नई दिल्ली । लंबे अरसे से 15 अगस्त पर देशभक्ति वाली फिल्में रिलीज करने की परम्परा का पालन करते हुए अक्षय कुमार इस साल भी देश प्रेम से सजी 'मिशन मंगल' लेकर आए हैं। इस मुलाकात में वह फिल्म, अपनी जिंदगी पर महिलाओं के प्रभाव, सबसे अमीर आदमी बनने की फीलिंग और फीस हाइक जैसे मुद्दों पर बात करते हैं।आपकी फिल्म 'मिशन मंगल' में महिला सशक्तीकरण का नया रूप दिख रहा है यानी वह साइंटिस्ट के रूप में नजर आ रही हैं !
सच कहूं, तो मेरी जिंदगी हो या मेरा बचपन या इतिहास, हर जगह महिला सशक्तीकरण के उदाहरण देखने को मिलते हैं। हर जगह महिलाओं का योगदान प्रबल रहा है, मगर शर्म की बात है कि हमारे इतिहास के पन्नों में, हमारी पढ़ाई में, सिर्फ मर्दों के बारे में लिखा गया है। हमको बचपन से ही सिखाया जाता है कि मेरा बेटा इंजिनियर बनेगा। मेरी बेटी डॉक्टर बनेगी। कभी ये नहीं कहा जाता कि मेरी बेटी इंजिनियर बनेगी। ऐसा क्यों नहीं कहते हैं ये लोग! इसीलिए न कि इन्होंने स्टीरियोटाइप बना दिया है। उनका मानना है कि बेटी तो इंजिनियर बन ही नहीं सकती, क्योंकि इंजिनियरिंग मर्दों का काम है। वे डॉक्टर या नर्स बन सकती हैं, ये तो उनका काम ही नहीं है। कोई लड़की कहे कि मुझे पायलट बनना है, तो उसे कहा जाएगा, पायलट तो लड़के बनते हैं। हाल ही में अब जाकर तो लड़कियों का पायलट बनना शुरू हुआ है। अपने आसपास जब मैं इस कदर पितृ सत्तात्मक सोच को देखता हूं कि उन्होंने औरतों को एक सांचे में ढाल रखा है। मैं सोचता हूं कि इस स्टीरियोटाइप को तोड़नेवाली ज्यादा से ज्यादा फिल्में बनाऊं।
आपकी फिल्मों में महिला किरदार मजबूती लिए होते हैं। चाहे वह 'रुस्तम' हो या 'टॉयलेट एक प्रेम कथा' अथवा 'पैडमैन' या फिर 'मिशन मंगल', महिलाओं के प्रति ये सोच आपके मन में कब आई?
मैं हमेशा से महिलाओं की ताकत को लेकर जागरूक रहा हूं। हमेशा से उनके मजबूत पहलुओं पर फिल्म बनाना चाहता था, तब मेरे पास पैसे नहीं थे। जब पैसे आए और मैं इस लायक हुआ कि अपनी सोच और रुचि की फिल्में बना सकूं, तो बनाने लगा।