दक्षिण एशियाई देशों के लिए समस्या बना, वायु प्रदूषण
डॉक्टर सुभाषचंद्र गहलोत
नई दिल्ली/वाशिंगटन डीसी। वायु प्रदूषण खासकर दक्षिण एशियाई देशों के लिए बहुत विकट समस्या बन गया है। इस विपत्ति की सबसे ज्यादा तपिश दक्षिण एशियाई देशों भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल को सहन करनी पड़ रही है। वायु प्रदूषण संपूर्ण दक्षिण एशियाई क्षेत्र के लिए बहुत बड़ी समस्या है और इस क्षेत्र में स्थित कोई भी देश इससे अकेला नहीं लड़ सकता। भारत और पाकिस्तान के सांसदों ने इन देशों का एक ऐसा मंच तैयार करने की जरूरत बतायी है, जहां पर वायु प्रदूषण से निपटने के लिये विशेषज्ञताओं और अनुभवों का आदान-प्रदान किया जा सके।
पर्यावरण थिंक टैंक ‘क्लाइमेट ट्रेंड्स’ ने वायु प्रदूषण, जन स्वास्थ्य और जीवाश्म ईंधन के बीच अंतर्सम्बंधों को तलाशने और सभी के लिये स्वस्थ धरती से सम्बन्धित एक विजन का खाका खींचने के लिये शनिवार को एक ‘वेबिनार’ का आयोजन किया।
वेबिनार में असम की कलियाबोर सीट से सांसद गौरव गोगोई ने कहा कि वायु प्रदूषण के मामले में पूरी दुनिया की नजर दक्षिण एशिया पर होती है, क्योंकि ये विशाल भूभाग प्रदूषण की समस्या का सबसे बड़ा शिकार है, लिहाजा हमें अपने मानक और अपने समाधान तय करने होंगे। हमें एक ऐसा मंच और ऐसे मानक तैयार करने होंगे जिनसे इस सवाल के जवाब मिलें कि हमने स्टॉकहोम और ग्लास्गो में जो संकल्प लिए थे उन्हें दिल्ली, लाहौर, ढाका और दिल्ली में कैसे लागू किया जाएगा। यह मंच विभिन्न विचारों के आदान-प्रदान का एक बेहतरीन प्लेटफार्म साबित होगा। उन्होंने कहा कि जब हम वायु प्रदूषण के एक आपात स्थिति होने के तौर पर बात करते हैं तो इस बात को भी नोट करना चाहिए कि हम इस मुद्दे पर कितना ध्यान केन्द्रित करते हैं। इन मामलों में सांसद बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ऐसे में बहुत जरूरी है कि हम इस क्षेत्र में अपने सांसदों की क्षमता को और बढ़ाएं। उन्हें इस बात की जानकारी होनी चाहिए कि वायु प्रदूषण उनके अपने राज्य को किस तरह प्रभावित कर रहा है ताकि वे अपने क्षेत्र में सर्वे कर सकें और लोगों को जागरूक बना सकें। इससे यह भी पता लगेगा कि वायु प्रदूषण की समस्या को लेकर हमारे स्थानीय निकाय कितने तैयार हैं।
पाकिस्तान के सांसद रियाज फतयाना ने वायु प्रदूषण को दक्षिण एशिया के लिये खतरे की घंटी बताते हुए महाद्वीप के स्तर पर मिलजुलकर काम करने की जरूरत पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि दक्षिण एशियाई सांसदों का एक फोरम बनाया जाना चाहिए जहां इन विषयों पर बातचीत हो सके। पाकिस्तान में वायु प्रदूषण की समस्या बहुत ही खतरनाक रूप लेती जा रही है। जहां एक तरफ दुनिया कह रही है कि नए कोयला बिजलीघर न लगाए जाएं लेकिन दक्षिण एशिया के विभिन्न देशों में अब भी इन्हें लगाए जाने का सिलसिला जारी है। इनकी वजह से होने वाला वायु प्रदूषण जानलेवा साबित हो रहा है।
उन्होंने कहा कि हमें वैकल्पिक ऊर्जा और एनवायरमेंटल एलाइनमेंट दोनों पर ही काम करना होगा। एक दूसरे के अनुभवों का आदान-प्रदान करना भी बहुत महत्वपूर्ण है। हमें और भी ज्यादा प्रभावी कानून बनाने होंगे। क्लाइमेट ट्रेंड्स की निदेशक आरती खोसला ने कहा कि वायु की गुणवत्ता का मसला अब सिर्फ भारत की समस्या नहीं रहा, बल्कि यह पूरे दक्षिण एशिया की भी समस्या बन चुका है। दुनिया वर्ष 1972 में स्टॉकहोम में ह्यूमन एनवॉयरमेंट पर हुई संयुक्त राष्ट्र की पहली कॉन्फ्रेंस की 50वीं वर्षगांठ अगले महीने मनाने जा रही है। यह इस बात के आकलन के लिए एक महत्वपूर्ण वर्ष है कि किस तरह से जैव विविधता तथा पर्यावरण से जुड़े अन्य तमाम पहलू मौजूदा स्थिति से प्रभावित हो रहे हैं। वायु प्रदूषण एक प्राथमिक सार्वजनिक स्वास्थ्य इमरजेंसी है। दक्षिण एशिया यह मानता है कि जलवायु परिवर्तन सिर्फ राजनीतिक मसला नहीं है बल्कि सामाजिक और आर्थिक समस्या भी बन चुका है।
