रवीश कुमार
नई दिल्ली। कोरोना वायरस से संक्रमित मरीज़ों के इलाज में वेंटिलेटर का बहुत अहम रोल है। जब सांस लेने में तक़लीफ़ होती है तब वेंटिलेटर का ही सहारा होता है। पूरी दुनिया इस वक्त वेंटिलेटर के इंतज़ाम में लगी है। आप इंटरनेट में सिम्पल वेंटिलेटर टाइप कीजिए। यूरोप के कई देश वेंटिलेटर बनाने वाली कंपनियों को आर्डर कर रहे हैं। नई कंपनियों को प्रेरित कर रहे हैं कि वे वेंटिलेटर बनाएं। इसके लिए तुरंत बनने वाले नए मॉडल पर भी बात हो रही है।
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ने वहां की कई इंजीनियरिंग कंपनियों से टेलिफोन पर बात की है। उनसे पूछा है कि क्या दो हफ्ते में 15 से 20 हज़ार वेंटिलेटर का इंतज़ाम हो सकता है? मीडिया में अलग-अलग आंकड़े हैं। अगले महीने तक 30,000 वेंटिलेटर के प्रबंध कर लेने का लक्ष्य रखा गया है। कंपनियों के पास इस वक्त वेंटिलेटर बनाने की इतनी क्षमता नहीं है क्योंकि यूरोप के अन्य देश भी वेंटिलेटर बनाने का आर्डर दे रहे हैं और सभी को जल्दी चाहिए। दुनिया में मूल रूप से वेंटिलेटर बनाने वाली चार पांच बड़ी कंपनियां हैं। मगर इनके पास इतने आर्डर आ गए हैं कि इस वक्त की ज़रूरतों को पूरा नहीं कर सकती हैं।
इस बारे में ब्रिटेन की बड़ी इंजीनियरिंग कंपनी स्मिथ ने बड़ा फैसला किया है। यह कंपनी वेंटिलेटर के अपने पेटेंट मॉडल को दूसरी कंपनियों के साथ साझा करने के लिए तैयार हो गई है ताकि कम से कम समय में ज्यादा से ज्यादा वेंटिलेटर का उत्पादन हो सके। संकट की इस घड़ी में गला काट प्रतियोगिता वाली कंपनियां इतनी बड़ी कुर्बानी दे रही हैं। वे अपने प्रोडक्ट से एकाधिकार छोड़ रही हैं। स्मिथ का लक्ष्य है कि दो हफ्ते के भीतर 5000 वेंटिलेटर बना कर दे देना है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार ब्रिटेन के नेशनल हेल्थ सर्विस के पास 5000 वेंटिलेटर ही हैं। दुनिया में ब्रिटेन के नेशनल हेल्थ सर्विस को श्रेष्ठतम मेडिकल सुविधाओं में से एक माना जाता है। क्या भारत में इस सवाल को लेकर आपने हेडलाइन देखी है?
