सरस्वती पूजा, ऋतुराज बसंत फूलों पर बाहर
सरस्वती उपाध्याय
प्राचीन भारत और नेपाल में पूरे साल को जिन छह मौसमों में बाँटा जाता था उनमें वसंत लोगों का सबसे मनचाहा मौसम था। जब फूलों पर बहार आ जाती, खेतों में सरसों का फूल मानो सोना चमकने लगता, जौंं और गेहूं की बालियाँ खिलने लगतीं, आमों के पेड़ों पर मांजर (बौर) आ जाता और हर तरफ रंग-बिरंगी तितलिियां मँडराने लगतीं। भर-भर भंवरे भंवराने लगते। वसंत ऋतु का स्वागत करने के लिए माघ महीने के पाँचवे दिन एक बड़ा जश्न मनाया जाता था जिसमें विष्णु और कामदेव की पूजा होती हैं। यह वसंत पंचमी का त्यौहार कहलाता था।
बसंत पंचमी का पर्व हर साल माघ माह के शुक्ल-पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। इस बार बसंत पंचमी 5 फरवरी, शनिवार के दिन पड़ रही है। इस दिन मां सरस्वती की पूजा-अर्चना कर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है। मां को इस दिन पीले रंग के वस्त्र, पीले पुष्प, गुलाल, अक्षत, धूप, दीप, गंध आदि अर्पित किए जाते हैं। मान्यता है कि इस दिन मां सरस्वती कमल पर विराजमान होकर हाथ में वीणा लेकर और पुस्तक धारण करके प्रकट हुई थीं।
तब से ही माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को बसंत पंचमी का पर्व मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन मां शारदे की पूजा करने से मां प्रसन्न होकर भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करती हैं। जिन भक्तों पर मां शारदे की कृपा बरसाती हैं। उन्हें कला, संगीत और शिक्षा के क्षेत्र में बेशुमार सफलता मिलती है। बसंत पंचमी के दिन मां को जल्दी प्रसन्न करने के लिए सरस्वती वंदना और सरस्वती मंत्रों का जाप अवश्य करें।