बांग्लादेश के सांसद साबेर चौधरी ने कहा कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत बेहद महत्वपूर्ण है। हमें पूरी दुनिया में सांसदों की ताकत का सदुपयोग करना चाहिये। वायु प्रदूषण एक पर्यावरणीय आपात स्थिति नहीं बल्कि प्लेनेटरी इमरजेंसी है। इसकी वजह से वॉटर स्ट्रेस और खाद्य असुरक्षा समेत अनेक आपदाएं जन्म ले रही हैं। वायु प्रदूषण दक्षिण एशिया के लिये एक साझा चुनौती है। यह किसी एक देश की सेहत का सवाल नहीं है। यह पूरे दक्षिण एशिया का प्रश्न है। सांसद के रूप में मैं जन स्वास्थ्य पर ध्यान केन्द्रित करना चाहता हूं। हमें नये सिरे से विकास की परिकल्पना करनी होगी।
नेपाल की सांसद पुष्पा कुमारी कर्ण ने काठमांडू की दिन-ब-दिन खराब होती पर्यावरणीय स्थिति का विस्तार से जिक्र करते हुए कहा कि वायु प्रदूषण दुनिया की सभी जानदार चीजों की सेहत पर प्रभाव डाल रहा है। काठमांडू नेपाल की राजधानी है और यह दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में से एक है। हर साल सर्दियों के मौसम में काठमांडू में वायु की गुणवत्ता बहुत खराब हो जाती है। ऑटोमोबाइल्स और वाहनों की बढ़ती संख्या की वजह से समस्या दिन-ब-दिन विकट होती जा रही है। काठमांडू में पीएम 2.5 का स्तर डब्ल्यूएचओ के सुरक्षित मानकों के मुकाबले 5 गुना ज्यादा है। हालांकि नेपाल सरकार ने इलेक्ट्रिक मोबिलिटी के लिए एक योजना तैयार की है। इसी तरह की योजनाएं दक्षिण एशिया के अन्य देशों में भी लागू की जानी चाहिए।
वायु प्रदूषण खासकर दक्षिण एशियाई क्षेत्रों के लिये एक स्वास्थ्य सम्बन्धी आपात स्थिति बन गया है। मेदांता हॉस्पिटल के ट्रस्टी डॉक्टर अरविंद कुमार ने कहा कि भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल को यह सवाल पूछने की जरूरत है कि जलवायु परिवर्तन कितना प्रभावी है। इन चारों देशों में वायु प्रदूषण के स्तर खतरनाक रूप ले चुके हैं। वायु प्रदूषण सिर्फ पर्यावरणीय और रासायनिक मुद्दा नहीं है बल्कि यह विशुद्ध रूप से स्वास्थ्य से जुड़ा मसला है।
फेफड़े के विशेषज्ञ के तौर पर वह अपने 30 साल के अनुभव से कहते हैं कि फेफड़े के कैंसर के लगभग 50 प्रतिशत मरीज ऐसे आ रहे हैं जो धूम्रपान नहीं करते। इसके अलावा 10 प्रतिशत मरीज 20 से 30 साल के बीच के होते हैं। भारत के 30% बच्चे यानी हर तीसरा बच्चा दमा का मरीज है। वायु प्रदूषण सिर्फ हमारे फेफड़ों को ही नुकसान नहीं पहुंचा रहा है बल्कि इसकी वजह से दिल की बीमारियां, तनाव, अवसाद और नपुंसकता समेत अन्य अनेक रोग पैदा हो रहे हैं। गर्भ में पल रहे बच्चे को भी समस्याएं हो रही हैं। यानी पैदाइश से पहले से लेकर मौत तक वायु प्रदूषण हमें प्रभावित कर रहा है। हमारे पास वायु प्रदूषण को समाप्त करने के अलावा और कोई चारा नहीं है। हमें अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी और इस दिशा में काम करने का सबसे सही समय आज ही है।
