मेरठ ! भारत एक कृषि प्रधान देश है किसान कृषि एवं कृषि पर आधारित उद्योग अपने देश की अर्थव्यवस्था का मेरुदंड है।बावजूद इसके भारत में किसान स्वयं को असहाय महसूस कर रहे हैं और अन्नदाता से बेचारा बन गया। स्वाधीनता के बाद आधुनिक विज्ञान के नाम पर कृषि ने नई-नई तकनीकों व पद्धतियों से आज पर्यावरण परिस्थिति व जन स्वास्थ्य के लिए गंभीर संकट उत्पन्न हो गए हैं।कृषि में जैविक आदानों के स्थान पर रसायनों सेउपयोग व्यापक स्तर पर भूमि बंजर हो गई और प्रकृति में स्वसंचालित जैविक उर्वरता संवर्धन व किट नियंत्रण में सहयोगी कीट व सूक्ष्मजीव कम होते चले गए हैं। कृषि उपज के लिए मुख्यतः मिट्टी,बीज,पानी और सूर्य रोशनी की आवश्यकता होती है। सारे के सारे प्राकृतिक संसाधन है और इन सभी का उपयोग करते हुए किसान मनुष्य एवं जीवो का उपकार करता रहता है। आधुनिक खेती का हरित क्रांति (1970 के दशक) के पहले किसान ने बीज का विकास उत्पादन,वितरण,भंडारण और क्रय-विक्रय करते थे लेकिन आधुनिक खेती के नाम पर यह अधिकार किसानों से षड्यंत्र के तहत सरकारी संस्थाएं विश्वविद्यालय और अनेक राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय कंपनियों ने अपने हाथों में ले लिया।हाइब्रिड बीजों से अधिक पैदावार का भकावा देकर किसानों के साथ बीज की कीमत में अनियंत्रित बढ़ोतरी व शोषण एक सोची-समझी मानसिकता के साथ करते रहे हैं।जिसके कारण खेती घाटे का सौदा बन गई। अस्थिरता के साथ किसान खेती छोड़ने या अति गरीबी वाली जिंदगी जीने को मजबूर हुआ।
किसानों के पास सभी संस्थानों के अभाव के बाद भी,सभीनकारात्मक स्थिति के बाद भी,इतनी विशाल जनसंख्या को खाना खिलाना,मानव जीवन में उपयोग आने वाले उत्पादकों का उत्पादन करना ही अपना दायित्व समझा। यहां तक कि लागत मूल्य न मिलने के बाद भी देश को आवश्यकता से अधिक उत्पादन करता रहा। इन सब के बावजूद बीज कंपनियों ने और अधिक पैदावार के नाम पर जीएम बीजों को विकसित किया,जीएम बीजों को बनाने में जंतु के वांछित गुण का डी.एन.ए को अप्राकृतिक तरीके से प्रत्यारोपित किया गया,जैसे टमाटर को पाले से बचाने के टमाटर के बीज में बर्फीले समुद्र में पाई जाने वाली मछली में विद्दमान,उसे बर्फ की ठंडक से बचाने वाली उस जीन या वंशाणु को अनेक रसायनिक घटकों के साथ प्रत्यारोपित कर पाला रोधी टमाटर विकसित किया गया। अब हाल ही में ऐसी कीट रोधी खरपतवार नाशक विशेषताओं से युक्त सैकड़ों जीव रूपांतरित फसल प्रजातियां जैसे मक्का सरसों,बैंगन,सोयाबीन,अरंडी,चावल,गेहूं, भिंडी,तोरई आदि अनेक बीज HTBT और GM बीजों को किसानों तक पहुंचाया जा रहा है जो कि किसान व उपभोक्ताओं के लिए अभिशाप बन जाएगा।क्योंकि HTBTऔर GM बीजों के प्रसंस्करण करने पर जिन रसायनिक घटको का प्रयोग किया जाता है और उन पर छिड़काव हेतु उनसे भी अधिक ताकतवर रसायनों का उपयोग होता है।उन बीजों के उत्पादन से उस उत्पाद में भी वही जीन स्थापित हो जाती है जिनके उपयोग से देश की 85% मानवजाति को कैंसर मुक्त में मिलेगा।