म्यांमार बॉर्डर को पूरी तरह से सील किया जाएगा
सुनील श्रीवास्तव
नई दिल्ली/नाएप्यीडॉ। भारत सरकार ने म्यांमार को लेकर एक ऐतिहासिक कदम उठाया है। अब म्यांमार बॉर्डर को पूरी तरह से सील किया जाएगा और फ्री मूवमेंट रिजीम यानी एफएमआर को खत्म कर दिया गया है। ये पहली बार हो रहा है, जब भारत ने म्यांमार के साथ अपनी 1645 किलोमीटर लंबी सीमा को पूरी तरह बंद करने का फैसला किया है।
आपने हाल ही में जोलैंड नाम सुना होगा। ये भारत और म्यांमार के कुछ हिस्सों में रहने वाले कुकी समुदाय का सपना था। वो चाहते थे कि मिजोरम, मणिपुर, नागालैंड और म्यांमार के शंघाई क्षेत्र को मिलाकर एक अलग राज्य बनाया जाए। लेकिन भारत सरकार ने इस मांग को पूरी तरह खारिज कर दिया है और अब म्यांमार बार्डर पर मजबूत सुरक्षा इंतजाम कर दिए गए हैं।
क्या है फ्री मूवमेंट रिजीम
अब तक भारत और म्यांमार के लोग 10 किलोमीटर तक बिना वीजा के आ जा सकते थे। लेकिन अब इस फैसले के बाद ऐसा संभव नहीं होगा। बॉर्डर पार करने के लिए एक तय गेट से गुजरना होगा और पूरी प्रक्रिया फॉलो करनी होगी। इस फैसले से सबसे ज्यादा असर नागा और कुकी जनजातियों पर पड़ेगा क्योंकि इसके रिश्तेदार म्यांमार में रहते हैं। यही वजह है कि वे इसका विरोध कर रहे हैं। लेकिन भारत सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए ये बड़ा कदम उठाया है। यंग मिजो एसोसिएशन या सेंट्रल वाईएमए की केंद्रीय समिति ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से भारत-म्यांमार सीमा पर बाड़ लगाने और पड़ोसी देश के साथ मुक्त आवागमन व्यवस्था को हटाने के केंद्र के फैसले पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया है। 2011 की जनगणना के अनुसार, वाईएमए मिजोरम का सबसे बड़ा नागरिक समाज संगठन है, जिसके राज्य की लगभग 11 लाख की आबादी में से 4 लाख से अधिक सदस्य हैं।
क्यों लिया गया ये फैसला ?
इस फैसले को लेने के पीछे कई बड़े कारण हैं। म्यांमार में 2021 से गृह युद्ध जैसी स्थिति बनी हुई है। कई लोग भारत में शरण लेने आ रहे हैं। इससे मिजोरम और मणिपुर में तनाव बढ़ रहा है। भारत में नार्को टेररिज्म बड़ रहा है। कई आतंकी संगठन ड्रग्स और हथियारों की तस्वकरी के जरिए अपने नेटवर्क को मजबूत कर रहे हैं। मिजोरम 2021 में पड़ोसी देश के सैन्य अधिग्रहण के बाद से म्यांमार के चिन राज्य के लगभग 40,000 शरणार्थियों को आश्रय प्रदान कर रहा है, जो मिज़ो के साथ जातीय संबंध साझा करते हैं। इसके अलावा, राज्य में बांग्लादेश के चटगांव पहाड़ी क्षेत्र से आए 2,000 शरणार्थी और मणिपुर से आए 12,000 आंतरिक रूप से विस्थापित लोग भी हैं।
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