राशन के इंतजार में ग्रामीण, लॉक डाउन पर भूख न पड़ जाएं भारी
अरविंद द्विवेदी
अनूपपुर। मोदी जी का भारत और विश्व की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और कांग्रेस के आईआईटी, एम्स वाले भारत में इतनी भी क्षमता नहीं है कि वह एक महीने का भी लॉकडाउन सह सके व अपने मेहनतकश नागरिकों को रोजगार की गारंटी दे सके। यहाँ भारत की आर्थिक तरक्की के दावे की पहले ही दिन हवा तब निकल गई जब केवल लॉक डाउन की घोषणा होते ही एक झटके में करोड़ों लोग बेरोजगार हो गए और इसका नजारा देश भर के प्रवासी मजदूरों के रूप में देखा गया। दूर दूर से पैदल आ रहे मजदूरों ने हमारे खोखले आर्थिक विकास को न केवल आइना दिखाया है बल्कि आने वाले दिनों मे देश में बनने जा रहे हालातों का भी ट्रैलर दिखाया है। वर्तमान समय में नेताओं के वादों और ज़मीनी हकीकत में बहुत अंतर है।
“तो कहने का मतलब ये है कि ये जो रोजगार बंद होने का सिलसिला शुरू हुआ है, वो बंद नहीं होने वाला है बल्कि आने वाले दिनों में इसका और भयावह रूप दिखाने वाला है.!”
खत्म हुआ राशन पेट भरने के लाले –शहरी क्षेत्रों में तो हालात फिर भी कुछ बेहतर है किंतु ग्रामीण क्षेत्रों में तो हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं क्योंकि ग्रामीणों की अर्थव्यवस्था शहरों पे आश्रित होती है और शहर तो लॉक डाउन से पूरी तरह लॉक है।
आदिवासी बस्ती में रोज़ी रोटी का संकट –कोरोना संक्रमण के कारण जिले में लॉक डाउन किया गया है जिससे ग्रामीणों के बीच रोज़गार का संकट खड़ा हो गया है रोज़गार के साधन न होने के कारण गांव में ही जो काम मिल जाये उसे करने को मजबूर है किंतु प्रशासन की सख्ती के चलते गांवो की हालात भी खराब होने की कगार पर है।
खतरे में ग्रामीणों का जीवन –कोरोना के कहर के बीच ग्रामीण क्षेत्रों में हालात और बिगड़ते जा रहे हैं एक तो हाथ से रोजगार चला गया ऊपर से अब रोज़ी रोटी का संकट मुह बाएं खड़ा है यूं तो सरकार राशन देने की बात कह रही हैं कितु कहि ऐसा न हो भूख वितरण प्रणाली पर भारी पड़ जाए।
ग्रामीण क्षेत्रों में मजाक बनी होम डिलीवरी –लॉक डाउन में ग्रामीण क्षेत्रों की सभी किराने की दुकानें बंद है। सबसे ज्यादा परेशानी ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को हो रही है लेकिन इस ओर प्रशासन का ध्यान नहीं है। होम डिलेवरी की सुविधा नगर पालिका क्षेत्र के लिए तो कर दी गई है लेकिन ग्रामीण क्षेत्र के लोग आखिर कहां जाए। वहां न तो कोई सब्जी का ठेला पहुंच रहा है और न ही किराने का सामान।
अब गेंहू कटाई से उम्मीदे –पहले मौसम की मार और अब कोरोना के प्रकोप ने देशभर में खेती-किसानी को संकट में डाल दिया है। वहीं, गेहूं खरीद की तैयारियों में जुटी सरकार अब कोरोना की रोकथाम में जुट गई हैं। ऐसा होने से सबसे अधिक मार किसान पर भी पड़ने वाली है। इस बार फसल की शुरुआत में किसानों को बेहतर मानसून की वजह से अच्छी फसल की आस बंधी थी, जिस उम्मीद में किसान अब आश्रित हैं।
साहेब कहाँ है हमारा राशन –यूं तो जिले में लगभग डेढ़ लाख पात्रता पर्ची धारक है और सरकारी आकड़ो में लगभग 90 प्रतिशत लोगो को राशन पहुँचाया भी जा चुका है लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयान करती है जिला मुख्यालय के आसपास के गांवों के ग्रामीण ही अभी राशन के इंतजार में है तो दूरदराज की कहानी अलग ही होगी। कहीं खाद्य विभाग आकड़ो की बाजीगरी तो नहीं कर रहा यह देखने बाली बात होगी क्योंकि जिले में खाद्यान का कितना स्टॉक रहा जिससे गरीबो को 3 माह का राशन एडवांस दे दिया गया क्योंकि आज भी पात्र हितग्राहियों को राशन का इंतजार करते हुए देखा जा सकता है।