नई दिल्ली,
नरेन्द्र मोदी ने गेरुआ नकाब ओढ़ कर हिन्दुओं को भरमाया।
आखिर असदुद्दीन औवेसी इस देश को अपना कब समझेंगे?
543 में 302 सीटें अकेले दम पर जीतने के बाद 23 मई की रात को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि इस बार लोकसभा चुनाव की खास बात यह रही कि कोई भी राजनीतिक सेकुलरिज्म का नकाब ओढ़कर सामने नहीं आया। भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र में ऐसा होना वाकई अच्छी शुरुआत है। सभी ने प्रधानमंत्री के इस कथन की प्रशंसा की, लेकिन 24 मई को एआईएआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन औवेसी ने प्रधानमंत्री पर इसी मुद्दे पर हमला करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। सनातन संस्कृति के प्रतीत बाबा केदारनाथ के दर्शन और गुफा में साधना करने के प्रधानमंत्री के कार्य का मजाक उड़ाते हुए औवेसी ने कहा कि नरेन्द्र मोदी ने गेरुआ नकाब ओढ़ कर हिन्दुओं को भरमाया है। फिल्म अभिनेता कमल हसन के कथन को दोहराते हुए औवेसी ने भी कहा कि आजादी के बाद नाथूराम गौडसे ही पहला हिन्दू आतंकवादी था। औवेसी ने कहा कि वे हिन्दुत्व की विचारधारा का विरोध करते रहेंगे। सवाल उठता है कि आखिर औवेसी जैसे नेता इस देश को अपना कब समझेंगेे? नरेन्द्र मोदी यदि अपनी सनातन संस्कृति के अनुरूप गेरुआ वस्त्र पहन कर मंदिर जाते हैं तो इसमें ऐतराज की क्या बात है? क्या अब मोदी गेरुआ वस्त्र पहन कर मंदिर भी न जाएं? असदुद्दीन औवेसी जिस हैदराबाद शहर से बार बार चुनाव जीतते हैं उसे हैदराबाद का इतिहास किसी से छिपा नहीं है। यदि भारतीय संविधान के अनुरूप औवेसी हैदराबाद से चुनाव जीतते हैं तो उन्हें भी नरेन्द्र मोदी की तरह एक सांसद के तौर पर सभी सुविधाएं मिलती हैं। हिन्दुओं की सनातन संस्कृति का मजाक उड़ाने पर भी लोकसभा में औवेसी के साथ कोई भेदभाव नहीं होता। औवेसी राजनीतिक कारणों से मोदी पर जातिवाद का तो आरोप लगाते हैं, लेकिन स्वयं हर बाद हैदराबाद से ही चुनाव लड़ कर बहादुरी क्यों दिखाते हैं? क्या औवेसी हैदराबाद से बाहर किसी अन्य संसदीय क्षेत्र से चुनाव लडऩे की हिम्मत दिखा सकते हैं? औवेसी माने या नहीं, लेकिन इस चुनाव में सेकुलरिज्म का नकाब वाकई उतर गया है। इतना ही नहीं घोर जातिवाद की राजनीति भी ध्वस्त हो गई है। यूपी में मायावती और अखिलेश ने जातिवाद के कारण ही गठबंधन किया था, लेकिन नरेन्द्र मोदी की सुनामी की वजह से गठबंधन ढेर हो गया। भाजपा के उम्मीदवारों को तीन तीन, चार-चार लाख मतों की जीत बताती है कि मतदाताओं ने जाति की विचारधारा को छोड़ कर राष्ट्रहित में नरेन्द्र मोदी को वोट दिया है। लोगों ने उम्मीदवार के बारे में जाने बगैर ही मोदी के नाम वोट दिए। देश के लोगों के इस मिजाज को औवेसी जैसे नेताओं को समझना होगा।