केदारेश्वर तथा भीम शंकर ज्योतिर्लिंग का आविर्भाव
सूत जी कहते हैं, ब्राह्मणों भगवान विष्णु के जो नर नारायण नामक दो अवतार हैं और भारतवर्ष के बद्रिका आश्रम तीर्थ में तपस्या करते हैं। उन दोनों ने पार्थिव शिवलिंग बनाकर उसमें स्थित हो पूजा ग्रहण करने के लिए भगवान शंभू से प्रार्थना की। शिव जी के भक्तों के अधीन होने के कारण प्रतिदिन उनके बनाए हुए पार्थिव लिंग में पूजित होने के लिए आया करते थे। जब उन दोनों के पार्थिव पूजन करते बहुत दिन बीत गए ।तब एक समय परमेश्वर शिव ने प्रसन्न होकर कहा मैं तुम्हारी आराधना से बहुत संतुष्ट हूं। तुम दोनों मुझसे वर मांगो। उस समय उनके ऐसा कहने पर नर और नारायण ने लोगों के हित की कामना से कहा, देवेश्वर ।यदि आप प्रसन्न है और यदि मुझे वर देना चाहते हैं तो अपने सब रूप से पूजा ग्रहण करने के लिए यहीं स्थित हो जाए। उन दोनों बंधुओं के इस प्रकार अनुरोध करने पर कल्याणकारी महेश्वर हिमालय के उस केदार तीर्थ में स्वयं ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थित हो गए। उन दोनों से पूजित होकर संपूर्ण दुख और भय का नाश करने वाले शिव शंभू लोगों का उपकार करने और भक्तों को दर्शन देने के लिए स्वयं केदारेश्वर के नाम से प्रसिद्ध हुआ रहते हैं ।वे दर्शन और पूजन करने वाले भक्तों को सदा अभीष्ट वस्तु प्रदान करते हैं। उसी दिन से लेकर जिसने भी भक्ति भाव से केदारेश्वर का पूजन किया उसके लिए स्वपन में भी दुर्लभ हो गया जो भगवान शिव का प्रिय भक्त वहां शिवलिंग के निकट शिव के रूप से अंगणी कड़ा चढ़ाता है। वह उपयुक्त स्वरूप का दर्शन करके समस्त पापों से मुक्त हो जाता है साथ ही जीवन मुक्त भी हो जाता है। जो बद्री वन की यात्रा करता है। उसे भी जीवन मुक्ति प्राप्त होती है। नर और नारायण के केदारेश्वर शिव के रूप का दर्शन करके मनुष्य मोक्ष का भागी हो जाता है। इसमें किसी प्रकार का नहीं है केदारेश्वर में भक्ति रखने वाली जो पुरुष वहां की यात्रा आरंभ करके उनके पास तक पहुंचने के लिए मार्ग में ही मर जाते हैं। वह भी मोक्ष पा जाते हैं। इसमें विचार करने की आवश्यकता नहीं है। केदार तीर्थ में पहुंचकर वहां प्रेम पूर्वक केदारेश्वर की पूजा करके वहां का जल पी लेने के पश्चात मनुष्य का जन्म नहीं होता। ब्राह्मणों इस भारतवर्ष में संपूर्ण जीवो को भक्ति भाव से भगवान नर नारायण की कथा केदारेश्वर शिव शंभू की पूजा करनी चाहिए। अब मैं भीमसंकर नामक ज्योतिर्लिंग का महत्व में बताता हूं ।कामरूप देश में लोकहित की कामना से साक्षात भगवान शंकर ज्योतिर्लिंग के रूप में अवतरण हुए। उनका वह स्वरूप कल्याण का ब्राह्मणों पूर्व काल में एक महाकर्मी राक्षस हुआ था। जिसका नाम भीम था वह सदा धर्म का नाश करता और समस्त प्राणियों को दुख देता था। वह महाबली राक्षस कुंभकर्ण के वीर्य और करकटी के गर्भ से उत्पन्न हुआ था वह अपनी माता के साथ सहन पर्वत पर निवास करता था 1 दिन समस्त लोगों को दुख देने वाले भयानक पराक्रमी दुष्ट भीम ने अपनी माता से पूछा मां मेरे पिताजी कहां है। तुम अकेली क्यों रहती हो मैं यह सब जानना चाहता हूं। रावण कुंभकरण तेरे भाई सहित उस महाबली वीर को श्रीराम ने मार डाला मेरे पिता का नाम और माता का नाम पुष्प कथा उस कसीदा विराट मेरे पति थे। जिन्हें पूर्व काल में राम ने मार डाला मेरे माता-पिता एक दिन अगस्त मुनि के शिष्य सुदर्शन को अपना भोजन बनाने के लिए गए और वहां उन दोनों को भस्म कर दिया। मैं बहुत लंबे समय तक, इस पर्वत पर अकेली रहती थी। उसी समय महान बल पराक्रम से संपन्न राक्षस कुंभकर्ण जो रावण के छोटे भाई थे। यहां आए उन्होंने बलात मेरे साथ समागम किया। फिर भी मुझे छोड़ कर लंका चले गए। तत्पश्चात तुम्हारा जन्म हुआ। तुम भी पिता के समान ही महान बलवान और पराक्रमी हो अब तुम्हारा ही सहारा है। ........