नई दिल्ली। इंस्टाग्राम पर इस पोस्ट के साथ ही करिश्माई खेल व कप्तानी और बेमिसाल मिजाज वाले 39 वर्षीय महेंद्र सिंह धोनी ने अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कह दिया। यह ऐसे अध्याय को अंत था, जिसके पन्ने ऐसी कामयाबियों से भरे हैं जो दुनिया के किसी भी क्रिकेटर का ख्वाब हो सकता है। अप्रत्याशित फैसलों से विरोधी टीमों को चौंकाने वाले धोनी के इस ऐलान ने फैंस को चौंकाया कम, मायूस ज्यादा किया। खेल को पढ़ने की उनकी महारत के कारण डिसिजन रिव्यू सिस्टम (डीआरएस) को धोनी रिव्यू सिस्टम कहा जाता था, जाहिर है संन्यास का फैसला लेते हुए भी उन्होंने ऐसी ही धोनी का अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट करियर जब खत्म हो चुका है। तो पीछे मुड़कर देखने पर पता चलता है कि रांची के इस राजकुमार ने कैसे शून्य से शुरूआत कर शिखर को चूमा।
धोनी के तकरीबन 15 साल के अंतर्राष्ट्रीय करिअर ने छोटे शहरों के नौजवानों की आंखों को एक बड़ा सपना दे दिया। महानगरों से आने वाले खिलाड़ियों के वर्चस्व वाले खेल को धोनी ने नये व्याकरण और मुहावरे तो दिए ही, कप्तान रहते भारतीय क्रिकेट का चेहरा बदलकर रख दिया। पूरे दमखम से आखिरी क्षणों तक विरोधी टीमों से जूझने, नौजवान खिलाड़ियों में भरोसा दिखाने जैसी सौरव गांगुली की क्रिकेट विरासत को नया अर्थ और आयाम देते हुए धोनी ने उसे विराट कोहली तक बेहतर ढंग से पहुंचाया। इस दौरान भारतीय क्रिकेट टीम कीर्तिमान-दर-कीर्तिमान बनाती गयी। धोनी दुनिया के ऐसे इकलौते कप्तान बन गए जिनकी झोली में आईसीसी के तीनों टूर्नामेंट की खिताबी जीत है। टी-20 विश्वकप, चैम्पियंस ट्रॉफी और एकदिवसीय विश्वकप। ये सभी धोनी की कप्तानी के कौशल को बयान करते हैं। इतना ही नहीं सितारों से सजी रहने वाली भारतीय टेस्ट क्रिकेट टीम भी धोनी की कप्तानी में 2009 में पहली बार नंबर वन बनी।
वह भी तब जबकि टेस्ट की रंगत क्रिकेट की अंकतालिकाओ से कहीं परे है। क्या वह गर्व और खुशी का क्षण किसी गणना या तालिका में समा सकता है कि 2007 में टी-20 वर्ल्डकप जब पहली बार आयोजित किया गया तो वह खिताब भारत के नाम रहा। वह भी ऐसे खिलाड़ी की अगुवाई में जो महज तीन साल पहले टीम में आया ही था। चयनकर्ताओं ने युवराज सिंह की जगह धोनी को इस युवा टीम का कप्तान बनाने का दांव खेला। इस टीम में सचिन, सौरव और द्रविड़ जैसे सितारे नहीं थे। जोगिंदर शर्मा जैसे लगभग गुमनाम से गेंदबाज ने धोनी के हौसले की बदौलत फाइनल में पाकिस्तान के खिलाफ आखिरी क्षणों में ऐसा कमाल दिखाया कि पाकिस्तानी खिलाड़ी मैदान पर ठगे से रह गए।
भारत के नाम यह खिताब आया. 2007 में जिस अप्रत्याशित ढ़ंग से धोनी को टी-20 वर्ल्ड कप के लिए टीम इंडिया और 2008 में भारतीय टीम का कप्तान बनाया गया था। उतने ही अप्रत्याशित लहजे में धोनी ने कप्तानी छोड़ भी दी वह भी तब जबकि इस पद पर बने रहने के लिए उनके पर जोर आजमाइश का तर्क था। धोनी ने 2014 में अचानक टेस्ट टीम की कप्तानी छोड़ी और 2017 के शुरुवात में वन डे और टी 20 की कप्तानी छोड़कर विराट कोहली के लिए रास्ता साफ कर दिया। धोनी को कप्तानी दिया जाना एक प्रयोग था जिसमें टीम इंडिया को नई राह दिखाई।