वास्थ्य कर्मी अपने आप को पाक साफ बताने में जुटे हैं । वृद्ध महिला हड्डी वार्ड के स्टाफ नर्स के पास जाकर फरियाद कर रही थी तो वहीं पर अस्पताल कर्मी उसे अपने बेड पर जाने की नसीहत दे रहे थे । जबकि महिला चलने फिरने से लाचार बोल पाने से असमर्थ होने के बावजूद कह रही है उसका इलाज हो जाए वह एक-एक पैसा दे देगी। अस्पताल कर्मियों ने जब क्राइम मुखबिर टीम को देखा तब जाकर उन्होंने पैसे ना लगने की बात कहकर महिला को समझाने का प्रयास करने लगे। लेकिन अपने शब्दों से महिला ने अस्पताल के भीतर चल है गोरखधंधे का खुलासा कर ही दिया कि बिना पैसे के अस्पताल में इलाज नहीं होता है । तो दोनों ही तस्वीरें देखने पर ऊपर वाले भगवान और नीचे के भगवान कहलाने वाले डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों की हकीकत सामने आ गई कि एक जान की कीमत जमीन के भगवानों के लिए कुछ भी नहीं है। उन्हें मनुष्य की जान से ज्यादा रुपयों से प्यार है । नहीं तो क्या कारण है कि इन बेसहारा मरीजों को अस्पताल के कोने कोने पर तड़पने के लिए छोड़ दिया गया ।सबसे ज्यादा शर्म इनके परिजनों पर आती है जिन्होंने अपने घर के सदस्य का हाल भी नहीं जानने का प्रयास किया।अस्पताल में उनके ऊपर क्या बीत रही है ।कहने को तो जिला अस्पताल में तमाम जगहों पर सीसीटीवी कैमरे लगे हुए हैं जिनकी मॉनिटरिंग खुद मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉक्टर एन0के0 श्रीवास्तव के द्वारा होती है परंतु क्या ये तस्वीरे अस्पताल के सीसीटीवी कैमरे में कैद हुई है और यदि कैद हुई है तो क्या अस्पताल प्रबंधन द्वारा अस्पताल कर्मियों पर किसी भी प्रकार की कार्रवाई होगी। जो कि संभव नहीं दिखाई दे रही है क्योंकि अभी तक का रिकॉर्ड रहा है कि जिला अस्पताल प्रशासन ने अपने किसी भी कर्मी पर कोई भी कार्यवाही नहीं की है इसके लिए उसने चाहे जितनी भी बड़ी अनुशासनहीनता का परिचय दिया हो । अधिकारी कहते हैं कि शिकायत मिलेगी तब कार्रवाई होगी लेकिन तमाम शिकायतें कूड़े के डिब्बे में डाल दी जाती हैं । जिन्हें कभी नहीं बाहर आने दिया जाता है। इन्हीं तमाम शिकायतों से आजिज आकर खुद जिला अधिकारी नेहा शर्मा ने एक मुस्त कार्रवाई करके पूरे अस्पताल के कर्मचारियों का वेतन 1 माह के लिए रोका भी था। परंतु उस वेतन से कहीं ज्यादा दलाली की कमाई से अपनी बैंकों को मजबूत करने वाले कर्मचारियों को इस कार्यवाही से भी कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ा । क्योंकि तमाम ऐसे चिकित्सक हैं जो कि खुद चाहते हैं कि अस्पताल प्रशासन किसी भी तरह अपने आप ही उन्हें निलंबित कर के घर भेज दें। जिससे कि वह अपना निजी चिकित्सालय सुचारू रूप से चला सके और कानूनी कार्यवाही के चलते अस्पताल पर भी अपना अधिकार बना ले । यही कारण है कि अस्पताल में मरीजों की दुर्दशा की जा रही है!