आज की वर्तमान स्थिति में हाइब्रिड बीजों व रासायनिक छिड़काव के प्रभाव से दुधारू पशु के दूध भी कैंसर उत्त्पन्न करने वाले जीन विद्धमान है जिस कारण नौनिहालों को भी कैंसर का शिकार होते जा रहे हैं।जैसे नाइट्रोबेंजीन,मोनोक्रोटोफॉस,ग्लाइफोसेटआदि अनेक रसायन द्वारा बीजो को प्रसंस्करण किया जाता है जिनके कारण से कैंसर पैदा होता है जो पूर्णतः प्रतिबंधित है लेकिन कंपनियां मनमानी ढंग से खुलेआम किसानों तक पहुंचाने में सक्षम हो रही है।
अगर हम जानते हैं हमारा देश सुरक्षित है वह सुरक्षित हाथों में है तो ये सारी कंपनियां हमें कैसे चुनौती दे रही हैं? इसलिए भारतीय किसान संघ पूरे देश में भारत सरकार से किसान व मानव जाती के हितों के लिए निम्नलिखित मांगों के लिए एक दिन 9 अगस्त 2019 को समय 10:00 बजे से हर तहसील पर धरना प्रदर्शन करेगी! जिसमें आप सभी से अपेक्षा है कि इस यज्ञ में अपनी आहुति देने की कृपा करें।
1:-इन सारे घटनाक्रम की सही जांच करते हुए दोषियों को दंडित किया जाए।
2:- जिन कम्पनियों ने यह गलत बीज अनाधिकृत रूप से किसानों तक पहुंचाया उसको प्रतिबंधित किया जाए या भारत छोड़ने का निर्देश दिया जाए। क्योंकि ग्लाइफोसेट रसायन कैंसर पैदा करता है, जितने भी तकनीक इसके साथ संलग्न हैं उसे सारी तकनीकों को प्रतिबंधित किया जाए।
3:-कोई भी अगर इस रसायनो को आयात करते हैं तो उसे आजीवन सजा का कठोर प्रावधान हो।
4:- जो GEAC इस कंपनी की निगरानी हेतु अधिकृत है वह अभी तक चुप क्यों हैं? इसलिए इसको बंद करते हुए नई संस्था का गठन किया जाए।
5:- यदि सरकार चाहती है कि किसानों की आय दोगुना हो तो सरकार को बीज किसानों का अधिकार बिल लाना पड़ेगा, बीज कानून का नाम *बीज किसानों का अधिकार* ऐसा हो।
6:-बीज बनाना,भंडारण करना,वितरण, क्रय-विक्रय किसानों के अधिकार में ही रहे ऐसा कानून का आधार वाक्य हो
7:-देशी बीज का परिष्करण,वृद्धिकरण की जाए।
8:-मौसम के विपरीत परिस्थितियों में सफल होने हेतु इन बीजों का विकास किया जाए।
9:-हमारे देश में सभी विश्वविद्यालय शोध केंद्र,कृषि विज्ञान केंद्र,आदि को इस दिशा में कार्य करने की क्षमता विकसित की जाए।
10:-इन संस्थानों के माध्यम से किसानों को सीधे विकसित फाउंडेशन सीड को उपलब्ध कराया जाए।
11:-बीज बनाने की प्रक्रिया का प्रशिक्षण किसानों को दिया जाए।
12:-घोषित बीजों का एम.आर.पी निश्चित किया जाए और उनकी गुणवत्ता के साथ किसानों को उपलब्ध कराया जाए।
13:-अधिकृत घोषित बीजों के बाहर कम्पनियां कोई बीज न बेंचे।
अत्यन्त महत्वपूर्ण विषय पर आँखें मूंद लेना सरकार एवं किसानों व समस्त मानव समाज के लिये एक बहुत बड़े खतरे को नजरअंदाज करने के ओर इंगित करेगा जो बिल्कुल स्वीकार्य नही है।अतः सभी भाइयो से पुनः निवेदन करते है कि अपने हक के लिये सरकार को अपनी ताकत दिखाने के लिये तहसील केंद्र 9 अगस्त 2019 समय 10 बजे अवश्य पहुचने का आग्रह करते हैं।