कोरोना वायरस महामारी का सामना जिस तरह से भारत कर रहा है, दुनिया के कई देश उससे सबक ले रहे हैं। वर्ल्ड हेल्थ ऑगनाइजेशन (WHO) भी भारत के प्रयासों की तारीफ करता है। WHO के कार्यकारी निदेशक डॉ. माइकल रेयान कहते हैं कि ‘भारत ने दो गंभीर बीमारियों, चेचक और पोलियो से लड़ने में भी दुनिया को राह दिखाई थी।’ आजादी के बाद, भारत में महामारियां फैलने का बड़ा खतरा था और कई महामारियों ने उसे अपना शिकार बनाया भी। मगर देश ने उनका डटकर सामना किया, मुहिम शुरू की और महामारियों के खिलाफ जीत दर्ज की।
भारत को जब आजादी मिली, तब चेचक के सबसे ज्यादा मामले थे। 1948 में मद्रास (चेन्नई) के किंग्स इंस्टीट्यूट में BCG टीका बनाने के लिए लैब शुरू की। अगले साल तक स्कूल लेवल पर BCG टीकाकरण की शुरुआत हुई। भारत ने 1962 में राष्ट्रीय चेचक उन्मूलन कार्यक्रम शुरू किया। लक्ष्य था तीन सालों में पूरी आबादी को चेचक के टीके लगााना। मामलों को ट्रेस करने और वैक्सीनेशन में तेजी दिखाई गई मगर मामले सामने आते रहे। 1975 वो साल था जब भरत में चेचक का आखिरी मामला मिला। 1977 में भारत चेचक मुक्त घोषित हो गया। यानी चेचक को हराने में हमें तीन दशक से ज्यादा का वक्त लगा।
प्लेग चूहों के जरिए फैलता है। यह सबसे पुरानी बीमारियों में से एक है। भारत में प्लेग की एंट्री पोर्ट सिटी हांगकांग के जरिए ब्रिटिश इंडिया में हुई थी। प्लेग से चीन और भारत में मिलाकर सवा करोड़ से ज्यादा लोगों की जान चली गई थी। प्लेग से चीन और भारत में मिलाकर सवा करोड़ से ज्यादा लोगों की जान चली गई थी। एक सरकारी रिपोर्ट के अनुसार 1994 में देश को प्लेग महामारी से 1800 करोड़ का नुकसान हुआ।एक सरकारी रिपोर्ट के अनुसार 1994 में देश को प्लेग महामारी से 1800 करोड़ का नुकसान हुआ। आखिरकार आइसोलेशन और बचाव की कोशिशों के बाद भारत इसपर काबू पाने में सफल हुआ।
ब्रिटिश राज से लेकर आधुनिक भारत तक, हैजा वो महामारी है जो बार-बार देश में फैलती रही है। पहली बार यह कलकत्ता में 1817 से 1824 के बीच फैली। इस दौरान, हजारों-हजार भारतीय मारे गए। फिर 20वीं सदी में एक बार फिर हैजा फैला। इसने भारत में 8 लाख से ज्यादा लोगों की जान ले ली। 1960 के दशक में एक बार हैजा की एंट्री हुई। 90 के दशक में तमिलनाडु से कुछ मामले सामने आए। भारत में आखिरी बार 2007 में ओडिशा से हैजा के मामले सामने आए थे।पोलियो वो बीमारी थी जिसने पूरी दुनिया के बच्चों को एक वक्त विकलांगता के खतरे में डाल दिया था।
भारत में पोलियो संक्रमण चरम पर था। 1970 में भारत ने ओरल पोलियो वैक्सीन बनाई। राज्यों में पोलियो ड्रॉप पिलाने का अभियान शुरू किया गया। 1995 आते-आते यह मुहिम पूरे देश में लागू कर दी गई। पहले तीन साल तक की उम्र वाले बच्चों को ड्रॉप पिलाई जाती थी, बाद में यह समयसीमा पांच साल कर दी गई। देश में 6.4 लाख पोलियो बूथ बनाए गए थे। उस अभियान में करीब 23 लाख लोग काम कर रहे थे। इक्कीसवीं शताब्दी शुरू होते भारत ने पोलियो के खिलाफ जंग जीतनी शुरू कर दी थी। साल 2014 में WHO ने भारत को पोलियो मुक्त घोषित किया। भारत में इसका आखिरी मामला 2011 में सामने आया था।
मलेरिया मादा एनाफिलीज मच्छर से फैलता है। ये वायरस लीवर को बुरी तरह प्रभावित करता है। WHO के अनुसार, भारत में हर साल दो लाख से ज्यादा लोग इस बीमारी के चलते दम तोड़ देते हैं। लंबे समय से यह माना जाता रहा है कि मलेरिया का खात्मा एक सपने की तरह है, मगर अब इस दिशा में रिसर्च बताती है कि इसका खात्मा किया जा सकता है। मलेरिया की मौजूदा दवाएं सिर्फ बुखार तक सीमित हैं इसलिए सिर्फ वैक्सीन ही इससे बचने का विकल्प है। भारत के अलावा कई देशों से मलेरिया की वैक्सीन बना ली है और उसपर ट्रायल चल रहे हैं।