गुरुवार, 24 अक्तूबर 2024

'स्मार्ट इंसुलिन' विकसित करने में सफलता मिली

'स्मार्ट इंसुलिन' विकसित करने में सफलता मिली 

अकांशु उपाध्याय 
नई दिल्ली। डायबिटीज से दुनिया भर में आधे अरब से ज्यादा लोगों प्रभावित हैं और हर साल लगभग सात मिलियन लोगों की इस बीमारी मृत्यु हो जाती है। हाल के कुछ सालों में इस बीमारी का कहर काफी बढ़ गया है। ऐसे में अब, वैज्ञानिकों ने डायबिटीज के इलाज के लिए एक स्मार्ट इंसुलिन विकसित करने में सफलता प्राप्त की है। जिसका नाम नाम ‘NNC2215’ है। 
यह डायबिटीज से पीड़ित व्यक्ति के ब्लड शुगर लेवल में उतार-चढ़ाव के अनुसार वास्तविक समय में प्रतिक्रिया करता है। यह शोध बुधवार को नेचर पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। इस स्मार्ट इंसुलिन का विकास ब्रिटोल विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने डेनमार्क, यू.के. और चेक गणराज्य की कंपनियों के साथ मिलकर किया है। इस स्मार्ट इंसुलिन में एक ऑन और ऑफ स्विच है, जो इसे ब्लड शुगर लेवल में बदलावों के लिए रियल टाइम में प्रतिक्रिया करने में सक्षम बनाता है। 

कैसा दिखता है स्मार्ट इंसुलिन ? 

इसका आकार एक रिंग की संरचना जैसा है और इसमें एक ग्लूकोसाइड अणु है, जो आकार में ग्लूकोज जैसा दिखता है। जब ब्लड शुगर लेवल कम होता है, तो ग्लूकोसाइड रिंग की संरचना से बंध जाता है। इससे इंसुलिन इनएक्टिव स्टेट में रहता है, जिससे रब्लड शुगर लेवल और लो होने से रोका जा सकता है। लेकिन, जैसे-जैसे ब्लड शुगर बढ़ता है, ग्लूकोसाइड की जगह ग्लूकोज ले लेता है। इससे इंसुलिन अपना आकार बदलने लगता है और एक्टिव हो जाता है, जिससे ब्लड शुगर लेवल को सुरक्षित सीमा तक लाने में मदद मिलती है। 

कैसे काम करता है स्मार्ट इंसुलिन ? 

ये ग्लूकोज-रिस्पॉन्सिव इंसुलिन ब्लड शुगर लेवल को स्थिर करते हैं और हाइपरग्लाइसेमिया और हाइपोग्लाइसेमिया को रोकते हैं। क्योंकि, ये तभी सक्रिय होते हैं जब ब्लड शुगर लेवल बहुत ज्यादा होता है और जब स्तर बहुत कम हो जाता है, तो निष्क्रिय हो जाते हैं। विशेषज्ञों का मानना ​​है कि भविष्य में, रोगियों को सप्ताह में केवल एक बार इंसुलिन की आवश्यकता हो सकती है। स्टैंडर्ड इंसुलिन ब्लड शुगर लेवल को स्थिर करते हैं। लेकिन आम तौर पर भविष्य में उतार-चढ़ाव में मदद नहीं कर सकते हैं, जिसके कारण रोगियों को कुछ ही घंटों के भीतर अधिक इंसुलिन का इंजेक्शन लगाना पड़ता है। नए स्मार्ट इंसुलिन इस समस्या का समाधान करते हैं और अधिक प्रभावी समाधान प्रदान करते हैं। 

डायबिटीज यह 2 प्रकार की होती है–

टाइप– 1 

डायबिटीज को ‘चाइल्डहुड डायबिटीज’ भी कहते हैं। यह एक ऑटोइम्यून रिएक्शन के चलते होता है, जिसमें शरीर की डिफेंस सिस्टम, इंसुलिन हार्मोन का स्राव करने वाली पैंक्रियाज की बीटा सेल्स को नष्ट कर देती है। इसके लिए जेनेटिक फैक्टर जिम्मेदार हो सकते हैं। इंसुलिन हार्मोन खून में ग्लूकोज के लेवल को कंट्रोल करने के लिये जिम्मेदार होता है। टाइप– 1 डायबिटीज से आमतौर पर बच्चे और किशोर प्रभावित होते हैं। 

टाइप– 2 

यह डायबिटीज का सबसे आम प्रकार है। इसमें शरीर की कोशिकाएं इंसुलिन का ठीक से इस्तेमाल नहीं करती हैं। इसमें पैंक्रियाज से इंसुलिन का निर्माण तो होता है। लेकिन, इसकी मात्रा कम होती है। यह हमारे ब्लड शुगर लेवल को सामान्य कैटेगरी में रखने के लिए पर्याप्त नहीं होता है। टाइप– 2 डायबिटीज किसी भी उम्र में विकसित हो सकता है। 
डबल्यूएचओ के अनुसार, भारत में 18 वर्ष से अधिक आयु के 77 मिलियन लोग डायबिटीज से पीड़ित हैं और लगभग 25 मिलियन प्रीडायबिटिक हैं। भारत की मेटाबोलिक नॉन कम्युनिकेबल डिजीज हेल्थ रिपोर्ट के अनुसार, भारत की 11 फीसदी आबादी मधुमेह से पीड़ित है। जबकि, 15.3 फीसदी आबादी प्री-डायबिटीज से प्रभावित है। 

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