पीएम की लोकप्रियता 'संपादकीय'
संपूर्ण विश्व में भारत की विशिष्ट पहचान बनाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को विश्व सदियों तक याद रखेगा। प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी का यह दूसरा कार्यकाल चल रहा है। मानवीय, सामाजिक, ढांचागत विकास और रचनात्मक प्रयासों से कई बार देश की जनता को हतप्रभ किया है। धर्मवाद की नीति के साथ-साथ सभी वर्गों के विकास का प्रयास किया है। इसी कारण निरंतर नरेंद्र मोदी की लहर जारी है। इस लहर को यदि लोकप्रियता से परिभाषित किया जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
परंतु इस बात से भी गुरेज नहीं करना चाहिए कि जिस प्रकार देश में सोशल मीडिया के माध्यम से वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना-विवेचना के साथ, गाली-गलौज, कम्बख़त और पनौती आदि शब्दों का उपयोग किया जा रहा है। आप सभी लोग इसको कैसे देखते हैं, इसके अलैदा इसे लोकप्रियता नहीं तो क्या कहेंगे? सोमवार को पश्चिम बंगाल में एक चुनावी रैली में भारी-भरकम भीड़ भी इसका पुष्ट प्रमाण है। यही नहीं पश्चिम बंगाल में भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार का गठन भी होगा। यह भीड़ इसका संकेत भी है और सूचक भी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अलावा भाजपा में कोई दूसरा इसका श्रेय लेने योग्य राजनेता भी नहीं है।
मगर यह बात क्यों भूल गए हैं कि जिस हड्डी को कुत्ता घंटों तक चाटता रहता है। उससे कुछ नहीं निकलता है। कुत्ते के मसूड़े छीलने से हड्डी पर खून लग जाता है। कुत्ता अपने ही खून को चाटता रहता है। साधारण सी बात है परिश्रम करने की एक ठोस वजह है। लेकिन राजनीतिक प्रारब्ध, स्वार्थ और सत्ता की भूख ने आंखों पर ऐसी पट्टी चढ़ा दी है। जिसके कारण वास्तविकता को देखने-समझने का औचित्य ही नहीं हैं। एक तरफ देश की जनता महामारी का दंश झेल रही है और देश का प्रधान सेवक लाशों के ढेर पर राजनीति कर रहा है। देश की जनता के लिए इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या होगा? बंगाल की जनता शायद पीएम के मोह में अप्रत्यक्ष जोखिम से अनजान है। मासूम और भोली जनता का इससे आसान शिकार क्या होगा? देश की जनता किस हालत से गुजर रही है, इसकी प्रधान सेवक को जरा भी परवाह नहीं है। सत्ता की भूख के सामने एड़िया रगड़ कर दम तोड़ने वालों की परवाह नहीं है, उनकी जिंदगी का कोई मोल नहीं हैं। जो बाकी बचेंगे उन पर राज करेंगे या विपक्ष में बैठ जाएंगे। लोकतंत्र में यह सोच लोकतंत्र की जडें कुतरने वाली है। जो लोग इसके जिम्मेदार है शायद उनके पास अब आखिरी मौका है।
राधेश्याम 'निर्भयपुत्र'