ब्रिटेन की एक जेल में दिखा 'अदृश्य' शरीर का चेहरा
अखिलेश पांडेय
रॉथरहैम। ब्रिटेन के रॉथरहैम स्थित एक जेल में भूतों को पकड़ने वाले और पति-पत्नी लिंजी और ली स्टीयर घूमने गए। दोनों प्रोजेक्ट रिवील घोस्ट ऑफ ब्रिटेन नाम की संस्था चलाती है। जो भूतों को लेकर जागरुकता फैलाते हैं। उन्होंने जेल के अंदर एक तस्वीर ली, जिसमें फोटो लेते समय कुछ नहीं दिख रहा था। लेकिन बाद में फोटो में एक चेहरा दिखाई दे रहा था।
ब्रिटिश अखबार द मिरर में छपी खबर के मुताबिक लिंजी और ली स्टीयर ने बताया कि दशकों से वो लोग भूतों के पीछे भाग रहे हैं, लेकिन आजतक ऐसी तस्वीर नहीं मिली। दोनों के पास 20 साल का एक्सपीरियंस है घोस्ट हंटिंग का। ये दोनों परालौकिक गतिविधियों को देखने, उनका अनुभव करने और उनकी रिकॉर्डिंग करने उन स्थानों पर जाते हैं, जहां आमतौर पर इंसान डर के मारे नहीं जाते।
प्रोजेक्ट रिवील घोस्ट ऑफ ब्रिटेन अपने हर भूतिया मिशन की डिटेल अपनी संस्था के फेसबुक पेज पर डालते हैं। कई बार लाइव शेयर करते हैं। लिंजी ने कहा कि मैं तो नई तस्वीर देखकर हैरान रह गई। यह बेहद स्पष्ट और अलग है। हमलोग प्राचीन स्कॉटिश इन्वेरेरी जेल घोस्ट हंटिंग के लिए गए थे। वहीं पर यह तस्वीर कैमरे में कैद हुई।
लिंजी ने बताया कि हमलोग अक्सर भूतों को देखने जाते हैं। कई बार आमना-सामना होता है, कई बार कुछ पता ही नहीं चलता। इन्वेरेरी जेल से लौटने के बाद जब हमने वहां की तस्वीरें देखनी शुरू की तो हैरान रह गए। जेल और कोर्टरूम की तस्वीरों में हमें कुछ विचित्र आकृतियां देखने को मिलीं। यहां पर एक मोम की मूर्ति के पीछे एक आकृति दिखाई दे रही है।
लिंजी ने बताया कि ली स्टीयर उस समय कैमरे और यंत्र तैनात कर रहे थे। लिंजी वीडियो बना रही थीं। और फोटो ले रही थीं। लेकिन लिंजी जब फोटो या वीडियो बना रही थीं, तब एक भी आकृति उन्हें नहीं दिख रही थी। लेकिन जब बाद में उन्होंने फोटो को अपनी संस्था के फेसबुक प्रोफाइल पर डाला और उसे चेक किया तो उसमें चेहरे जैसी आकृतियां दिख रही हैं। लिंजी और ली स्टीयर ने तस्वीर देखने के बाद दोबारा उस जगह पर जाकर जांच की, लेकिन कहीं कुछ नहीं मिला। न ही उस जगह कोई डमी रखी थी। न ही कोई पुरानी मूर्ति। लिंजी ने बताया कि वह इंसान तो कतई नहीं था। लेकिन उसका रंग देखकर आप अंदाजा लगा सकते हैं कि वह क्या था। वह काफी ज्यादा मात्रा में पारदर्शी था।
भूतों और आत्माओं पर अध्ययन करने के लिए 1882 में सोसाइटी फॉर फिजिकल रिसर्च बनाई गई थी। इस सोसाइटी की प्रेसीडेंट और इन्वेस्टिगेटर इलेनॉर सिडविक नाम की महिला थीं। इन्हें असली फीमेल घोस्टबस्टर कहा जाता था। अमेरिका में 1800 के अंत में भूतों पर काफी रिसर्च आर काम किया गया। लेकिन बाद में पता चला कि इसका मुख्य जांचकर्ता हैरी होडिनी एक फ्रॉड है। वैज्ञानिक तौर पर भूतों पर रिसर्च इसलिए मुश्किल हो जाता है क्योंकि हैरतअंगेज तरीके से इन्हें लेकर अजीब-गरीब और अप्रत्याशित घटनाएं होती हैं। जैसे- दरवाजों का खुद खुलना या बंद होना, चाभी का गायब हो जाना, किसी मृत रिश्तेदार का दिखना। सड़क पर परछाइयों का घूमना। आदि। सोशियोलॉजिस्ट डेनिस एंड मिशेल वासकुल ने साल 2016 में एक किताब लिखी. किताब का नाम था। इसमें कई लोगों के द्वारा भूतों के अनुभव पर कहानियां थीं।