भारत के पत्रकार तीन दिन से प्रधानमंत्री के बेसिक भाषण को महान बनाने के लिए उसमें सौम्यता के कण ढूंढ रहे हैं। प्रधानमंत्री का भाषण ज़रूरी है, लेकिन वह इतना बेसिक है कि उन्हें दिन में चार बार देना चाहिए ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग सतर्क हों और सजह हों। लेकिन उनके भाषण में कहीं से भी वायरस से लड़ने की तैयारियों का इंतज़ाम नहीं दिखता है। आप प्लीज़ उनके भाषण को एक और बार के लिए सुनें।
जर्मनी ने 10,000 वेंटिलेटर का आर्डर किया है। इटली ने 5000 वेंटिलेटर का आर्डर किया है। इटली और जर्मनी आई सी यू और वेंटिलेटर की क्षमता डबल कर रहे हैं। हैमिल्टन नाम की कंपनी साल में 15,000 वेंटिलेटर बनाती है। अब उसने अपना उत्पादन 30-40 प्रतिशत बढ़ा दिया है। फिर भी इन कंपनियों के लिए आर्डर को पूरा करना संभव नहीं है।
इसलिए मैं बार बार इस बात पर ज़ोर दे रहा हूं कि कोरोना से लड़ने के लिए नेताओं के भाषण की प्रेरणा उतनी ज़रूरी नहीं है। यह भी काम आता है। लेकिन इसी को मुख्य नहीं मान लेना चाहिए। आप उनके भाषण में यह जानने का प्रयास कीजिए कि मेडिकल तैयारियां क्या हैं, भारत भर में कितने बेड तैयार हो गए हैं, आवश्यकता पड़ने पर कितने दिनों में और कितने बेड बनाए जा सकते हैं, भारत भर में कितने वेंटिलेटर हैं, भारत ने और वेंटिलेटर हासिल करने के लिए क्या किया है, यही नहीं आपने टीवी में देखा होगा, कोरोना वायरस के मरीज़ के करीब जाने वाले हेल्थ वर्कर चांदी रंग के सूट पहने होते हैं। क्या आप जानते हैं कि ऐसे सूट भारत में कितने उपलब्ध हैं, दिल्ली में कितने हैं और बंगाल से लेकर बिहार में कितने हैं?
भारत की राज्य सरकारें आम जन को आर्थिक मोर्चे पर मदद के लिए कई अच्छी घोषणाएं कर चुकी हैं लेकिन स्वास्थ्य के मोर्चे पर जो आंकड़े दिए जा रहे वो बहुत आश्वस्त करने वाले नहीं हैं। यूपी की आबादी 20 करोड़ हैं, वहां पर 2000 से कम बिस्तर क्यों तैयार हैं? दिल्ली में कितने वेंटिलेटर हैं, प्राइवेट और सरकारी, इन सभी का डेटाबैंक क्यों नहीं तैयार है, आस पास के ज़िलों से कितने वेंटिलेटर का इंतज़ाम हो सकता है, ज़िलों में क्यों नहीं पर्याप्त है? ज़िलों के वेंटिलेटर की हालत क्या है? इस वक्त ये सभी सवाल ज़्यादा महत्वपूर्ण हैं।
भारत में अभी तक बहुत कम सैंपल टेस्ट हो रहे हैं। इससे अंदाज़ा मिलता है कि भारत के पास टेस्ट किट कम हैं और 30 जनवरी को पहला केस आने के बाद भी अभी भी भारत हर दिन 3000 सैंपल भी टेस्ट करने की स्थिति में नहीं है। जब मैं यह बात कहता हूं तो कुछ लोगों का सवाल आता है कि दक्षिण कोरिया की आबादी देखिए। इसका संबंध आबादी से नहीं है। दक्षिण कोरिया ने 7 फरवरी से ही टेस्ट किट बनाने शुरू कर दिए थे। इसके लिए प्राइवेट कंपनियों के साथ बैठकें शुरू हो गई थीं। यही कारण है कि दक्षिण कोरिया एक दिन में 20,000 सैंपल टेस्ट कर रहा है।
सभी मानते हैं कि इसका एक ही उपाय है। टेस्ट करो। पता करो कौन संक्रमित है और उसे अलग करो। घर में बंद रहने की जागरूकता लोगों तक पहुंच चुकी है। और पहुंचाने की ज़रूरत है। बार बार पहुंचाने की ज़रूरत है। अब हमें जानने की ज़रूरत यह है कि हमारी मेडिकल तैयारी कितनी है? क्या आप जानते हैं? क्या आप नहीं जानना चाहेंगे? आप यह सवाल पूछें। कितने वेंटिलेटर हैं, कितने बिस्तर हैं, और कितने टेस्ट किट हैं?
याद रखिएगा, हम सभी ज़िंदगी और मौत की एक नाव पर सवार हैं।
(लेखक मशहूर पत्रकार व न्यूज़ एंकर हैं, आर्टिकल उनके फेसबुक पेज से लिया गया है)