'यूपी विधान परिषद' के 5 और कैंडिडेट का ऐलान
संदीप मिश्र
लखनऊ। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने यूपी विधान परिषद के पांच और कैंडिडेट का ऐलान कर दिया है। सपा ने गोंडा, देवरिया, बलिया, गाजीपुर और सीतापुर के कैंडिडेट्स की घोषणा की है। गोरखपुर के बाबा राघव दास (बीआरडी) मेडिकल कॉलेज में बाल रोग विशेषज्ञ रहे डॉ. कफील खान को सपा ने देवरिया से मैदान में उतारा है। इसके अलावा सीतापुर से अरुणेश कुमार, गाजीपुर से भोलानाथ, गोंडा से भानू कुमार और बलिया से अरविंद को कैंडिडेट बनाया है। वहीं, देवरिया से डॉ. कफील खान के अलावा दूसरे कैंडिडेट आफताब आलम हैं।
इससे पहले सपा ने बाराबंकी से राजेश कुमार यादव राजू, इलाहाबाद से वासुदेव यादव, खीरी से अनुराग वर्मा, जौनपुर से मनोज कुमार यादव, सिद्धार्थनगर से संतोष यादव, गोरखपुर, महराजगं से रजनीश यादव, झांसी, जालौन, ललितपुर से श्यामसुंदर सिंह यादव, लखनऊ, उन्नाव से सुनील सिंह यादव साजन, रामपुर, बरेली से मशकूर अहमद, रायबरेली से वीरेंद्र शंकर सिंह, फैजाबाद से हीरालाल यादव, आजमगढ़, मऊ से राकेश कुमार यादव मथुरा, एटा, मैनपुरी से उदयवीर सिंह, बहराइच से अमर यादव, वाराणसी से उमेश, पीलीभीत, शाहजहांपुर से अमित यादव प्रतापगढ़ से विजय बहादुर यादव और आगरा, फिरोजाबाद से दिलीप सिंह यादव समेत 18 नामों का ऐलान किया था।
36 विधान परिषद सीटों पर 9 अप्रैल को होना है चुनाव।
बता दें कि यूपी विधान परिषद में स्थानीय निकाय कोटे के 36 सदस्यों का कार्यकाल खत्म हो चुका है। इस समय परिषद में भाजपा के 35, सपा के 17, बसपा के 4, अपना दल (सोनेलाल), निषाद पार्टी और कांग्रेस का एक-एक सदस्य हैं। वहीं, 9 अप्रैल को हो रहे चुनाव के नतीजे विधान परिषद में बहुमत की तस्वीर तय कर देंगे। वैसे आम तौर पर जिसकी सत्ता होती है उस पार्टी के कैंडिडेट की जीत की संभावना बढ़ जाती है और पिछले तीन दशकों के चुनाव की तस्वीर कुछ ऐसी ही रही है। इस चुनाव में ग्राम प्रधान, क्षेत्र पंचायत सदस्य, जिला पंचायत सदस्य, पार्षद, विधायक और सांसद मतदान करते हैं।
यूपी विधान परिषद में जीत से भाजपा बनेगी मजबूत।
बता दें कि हाल में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों में दो-तिहाई बहुमत के साथ दोबारा सत्ता में आई भाजपा के लिए यह चुनाव खुद को सदन में सबसे बड़ी पार्टी बनाने का एक अवसर होगा। इस तरह यूपी विधानमंडल के दोनों सदनों में पार्टी को बहुमत मिल सकता है। सत्रहवीं विधानसभा में भाजपा के पास स्पष्ट बहुमत होने के बावजूद विधान परिषद में संख्या बल में समाजवादी पार्टी के भारी होने से भाजपा को विधेयकों को पारित कराने में मुश्किल होती थी। स्थानीय प्राधिकारी निर्वाचन क्षेत्र से जीते सदस्यों का कार्यकाल पिछले सात मार्च को समाप्त हो गया।