इस किताब में यह बात सामने आई कि बहुत से लोग इस बात को लेकर पुख्ता नहीं थे कि उन्होंने सच में भूत ही देखा है। यह पैरानॉर्मल यानी परालौकिक प्रक्रिया हुई भी है या नहीं। क्योंकि जिस तरह की चीजें उन्होंने देखी वो परंपरागत भूत की इमेज से मिलती नहीं है। ज्यादातर लोगों ने कहा कि उन्होंने ऐसी चीजें और घटनाएं महसूस की हैं, जिन्हें परिभाषित करना मुश्किल हैं। ये रहस्यमयी हैं। डरावनी या शॉक देने वाली हैं। लेकिन इनमें भूतों की इमेज नहीं दिखी।
लोग अपने हिसाब से भूतों को नाम देते हैं, जैसे- पोल्टरजिस्ट्स डरने वाला भूत, रेसीड्यूल हॉटिंग्स अवशिष्ट भूतिया, इंटेलिजेंट स्पिरिट्स बुद्धिमान आत्माएं और शैडो पीपुल यानी परछाइयों की तरह दिखने वाले लोग। इन नामों से ऐसा लगता है कि इंसानों ने भूतों की कई प्रजातियां बना दी हैं। जिनकी कोई तय संख्या नहीं है। ये अलग-अलग इंसान के हिसाब से बनती-बिगड़ती रहती हैं।
विज्ञान की भाषा में जब भूतों के बारे में सोचा जाता है तो सबसे पहले ये बात सामने आती है कि क्या ये वस्तु हैं या नहीं। यानी क्या ये ठोस पदार्थ के बीच में से निकल सकते हैं, बिना उन्हें बिगाड़े। या वो दरवाजों को खुद खोल या बंद कर सकते हैं। या एक कमरे से कोई चीज दूसरी जगह पर फेंक सकते हैं। इन चीजों को लेकर कई विवाद हैं। अगर तार्किक तौर पर फिजिक्स के फॉर्मूले से देखें तो सवाल उठता है कि अगर भूत इंसानी आत्माएं हैं तो वो कपड़ों में क्यों दिखती हैं। उनके हाथों में डंडे, टोपी और कपड़े क्यों रहते हैं।
जिन लोगों की हत्या हो जाती है, कई बार उनकी आत्माएं बदला लेने के लिए किसी को माध्यम बनाकर मामले की जांच करवाती हैं। हत्यारे की पहचान करवाती हैं। लेकिन ये सच है या नहीं। इसपर सवाल बने हुए हैं। क्योंकि भूतों को लेकर कोई तार्किक वजह नहीं है. भूतों को पकड़ने या मारने वाले यानी घोस्ट हंटर्स अलग-अलग तरीके अपनाते हैं। ताकि भूतों, आत्माओं की मौजूदगी का पता कर सके। ज्यादातर तरीके वैज्ञानिक होते हैं। भूतों को देखने और उनकी मौजूदगी जांचने के लिए अत्याधुनिक मशीनों का सहारा लिया जाता है।
इन मशीनों में सबसे ज्यादा प्रचलित हैं गीगर काउंटर्स, इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फील्ड डिटेक्टर्स, आयन डिटेक्टर्स, इंफ्रारेड कैमरा और सेंसिटिव माइक्रोफोन्स। लेकिन आजतक इनमें से किसी भी यंत्र में भूतों को सही से पकड़ा या देखा नहीं है। सदियों से ऐसा माना जा रहा है कि आग की लपट भूतों की मौजूदगी में नीली हो जाती है। लेकिन सच तो ये नहीं है। घर की एलपीजी गैस में ज्यादातर नीली रोशनी निकलती है तो क्या सिलेंडर से भूत निकलते हैं या आपके किचन में भूत रहते हैं।
वर्तमान में वैज्ञानिकों का मानना है कि फिलहाल ऐसी कोई तकनीक है ही नहीं जिससे भूतों की मौजूदगी या उनके आकार, व्यवहार का पता किया जा सके। लेकिन सवाल ये भी उठता है कि अक्सर लोगों के फोटोग्राफ्स या वीडियो में पीछे से भागते, मुस्कुराते, झांकते, डरते भूत दिख जाते हैं। इनकी रिकॉर्डिंग्स हैं लोगों के पास और वैज्ञानिकों के पास भी। इनकी आवाजों की रिकॉर्डिंग्स भी लोगों के पास हैं। अगर भूत होते हैं तो वैज्ञानिकों को इनकी जांच करने के लिए पुख्ता सबूत की जरूरत है, जो फिलहाल नहीं है।