नेपाली रेस्पिरेटरी सोसाइटी के अध्यक्ष डॉक्टर रमेश चोखानी ने दक्षिण एशिया के पर्वतीय देश नेपाल में वायु प्रदूषण की चिंताजनक स्थिति का जिक्र करते हुए कहा कि नेपाल जीवाश्म ईंधन का प्रमुख उपयोगकर्ता है और वह ज्यादातर जीवाश्म ईंधन को भारत से आयात करता है। नेपाल में अन्य वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों की कमी की वजह से मजबूरन बायोमास और लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है। नेपाल की ज्यादातर आबादी परंपरागत बायोमास पर निर्भर करती है। नेपाल में बायोमास जलने के कारण उत्पन्न वायु प्रदूषण की वजह से हर साल तकरीबन 7500 लोगों की मौत होती है।
उन्होंने बताया कि वायु प्रदूषण को लेकर आपात स्थिति से गुजरने के बावजूद पिछले पांच सालों में नेपाल में पेट्रोल की खपत लगभग दोगुनी हो गयी है। डीजल का उपयोग भी लगभग 96% बढ़ा है। हाल ही में 69 किलोमीटर की पेट्रोलियम पाइपलाइन बिहार के मोतिहारी से नेपाल के बीच तैयार की गई है। इसका मतलब यह है कि नेपाल सरकार का अक्षय ऊर्जा में रूपांतरण का कोई भी इरादा नहीं है। हालांकि नेपाल के पास अक्षय ऊर्जा स्रोतों से बड़े पैमाने पर ऊर्जा उत्पादन करने की क्षमता है। उसके पास वायु, हाइड्रो और सोलर पावर उत्पन्न करने की काफी संभावना है लेकिन अभी उन पर ज्यादा काम नहीं किया गया है। अगर हाइड्रो पावर की तमाम संभावनाओं का सर्वश्रेष्ठ दोहन किया जाए तो इससे नेपाल की अर्थव्यवस्था को बढ़ाने में काफी मदद मिल सकती है। नेपाल के पास काफी प्राकृतिक संपदा है लेकिन उसका सही उपयोग नहीं हो रहा है। बांग्लादेश लंग फाउंडेशन के काजी बेन्नूर ने कहा कि जीवाश्म ईंधन यानी कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस की वजह से अनेक पर्यावरणीय तथा स्वास्थ्य सम्बन्धी नुकसान होते हैं।
इससे जीवाश्म ईंधन की आपूर्ति श्रृंखला के हर चरण में अतिरिक्त भार पैदा होता है। जब जीवाश्म ईंधन को जलाया जाता है तो उससे कार्बन डाइऑक्साइड जैसी ग्रीनहाउस गैस उत्पन्न होती है जो जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा देती है। जीवाश्म ईंधन से पैदा होने वाली गैसों की वजह से समुद्रों का अम्लीकरण, अत्यधिक बारिश और समुद्र के जल स्तर में वृद्धि होती है। जीवाश्म ईंधन जलाने के कारण उत्पन्न वायु प्रदूषण की वजह से दमा, कैंसर, दिल की बीमारी और असामयिक मौत हो सकती है। वैश्विक स्तर पर हर पांच में से एक मौत वायु प्रदूषण की वजह से होती है। वहीं, प्रदूषण दुनिया में चौथा सबसे बड़ा मानव स्वास्थ्य संबंधी खतरा है।
उन्होंने कुछ आंकड़े देते हुए बताया कि वायु प्रदूषण एक अदृश्य हत्यारा है। दक्षिण एशिया में 29% लोगों की मौत फेफड़े के कैंसर से होती है, 24% लोगों की मौत मस्तिष्क पक्षाघात से, 25% लोगों की मौत दिल के दौरे से और 43 प्रतिशत लोगों की मौत फेफड़े की बीमारी से होती है। दक्षिण पूर्व एशियाई क्षेत्र में वायु प्रदूषण की वजह से 20 लाख से ज्यादा लोगों की मृत्यु होती है।
फॉसिल फ्यूल ट्रीटी के हरजीत सिंह ने वायु प्रदूषण के लिये मौजूदा आर्थिक ढर्रे को काफी हद तक जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि हम मौजूदा आर्थिक मॉडल के साथ आगे नहीं बढ़ सकते। हमें एक ऐसे विकास मॉडल की जरूरत है जो हमारे पर्यावरण को संरक्षण देता हो।
कोई भी देश मौजूदा आर्थिक ढर्रे से हटना नहीं चाहता है, लेकिन ऐसा किए बगैर दुनिया को सुरक्षित नहीं बनाया जा सकता। इसके लिए हमें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहयोग की भी जरूरत होती है। क्योंकि इसके बिना कुछ नहीं हो सकता।