अध्यात्म: आज मनाया जाएगा 'छठ' पर्व, जानिए
सरस्वती उपाध्याय
हर साल कार्तिक मास की शुक्ल-पक्ष की चतुर्थी तिथि को छठ पर्व की शुरुआत होती है और फिर से चार दिनों तक बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इस पर्व में खास तौर पर सूर्य देव और षष्ठी माता की पूजा की जाती है। इसकी शुरुआत नहाय-खाय से होती है और भगवान सूर्य को संध्या के समय अर्घ्य दिया जाता है। इस वर्ष छठ पूजा की शुरुआत 05 नवंबर, मंगलवार से हो चुकी है, जिसका समापन 8 नवंबर 2024- उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर किया जाएगा। आइए जानते हैं व्रत पारण की विधि और तिथि...
धार्मिक मान्यता है कि, जो भी व्यक्ति छठ पूजा का व्रत रखता है, उसे सुख-शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है। चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व का आखिरी दिन बेहद खास माना गया है। इसी दिन पारण किया जाता है और ऐसा कहा जात है कि इसके बिना इस पूरे पर्व का फल नहीं मिलता। किस तरह पारण करना चाहिए और क्या है इसकी सही विधि ? आइए जानते हैं...
छठ व्रत की पारण विधि...
आप जब चार दिवसीय छठ पर्व का पारण कर रहे हैं, तो ध्यान रखें सूर्य देव को अर्घ्य देने के साथ ही घाट पूजन का बड़ा महत्व है। इसी के साथ बड़े-बुजुर्गों का आशीर्वाद लें और छठी माता को अर्पित किया गया प्रसाद सभी को बांटना चाहिए।
छठ पूजा का व्रत खोलते समय ध्यान रखें कि आपको मसालेदार भोजन नहीं करना है। बल्कि अपने व्रत को पूजा में चढ़ाए प्रसाद जैसे कि ठेकुआ, मिठाई आदि से खोलें। इसके अलावा आप चाय पीकर भी व्रत का पारण कर सकते हैं।
उदयातिथि के अनुसार, छठ पूजा का पर्व 7 नवंबर दिन गुरुवार को ही मनाया जाएगा। छठ पूजा संपन्न करने के लिए इस तरह से शाम के समय का अर्घ्य 7 नवंबर को और सुबह का अर्घ्य 8 नवंबर को दिया जाएगा। इसके बाद व्रत का पारण किया जाएगा।
छठ पर्व के 4 दिन...
5 नवंबर 2024, छठ पूजा का पहला दिन – नहाय खाएं।
6 नवंबर 2024, छठ पूजा का दूसरा दिन – खरना।
7 नवंबर 2024, छठ पूजा का तीसरा दिन – डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य।
8 नवंबर 2024, छठ पूजा का चौथा दिन – उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का पारण।
धार्मिक मान्यता के अनुसार, कई लोग सूर्य देव की पूजा के बाद पीपल के पेड़ की पूजा भी करते हैं।
क्या है छठ व्रत का महत्व ?
पौराणिक कथाओं के अनुसार, महाभारत के समय यह व्रत द्रौपदी ने किया था। ऐसा उल्लेख मिलता है कि जब पांडव चौसर में अपनी धन-संपत्ति और राज पाठ दांव पर लगाकर हार गए थे, तो इसी व्रत के प्रभाव से द्रौपदी ने राजपाठ पुन: प्राप्त किया था।