अश्वनी उपाध्याय
गाज़ियाबाद। जिले में ब्लैक फंगस (म्यूकर माइकोसिस) से पहली मौत दर्ज की गई। हालांकि यहाँ मौत अभी सरकारी किताबों में दर्ज नहीं हुई है। नूरनगर सिहानी के रहने वाले 57 वर्षीय राजाराम को 24 अप्रैल को बुखार आया था। 2 मई को कोविड संक्रमण की पुष्टि होने के बाद उन्हें संजय नगर स्थित कोविड लेवेल 2 अस्पताल में भर्ती कराया गया है।राजाराम के बेटे पुष्पेंद्र ने आरोप लगाया कि इलाज में लापरवाही के चलते उनके पिता को लगातार सांस लेने में दिक्कत हो रही थी। इसके बाद वे अपने पिता को इलाज के लिए वसुंधरा के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां उन्हें इलाज के दौरान स्टेरॉयड दिए गए। धीरे-धीरे राजा राम की आँखों की पुतलियाँ टेढ़ी होने लगीं।
इंजेक्शन के लिए लगाते रहे दफ्तरों के चक्कर
डॉक्टरों की सलाह पर पुष्पेंद्र अपने पिता को राज नगर के एक ईएनटी अस्पताल में ले गई। यहाँ उन्हें इलाज के लिए कुछ एक ऐसा इंजेक्शन लाने के लिए कहा गया जो बाज़ार में उपलब्ध नहीं था। पुष्पेंद्र ने आरोप लगाया कि इंजेक्शन के लिए उनका पूरा परिवार प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग के चक्कर लगाता रहा मगर उन्हें कोई सहायता नहीं मिली। सही समय पर इंजेक्शन न मिलने के कारण गुरुवार को राज राम की मौत हो गई।
5 मरीजों ने दी ब्लैक फंगस को मात और 21 का चल रहा है इलाज
गाज़ियाबाद के विख्यात ईएनटी स्पेशियलिस्ट डॉ. बी. पी त्यागी ने बताया कि उनके अस्पताल में इलाज करा रहे पांच मरीज ऑपरेशन के बाद घर पहुंच गए हैं। फिलहाल ब्लैक फंगस से पीड़ित 16 मरीजों का इलाज चल रहा है। तीन मरीज नेहरूनगर स्थित एक प्राइवेट अस्पताल व एक मरीज कविनगर के एक अस्पताल में भर्ती है। डॉ. त्यागी का कहना है कि इस बीमारी में अगर समय से इलाज नहीं मिला तो 90 फीसदी मरीजों की मौत हो जाती है।महिलाओं की अपेक्षा में पुरुषों में अधिक परेशानी
डॉ. बीपी त्यागी ने बताया कि अब तक जितने मरीजों में म्यूकर माइकोसिस मिला है, सभी डायबिटिक हैं। संक्रमित मरीजों की उम्र भी 40 से 68 के बीच है। 21 मरीजों में सिर्फ तीन महिलाएं हैं। अब तक संक्रमित 99 फीसदी मरीजों में बाईं आंख और नाक संक्रमण की चपेट में आए हैं, जबकि एक महिला की दाईं आंख संक्रमित हुई है। एक सप्ताह में उपचार मिल जाए तो उसके बचने की उम्मीद 70 प्रतिशत होती है, लेकिन इलाज में विलंब हो जाए और संक्रमण दिमाग तक पहुंच जाए तो मौत हो जाती है।
इलाज पर आता है 20 लाख रुपए का खर्च
डॉ. त्यागी ने बताया कि संक्रमित मरीज को पांच एमजी प्रति किग्रा के अनुसार इंजेक्शन दिया जाता है। अर्थात, 50 किग्रा वाले मरीज को 50 एमजी की तीन खुराक एक दिन में दी जाती है। एक इंजेक्शन का एमआरपी छह हजार रुपये है। मरीज का एक दिन में सिर्फ तीस हजार रुपये का इंजेक्शन लगता है, जबकि अन्य दवाइयां और अस्पताल का खर्च जोड़कर लगभग एक लाख रुपये प्रतिदिन का होता है।
और क्या हैं इलाज के विकल्प
डॉ. बी पी त्यागी ने बताया कि नेफ्रोटॉक्सिन इंजेक्शन 1,750 रुपये का आता है। इस इंजेक्शन का सबसे अधिक साइड इफेक्ट किडनी पर होता है, इसलिए इसके प्रयोग से डाक्टर बचते हैं। एक और इंजेक्शन एनीडुला फंगिन 17 हजार रुपये का आता है। शुगर लेवेल हाई होने के कारण या अन्य कारणों से जिन मरीजों आपरेशन नहीं किया जा सकता है, ऐसे मरीजों में इस इंजेक्शन के प्रयोग से इंफेक्शन रोका जा सकता है।
इलाज का खर्च कम करने के प्रयास जारी
डॉ. त्यागी ने बताया कि मरीजों का खर्च बचाने के लिए वे कुछ दवाइयों को मिलाकर अलग से प्रयोग कर इलाज कर रहे हैं। इससे मरीजों का एक दिन का इंजेक्शन का खर्च 2,500 रुपये में हो जाता है। उन्होंने बताया कि जो मरीज पैसे खर्च नहीं कर सकते हैं, उनकी मदद के लिए कुछ संस्थाओं की सहायता ली जा रही है।
सरकारी मदद लेनी हो तो लगाने होंगे मेरठ के चक्कर
अगर मरीज में ब्लैक फंगस की पुष्टि होती है तो उसे डाक्टर के पर्चे पर पहले गाज़ियाबाद के सीएमओ से संस्तुति कराने के बाद मेरठ जाकर अपर निदेशक स्वास्थ्य या मंडलायुक्त से इंजेक्शन लेने की अनुमति लेनी होगी। इसके बाद लाइपोसोमल इंजेक्शन 6,000 रुपये (ब्लैक में 16,000 रुपये) और इमल्सन 1,500 रुपये (ब्लैक में 3,000) में मिलेगा। एम्फोटेरेसीन-बी इंजेक्शन सिर्फ महानिदेशक चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाएं की अनुमति पर सरकारी अस्पताल एवं मेडिकल कॉलेज को मिलेगी।
सरकारी अस्पताल में नहीं है एक भी मरीज
सीएमओ डॉ. एन के गुप्ता का कहना है कि अभी तक सरकारी स्तर पर ब्लैक फंगस से पीड़ित एक भी मरीज नहीं आया है। अगर कोई मरीज आता है, तो उसे रामा मेडिकल कॉलेज या संतोष अस्पताल में भर्ती कराया जाएगा। इलाज के लिए जरूरी इंजेक्शन की मांग शासन से की गई है। डॉ. गुप्ता को अभी तक ब्लैक फंगस के कारण किसी मरीज के मौत के बारे में जानकारी नहीं है।