डिमेंशिया यानी मनोभ्रंश एक ऐसा मानसिक विकार है जो कि इंसान की सोचने और याद रखने की क्षमता धीरे-धीरे कम कर देता है। यह समस्या तब होती है जब तनाव, अवसाद या अल्जाइमर दिमाग को नुकसान पहुंचाता है। मस्तिष्क में कई हिस्से होते हैं, जो मिलकर अलग-अलग काम करते हैं, लेकिन किसी खास बीमारी या आघात के कारण मस्तिष्क की कोशिकाओं को नुकसान हो सकता है।
मस्तिष्क की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचने से डिमेंशिया हो सकता है और इससे कोशिकाओं के बीच संपर्क की क्षमता पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इसलिए इस विकार के कारण व्यक्ति की याद्दाश्त, व्यवहार और भावनाओं पर असर पड़ता है।
डॉ. रचिता नरसरिया का कहना है कि यह न्यूरॉन यानी मस्तिष्क की कोशिकाओं की गड़बड़ी के कारण होता है। जब मस्तिष्क की स्वस्थ तंत्रिक कोशिकाएं मस्तिष्क की अन्य कोशिकाओं से संपर्क खो देती हैं या उनके साथ काम करना बंद कर देती हैं तो यह स्थिति पैदा होती है।
डिमेंशिया की स्थिति में कई लक्षण सामने आ सकते हैं। जो व्यक्ति इस रोग से पीड़ित है, उनकी याद्दाश्त पर सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ता है। याद्दाश्त हद से ज्यादा कमजोर हो जाती है और इसका संकेत यह है कि व्यक्ति बार-बार एक ही सवाल पूछता है। ऐसे व्यक्ति को घरेलू काम करने में कठिनाई महसूस होती है। बात करने में भी दिक्कत का सामना करना होता है और वे सरल शब्दों तक को भूलने लगते हैं। चीजों को रखकर भूल जाना, मूड या व्यवहार में बदलाव, रास्ता भटक जाना भी शामिल हैं।
डिमेंशिया अंत में रोज होने वाली गतिविधियों को पूरा करने की क्षमता को पूरी तरह खत्म कर देता है जैसे कि ड्राइविंग, घर के कामकाज और यहां तक कि खुद के काम जैसे नहाना, कपड़े पहनना और खाना भी।
डिमेंशिया के भी प्रकार हो सकते हैं। इसके लक्षण और गंभीरता को देखते हुए समझ सकते हैं कि यह किस प्रकार का है। डिमेंशिया का सबसे आम प्रकार अल्जाइमर है। मस्तिष्क में केमिकल रिएक्शन के कारण कुछ प्रोटीन जमा होने से कोशिकाएं नष्ट हो जाती है। डिमेंशिया का दूसरा बड़ा प्रकार है वैस्कूलर डिमेंशिया जो कि रक्त वाहिकाओं के रुक जाने के कारण होता है।
यह स्ट्रोक या मस्तिष्क पर लगी चोट के कारण भी हो सकता है। लेवी बॉडिज डिमेंशिया में कोर्टेक्स में प्रोटीन जमा होने की वजह से होता है। कमजोर याद्दाश्त के अलावा वहम् और असंतुलन से जुड़ी परेशानियां हो सकती हैं। पार्किंसन रोग भी डिमेंशिया पैदा कर सकता है। डिमेंशिया के जोखिम के कारकों में सबसे पहला है उम्र बढ़ना। लाइफस्टाइल भी जोखिम पैदा करता है। शारीरिक आलस, ज्यादा शराब का सेवन, धूम्रपान इस खतरे को बढ़ाता है।
इस बीमारी से बचने का सबसे अच्छा तरीका है कि स्वस्थ जीवनशैली अपनाएं। स्वस्थ आहार लेकर इसके जोखिम को कम किया जा सकता है। साबुत अनाज, फल, सब्जियों का भरपूर सेवन करें। आहार में कार्बोहाइड्रेट, पोटेशियम, कैल्शियम, फाइबर और मैग्नीशियम का अधिक सेवन करें। नियमित रूप से शारीरिक व्यायाम करें और साथ ही मानसिक गतिविधियों पर ध्यान दें। मस्तिष्क को सक्रिय रखने से कोशिकाओं के बीच संपर्क को मजबूत किया जा सकता है। इससे मानसिक शक्ति बढ़ती है।