नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कानपुर में पुलिसकर्मियों की हत्या और विकास दुबे समेत आरोपियों की मुठभेड़ों में मौत पर कहा कि यूपी सरकार इस बात का ध्यान रखे कि ऐसी मुठभेड़ दोबारा न हो। शीर्ष अदालत ने इसके साथ ही इन मौतों की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति के गठन के यूपी सरकार के मसौदे को मंजूरी दे दी। राज्य सरकार ने शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश डॉ. बलबीर सिंह चौहान की अध्यक्षता में समिति गठित की है।
मुख्य न्यायाधीश एस.ए. बोबडे की पीठ ने वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से सुनवाई के दौरान कहा कि इस जांच समिति को एक सप्ताह के भीतर अपना काम शुरू कर देना चाहिए और दो महीने के अंदर इसे पूरा कर लेना चाहिए। न्यायमूर्ति चौहान की अध्यक्षता वाली इस जांच समिति में इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश शशिकांत अग्रवाल और उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक के.एल. गुप्ता शामिल हैं। पीठ ने समिति को सचिवालय सहायता उपलब्ध कराने का निर्देश दिया और कहा कि यह सहयोग एनआईए या किसी अन्य केंद्रीय एजेंसी द्वारा उपलब्ध कराया जाना चाहिए। पीठ ने कहा कि यह जांच समिति अपनी रिपोर्ट शीर्ष अदालत के साथ ही राज्य सरकार को भी सौंपेगा। इससे पहले, राज्य सरकार ने न्यायालय को सूचित किया कि शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश डॉ. चौहान कुख्यात अपराधी विकास दुबे की मुठभेड़ में हुई मौत के मामले की जांच के लिए गठित समिति का हिस्सा बनने पर सहमत हैं। पीठ ने कहा कि यह समिति कानपुर के चौबेपुर थानांतर्गत बिकरू गांव में आठ पुलिसकर्मियों के मारे जाने और इसके बाद हुई मुठभेड़ की घटनाओं की भी जांच करेगी।
उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ को बताया कि जांच समिति उन परिस्थितियों की भी जांच करेगी, जिसमें 65 आपराधिक मामलों का सामना कर रहे विकास दुबे को जमानत पर रिहा किया गया था। मेहता ने इस जांच समिति की कार्य-शर्तों को पढ़कर पीठ को सुनाया। इस पर पीठ ने टिप्पणी की कि हम जांच समिति के हाथ नहीं बांधना चाहते। जांच समिति के लिए कार्य-शर्तें रखना उचित नहीं है। जांच समिति की जांच का दायरा व्यापक होना चाहिए। शीर्ष अदालत उन याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें दुबे और उसके पांच कथित साथियों की मुठभेड़ में हुई मौत के मामले की न्यायालय की निगरानी में जांच कराने का आग्रह किया गया था।