सहयोगियों को भाजपा कार्यकर्ताओं पर भरोसा नहीं
संदीप मिश्र
लखनऊ। समाजवादी पार्टी (सपा) अध्यक्ष अखिलेश यादव ने बूथ पर जाकर व्यवस्था संभालने की बात कहीं। भाजपा के सहयोगियों ने साफ कर दिया है, कि उनको भाजपा के कार्यकर्ताओं पर भरोसा नहीं रहा है। अखिलेश यादव ने शुक्रवार को कहा, कि दरअसल चुनावी हार के बाद भाजपाई गुटों ने आपस में विश्वास खो दिया है। इसका एक और पहलू यह भी है, कि भाजपा का ‘संगी-साथी’ पक्ष ये दिखाना चाहता है, कि हार का कारण वो नहीं था, वो तो अभी भी शक्तिशाली हैं, कमज़ोर तो भाजपा हुई है। इन दोनों ही परिस्थितियों में यह तो साबित होता है कि भाजपाइयों ने हार स्वीकार कर ली है और अब भविष्य के लिए बेहद चिंतित हैं, लेकिन आपस में दोषारोपण करके, न तो ये एक-दूसरे का भरोसा जीत पाएंगे और न ही कोई आगामी चुनाव। बाँटने की राजनीति करनेवाले लोग ख़ुद बँट गये हैं। उन्होने कहा कि भाजपा अपनी तथाकथित चाणक्य नीति के तहत जिन ‘पन्ना प्रमुखों’ की बात करती थी, अब क्या वो इतिहास बन गये? आज अगर वे उपलब्ध नहीं हैं तो उसके पीछे कुछ महत्वपूर्ण कारण हैं। अब भाजपा के जो गिने-चुने कार्यकर्ता बाक़ी है। वे ये सोचकर हताश हैं कि वर्तमान परिस्थिति में, जबकि समाज का 90 प्रतिशत पीडीए समाज जाग उठा है और पीडीए की बात करने वालों के साथ खड़ा है, तो फिर वे किसके पास जाकर वोट माँगें और 90 प्रतिशत पीडीए समाज के सामने आकर क्यों उनके विरोधी होने का ठप्पा ख़ुद पर लगाएं ? आखिरकार उन्हें भी तो उसी 90 प्रतिशत समाज के बीच ही रहना है। अखिलेश यादव ने कहा कि ऐसे भूतपूर्व भाजपाई पन्ना प्रमुख ये सच्चाई भी जान चुके हैं, कि भाजपा में किसी की कोई सुनवाई नहीं है, तो ऐसे दल में रहकर कभी भी कोई मान-सम्मान-स्थान उन्हें मिलने वाला नहीं है। वे ऐसे दलों की सच्चाई भी जान चुके हैं, जो भाजपा की राजनीति के मोहरे बनकर काम कर रहे हैं। वे देख रहे हैं, कि जनता अब पीडीए की एकता और एकजुटता के साथ है। क्योंकि, पीडीए की सकारात्मक राजनीति लोगों को जोड़ती है और जनता के भले के लिए राजनीति को एक सशक्त माध्यम मानती है। इसीलिए समाज का अंतिम पंक्ति में खड़ा सर्वाधिक प्रताड़ित और शोषित-वंचित समाज भी पीडीए में ही अपना भविष्य देख रहा है।
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