वाशिंगटन डीसी/नई दिल्ली। पुरानी फिल्मोंमें कॉमेडी दृश्य ठूंसे जाते थे। वैसी ही, किसी पुरानी फिल्म का दृश्य याद आ रहा है। पति रोज शराब पीकर पत्नी को पीटता।एक दिन किसी पड़ोसी ने हस्तक्षेप कर दिया। पति को रोकने और पत्नी को बचाने की कोशिश कर दी।पति तो क्या आपत्ति करता,पत्नी ही लड़ पड़ी-हम पति-पत्नी के दाम्पत्य जीवन में टांग अड़ाने वाला तु कौन।
इस दृश्यका लब्बोलुआब यह कि किसीके दाम्पत्य जीवन,घरेलू मामलोंमें नाक घुसेड़नेकी कोशिश कतई न करें,वरना लेने के बदले देने पड़ेंगे। यह सीख अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में भी सटीक बैठती है। किसी भी देश की अंदरूनी,आंतरिक, घरेलू मामलोंमें किसी दूसरे देशको कतई हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।अमरीकामें रह-रहे भारतीय मूलके लोगोंकी आबादी 1.5%भी नहीं है।दो साल पहले अमरीकामें चुनाव प्रचार जोर पकड़ चुका था,राष्ट्रपति पदके लिए दोनों उम्मीदवार-डोनाल्ड ट्रंप और जो बाइडेन-अपनी-अपनी पूरी ताकत झोंक रहे थे।मोदीजी और डोनाल्ड ट्रंप- दोनोंको भ्रम था-मोदीजी अगर डोनाल्ड ट्रंपके पक्षमें प्रचार कर दें,तो भारतीय मूलके तमाम मतदाताओंके वोट डोनाल्ड ट्रंपको मिल जाएंगे। सितंबर,2019में मोदी ने अमरीकाका दौरा किया। ह्युस्टन शहरमें हाउडी मोदी कार्यक्रम का आयोजन हुआ,50000लोगों से खचाखच भरे स्टेडियममें मोदीने ‘अबकी बार,ट्रंप सरकार’के नारे लगाए।लेकिन,मोदी डोनाल्ड ट्रंपको जिता नहीं पाए,जो बाइडेनको राष्ट्रपति बनने से रोक नहीं पाए।
लेकिन,इससे जो बाइडेनके मनमें मोदी और भारतके बारे में कड़वाहट जरूर विकसित हुआ,जो मोदीकी पिछली अमरीका यात्राके दौरान डेग-डेग पर परिलक्षित हुआ।शुरुआत मोदी के अमरीका में लैंड करने से ही शुरू की जाए।राजीव गांधी जब प्रधानमंत्री बने थे,तो उनका सार्वजनिक योगदान कुछ भी नहीं था। लेकिन उसके पहले सत्रह साल तक(1947-64) जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्रीके साथ साथ विदेश मंत्री भी रहे थे।
1967-84तक(1977-80की अवधि को छोड़कर) इंदिरा प्रधानमंत्री रहीं थीं।भारतकी एक अंतरराष्ट्रीय छवि और प्रतिष्ठा थी।
1985में जब भारतके प्रधानमंत्रीकी हैसियतसे राजीव गांधी अमरीका गए,तो अमरीका के राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन छाता संभालें रहे।2021में मोदी अमरीका गए,तो बारिश भी नहीं हो रही थी,छाता खोलनेकी जरूरत भी नहीं थी,लेकिन मोदी अपना छाता खोलकर खुद ही संभालते उतरे।अमेरिकामें भारतके राजदूत तरणजीत सिंह संधूने प्रधानमंत्री मोदीकी अगवानी की।उनके साथ रक्षा अधिकारी ब्रिगेडियर अनूप सिंघल,एयर कमोडोर अंजन भद्र,नौसेना कोमोडोर निर्भया बापना भी थे।अमेरिकी उप प्रबंधन और संसाधन मंत्री टीएच ब्रायन मैककॉन ने अमरीकी सरकारका प्रतिनिधित्व किया।अभी दो साल भी नहीं बीते हैं-तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत पधारे थे।कोरोना महामारी का खतरा उठाकर भी मोदीने अहमदाबाद के मोटेरा स्टेडियम में सवा लाख की भीड़ जुटाई थी,-नमस्ते ट्रंप का भव्य आयोजन हुआ था।लेकिन,अमरीकामें मोदीके स्वागतके लिए राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति की बात छोड़िए- कोई वरिष्ठ मंत्री नहीं आया।अभी न्यूयॉर्कमें संयुक्त राष्ट्र संघकी सामान्य सभाकी बैठक थी और कई राष्ट्राध्यक्षों की अगवानीमें जो बाइडेन और कमला हैरिस गए भी थे,लेकिन विश्वके सबसे बड़े लोकतंत्रके प्रधानमंत्रीके लिए उनके पास समय नहीं था।
कमला हैरिस,आज अमरीका की उपराष्ट्रपति हैं-लेकिन उनकी मां भारतीय थी,वैज्ञानिक थी,अर्थात् कमलाका ननिहाल भारतमें है,लेकिन मोदीसे हुई मुलाकातके दौरान वह मोदीको लोकतंत्रका पाठ पढ़ाते हुए कहा- दुनिया भरमें लोकतंत्र खतरेमें आ रहा है।यह जरूरी है कि हम लोकतांत्रिक मूल्यों और संस्थानोंकी रक्षा करें।लोकतंत्रको मजबूत करनेके प्रयासोंको बरकरार रखें।अपने नागरिकोंके हितोंकी रक्षाके लिए लोकतंत्रका मजबूत होना जरूरी है। ध्यातव्य है,कि संविधान की धारा370 को निरस्त करने और जम्मू-कश्मीर में लोकतांत्रिक अधिकारों पर प्रतिबंध लगाए जाने के खिलाफ कमला बयान देती रहीं हैं।भारतमें मॉब लिंचिंग,फर्जी मुठभेड़ के दौरान हत्या की घटनाएं बढ़ी हैं,प्रेस स्वतंत्रता, मानवाधिकार आदि मुद्दों पर भारतकी अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग गिरी हैं,जिस पर मोदी सफाई देने की स्थिति में नहीं दिखे।मोदी सरकार ने जिस प्रकार फर्जी मुकदमोंमें पत्रकारों,सोशल एक्टिविस्टों को फंसाने का अपराध किया है,वह भारत में लोकतांत्रिक मूल्यों के हनन की कहानी बयां करती है।
शमोदी-जो बाइडेन मुलाकातके दौरान जो बाइडेनने अपने बयानको क्यू कार्ड्स से पढ़ा,जो नई दिल्लीको कम महत्व दिए जाने का संकेत देती है। अंधभक्तों और भाजपा मीडिया सेल द्वारा गांधी-नेहरू के खिलाफ चलाए जा रहे अभियानों पर टिप्पणी करते हुए बाइडेनने गांधी और गांधीवादके प्रति अपनी आस्था और संकल्प व्यक्त किया।कुछ विदेशी कंपनियोंने भारतसे अपना व्यवसाय समेटा है,यही नहीं मोदीकी मेक इन इंडिया योजना,जिस प्रकार फ्लॉप हुई है,ऐसेमें विभिन्न कंपनियोंके प्रमुखोंके साथ बैठकके कोई महत्वाकांक्षी परिणाम मिलने की कोई संभावना नहीं है। मोदी ने भारत को गुटनिरपेक्ष आंदोलन से अलग कर रखा है,क्षेत्रीय,पड़ोसी राष्ट्रों के मंच सार्क का कबाड़ा कर दिया और अब अमरीका भी आंखें दिखा रहा है।
भारत की अंतरराष्ट्रीय साख को गहरा धक्का लगा है।
और हां!गोदी मीडिया की मजबूत स्तंभ अंजना ओम कश्यप की अमरीका में जो फजीहत हुई है,वह गोदी मीडिया के पेशेवर विश्वसनीयता की दरिद्रता को दर्शाता है।
अंजना ओम कश्यप मोदीजी के अमरीका दौरे को कवर करने एक दो दिन पहले ही अमरीका पहुंचा गई थी।वह मानकर चल रही थी कि भारत का गोदी मीडिया जिस प्रकार दिनभर मोदीजी के लिए भोंपू बजाता रहता है,उसी प्रकार अमरीका के अखबारों में भी मोदीजी छाए रहते होंगे। लेकिन उसे बड़ी निराशा हुई कि जो अखबार उसने चुना,उसमें मोदीजी की अमरीका यात्रा का कवरेज सिरे से गायब था।
अंजना ओम कश्यप की मुलाकात म्यूजिकल ग्रुप के एक सदस्य से हुई,अंजना ने अनुमान लगाया कि वह अपनी व्यक्तिगत एक्साइटमेंट के वशीभूत होकर मोदीजी के स्वागत में आ गया है, लेकिन जब यही सवाल अंजना ओम कश्यप ने उस ढोल बजाने वाले से पूछ लिया तो ज़बाब सुनकर उसे घोर निराशा हुई। उस ढोल बजाने ने साफ-साफ कहा कि वह किसी एक्साइटमेंट के तहत नहीं आया, ढोल बजाने के लिए बुलाया गया है।वह पेशेवर ढोलकिया है। ढोल बजाएगा, भुगतान पाएगा और जाएगा।
लेकिन,आजतक जैसे चैनल की प्रतिष्ठित एंकर अंजना ओम कश्यप की घोर बेइज्जती संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत की प्रथम सचिव स्नेहा दूबे, भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी के कार्यालय में हुई।अंजना ओम कश्यप स्नेहा दूबे के कार्यालय में बिना इजाजत अपना माइक लेकर घुस गई।सोचा होगा कि भारत की दो बेहतरीन महिला प्रोफेशनल-भले ही एक भारतीय विदेश सेवा की उच्चाधिकारी और दूसरी एंकर हो-सात समंदर पार अमरीका की धरती पर मिलेंगी,तो बहनापा के तहत उनका दिल खोलकर स्वागत किया जाएगा। लेकिन स्नेहा दूबे ने अंजना ओम कश्यप की धृष्टता को गंभीरता से लिया और सीधे बाहर का रास्ता दिखाया।